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5 Key Contract Cases (16–20) for Civil Judge Exam 2025

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 - केस 16, 17 और 18
केस 16: Kedarnath Bhattacharji v. Gorie Mohammad (1886)
तथ्य:

केदारनाथ ने एक टाउन हॉल के निर्माण हेतु चंदा इकट्ठा किया। गोरी मोहम्मद ने ₹100 की प्रतिबद्धता की, लेकिन बाद में देने से मना कर दिया। केदारनाथ ने उस धनराशि पर विश्वास करके निर्माण का अनुबंध कर लिया था।

विवाद:

क्या ऐसा वादा, जो बिना प्रत्यक्ष लाभ के हो, लेकिन जिस पर कार्य किया गया हो, बाध्यकारी होता है?

निर्णय:

न्यायालय ने कहा कि गोरी मोहम्मद का वादा बाध्यकारी था क्योंकि उस पर विश्वास करते हुए केदारनाथ ने कार्यवाही की थी। यह पर्याप्त विचार माना गया।

विधि द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत:

जब कोई व्यक्ति किसी वादे पर विश्वास करके कार्य करता है, तो वह विचार (consideration) के रूप में स्वीकार्य है, और संविदा बाध्यकारी मानी जाती है।

उपयोगिता:

यह केस भारतीय संविदा अधिनियम में 'promissory liability' की अवधारणा और विचार की व्याख्या को स्पष्ट करता है – Civil Judge परीक्षा में अति महत्वपूर्ण।

केस 17: Abdul Aziz v. Masum Ali (1914)
तथ्य:

मस्जिद की मरम्मत हेतु एक व्यक्ति ने चंदा देने का वादा किया, लेकिन कोई कार्य उस वादे पर आरंभ नहीं हुआ। बाद में वह वादा करने से मुकर गया।

विवाद:

क्या बिना किसी कार्य या क्षति के केवल वादा, संविदा बनाता है?

निर्णय:

न्यायालय ने कहा कि बिना किसी विचार (consideration) के केवल वादा करना, संविदा नहीं बनाता।

विधि द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत:

विचार संविदा की आवश्यक शर्त है। बिना विचार के, संविदा अमान्य मानी जाती है।

उपयोगिता:

यह केस यह स्पष्ट करता है कि केवल मौखिक या लिखित वादा संविदा नहीं होता जब तक कि उस पर कोई कार्रवाई या हानि न हुई हो।

केस 18: Currie v. Misa (1875)
तथ्य:

मिसा ने कर्री को एक वादा दिया, लेकिन कर्री ने बदले में कोई मूल्य नहीं दिया था। इस पर विवाद हुआ कि क्या यह संविदा वैध थी।

विवाद:

क्या बिना किसी मूल्य या लाभ के किया गया वादा, संविदा का आधार बन सकता है?

निर्णय:

न्यायालय ने परिभाषित किया कि विचार वह मूल्य है, जो एक पक्ष को लाभ या दूसरे पक्ष को हानि के रूप में मिलता है।

विधि द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत:

Consideration must consist of some act, forbearance, or promise given in return for the promise. यह धारा 2(d) का मूल आधार है।

उपयोगिता:

यह केस विचार की परिभाषा का आधार बनाता है और भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 2(d) के लिए Frequently Asked है।

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 - केस 19
केस 19: Dutton v. Poole (1678)
तथ्य:

एक व्यक्ति ने अपनी बहन की शादी के लिए वादा किया कि वह लकड़ी बेचेगा और शादी के खर्चों का भुगतान करेगा। बाद में उसने यह नहीं किया और बहन ने मुकदमा किया।

विवाद:

क्या तीसरे पक्ष को, जो संविदा का हिस्सा नहीं था, संविदा लागू करने का अधिकार है यदि विचार उसके लाभ के लिए था?

निर्णय:

न्यायालय ने माना कि चूँकि विचार बहन के लाभ के लिए था, वह संविदा लागू कर सकती है।

विधि द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत:

यदि विचार किसी तीसरे पक्ष के लाभ हेतु किया गया है, तो वह व्यक्ति भी संविदा को लागू कर सकता है – यह Principle of Privity में अपवाद है।

उपयोगिता:

यह केस संविदा के 'Privity of Contract' सिद्धांत के अपवाद को दर्शाता है और Civil Judge Exam में बार-बार पूछा जाता है।

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 - केस 20
केस 20: Tweddle v. Atkinson (1861)
तथ्य:

दो पिता ने अपने-अपने पुत्र और पुत्री के विवाह के उपरांत पैसे देने का वादा किया। एक पिता ने भुगतान नहीं किया, और दूल्हे ने मुकदमा किया।

विवाद:

क्या वह व्यक्ति जो संविदा का पक्षकार नहीं है, लेकिन जिसके लिए वादा किया गया है, संविदा को लागू कर सकता है?

निर्णय:

न्यायालय ने कहा कि वादी संविदा का पक्षकार नहीं था और न ही उसने कोई विचार प्रदान किया था, अतः वह संविदा को लागू नहीं कर सकता।

विधि द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत:

केवल संविदा के पक्षकार ही उसे लागू कर सकते हैं (Doctrine of Privity)।

उपयोगिता:

यह केस संविदा के 'Privity of Contract' के सिद्धांत को परिभाषित करता है और यह दिखाता है कि तीसरा पक्ष, बिना विचार दिए, संविदा लागू नहीं कर सकता।

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