1. निम्नलिखित में से किसने विधि स्रोतों का विभाजन औपचारिक स्रोत और भौतिक स्रोत के रूप में किया है?
(a) सालमंड ने ✅
(b) हालैण्ड ने
(c) ऑस्टिन ने
(d) पैटन ने
(U.P.P.C.S. Special - 2004)
(a) सालमंड ने ✅
(b) हालैण्ड ने
(c) ऑस्टिन ने
(d) पैटन ने
(U.P.P.C.S. Special - 2004)
व्याख्या: सालमंड ने विधि के स्रोतों को औपचारिक (Formal) और भौतिक (Material) स्रोतों में विभाजित किया। औपचारिक स्रोत वे होते हैं जिन्हें विधि की मान्यता प्राप्त होती है, जबकि भौतिक स्रोत वे होते हैं जिनसे विधिक विचारों का विकास होता है, जैसे धर्म, नैतिकता आदि।
उत्तर – (a)
2. सालमंड के अनुसार विधि के भौतिक स्रोत:
1. विधि द्वारा ही मान्यता प्राप्त होते हैं
2. विधि स्वयं कोई प्रत्यक्ष मान्यता नहीं देती
3. इनमें नैतिकता का महत्व होता है
4. एकाधिक स्रोतों के मिश्रण होने पर सिद्धांतों के रूप में प्रयोग किया जा सकता है
उपर्युक्त कथनों में से:
(a) 1, 3 सही हैं
(b) 2, 3, 4 सही हैं ✅
(c) 1, 3 और 4 सही हैं
(d) केवल 3 सही है
(U.P.P.C.S. - 2001, Uttaranchal P.C.S. - 2005)
1. विधि द्वारा ही मान्यता प्राप्त होते हैं
2. विधि स्वयं कोई प्रत्यक्ष मान्यता नहीं देती
3. इनमें नैतिकता का महत्व होता है
4. एकाधिक स्रोतों के मिश्रण होने पर सिद्धांतों के रूप में प्रयोग किया जा सकता है
उपर्युक्त कथनों में से:
(a) 1, 3 सही हैं
(b) 2, 3, 4 सही हैं ✅
(c) 1, 3 और 4 सही हैं
(d) केवल 3 सही है
(U.P.P.C.S. - 2001, Uttaranchal P.C.S. - 2005)
व्याख्या: सालमंड के अनुसार भौतिक स्रोत वे होते हैं जो विधिक विचारों के विकास में सहायक होते हैं। इन्हें विधि द्वारा प्रत्यक्ष मान्यता नहीं दी जाती, लेकिन नैतिकता जैसे तत्त्व इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उत्तर – (b)
3. सालमंड के अनुसार उत्कृष्ट विधायन का अर्थ है –
(a) अधिनियमकारी विधायन
(b) कार्यपालिक द्वारा विधायन
(c) न्यायिक विधायन
(d) संसद द्वारा निर्मित विधि ✅
(U.P.P.C.S. - 2007)
(a) अधिनियमकारी विधायन
(b) कार्यपालिक द्वारा विधायन
(c) न्यायिक विधायन
(d) संसद द्वारा निर्मित विधि ✅
(U.P.P.C.S. - 2007)
व्याख्या: सालमंड ने सर्वोच्च विधायन (Supreme Legislation) को वह विधायन कहा है जो संसद जैसे सर्वोच्च निकाय द्वारा निर्मित होता है। यह अन्य विधायनों पर प्रधान होता है।
उत्तर – (d)
4. निम्नलिखित में से कौन सा विधायन का लक्षण नहीं है?
(a) यह राज्य के विधायी अंग–संसद या विधानमंडल द्वारा निर्मित होता है
(b) यह विधायिकीय रूप से निर्मित नियमों का संग्रह है
(c) इसमें आदेशात्मक शक्ति होती है
(d) यह न्यायनिष्ठता नीति से अधिकृत होता है ✅
(U.P. Lower (P) - 2004)
(a) यह राज्य के विधायी अंग–संसद या विधानमंडल द्वारा निर्मित होता है
(b) यह विधायिकीय रूप से निर्मित नियमों का संग्रह है
(c) इसमें आदेशात्मक शक्ति होती है
(d) यह न्यायनिष्ठता नीति से अधिकृत होता है ✅
(U.P. Lower (P) - 2004)
व्याख्या: विधायन में विधायिकीय प्रक्रिया के तहत बनाए गए आदेशात्मक नियम शामिल होते हैं। लेकिन 'न्यायनिष्ठता नीति' को विधायन का लक्षण नहीं माना जाता।
उत्तर – (d)
5. विधि के स्रोत का निम्नलिखित वर्गीकरण किसने किया?
(1) मान्यताप्राप्त स्रोत
(2) अनुदत्त स्रोत
(a) ऑस्टिन ने
(b) सालमंड ने ✅
(c) पैटन ने
(d) केल्सन ने
(U.P.P.C.S. - 2003)
(1) मान्यताप्राप्त स्रोत
(2) अनुदत्त स्रोत
(a) ऑस्टिन ने
(b) सालमंड ने ✅
(c) पैटन ने
(d) केल्सन ने
(U.P.P.C.S. - 2003)
व्याख्या: सालमंड के अनुसार मान्यताप्राप्त स्रोत वे होते हैं जिन्हें विधिक प्रणाली स्वीकार करती है, जबकि अनुदत्त स्रोत परंपरा, नैतिकता या न्यायिक व्याख्या पर आधारित होते हैं।
उत्तर – (b)
6. विधियों के स्रोत हैं:
(a) विधि का सामान्य स्रोत है
(b) विधि का विशेषित सामान्य स्रोत है
(c) विधि का विधिक मान्य स्रोत है
(d) विधि का स्रोत नहीं है ✅
(R.A.S.P.C.S. (P) - 2008)
(a) विधि का सामान्य स्रोत है
(b) विधि का विशेषित सामान्य स्रोत है
(c) विधि का विधिक मान्य स्रोत है
(d) विधि का स्रोत नहीं है ✅
(R.A.S.P.C.S. (P) - 2008)
व्याख्या: विधायन, न्यायिक निर्णय और अधिनियम विधि के औपचारिक स्रोत माने जाते हैं। लेकिन 'विधियाँ' स्वयं कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं होतीं, क्योंकि वे किसी विधि के घटक होती हैं। अतः विधियाँ, विधि का स्रोत नहीं होतीं।
उत्तर – (d)
7. "कभी-कभी समाज के रीति-रिवाज ही विधि का प्रारंभ होते हैं" यह कथन है –
(a) सेविग्नी का
(b) सालमंड का ✅
(c) टेलफी का
(d) हार्ट का
(U.P.P.C.S. - 2003, Special - 2004)
(a) सेविग्नी का
(b) सालमंड का ✅
(c) टेलफी का
(d) हार्ट का
(U.P.P.C.S. - 2003, Special - 2004)
व्याख्या: सालमंड का यह कथन इस सिद्धांत पर आधारित है कि विधि का प्रारंभिक स्वरूप समाज की परंपराओं और रीति-रिवाजों में निहित होता है। जब कोई परंपरा या प्रथा दीर्घकाल तक समाज में व्यावहारिक रूप से मान्य होती है, तो उसे बाद में विधिक स्वरूप मिल सकता है।
उत्तर – (b)
8. "कानून का समाज से वही सम्बन्ध है जो विधि का राज्य से" — यह कथन है:
(a) हालैण्ड का
(b) ग्रॉशियस का
(c) सालमंड का ✅
(d) ऑस्टिन का
(R.A.S. - 2003)
(a) हालैण्ड का
(b) ग्रॉशियस का
(c) सालमंड का ✅
(d) ऑस्टिन का
(R.A.S. - 2003)
व्याख्या: सालमंड के अनुसार कानून का उद्गम समाज में होता है, जबकि विधि राज्य द्वारा स्वीकृत होती है। कानून और विधि में अंतर को समझाते हुए उन्होंने यह कथन प्रस्तुत किया।
उत्तर – (c)
9. "प्रचलित विधि, लिखित या मौखिक रीति-रिवाज पर आधारित होती है।" — यह कथन किस विधिशास्त्री का है?
(a) ऑस्टिन
(b) केल्सन
(c) साविग्नी ✅
(d) हॉब्स
(U.P. Lower - 2003)
(a) ऑस्टिन
(b) केल्सन
(c) साविग्नी ✅
(d) हॉब्स
(U.P. Lower - 2003)
व्याख्या: साविग्नी के ऐतिहासिक विधिवाद के अनुसार विधि समाज की चेतना (Volksgeist) से उत्पन्न होती है। प्रचलित विधियाँ समाज में प्रचलित रीतियों, परंपराओं, और ऐतिहासिक परिपाटियों पर आधारित होती हैं — चाहे वे लिखित हों या मौखिक।
उत्तर – (c)
10. "कोई विधि यदि मान्य है तो उसे विधियों का स्रोत भी माना जायेगा"। यह किस कथन के अनुसार है?
(1) प्रथागतता
(2) सामाजिक अनुशंसा
(3) नैतिक अधिकार के रूप में अनुशंसा
सही कूट का चयन कीजिए:
(a) 1, 2 और 3
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) 1 और 2 ✅
(U.P. Lower - 2002, U.P.P.C.S. - 2006)
(1) प्रथागतता
(2) सामाजिक अनुशंसा
(3) नैतिक अधिकार के रूप में अनुशंसा
सही कूट का चयन कीजिए:
(a) 1, 2 और 3
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) 1 और 2 ✅
(U.P. Lower - 2002, U.P.P.C.S. - 2006)
व्याख्या: समाज में यदि कोई नियम दीर्घकाल से व्यवहार में लाया जा रहा हो और समाज उसे नैतिक या सामाजिक स्वीकृति देता है, तो वह विधि के स्रोत के रूप में मान्य हो सकता है। इस सिद्धांत को प्रथागत विधि (Customary Law) भी कहा जाता है।
उत्तर – (d)
11. "विधि विधान में पूर्ववर्ती विधि का तत्व, उत्तराधिकार द्वारा और विधायन के क्रम में विभिन्नों के अनुपालन से जाना जाता है" — यह कथन किसका है?
(a) समाजशास्त्रीय विधिवाद का
(b) व्यवहारवादी विधिवाद का
(c) प्राकृतिक विधि सिद्धांत का
(d) ऐतिहासिक विधिवाद का ✅
(U.P. Lower - 2002, U.P.P.C.S. - 2004, 2005)
(a) समाजशास्त्रीय विधिवाद का
(b) व्यवहारवादी विधिवाद का
(c) प्राकृतिक विधि सिद्धांत का
(d) ऐतिहासिक विधिवाद का ✅
(U.P. Lower - 2002, U.P.P.C.S. - 2004, 2005)
व्याख्या: ऐतिहासिक विधिवाद के अनुसार विधि कोई अचानक उत्पन्न व्यवस्था नहीं होती, बल्कि यह समाज के विकास के साथ-साथ पूर्ववर्ती विधियों का उत्तराधिकार भी होती है। इसमें परंपरा, रीति-रिवाज और ऐतिहासिक विकास की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है।
उत्तर – (d)
12. ऐतिहासिक विधिवाद विधि के उत्पत्ति का कारण है जबकि उसकी उत्पत्ति का कारण नहीं है" किसने कहा है?
(a) साविग्नी ने
(b) सीवीसी ने ✅
(c) ऑस्टिन ने
(d) वेन ने
(U.P.P.C.S. - 2004)
(a) साविग्नी ने
(b) सीवीसी ने ✅
(c) ऑस्टिन ने
(d) वेन ने
(U.P.P.C.S. - 2004)
व्याख्या: विधिशास्त्र की ऐतिहासिक विचारधारा के समर्थक सीवीसी ने कहा कि “कोई विधि विधि का एकमात्र स्रोत नहीं है अपितु उसका आधार भी है।” विधि का प्रचलन समाज की ‘लोकआत्मा’ (Volksgeist) से विकसित प्रक्रिया का परिणाम है।
उत्तर – (b)
13. निम्नलिखित में से कौन सा विधि का आवश्यक तत्व नहीं है?
(a) विधि लिखित होनी चाहिए
(b) विधि को सामान्यतः बलपूर्वक लागू किया जा सकता है
(c) विधि का सामाजिक उद्देश्य होना चाहिए
(d) नैतिकता ✅
(U.P. Lower Special - 2003)
(a) विधि लिखित होनी चाहिए
(b) विधि को सामान्यतः बलपूर्वक लागू किया जा सकता है
(c) विधि का सामाजिक उद्देश्य होना चाहिए
(d) नैतिकता ✅
(U.P. Lower Special - 2003)
व्याख्या: विधिशास्त्र में विधि के आवश्यक तत्व — (1) लिखितता, (2) बलप्रयोग, (3) सामाजिक उद्देश्य, (4) ऐतिहासिक आधार होते हैं। परंतु नैतिकता एक ऐच्छिक तत्व है, जो विधि का आवश्यक तत्व नहीं होता।
उत्तर – (d)
14. निम्नलिखित में से कौन सा एक विधि का आवश्यक तत्व नहीं है?
(a) निश्चितता
(b) गति ✅
(c) संरचना
(d) सार्वत्रिकता
(U.P.P.C.S. - 2000, 2002) / (U.P. Lower - 2002)
(a) निश्चितता
(b) गति ✅
(c) संरचना
(d) सार्वत्रिकता
(U.P.P.C.S. - 2000, 2002) / (U.P. Lower - 2002)
व्याख्या: विधिशास्त्र के अनुसार विधि के आवश्यक तत्वों में निश्चितता, संरचना, सार्वत्रिकता एवं अनिवार्यता सम्मिलित होते हैं। गति को विधि का आवश्यक तत्व नहीं माना गया है।
उत्तर – (b)
15. विधिक संकल्प के संघर्ष में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा कथन गलत है?
(a) यह परंपरा है
(b) यह धर्मशास्त्र या धार्मिक ग्रंथों में लिखा गया हो
(c) यह सामान्य रूप से मान्यता प्राप्त हो ✅
(d) उपर्युक्त सभी
(R.A.S.P.C.S. (P) - 2008)
(a) यह परंपरा है
(b) यह धर्मशास्त्र या धार्मिक ग्रंथों में लिखा गया हो
(c) यह सामान्य रूप से मान्यता प्राप्त हो ✅
(d) उपर्युक्त सभी
(R.A.S.P.C.S. (P) - 2008)
व्याख्या: केवल मान्यता प्राप्त होना विधिक संकल्प का पर्याप्त आधार नहीं है; इसे सामाजिक स्वीकार्यता और ऐतिहासिकता के आधार पर भी परखा जाना आवश्यक है।
उत्तर – (c)
16. निम्नलिखित में से कौन सा विधि का आवश्यक तत्व नहीं है?
(a) निश्चितता
(b) नैतिकता ✅
(c) संरचना
(d) सार्वत्रिकता
(Uttranchal.P.C.S - 2005)
(a) निश्चितता
(b) नैतिकता ✅
(c) संरचना
(d) सार्वत्रिकता
(Uttranchal.P.C.S - 2005)
व्याख्या: विधिशास्त्र में किसी विधि को विधि मानने हेतु जिन न्यूनतम आवश्यक तत्वों की अपेक्षा की जाती है, उनमें निश्चितता, सार्वत्रिकता, संरचना, अनिवार्यता प्रमुख हैं। नैतिकता एक वैकल्पिक तत्व है, अनिवार्य नहीं।
17. निम्नलिखित में से कौन सा एक विधिक विधि का आवश्यक तत्व नहीं है?
(a) निश्चितता
(b) नैतिकता ✅
(c) संरचना
(d) सार्वत्रिकता
(U.P.P.C.S. - 2000, 2002) / (U.P. Lower - 2002)
(a) निश्चितता
(b) नैतिकता ✅
(c) संरचना
(d) सार्वत्रिकता
(U.P.P.C.S. - 2000, 2002) / (U.P. Lower - 2002)
व्याख्या: विधिक विधि की आवश्यकताओं में नैतिकता को एक वैकल्पिक या द्वितीयक तत्त्व माना जाता है; यह आवश्यक या अनिवार्य तत्व नहीं है। अन्य सभी विकल्प विधि के आवश्यक गुण हैं।
18. निम्नलिखित में से कौन एक विधिक विधि का आवश्यक तत्व नहीं है?
(a) सार्वभौमिक उपयुक्तता
(b) निश्चितता
(c) संरचना
(d) नैतिकता की ऐच्छिकता ✅
(U.P.P.C.S. - 1998)
(a) सार्वभौमिक उपयुक्तता
(b) निश्चितता
(c) संरचना
(d) नैतिकता की ऐच्छिकता ✅
(U.P.P.C.S. - 1998)
व्याख्या: सार्वभौमिक उपयुक्तता, निश्चितता, संरचना विधिक विधि के आवश्यक तत्त्व हैं। परंतु नैतिकता की ऐच्छिकता विधि का आवश्यक अंग नहीं है, इसलिए इसे आवश्यक तत्वों से बाहर माना गया है।
19. निम्नलिखित में से कौन सा एक विधिक विधि का आवश्यक तत्व नहीं है?
(a) निश्चितता
(b) संरचना
(c) सार्वत्रिकता
(d) नैतिक तत्व ✅
(U.P.P.C.S - 2007)
(a) निश्चितता
(b) संरचना
(c) सार्वत्रिकता
(d) नैतिक तत्व ✅
(U.P.P.C.S - 2007)
व्याख्या: विधिक विधि के तत्त्वों में — (1) निश्चितता, (2) संरचना, (3) सार्वत्रिकता प्रमुख हैं। नैतिक तत्व एक वैकल्पिक या अतिरिक्त मूल्य हो सकता है, परंतु आवश्यक तत्व नहीं।
20. रूढ़ि विधि के लिए क्या आवश्यक नहीं है?
(a) निश्चितता
(b) सार्वत्रिकता
(c) निरंतरता
(d) सरकार द्वारा अनुमोदन ✅
(U.P. Lower (P) - 2004)
(a) निश्चितता
(b) सार्वत्रिकता
(c) निरंतरता
(d) सरकार द्वारा अनुमोदन ✅
(U.P. Lower (P) - 2004)
व्याख्या: विधि के लिए आवश्यक तत्वों में निश्चितता, निरंतरता एवं सार्वत्रिकता सम्मिलित हैं। लेकिन विधि को सरकार द्वारा अनुमोदन आवश्यक नहीं है, अतः यह विकल्प सही नहीं है।
21. "एक रूढ़ि जिसमें प्राधिकृतता, उसकी स्वीकृति तथा न्याय होने वाले पक्षकारों के मध्य करारों में समानित किये जाने का स्पष्ट आधार होता है," यह है:
(a) सामान्य रूढ़ि
(b) विधि रूढ़ि ✅
(c) स्थानीय रूढ़ि
(d) अनियमितात्मक रूढ़ि
U.P. PCS. (Pre) 2009
(a) सामान्य रूढ़ि
(b) विधि रूढ़ि ✅
(c) स्थानीय रूढ़ि
(d) अनियमितात्मक रूढ़ि
U.P. PCS. (Pre) 2009
व्याख्या: जब कोई रूढ़ि न्यायिक स्वीकृति प्राप्त कर ले और उसका उपयोग न्याय निर्णयों में बार-बार हो, तो वह विधि-रूढ़ि कहलाती है।
22. "एक संविधान के अंतर्गत कोई विधि तब ही नई एवं सबल रूप से स्वीकृत है जब परंपरागत आचरण के लिए एक नियम स्पष्ट रूप से निर्मित हो जाए" - यह किसने कहा है?
(a) केल्सन
(b) हेन
(c) सापमंड ✅
(d) जेस्सप
U.P. PCS (Pre) 2009
(a) केल्सन
(b) हेन
(c) सापमंड ✅
(d) जेस्सप
U.P. PCS (Pre) 2009
व्याख्या: सापमंड के अनुसार विधि तब प्रभावी मानी जाती है जब वह परंपराओं को विधिवत रूप से सम्मिलित करते हुए स्पष्ट रूप से स्थापित की गई हो।
23. विधि के स्रोतों की विवेचना करते हुए निम्नलिखित में से किसने कहा कि, "न्यायालय संहितियों के मूल ग्रंथों में जीवन फूंकने का कार्य करते हैं"
(a) हालैण्ड
(b) ग्रे ✅
(c) सलेमंड
(d) ऑस्टिन
(U.P.P.C.S. - 2001)
(a) हालैण्ड
(b) ग्रे ✅
(c) सलेमंड
(d) ऑस्टिन
(U.P.P.C.S. - 2001)
व्याख्या: ग्रे ने यह कथन न्यायिक व्याख्या की महत्ता दर्शाने हेतु दिया कि न्यायालय विधिक ग्रंथों में व्याख्या द्वारा प्राण फूंकते हैं।
24. निम्नलिखित में से कौन देता है "निर्णयपूर्ववृत्ति" (Stare decisis) के सिद्धांत का प्रमुख योगदान?
(a) इंग्लैंड ✅
(b) जर्मनी
(c) फ्रांस
(d) पाकिस्तान
(U.P. Lower Special - 2003 / U.P. PCS Special - 2002)
(a) इंग्लैंड ✅
(b) जर्मनी
(c) फ्रांस
(d) पाकिस्तान
(U.P. Lower Special - 2003 / U.P. PCS Special - 2002)
व्याख्या: निर्णयपूर्ववृत्ति का सिद्धांत इंग्लैंड की विधि प्रणाली में विकसित हुआ जहाँ न्यायालय अपने पूर्व निर्णयों का पालन करते हैं।
25. "न्यायपालिका केवल विधि की खोज नहीं करती वरन् विधि का निर्माण करती है।" यह विचार किसका है?
(a) ग्रे ✅
(b) हालैण्ड
(c) सापमंड
(d) बैंथम
(U.P.P.C.S. - 2008)
(a) ग्रे ✅
(b) हालैण्ड
(c) सापमंड
(d) बैंथम
(U.P.P.C.S. - 2008)
व्याख्या: ग्रे के अनुसार न्यायपालिका केवल विधि की खोज नहीं करती बल्कि न्यायिक निर्णयों के माध्यम से विधि का निर्माण भी करती है।
26. निम्नलिखित विधिशास्त्रियों में से किसने न्यायालयीन विधि का सृजन न मानते हुए असहमति जताई?
(a) हार्ट
(b) होम्स
(c) ग्रे
(d) ऑस्टिन ✅
(U.P.P.C.S. - 1999)
(a) हार्ट
(b) होम्स
(c) ग्रे
(d) ऑस्टिन ✅
(U.P.P.C.S. - 1999)
व्याख्या: ऑस्टिन ने न्यायालयीन विधि को वास्तविक विधि नहीं माना। उनके अनुसार विधि केवल संप्रभु की आज्ञा होती है।
27. निम्नलिखित में से कौन न्यायिक पूर्व निर्णय को घोषणात्मक सिद्धांत का समर्थक नहीं है?
(a) ब्लैकस्टोन
(b) कोक
(c) ग्रे ✅
(d) सापमंड
(U.P.P.C.S. Special - 2004)
(a) ब्लैकस्टोन
(b) कोक
(c) ग्रे ✅
(d) सापमंड
(U.P.P.C.S. Special - 2004)
व्याख्या: ग्रे न्यायिक निर्णयों को विधि का स्रोत मानते हैं, वे घोषणात्मक सिद्धांत का विरोध करते हैं।
28. निम्नलिखित में से कौन न्यायिक पूर्व निर्णय के घोषणात्मक सिद्धांत का समर्थक नहीं है?
(a) ब्लैकस्टोन ✅
(b) कोक
(c) हाल्सबरी
(d) हेल
(U.P.P.C.S. - 2003)
(a) ब्लैकस्टोन ✅
(b) कोक
(c) हाल्सबरी
(d) हेल
(U.P.P.C.S. - 2003)
व्याख्या: ब्लैकस्टोन ने न्यायिक निर्णयों को न केवल व्याख्यात्मक बल्कि विधिक नवाचार के रूप में स्वीकार किया।
29. निम्नलिखित में से कौन पूर्व निर्णय के घोषणात्मक सिद्धांत का समर्थक नहीं है?
(a) ब्लैकस्टोन
(b) मैट्यू हेल
(c) बेंटहम
(d) ग्रे ✅
(U.P. Lower (P) - 2004)
(a) ब्लैकस्टोन
(b) मैट्यू हेल
(c) बेंटहम
(d) ग्रे ✅
(U.P. Lower (P) - 2004)
व्याख्या: ग्रे न्यायालय द्वारा निर्णयों को विधि का घोषणात्मक स्रोत मानने की परंपरा का विरोध करते हैं। वे इसे न्यायालय द्वारा निर्मित व्यावहारिक शक्ति मानते हैं।
30. "मेरे विचार में पूर्वन्यायिक का पालन, एक नियम होना चाहिए, न कि अपवाद।" यह कथन है:
(a) कार्डोजो का ✅
(b) ब्लैकस्टोन का
(c) ग्रे का
(d) बेंटहम का
(U.P.P.C.S. - 2005)
(a) कार्डोजो का ✅
(b) ब्लैकस्टोन का
(c) ग्रे का
(d) बेंटहम का
(U.P.P.C.S. - 2005)
व्याख्या: कार्डोजो का मानना था कि पूर्व निर्णयों का पालन न्यायिक प्रक्रिया की निरंतरता और स्थिरता के लिए आवश्यक है।
31. पूर्व-निर्णय के आधिकारिक बल को घटा या कमजोर किया जाता है -
(a) लोकमत के द्वारा
(b) निर्णय निर्माता के द्वारा ✅
(c) पूर्व न्याय के द्वारा
(d) विधायिका मत के द्वारा
(R.A.S.P.C.S. (P) - 2008)
(a) लोकमत के द्वारा
(b) निर्णय निर्माता के द्वारा ✅
(c) पूर्व न्याय के द्वारा
(d) विधायिका मत के द्वारा
(R.A.S.P.C.S. (P) - 2008)
व्याख्या: पूर्व निर्णय को प्रभावहीन या कमजोर न्यायालय स्वयं अपने नए निर्णय द्वारा कर सकता है, जब वह पाता है कि पुराना निर्णय न्यायसंगत नहीं था।
32. "जब न्याय जानती है कि किस प्रकार निर्णय करना है?" ऐसी स्थिति को स्पष्ट करने हेतु विधि का निर्माण करती है। न्यायालय-निर्मित विधि के विषय में यह कथन किस विधिवेत्ता ने दिया है?
(a) ऑस्टिन
(b) जेरेमी बेंथम ✅
(c) सलेक्ट
(d) मैनसफील्ड
(U.P. Lower - 2003, U.P.P.C.S. - 2006)
(a) ऑस्टिन
(b) जेरेमी बेंथम ✅
(c) सलेक्ट
(d) मैनसफील्ड
(U.P. Lower - 2003, U.P.P.C.S. - 2006)
व्याख्या: बेंथम के अनुसार न्यायालय केवल विवादों के समाधान का कार्य नहीं करते, बल्कि जब न्याय को दिशा स्पष्ट होती है, तो वे विधि का निर्माण भी करते हैं।
33. कथन (A): विधायिका द्वारा बनायी गई विधि ही विधि है।
कारण (R): विधायिका संगठित समाज के अनुसार निर्णय लेती है।
(a) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (R), (A) का सही स्पष्टीकरण है।
(b) (A) और (R) दोनों सही हैं, परंतु (R), (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है। ✅
(c) (A) सही परंतु (R) गलत है।
(d) (A) गलत है, परंतु (R) सही है।
U.P.P.C.S. - 2010
कारण (R): विधायिका संगठित समाज के अनुसार निर्णय लेती है।
(a) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (R), (A) का सही स्पष्टीकरण है।
(b) (A) और (R) दोनों सही हैं, परंतु (R), (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है। ✅
(c) (A) सही परंतु (R) गलत है।
(d) (A) गलत है, परंतु (R) सही है।
U.P.P.C.S. - 2010
व्याख्या: विधायिका विधि निर्माण करती है और यह संगठित समाज को दृष्टिगत रखते हुए कार्य करती है, परंतु यह कारण विधि की परिभाषा नहीं है।
34. कथन (A): पूर्वनिर्णय न्याय (Binding) की शक्ति रखता है।
कारण (R): वह विधि रिपोर्टों में उल्लेखित रहता है।
(a) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (R), (A) का सही स्पष्टीकरण है। ✅
(b) (A) और (R) दोनों सही हैं, परंतु (R), (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
(c) (A) सही, परंतु (R) गलत है।
(d) (A) गलत है, परंतु (R) सही है।
U.P.P.C.S. (Pre) 2010
कारण (R): वह विधि रिपोर्टों में उल्लेखित रहता है।
(a) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (R), (A) का सही स्पष्टीकरण है। ✅
(b) (A) और (R) दोनों सही हैं, परंतु (R), (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
(c) (A) सही, परंतु (R) गलत है।
(d) (A) गलत है, परंतु (R) सही है।
U.P.P.C.S. (Pre) 2010
व्याख्या: पूर्व निर्णय विधि का एक सशक्त स्रोत है और न्यायालयों द्वारा न्यायिक निर्णयों में उद्धृत किया जाता है, अतः यह बाइंडिंग होता है।
35. पूर्वनिर्णयों में से निम्नलिखित में से क्या न्यायसंगत है?
(a) प्रवृत्तियाँ
(b) निर्णयमान ✅
(c) A और B दोनों
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
U.P.P.C.S. (Pre) 2010
(a) प्रवृत्तियाँ
(b) निर्णयमान ✅
(c) A और B दोनों
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
U.P.P.C.S. (Pre) 2010
व्याख्या: न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णयों का वह भाग जो निर्णय की वास्तविक नींव बनता है, वही निर्णयमान होता है।
36. सही उत्तर बताएं -
(a) ऐतिहासिक विधिशास्त्र को नया नहीं माना जाता है।
(b) विधिवेत्ताओं द्वारा विधि का निर्माण होता है।
(c) विधि विधायिका द्वारा ही निर्मित होती है।
(d) विधिशास्त्रवाद मात्र ऐतिहासिक नहीं है, बल्कि व्याख्यात्मक दृष्टिकोण भी रखता है। ✅
Uttaranachal P.C.S. - 2005
(a) ऐतिहासिक विधिशास्त्र को नया नहीं माना जाता है।
(b) विधिवेत्ताओं द्वारा विधि का निर्माण होता है।
(c) विधि विधायिका द्वारा ही निर्मित होती है।
(d) विधिशास्त्रवाद मात्र ऐतिहासिक नहीं है, बल्कि व्याख्यात्मक दृष्टिकोण भी रखता है। ✅
Uttaranachal P.C.S. - 2005
व्याख्या: विधिशास्त्रवाद केवल इतिहास नहीं देखता बल्कि यह वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विधि की व्याख्या और विकास भी करता है।
37. निम्नलिखित में से कौन 'विवेचनायोग्य' का पहलु दर्शाता है?
(a) विधिक आदेश
(b) न्यायालयों ने प्रतिपादित विधि के सभी सिद्धांत ✅
(c) न्यायालय द्वारा हुआ कथन जो विधि नियम पर निर्भर करता हो
(d) विधि का नियम जिसे दूसरी न्यायालयें मानते हैं
(U.P.P.C.S. - 2000)
(a) विधिक आदेश
(b) न्यायालयों ने प्रतिपादित विधि के सभी सिद्धांत ✅
(c) न्यायालय द्वारा हुआ कथन जो विधि नियम पर निर्भर करता हो
(d) विधि का नियम जिसे दूसरी न्यायालयें मानते हैं
(U.P.P.C.S. - 2000)
व्याख्या: 'विवेचनायोग्य' (Obiter dicta) वे कथन होते हैं जो निर्णय का अनिवार्य भाग नहीं होते, लेकिन न्यायालय द्वारा कहे जाते हैं। इनका बाध्यकारी प्रभाव नहीं होता।
38. सही उत्तर बताइये : निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए—
1. पूर्व निर्णय का उल्लेख न्यायालय द्वारा किया जाता है।
2. यदि वही पूर्व निर्णय किसी अधिकार से असंगत हो तो यह आवश्यक नहीं होता है।
3. न्यायालय निर्णय देने हेतु पूर्व निर्णय का उल्लेख करता है।
सही कथनों का चयन कीजिए:
(a) 1 और 2 सही हैं ✅
(b) 1, 2 और 3 सही हैं
(c) 1, 2 और 3 गलत हैं
(d) 2 और 3 सही हैं
(U.P. Lower - 2002)
1. पूर्व निर्णय का उल्लेख न्यायालय द्वारा किया जाता है।
2. यदि वही पूर्व निर्णय किसी अधिकार से असंगत हो तो यह आवश्यक नहीं होता है।
3. न्यायालय निर्णय देने हेतु पूर्व निर्णय का उल्लेख करता है।
सही कथनों का चयन कीजिए:
(a) 1 और 2 सही हैं ✅
(b) 1, 2 और 3 सही हैं
(c) 1, 2 और 3 गलत हैं
(d) 2 और 3 सही हैं
(U.P. Lower - 2002)
व्याख्या: केवल 1 और 2 सही हैं। पूर्व निर्णय की बाध्यता हमेशा नहीं होती, विशेष रूप से जब वह किसी विधिक अधिकार से टकराता हो।
39. निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही नहीं है?
(a) एक सिविल अपील का निर्णय उसी न्यायालय के अन्य सिविल निर्णय पर बाध्यकारी होता है ✅
(b) उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णय बाध्य है सभी न्यायालयों पर अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत
(c) निर्णयप्रक्रिया के सिद्धांत द्वारा न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णयों में स्थायित्व सुनिश्चित होता है
(d) हाई कोर्ट अपने लाभ हेतु स्वयं अपने निर्णयों को बाध्य नहीं मानता
(U.P.P.C.S. - 2001)
(a) एक सिविल अपील का निर्णय उसी न्यायालय के अन्य सिविल निर्णय पर बाध्यकारी होता है ✅
(b) उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णय बाध्य है सभी न्यायालयों पर अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत
(c) निर्णयप्रक्रिया के सिद्धांत द्वारा न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णयों में स्थायित्व सुनिश्चित होता है
(d) हाई कोर्ट अपने लाभ हेतु स्वयं अपने निर्णयों को बाध्य नहीं मानता
(U.P.P.C.S. - 2001)
व्याख्या: एक सिविल अपील का निर्णय उसी न्यायालय के अन्य निर्णयों पर बाध्य नहीं होता। यह कथन सही नहीं है।
40. अनुपालन के कारण दिए गए निर्णय के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
(a) निर्णय बाध्यकारी है
(b) निर्णय आदेश है ✅
(c) निर्णय केवल सहायक है
(d) निर्णय का कोई प्रभाव नहीं है
(U.P.P.C.S. - 2000)
(a) निर्णय बाध्यकारी है
(b) निर्णय आदेश है ✅
(c) निर्णय केवल सहायक है
(d) निर्णय का कोई प्रभाव नहीं है
(U.P.P.C.S. - 2000)
व्याख्या: निर्णय बाध्यकारी होते हैं लेकिन आदेश नहीं होते। आदेश प्रशासनिक प्रकृति का होता है, जबकि निर्णय विधिक।
41. अनुपालन के कारण दिया गया निर्णय —
(a) आदेशात्मक होता है
(b) बाध्यकारी होता है ✅
(c) अधिकारहीन
(d) शून्य
(U.P.P.C.S. - 1998)
(a) आदेशात्मक होता है
(b) बाध्यकारी होता है ✅
(c) अधिकारहीन
(d) शून्य
(U.P.P.C.S. - 1998)
व्याख्या: अनुपालन के कारण दिया गया निर्णय बाध्यकारी होता है। इसे Ratio decidendi कहते हैं।
42. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए—
1. न्यायिक विधि के विकास में निर्णय में सहायता करते हैं
2. प्रतिपादित निर्णयों में पूर्व अधिकार है
3. निर्णय की प्रक्रिया में न्यायालयों की निर्मिति करते हैं
सही विकल्प चुनिए:
(a) सभी कथन सही हैं
(b) 1 तथा 2 सही हैं ✅
(c) 1 तथा 3 सही हैं
(d) केवल 1 सही है
(U.P.P.C.S. - 2002)
1. न्यायिक विधि के विकास में निर्णय में सहायता करते हैं
2. प्रतिपादित निर्णयों में पूर्व अधिकार है
3. निर्णय की प्रक्रिया में न्यायालयों की निर्मिति करते हैं
सही विकल्प चुनिए:
(a) सभी कथन सही हैं
(b) 1 तथा 2 सही हैं ✅
(c) 1 तथा 3 सही हैं
(d) केवल 1 सही है
(U.P.P.C.S. - 2002)
व्याख्या: न्यायिक निर्णय विधि के निर्माण में सहायक होते हैं, किंतु प्रतिपादन का पूर्व अधिकार नहीं होता। निर्णयों से विधिशास्त्र का विकास होता है।
43. स्वतंत्रता के पूर्व, न्यायिक पूर्ववृत्त के सिद्धांत को भारत सरकार अधिनियम 1935 में निम्नलिखित में से किस धारा के अंतर्गत मान्यता मिली?
(a) धारा 210
(b) धारा 211
(c) धारा 212 ✅
(d) धारा 213
(U.P. Lower - 2003)
(a) धारा 210
(b) धारा 211
(c) धारा 212 ✅
(d) धारा 213
(U.P. Lower - 2003)
व्याख्या: भारत सरकार अधिनियम 1935 की धारा 212 में यह प्रावधान था कि संघीय और प्रांतीय न्यायालयों के निर्णय बाध्यकारी होंगे।
44. न्यायाधीश एक पूर्व निर्णय में तात्त्विक तथ्यों के आधार पर तथा अतात्त्विक तथ्यों को बहिष्कृत करने पर जिस निष्कर्ष पर पहुँचता है, वह क्या कहलाता है?
(a) निर्णयाचार ✅
(b) इतरोक्ति
(c) त्रुटिपूर्ण निर्णय
(d) मौन रहते हुए पूर्व निर्णय
(U.P. Lower (P) – 2004)
(a) निर्णयाचार ✅
(b) इतरोक्ति
(c) त्रुटिपूर्ण निर्णय
(d) मौन रहते हुए पूर्व निर्णय
(U.P. Lower (P) – 2004)
व्याख्या: यह Ratio Decidendi कहलाता है, जो निर्णय का मूल और बाध्यकारी भाग होता है।
45. भारत में पूर्व निर्णय का संवैधानिक आधार है:
(a) अनुच्छेद 12
(b) अनुच्छेद 141 ✅
(c) अनुच्छेद 136
(d) अनुच्छेद 14
(U.P.P.C.S. (J) – 2003)
(a) अनुच्छेद 12
(b) अनुच्छेद 141 ✅
(c) अनुच्छेद 136
(d) अनुच्छेद 14
(U.P.P.C.S. (J) – 2003)
व्याख्या: अनुच्छेद 141 के अनुसार उच्चतम न्यायालय की विधि सभी न्यायालयों पर बाध्य होती है।
46. 'पूर्व निर्णय के सिद्धांत' का संवैधानिक आधार है:
(a) संविधान अनुच्छेद 12
(b) संविधान अनुच्छेद 136
(c) संविधान अनुच्छेद 141 ✅
(d) संविधान अनुच्छेद 14
(U.P. Lower – 2002, U.P.P.C.S. – 2007)
(a) संविधान अनुच्छेद 12
(b) संविधान अनुच्छेद 136
(c) संविधान अनुच्छेद 141 ✅
(d) संविधान अनुच्छेद 14
(U.P. Lower – 2002, U.P.P.C.S. – 2007)
व्याख्या: यह अनुच्छेद पूर्व निर्णयों की बाध्यता को वैधानिक मान्यता प्रदान करता है।
47. पूर्व निर्णय के सिद्धांत का संवैधानिक आधार है:
(a) अनुच्छेद 12
(b) अनुच्छेद 136
(c) अनुच्छेद 141 ✅
(d) अनुच्छेद 14
(U.P.P.C.S. – 2007)
(a) अनुच्छेद 12
(b) अनुच्छेद 136
(c) अनुच्छेद 141 ✅
(d) अनुच्छेद 14
(U.P.P.C.S. – 2007)
व्याख्या: अनुच्छेद 141 उच्चतम न्यायालय की विधियों की बाध्यता को सुनिश्चित करता है।
48. उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी है, किन्तु स्वयं उच्चतम न्यायालय अपने निर्णयों से बाध्य नहीं है — यह निर्णय किस वाद में दिया गया?
(a) बंगाल इम्यूनिटी कंपनी लिमिटेड बनाम बिहार राज्य ✅
(b) केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य
(c) इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण
(d) माधवराव सिंधिया बनाम भारत संघ
(U.P.P.C.S. (J) – 2003)
(a) बंगाल इम्यूनिटी कंपनी लिमिटेड बनाम बिहार राज्य ✅
(b) केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य
(c) इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण
(d) माधवराव सिंधिया बनाम भारत संघ
(U.P.P.C.S. (J) – 2003)
व्याख्या: AIR 1955 SC के इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह अपने पूर्व निर्णयों से बाध्य नहीं है।
49. कथन (A): उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णीत किसी वाद का विनिश्चय सभी उच्च न्यायालयों पर बाध्यकारी होता है।
कारण (R): उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित विधि सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी होती है।
सही उत्तर:
(a) (A) और (R) दोनों सही हैं, परन्तु (R), (A) की सही व्याख्या नहीं है
(b) (A) और (R) दोनों सही हैं, और (R), (A) की सही व्याख्या है ✅
(c) (A) सत्य है, किन्तु (R) गलत है
(d) (A) गलत है, किन्तु (R) सत्य है
(U.P.P.C.S. – 2005)
कारण (R): उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित विधि सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी होती है।
सही उत्तर:
(a) (A) और (R) दोनों सही हैं, परन्तु (R), (A) की सही व्याख्या नहीं है
(b) (A) और (R) दोनों सही हैं, और (R), (A) की सही व्याख्या है ✅
(c) (A) सत्य है, किन्तु (R) गलत है
(d) (A) गलत है, किन्तु (R) सत्य है
(U.P.P.C.S. – 2005)
व्याख्या: अनुच्छेद 141 के अनुसार (R), (A) का सही स्पष्टीकरण है।
50. निम्नलिखित में से किसने विधायन को "समाज के विधायी अंगों के औपचारिक कथन" के रूप में परिभाषित किया?
(a) चिपमैन ग्रे ✅
(b) जॉन सामण्ड
(c) थॉमस हॉलैंड
(d) जॉन ऑस्टिन
(U.P. Lower – 2003)
(a) चिपमैन ग्रे ✅
(b) जॉन सामण्ड
(c) थॉमस हॉलैंड
(d) जॉन ऑस्टिन
(U.P. Lower – 2003)
व्याख्या: ग्रे ने विधायन को Formal utterance of legislative organs of the society कहा है।
51. किसने कहा कि विधान ‘समाज के विधायी अंगों की औपचारिक अभिव्यक्ति’ है?
(a) डायस
(b) एलेन
(c) ग्रे ✅
(d) ब्लैकस्टोन
(U.P.P.C.S. – 2000)
(a) डायस
(b) एलेन
(c) ग्रे ✅
(d) ब्लैकस्टोन
(U.P.P.C.S. – 2000)
व्याख्या: ग्रे ने विधायन को राज्य के विधायी अंगों की औपचारिक घोषणा (Formal Expression) बताया।
52. अधिनियमों के प्रयोजनों के लिये प्रतिनिधि निकाय/प्राधिकारी को विधायी शक्तियों का प्रत्यायोजन क्या कहलाता है?
(a) सशर्त विधायन ✅
(b) हेनरी अष्टम खण्ड
(c) अत्यधिक प्रत्यायोजन
(d) अविधिमान्य प्रत्यायोजन
(U.P.P.C.S. – 2001)
(a) सशर्त विधायन ✅
(b) हेनरी अष्टम खण्ड
(c) अत्यधिक प्रत्यायोजन
(d) अविधिमान्य प्रत्यायोजन
(U.P.P.C.S. – 2001)
व्याख्या: विधायिका जब किसी अधिनियम को लागू करने हेतु शर्तों सहित विधायी शक्तियाँ किसी अन्य निकाय को सौंपती है, तो इसे सशर्त विधायन कहा जाता है।
53. निम्नलिखित में से कौन सा प्रत्यायोजित विधान पर नियंत्रण करने का एक तरीका नहीं है?
(a) संसदीय नियंत्रण
(b) न्यायिक नियंत्रण
(c) प्रत्यायोजित विधान का प्रकाशन
(d) प्रत्यायोजित विधान के रजिस्ट्रीकरण की अपेक्षा ✅
(U.P.P.C.S. – 2000)
(a) संसदीय नियंत्रण
(b) न्यायिक नियंत्रण
(c) प्रत्यायोजित विधान का प्रकाशन
(d) प्रत्यायोजित विधान के रजिस्ट्रीकरण की अपेक्षा ✅
(U.P.P.C.S. – 2000)
व्याख्या: प्रत्यायोजित विधान पर नियंत्रण के पारंपरिक तरीके हैं – संसदीय समीक्षा, न्यायिक परीक्षण और प्रकाशन, न कि रजिस्ट्रीकरण।
54. आगमनात्मक एवं निगमनात्मक पद्धति सम्बन्धित है –
(a) रूढ़ि से
(b) पूर्व-निर्णय से
(c) विधान से ✅
(d) निर्वचन से
(U.P.P.C.S. (Pre) – 2010)
(a) रूढ़ि से
(b) पूर्व-निर्णय से
(c) विधान से ✅
(d) निर्वचन से
(U.P.P.C.S. (Pre) – 2010)
व्याख्या: विधान आगमनात्मक पद्धति (inductive) पर आधारित होता है जबकि न्यायिक निर्णय निगमनात्मक (deductive) पद्धति पर।
55. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए और सूचियों के नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर चुनिए:
सूची-I (विधिशास्त्री)
A. मॉन्टेस्क्यू
B. इहरिंग
C. एहरलिच
D. रास्को पाउण्ड
सूची-II (देश)
1. ऑस्ट्रिया-हंगरी
2. अमेरिका
3. फ्रांस
4. जर्मनी
कूट:
(a) A-1, B-2, C-3, D-4
(b) A-3, B-4, C-1, D-2 ✅
(c) A-4, B-2, C-3, D-1
(d) A-2, B-1, C-4, D-3
(U.P.P.C.S. (Pre) – 2010)
सूची-I (विधिशास्त्री)
A. मॉन्टेस्क्यू
B. इहरिंग
C. एहरलिच
D. रास्को पाउण्ड
सूची-II (देश)
1. ऑस्ट्रिया-हंगरी
2. अमेरिका
3. फ्रांस
4. जर्मनी
कूट:
(a) A-1, B-2, C-3, D-4
(b) A-3, B-4, C-1, D-2 ✅
(c) A-4, B-2, C-3, D-1
(d) A-2, B-1, C-4, D-3
(U.P.P.C.S. (Pre) – 2010)
व्याख्या: मिलान सही है:
A. मॉन्टेस्क्यू – फ्रांस (3)
B. इहरिंग – जर्मनी (4)
C. एहरलिच – ऑस्ट्रिया-हंगरी (1)
D. रास्को पाउण्ड – अमेरिका (2)
A. मॉन्टेस्क्यू – फ्रांस (3)
B. इहरिंग – जर्मनी (4)
C. एहरलिच – ऑस्ट्रिया-हंगरी (1)
D. रास्को पाउण्ड – अमेरिका (2)
56. जो विधायन किसी अन्य विधायी प्राधिकारी द्वारा निरसित, निराकृत अथवा नियंत्रित किये जाने योग्य नहीं होता, वह कहलाता है:
(a) प्रत्यायोजित विधायन
(b) अधीनस्थ विधायन
(c) सर्वोच्च विधायन ✅
(d) न्यायपालिक विधायन
(U.P.P.C.S. (Pre) – 2009)
(a) प्रत्यायोजित विधायन
(b) अधीनस्थ विधायन
(c) सर्वोच्च विधायन ✅
(d) न्यायपालिक विधायन
(U.P.P.C.S. (Pre) – 2009)
व्याख्या: सर्वोच्च विधायन वह है जो किसी अन्य प्राधिकारी से अप्रभावित होता है। इसका निर्माण सर्वोच्च विधायी संस्था करती है।
57. कोई ऐसी धारणा, जो यह तथ्य छिपाती है या छिपाने का प्रभाव रखती है कि एक विधि का नियम परिवर्तित हो गया है जबकि विधि का शब्द अपरिवर्तित हो, उसका प्रवर्तन उपान्तरित हो, को संज्ञापित करने वाली अभिव्यक्ति है:
(a) विधिक कल्पना
(b) साम्या ✅
(c) प्रथा
(d) विधायन
(U.P.P.C.S. (Pre) – 2009)
(a) विधिक कल्पना
(b) साम्या ✅
(c) प्रथा
(d) विधायन
(U.P.P.C.S. (Pre) – 2009)
व्याख्या: साम्या (Equity) एक न्यायनिष्ठ धारणा है जो विधि को न्यायसंगत ढंग से अनुप्रयुक्त करने में सहायक होती है।
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