सेवक लालमन शुक्ल को उसके मालिक गौरी दत्त ने गुमशुदा भतीजे को खोजने के लिए भेजा। बाद में मालिक ने इनाम की घोषणा की। सेवक को यह सूचना नहीं थी लेकिन उसने लड़के को खोज निकाला। फिर उसने इनाम की मांग की।
क्या वह व्यक्ति जिसने प्रस्ताव की जानकारी के बिना कार्य किया, वह संविदा में अधिकार प्राप्त कर सकता है?
न्यायालय ने कहा कि जब तक प्रस्ताव ज्ञात न हो और स्वीकृति न दी जाए, तब तक संविदा नहीं बनती। प्रस्ताव की जानकारी और जानबूझकर स्वीकृति आवश्यक है।
कोई भी प्रस्ताव तभी संविदा बन सकता है जब उसे ज्ञात हो और स्पष्ट रूप से स्वीकृति दी जाए।
यह केस प्रस्ताव की जानकारी और जानबूझकर की गई स्वीकृति के महत्व को दर्शाता है। प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछा जाता है।
Harvey ने Facey को तार भेजा: “क्या आप Jamaican Hall बेचेंगे? आपकी न्यूनतम कीमत बताइए।” Facey ने उत्तर दिया, “न्यूनतम कीमत £900 है।” Harvey ने जवाब दिया कि वह £900 में खरीदेंगे। लेकिन Facey ने बिक्री से मना कर दिया।
क्या Facey का उत्तर एक वैध प्रस्ताव था जिसे Harvey स्वीकार कर सकता था?
न्यायालय ने निर्णय दिया कि केवल कीमत की जानकारी देना प्रस्ताव नहीं है। यह मात्र एक सूचना थी, प्रस्ताव नहीं।
प्रस्ताव और सूचना (invitation to treat) में भेद महत्वपूर्ण है। केवल मूल्य बताना प्रस्ताव नहीं माना जा सकता।
यह केस स्पष्ट करता है कि प्रस्ताव और 'आमंत्रण प्रस्ताव' (invitation to offer) अलग-अलग होते हैं। यह सिविल जज परीक्षा और संविदा कानून की पढ़ाई के लिए अति उपयोगी है।
अपीलकर्ता ने उत्तरदाता को टेलीफोन पर एक प्रस्ताव दिया जो उत्तरदाता ने स्वीकार किया। लेकिन उत्तरदाता की स्वीकृति अपीलकर्ता तक नहीं पहुँची और विवाद उत्पन्न हुआ।
क्या मौखिक या टेलीफोन द्वारा दी गई स्वीकृति तभी मान्य होती है जब वह प्रस्तावक तक पहुँच जाए?
न्यायालय ने कहा कि मौखिक (instantaneous) माध्यमों में स्वीकृति तब पूर्ण होती है जब वह प्रस्तावक तक पहुँच जाए। जब तक प्रस्तावक को स्वीकृति ज्ञात न हो, तब तक संविदा नहीं बनती।
संचार के माध्यम के आधार पर स्वीकृति का समय तय होता है। पोस्ट के माध्यम में एक नियम, जबकि टेलीफोन या मौखिक माध्यम में अलग।
यह केस स्पष्ट करता है कि संचार के साधनों का संविदा में क्या महत्व है। Judiciary Exams में बार-बार पूछा जाने वाला केस है।
Felthouse ने अपने भतीजे से एक घोड़ा खरीदने की पेशकश की और कहा, "अगर मैं कुछ नहीं सुनूं, तो मैं मानूंगा कि घोड़ा मेरा है।" भतीजे ने कोई उत्तर नहीं दिया। घोड़ा नीलामी में चला गया। Felthouse ने मुकदमा दायर किया।
क्या चुप्पी (Silence) को स्वीकृति माना जा सकता है?
न्यायालय ने कहा कि स्वीकृति स्पष्ट और संप्रेषित होनी चाहिए। चुप्पी को संविदात्मक स्वीकृति नहीं माना जा सकता।
बिना स्पष्ट संप्रेषण के कोई स्वीकृति नहीं होती। प्रस्तावकर्ता यह तय नहीं कर सकता कि चुप्पी का अर्थ स्वीकृति है।
यह केस Judiciary और Law Exams में अक्सर पूछा जाता है। यह बताता है कि स्वीकृति स्पष्ट, बिना संदेह और सक्रिय होनी चाहिए।
एक पक्ष ने दूसरे पक्ष से वादा किया कि वह एक निश्चित जमीन पर कब्जा नहीं करेगा। यह एक सामाजिक समझौता था। बाद में वाद लाया गया कि यह एक वैध संविदा थी।
क्या केवल एक सामाजिक वादा संविदा की श्रेणी में आता है?
न्यायालय ने कहा कि वादा सामाजिक प्रकृति का था जिसमें कानूनी बाध्यता की मंशा नहीं थी, इसलिए यह संविदा नहीं मानी जा सकती।
सामाजिक या नैतिक समझौते तब तक वैध संविदा नहीं होते जब तक उनमें कानूनी दायित्व की स्पष्ट मंशा न हो।
यह केस बताता है कि सामाजिक और पारिवारिक वादों में संविदात्मक बाध्यता तब तक नहीं बनती जब तक उसमें कानूनी दायित्व स्पष्ट न हो।
एक नाबालिग ने ऋण लेने के लिए एक बंधपत्र पर हस्ताक्षर किया। बाद में यह तर्क दिया गया कि वह नाबालिग था और संविदा अमान्य है।
क्या कोई नाबालिग वैध संविदा कर सकता है?
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि नाबालिग के साथ की गई कोई भी संविदा शून्य (void) होती है।
धारा 11 के अनुसार, नाबालिग के साथ की गई कोई भी संविदा प्रारंभ से ही शून्य होती है। नाबालिग को संविदात्मक दायित्व से मुक्त रखा जाता है।
यह केस धारा 11 के सबसे महत्वपूर्ण केसों में से है और लगभग हर न्यायिक परीक्षा में पूछा जाता है।
एक नाबालिग छात्र ने एक दर्जी से कई महंगे कपड़े खरीदे जो आवश्यक नहीं थे। दर्जी ने भुगतान के लिए मुकदमा दायर किया।
क्या नाबालिग के लिए आवश्यक वस्तुएँ होने पर ही भुगतान की बाध्यता होती है?
न्यायालय ने कहा कि केवल वे ही सामान जिन्हें आवश्यक कहा जा सके, उनके लिए ही भुगतान की बाध्यता होती है। यहाँ कपड़े आवश्यक नहीं थे।
धारा 11 के अंतर्गत, नाबालिग केवल आवश्यक वस्तुओं के लिए भुगतान हेतु बाध्य होता है, अन्य वस्तुओं पर संविदा शून्य मानी जाती है।
यह केस नाबालिग से जुड़ी 'necessary goods' की अवधारणा को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
राज रानी एक फिल्म अभिनेत्री थीं। एक निर्माता ने उन्हें जबरदस्ती (प्रभाव डालकर) फिल्म अनुबंध पर हस्ताक्षर करवाए। बाद में उन्होंने संविदा को रद्द करने की मांग की।
क्या अनुचित प्रभाव (undue influence) से बनाई गई संविदा वैध मानी जाएगी?
न्यायालय ने कहा कि जब सहमति स्वतंत्र नहीं होती, तब वह संविदा अमान्य मानी जाएगी। यह अनुचित प्रभाव का उदाहरण था।
सहमति यदि अनुचित प्रभाव, बलपूर्वकता या धोखाधड़ी से प्राप्त हो तो वह वैध नहीं मानी जाती। संविदा तभी वैध है जब सहमति स्वतंत्र हो।
यह केस स्वतंत्र सहमति और अनुचित प्रभाव की अवधारणा को स्पष्ट करता है, जो सिविल जज परीक्षा में अत्यंत उपयोगी है।
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