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Indian Contract Act 1872 (Part 2) Notes – Special Contracts with Sections, Case Laws, PDF (UGC NET, Judiciary, LLB)

📘 भारतीय संविदा अधिनियम, भाग 2 – 10 यूनिट्स का चार्ट (Special Contracts)

Unit शीर्षक (Title) धाराएँ (Sections)
Unit 1 Indemnity (प्रतिरक्षण) Sections 124–125
Unit 2 Guarantee (गारंटी) Sections 126–147
Unit 3 Bailment – परित्याग का सिद्धांत Sections 148–157
Unit 4 Rights & Duties of Bailor and Bailee Sections 158–171
Unit 5 Pledge (प्रतिग्रहण) Sections 172–179
Unit 6 Agency – General Principles Sections 182–185
Unit 7 Authority of Agent – Types Sections 186–196
Unit 8 Rights, Duties & Termination of Agency Sections 197–210
Unit 9 Sub-Agent & Liability of Agent Sections 191–192, 215–218
Unit 10 Principal–Third Party Relationship Sections 226–238

📦 UNIT 1: Indemnity (प्रतिरक्षण)

इस यूनिट में प्रतिरक्षण की अवधारणा, दायित्व और नुकसान की पूर्ति का प्रावधान समझाया गया है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 1: Indemnity (प्रतिरक्षण)

🔰 प्रस्तावना:
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 124 और 125 प्रतिरक्षण अनुबंध (Contract of Indemnity) से संबंधित है। इसका उद्देश्य है – यदि किसी व्यक्ति को नुकसान पहुँचे तो उसे उसकी क्षतिपूर्ति मिल सके। यह समझौता एकतरफा सुरक्षा प्रदान करता है।

📌 Section 124 – परिभाषा:

"जहाँ एक पक्ष (प्रतिरक्षणकर्ता) दूसरे पक्ष (प्रतिरक्षित व्यक्ति) को किसी हानि, हानि का खतरा, मुकदमा, या दायित्व से सुरक्षा देने का वचन देता है, वहाँ वह एक प्रतिरक्षण अनुबंध होता है।"

📌 पक्षकार:

  • Indemnifier: वह जो सुरक्षा देने का वादा करता है
  • Indemnity Holder: जिसे नुकसान से बचाने का वादा किया गया है

📌 Section 125 – Indemnity Holder के अधिकार:

प्रतिरक्षित व्यक्ति निम्नलिखित की मांग कर सकता है:

  • ✔️ न्यायसंगत हानि की क्षतिपूर्ति
  • ✔️ कानूनी खर्चों की भरपाई
  • ✔️ समझौता या समझदारी से किया गया निपटारा

📘 महत्वपूर्ण बिंदु:

  • ➡️ केवल वैध कार्यों की क्षतिपूर्ति मिलती है
  • ➡️ नुकसान वास्तविक हो या संभावित
  • ➡️ लिखित या मौखिक अनुबंध दोनों मान्य

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Gajanan Moreshwar v. Moreshwar Madan (1942): अदालत ने कहा कि प्रतिरक्षणकर्ता का दायित्व तभी शुरू होता है जब हानि की संभावना प्रकट हो जाए।
  • 📌 Osman Jamal & Sons Ltd. v. Gopal Purushottam (1928): कानूनी खर्च की भरपाई भी प्रतिरक्षण का हिस्सा होती है।

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

प्रतिरक्षण अनुबंध का मूल उद्देश्य नुकसान से रक्षा करना है। परीक्षा में इस यूनिट से सीधे सेक्शन आधारित या केस लॉ आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। इसलिए Sec 124 और 125 के शब्दों को अच्छी तरह से याद रखें।

📦 UNIT 2: Guarantee (गारंटी)

गारंटी अनुबंध के अंतर्गत तीन पक्षकारों की भूमिका, देनदारी और अधिकारों की चर्चा इस यूनिट में की गई है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 2: Contract of Guarantee (गारंटी अनुबंध)

🔰 प्रस्तावना:
Contract of Guarantee ऐसा अनुबंध होता है जिसमें एक व्यक्ति (Surety) किसी दूसरे व्यक्ति (Principal Debtor) की देनदारी को पूरा करने का वचन देता है यदि वह भुगतान करने में असफल होता है। इसमें तीन पक्ष होते हैं – Creditor, Principal Debtor, और Surety।

📌 Section 126 – परिभाषा:

गारंटी अनुबंध वह है जिसमें एक व्यक्ति किसी तीसरे पक्ष के लिए ऋण, वस्तु या सेवा की प्राप्ति पर उत्तरदायित्व लेता है।

📌 तीन पक्षकार:

  • Creditor (ऋणदाता): जिसे पैसा मिलना है
  • Principal Debtor (मूल ऋणी): जो वास्तव में भुगतान करने वाला है
  • Surety (जमानती): जो भुगतान की गारंटी देता है

📌 Section 127 – Consideration:

गारंटी अनुबंध में जो विचार मुख्य ऋणी को लाभ पहुँचाता है, वह जमानती के लिए भी पर्याप्त माना जाता है।

📌 Section 128 – Surety की देनदारी:

  • ✔️ जमानती की देनदारी मूल ऋणी की देनदारी के समान होती है
  • ✔️ अगर मूल ऋणी भुगतान नहीं करता, तो जमानती सीधे उत्तरदायी है

📌 Section 129–131 – गारंटी के प्रकार:

  • 🔹 Specific Guarantee: एकल लेन-देन के लिए
  • 🔹 Continuing Guarantee: एक से अधिक लेन-देन के लिए
  • 🔹 Continuing Guarantee को किसी भी समय वापस लिया जा सकता है (Sec 130)

📘 अधिकार और दायित्व:

  • Surety के अधिकार: Subrogation (Sec 140), Indemnity (Sec 145)
  • Surety की देनदारी समाप्त होने की दशाएँ: Novation, Discharge of Principal Debtor, Fraud (Sec 133–139)

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Bank of Bihar Ltd. v. Damodar Prasad (1969): जमानती की देनदारी स्वचालित होती है, मांग की आवश्यकता नहीं
  • 📌 State Bank of India v. Premco Saw Mill (1983): Continuing guarantee को समाप्त करने के लिए स्पष्ट सूचना आवश्यक
  • 📌 Punjab National Bank v. Bikram Cotton Mills (1970): बिना सहमति के ऋणी की शर्तों में बदलाव होने पर गारंटी समाप्त हो सकती है

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

गारंटी अनुबंध में जमानती की जिम्मेदारी कानूनी रूप से मूल ऋणी के समान होती है। परीक्षा में Sec 126–147 से सीधा केस आधारित या कथनात्मक प्रश्न पूछा जाता है। केस लॉ और धाराओं का क्रम स्पष्ट रखें।

📦 UNIT 3: Bailment – General Principles (बेलमेंट के सामान्य सिद्धांत)

इस यूनिट में बेलमेंट की परिभाषा, आवश्यक शर्तें एवं पक्षकारों के अधिकारों का परिचय दिया गया है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 3: Bailment (परित्याग/निग्रह) – General Principles

🔰 प्रस्तावना:
Bailment एक ऐसा अनुबंध है जिसमें एक पक्ष (Bailor) अपनी वस्तु अस्थायी रूप से दूसरे पक्ष (Bailee) को एक उद्देश्य के लिए सौंपता है और कार्य पूरा होने पर उसकी वापसी की अपेक्षा करता है।

📌 Section 148 – परिभाषा:

“जब कोई व्यक्ति एक वस्तु को किसी विशेष उद्देश्य से किसी दूसरे को सौंपता है और उसे बाद में लौटा दिया जाना होता है, तब यह Bailment होती है।”

📌 आवश्यक शर्तें:

  • ✔️ वस्तु की डिलीवरी – वास्तविक या प्रतीकात्मक
  • ✔️ अस्थायी रूप से सौंपना
  • ✔️ स्पष्ट उद्देश्य
  • ✔️ वापसी की अपेक्षा

📌 प्रकार:

  • Gratuitous Bailment: बिना किसी पारिश्रमिक के
  • Bailment for Hire: भुगतान के लिए वस्तु का सौंपना

📌 पक्षकार:

  • Bailor: वस्तु सौंपने वाला
  • Bailee: वस्तु रखने वाला

📘 Delivery के प्रकार:

  • 🔹 Actual Delivery: वस्तु की सीधी सुपुर्दगी
  • 🔹 Constructive Delivery: प्रतीकात्मक सौंपना (जैसे चाबी देना)

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Kaliaperumal Pillai v. Visalakshmi (1938): बिना मालिक की जानकारी के दी गई वस्तु Bailment नहीं मानी जाएगी।
  • 📌 Ultzen v. Nicolls (1894): होटल में कोट सौंपना एक वैध Bailment माना गया।

📌 Bailee की जिम्मेदारी:

Bailee वस्तु की यथासंभव देखरेख करेगा जैसा कि वह अपनी वस्तु के साथ करता है (Sec 151)।

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

Bailment कानून के अंतर्गत एक अर्ध-स्वामित्व संबंध स्थापित करता है। इसकी धाराएँ, विशेषकर Sec 148–157 परीक्षा में सीधे पूछी जाती हैं। केस लॉ और उदाहरणों के माध्यम से इसकी व्यावहारिक समझ आवश्यक है।

📦 UNIT 4: Rights & Duties of Bailor and Bailee

इस यूनिट में बेलर और बेली के दायित्वों, अधिकारों और हानि की भरपाई के सिद्धांतों की जानकारी दी गई है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 4: Rights and Duties of Bailor and Bailee

🔰 प्रस्तावना:
Bailment के अनुबंध में दोनों पक्षों – Bailor और Bailee – के कुछ विशेष अधिकार और कर्तव्य होते हैं। इनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वस्तु की सुरक्षित देखरेख हो, और अनुबंध की शर्तों का पालन किया जाए।

📌 Duties of Bailor (धारा 158–159):

  • ✔️ वस्तु की दोषरहित स्थिति में सुपुर्दगी (Sec 158)
  • ✔️ Bailee को उचित दिशा-निर्देश देना
  • ✔️ Gratuitous Bailment में नुकसान की भरपाई करना
  • ✔️ यदि वस्तु में कोई खामी हो, तो उसकी जानकारी देना (Sec 150)

📌 Duties of Bailee (धारा 151–157):

  • ✔️ वस्तु की उचित देखरेख (Sec 151)
  • ✔️ स्वामित्व का उल्लंघन न करना
  • ✔️ Bailor को वस्तु की वापसी (Sec 160)
  • ✔️ अतिरिक्त लाभ Bailor को लौटाना (Sec 163)
  • ✔️ Bailor की अनुमति के बिना वस्तु का उपयोग नहीं करना (Sec 154)

📌 Rights of Bailor:

  • ✔️ Gratuitous Bailment में वस्तु की मांग किसी भी समय करना
  • ✔️ Bailee द्वारा क्षति पहुँचाने पर क्षतिपूर्ति लेना
  • ✔️ उचित उपयोग और लाभ की अपेक्षा रखना

📌 Rights of Bailee:

  • ✔️ पारिश्रमिक (remuneration) की मांग
  • ✔️ Lien – वस्तु को रोके रखने का अधिकार (Sec 170 – Particular Lien, Sec 171 – General Lien)

📘 विशेष: Lien (ग्रहणाधिकार)

Bailee को तब तक वस्तु रखने का अधिकार होता है जब तक उसे उसका पारिश्रमिक या खर्च न मिल जाए।

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Kaliaperumal v. Visalakshmi (1938): देखरेख न करने पर Bailee उत्तरदायी
  • 📌 Nagpur Golden Transport Co. v. Nath Traders (1983): सामान खोने पर Bailee की जिम्मेदारी
  • 📌 Bank of Bihar v. Tata Scob Ltd. (1965): Bailee का Lien वैध था

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

Bailor और Bailee के कर्तव्यों और अधिकारों का स्पष्ट निर्धारण भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 158–171 में किया गया है। यह यूनिट प्रतियोगी परीक्षाओं में केस आधारित और कथनात्मक प्रश्नों के लिए अत्यंत उपयोगी है।

📦 UNIT 5: Pledge (प्रतिग्रहण)

इस यूनिट में प्रतिग्रहण का अर्थ, अधिकार, कर्तव्य, और विशेष परिस्थितियाँ शामिल हैं। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 5: Pledge (प्रतिग्रहण)

🔰 प्रस्तावना:
Pledge एक विशेष प्रकार की Bailment होती है, जिसमें वस्तु को ऋण या उधार के बदले में सुरक्षा (security) के रूप में रखा जाता है। इस प्रक्रिया में Pawnor वस्तु देता है और Pawnee उसे रखता है जब तक ऋण चुकाया न जाए।

📌 Section 172 – परिभाषा:

“Pledge वह Bailment है, जहाँ वस्तु को सुरक्षा (security) के रूप में उधार या वचन के लिए सौंपा जाता है।”

📌 पक्षकार:

  • Pawnor: जो वस्तु गिरवी रखता है
  • Pawnee: जो वस्तु को ऋण की सुरक्षा के रूप में रखता है

📌 Pawnee के अधिकार:

  • ✔️ वस्तु को रोक कर रखने का अधिकार (Sec 173)
  • ✔️ खर्च वसूलने का अधिकार (Sec 175)
  • ✔️ वस्तु को बेचने का अधिकार (Sec 176), परंतु नोटिस देना अनिवार्य

📌 Pawnor के अधिकार:

  • ✔️ ऋण चुकाने पर वस्तु वापस पाने का अधिकार
  • ✔️ Pawnee द्वारा नुकसान पहुँचाने पर क्षतिपूर्ति लेना

📌 विशेष परिस्थितियाँ – Sections 178, 179:

  • Sec 178: Mercantile Agent द्वारा वैध Pledge (यदि प्राधिकृत हो)
  • Sec 178A: Goods obtained under voidable contract – अगर निरस्त नहीं किया गया हो
  • Sec 179: Unauthorized person द्वारा Pledge – केवल तभी वैध जब मालिक सहमति दे

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Lallan Prasad v. Rahmat Ali (1967): Pawnee को वस्तु तभी वापस करनी होगी जब उधार चुका दिया गया हो
  • 📌 Morvi Mercantile Bank v. Union of India (1965): Pawnor द्वारा स्वामित्व का दावा तभी संभव है जब Pawnee को ऋण का भुगतान कर दिया जाए
  • 📌 Madanlal Dharnidharka v. State of Rajasthan (1954): Pawnee की जिम्मेदारी होती है कि वह वस्तु का उचित ध्यान रखे

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

Pledge अनुबंध में वस्तु का नियंत्रण Pawnee के पास होता है, परंतु स्वामित्व नहीं। यह बैंकिंग और व्यापारिक मामलों में एक अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत है। Sec 172–179 से प्रश्न Judiciary और UGC NET में अक्सर पूछे जाते हैं।

📦 UNIT 6: Agency – General Principles

एजेंसी के सामान्य सिद्धांत, एजेंट और प्रिंसिपल के संबंध तथा अधिकारों की जानकारी इस यूनिट में दी गई है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 6: Agency – General Principles

🔰 प्रस्तावना:
Agency एक कानूनी संबंध है जिसमें एक व्यक्ति (Agent) दूसरे व्यक्ति (Principal) की ओर से कार्य करता है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 182–185 इस संबंध की परिभाषा, निर्माण, और सामान्य नियमों को निर्धारित करती है।

📌 Section 182 – परिभाषा:

Agent: वह व्यक्ति जो Principal के लिए कार्य करता है।
Principal: वह व्यक्ति जिसकी ओर से कार्य किया जाता है।

📌 Section 183 – Agent नियुक्त करने की क्षमता:

कोई भी व्यक्ति जो बालिग और ध्वनि मस्तिष्क वाला है, Agent नियुक्त कर सकता है।

📌 Section 184 – Agent बनने की योग्यता:

कोई भी व्यक्ति Agent बन सकता है, लेकिन वह Principal के प्रति उत्तरदायी होगा।

📌 Section 185 – Consideration:

Agent को नियुक्त करने के लिए Consideration (विचार) आवश्यक नहीं होता।

📘 सामान्य सिद्धांत:

  • ✔️ एजेंट, प्रिंसिपल के नाम और अधिकार के तहत कार्य करता है।
  • ✔️ एजेंट के कार्यों के लिए Principal उत्तरदायी होता है।
  • ✔️ एजेंसी मौखिक, लिखित या आचरण से बन सकती है।

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 P. Krishna Bhatta v. Mundila Ganapathi Bhatta (1903): एजेंसी का संबंध विश्वास और प्रतिनिधित्व पर आधारित होता है।
  • 📌 Syed Abdul Khader v. Rami Reddy (1979): एजेंट की सीमा से बाहर किए गए कार्यों के लिए Principal उत्तरदायी नहीं होता।
  • 📌 State of Nagaland v. Ratan Singh (1967): एजेंसी आचरण से भी उत्पन्न हो सकती है।

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

एजेंसी का संबंध विश्वास (fiduciary relationship) और प्रतिनिधित्व (representation) पर आधारित होता है। प्रारंभिक धाराओं में एजेंसी का मूल स्वरूप निर्धारित होता है जो आगे की धाराओं के लिए आधार प्रदान करता है। परीक्षाओं में इससे संबंधित केस लॉ और अवधारणात्मक प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं।

📦 UNIT 7: Authority of Agent – Express, Implied & Ratification

एजेंट की प्रकट और अंतर्निहित शक्ति तथा प्रतिपुष्टि द्वारा स्वीकृति को विस्तार से समझाया गया है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 7: Authority of Agent – Express, Implied & Ratification

🔰 प्रस्तावना:
एजेंसी संबंध में एजेंट को दिए गए अधिकारों का स्वरूप तीन रूपों में होता है – प्रकट (Express), अंतर्निहित (Implied), तथा प्रतिपुष्टि (Ratification)। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 186 से 196 तक इन्हीं अधिकारों को स्पष्ट करती है।

📌 Section 186 – Express Authority:

जब Principal एजेंट को स्पष्ट शब्दों में अधिकार देता है – मौखिक या लिखित – तो वह Express Authority कहलाती है।

📌 Section 187 – Implied Authority:

जब कोई व्यक्ति आचरण, परिस्थिति या व्यापार के स्वभाव से अधिकार प्राप्त करता है, तो वह अंतर्निहित (Implied) Authority कहलाती है।

📌 Section 188 – Authority in Emergency:

आपात स्थिति में एजेंट को Principal के सर्वोत्तम हित में कार्य करने की अनुमति होती है।

📌 Section 196 – Ratification (प्रतिपुष्टि):

जब एजेंट बिना अधिकार के कोई कार्य करता है और Principal बाद में उसे स्वीकार कर लेता है, तो इसे Ratification कहते हैं।

📘 Ratification के नियम:

  • ✔️ Principal के पास कार्य करने की क्षमता होनी चाहिए
  • ✔️ Ratification स्पष्ट और पूर्ण होनी चाहिए
  • ✔️ अवैध या अनैतिक कार्य को अनुमोदित नहीं किया जा सकता

📘 अन्य धाराएँ:

  • Sec 189: कार्य की निर्वाह हेतु आवश्यक अधिकार
  • Sec 190: कोई भी कार्य जिसे Principal स्वयं नहीं कर सकता, वह एजेंट भी नहीं कर सकता
  • Sec 191–192: Sub-agent की नियुक्ति

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Keighley, Maxsted & Co. v. Durant (1901): Ratification तभी मान्य है जब Principal के लिए किया गया हो
  • 📌 State of Nagaland v. Ratan Singh (1967): अधिकार का विस्तार Implied रूप से हो सकता है
  • 📌 Colton v. London County Bank (1899): Agency by conduct को मान्यता दी गई

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

एजेंट को अधिकार कैसे प्राप्त होते हैं, यह एजेंसी के कानूनी ढांचे की नींव है। परीक्षा में Express, Implied और Ratification से संबंधित केस लॉ और तथ्यात्मक प्रश्न अवश्य पूछे जाते हैं। धारा 186–196 से उत्तर स्पष्ट और धाराप्रवाह होना चाहिए।

📦 UNIT 8: Termination of Agency & Duties

एजेंसी का अंत, एजेंट और प्रिंसिपल के कर्तव्य एवं अधिकार, तथा समाप्ति के प्रभाव इस यूनिट में शामिल हैं। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 8: Termination of Agency & Rights/Duties

🔰 प्रस्तावना:
एजेंसी संबंध तब समाप्त होता है जब Principal या Agent में से कोई उसकी समाप्ति की प्रक्रिया प्रारंभ करता है या कानूनी रूप से एजेंसी समाप्त मानी जाती है। इस यूनिट में उसी का विश्लेषण है (Sec 197–210)।

📌 Section 201 – Modes of Termination:

  • ✔️ Principal द्वारा समाप्ति (Revocation)
  • ✔️ Agent द्वारा त्याग (Renunciation)
  • ✔️ कार्य पूर्ण होने पर
  • ✔️ मृत्यु, पागलपन, या दिवालियापन

📌 Section 202 – Irrevocable Agency:

यदि एजेंट के पास व्यक्तिगत हित (interest) है, तो Principal एजेंसी को एकतरफा समाप्त नहीं कर सकता।

📌 Section 203–210 – Important Rules:

  • Sec 203: Principal एजेंसी कभी भी समाप्त कर सकता है, जब तक यह irrevocable न हो
  • Sec 204: कार्य प्रारंभ होने के बाद समाप्ति का नुकसान होता है तो मुआवजा देना होगा
  • Sec 205–206: उचित सूचना अनिवार्य
  • Sec 209: Agent का दायित्व – पूर्व कार्यों की रिपोर्ट देना
  • Sec 210: समाप्ति तीसरे पक्ष के लिए प्रभावी होती है जब उन्हें सूचना दी गई हो

📘 Duties of Agent:

  • ✔️ उचित कौशल और परिश्रम से कार्य करना
  • ✔️ स्वार्थ से रहित होना
  • ✔️ सही खाता प्रस्तुत करना
  • ✔️ Principal की सूचना पर कार्य करना

📘 Rights of Agent:

  • ✔️ पारिश्रमिक की मांग
  • ✔️ प्रतिपूर्ति (Indemnity)
  • ✔️ Lien – खर्च के लिए वस्तु रोकना

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Pannalal Jankidas v. Mohanlal (1951): एजेंट को नुकसान से सुरक्षा का अधिकार है
  • 📌 Great Northern Rly. Co. v. Swaffield (1874): Agent का कार्य समाप्त होने के बाद भी कर्तव्य समाप्त नहीं होता जब तक Principal को सूचना न दी जाए
  • 📌 Bank of India v. U.A. Ansari (1993): Agency with interest को समाप्त नहीं किया जा सकता

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

एजेंसी का समापन केवल कानूनी प्रक्रिया से होता है, और इसके बाद भी Agent का उत्तरदायित्व तब तक बना रहता है जब तक Principal को सूचना नहीं दी जाती। Sec 201–210 परीक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेषकर Judiciary और UGC NET में।

📦 UNIT 9: Sub-Agent & Personal Liability of Agent

इस यूनिट में उप-एजेंट की भूमिका, एजेंट की व्यक्तिगत देनदारी और कानून के विशेष प्रावधानों का विवरण दिया गया है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 9: Sub-Agent & Personal Liability of Agent

🔰 प्रस्तावना:
इस यूनिट में एजेंसी के अंतर्गत Sub-Agent की नियुक्ति, उसकी वैधता, और एजेंट की व्यक्तिगत देनदारी से संबंधित धाराएँ शामिल हैं। यह UGC NET, Judiciary और अन्य लॉ परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

📌 Section 191 – Sub-Agent की परिभाषा:

Sub-Agent वह व्यक्ति है जिसे एजेंट द्वारा Principal की अनुमति से कार्य करने के लिए नियुक्त किया जाता है।

📌 Section 192 – Sub-Agent की नियुक्ति:

  • ✔️ यदि Principal की अनुमति से Sub-Agent नियुक्त किया जाए – वैध
  • ✔️ बिना अनुमति के नियुक्त किया जाए – Principal उत्तरदायी नहीं होगा
  • ✔️ उपयुक्त कार्यों के लिए Sub-Agent नियुक्त किया जा सकता है

📌 Effects:

  • Rightful Sub-Agent: Principal को bound करता है
  • Improper Sub-Agent: केवल Agent उत्तरदायी होगा

📌 Section 215 – Duty to Communicate Information:

Agent को Principal को सारी जानकारी ईमानदारी से देनी होती है, अन्यथा जिम्मेदारी बनती है।

📌 Section 216 – Secret Profit:

Agent यदि Principal की अनुमति के बिना कोई व्यक्तिगत लाभ लेता है, तो वह Principal को देय होता है।

📌 Section 217 – Right of Agent to Retain Sums:

Agent अपने व्यय, पारिश्रमिक आदि के लिए Principal से राशि रोक सकता है।

📌 Section 218 – Duty to Render Accounts:

Agent को Principal को सही खाता देना अनिवार्य होता है।

📘 जब Agent व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होता है:

  • ✔️ Principal अज्ञात हो या अस्तित्व में न हो
  • ✔️ जब Agent अपने अधिकारों से बाहर जाकर कार्य करे
  • ✔️ विदेशी Principal के मामले में
  • ✔️ जब Agent द्वारा व्यक्तिगत दायित्व ग्रहण किया गया हो

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Pannalal Jankidas v. Mohanlal (1951): एजेंट के अनैतिक लाभ की स्थिति में Principal को हर्जाना देने का आदेश
  • 📌 Coles v. Trecothick (1804): Agent को Secret Profit मिला – कोर्ट ने मना किया
  • 📌 Keppel v. Wheeler (1927): सूचना छिपाने पर Agent की व्यक्तिगत जिम्मेदारी

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

Sub-Agent की वैध नियुक्ति, एजेंट की सीमाएँ, और व्यक्तिगत देनदारी समझना आवश्यक है। Judiciary, UGC NET जैसी परीक्षाओं में इससे संबंधित केस आधारित और कथनात्मक प्रश्न बार-बार पूछे जाते हैं।

📦 UNIT 10: Relationship between Principal and Third Parties

एजेंसी के तहत Principal और Third Party के बीच अधिकार और उत्तरदायित्व इस यूनिट में शामिल हैं। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 10: Relationship between Principal and Third Parties

🔰 प्रस्तावना:
एजेंसी अनुबंध में केवल एजेंट और Principal के बीच ही नहीं, बल्कि तीसरे पक्ष (Third Parties) के साथ भी कानूनी संबंध बनते हैं। यह यूनिट इस बात की व्याख्या करती है कि किन परिस्थितियों में Principal को तीसरे पक्ष के साथ एजेंट के कार्यों हेतु उत्तरदायी माना जाएगा।

📌 Section 226 – Principal Bound by Agent's Acts:

एजेंट द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र में किया गया कार्य ऐसा माना जाता है मानो Principal ने स्वयं किया हो।

📌 Section 227 – Agent Exceeding Authority (Separable Acts):

अगर Agent का कार्य अलग-अलग भागों में बाँटा जा सकता है, तो Principal केवल वैध भाग के लिए उत्तरदायी होगा।

📌 Section 228 – Non-Separable Acts:

यदि Agent ने सीमा से बाहर जाकर ऐसा कार्य किया जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता, तो Principal पूरी तरह उत्तरदायी नहीं होगा।

📌 Section 229 – Notice to Agent:

एजेंट को दी गई सूचना को ऐसा माना जाएगा कि वह Principal को भी दी गई है।

📌 Sections 230–238 – Other Key Provisions:

  • Sec 230: एजेंट व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं होता जब तक विशेष अनुबंध न हो
  • Sec 231: यदि Agent खुलासा नहीं करता कि वह Principal के लिए कार्य कर रहा है, तो वह उत्तरदायी हो सकता है
  • Sec 232–233: जब Principal अज्ञात हो
  • Sec 234: दोनों को चुनने का विकल्प नहीं हो सकता (Agent/Principal)
  • Sec 235: Self-proclaimed Agent – झूठा एजेंट उत्तरदायी
  • Sec 236: अयोग्य एजेंट के कार्य Principal को बाध्य नहीं करते
  • Sec 237: Unauthorized acts पर भी Principal उत्तरदायी हो सकता है यदि उसने उसे स्वीकार किया हो (Implied Authority)
  • Sec 238: Fraud/Misrepresentation by Agent को ऐसा माना जाएगा मानो Principal ने किया हो

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Darius Rutton v. M.R. Cooray (1939): Agent को दी गई सूचना को Principal तक पहुँचा हुआ माना गया
  • 📌 National Bank of Lahore v. Sohan Lal (1962): Agent द्वारा किए गए unauthorized act पर Principal की जिम्मेदारी तय की गई
  • 📌 Watteau v. Fenwick (1893): Agent के बाहर किए गए कार्य के लिए भी Principal उत्तरदायी हो सकता है (apparent authority)

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

Principal और तीसरे पक्ष के बीच संबंध एजेंट के माध्यम से स्थापित होता है। यदि एजेंट अधिकार सीमा के भीतर कार्य करता है, तो Principal पूर्ण रूप से उत्तरदायी होता है। यह यूनिट केस लॉ आधारित प्रश्नों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, विशेषतः Judiciary और UGC NET में।

🧾 Quick Revision Chart – Indian Contract Act, 1872 (Part 2)

Unit Title Sections Key Concepts
Unit 1 Indemnity 124–125 Promise to compensate for loss; Rights of Indemnity Holder
Unit 2 Guarantee 126–147 Surety’s liability, continuing guarantee, discharge, co-surety
Unit 3 Bailment (General Principles) 148–157 Delivery of goods, purpose, return, types of bailment
Unit 4 Rights & Duties of Bailor and Bailee 158–171 Duty of care, lien, reimbursement, return of goods
Unit 5 Pledge 172–179 Pawnor & Pawnee, rights to retain/sell, valid pledge
Unit 6 Agency – General Principles 182–185 Agent, Principal, capacity, consideration not required
Unit 7 Agent's Authority 186–196 Express, implied, emergency powers, ratification
Unit 8 Termination & Duties 197–210 Revocation, renunciation, irrevocable agency, lien
Unit 9 Sub-Agent & Personal Liability 191–192, 215–218 Sub-agent appointment, secret profit, account duty
Unit 10 Principal and Third Party 226–238 Liability of principal, fraud by agent, apparent authority

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