📘 Part 01: Carlill v. Carbolic Smoke Ball – General Offer Explained
📘 Part 02: 08 Important Contract Act Cases for Civil Judge Exam
📘 Part 03: 05 Important Contract Law Cases for Civil Judge Exam
केदारनाथ ने एक टाउन हॉल के निर्माण हेतु चंदा इकट्ठा किया। गोरी मोहम्मद ने ₹100 की प्रतिबद्धता की, लेकिन बाद में देने से मना कर दिया। केदारनाथ ने उस धनराशि पर विश्वास करके निर्माण का अनुबंध कर लिया था।
क्या ऐसा वादा, जो बिना प्रत्यक्ष लाभ के हो, लेकिन जिस पर कार्य किया गया हो, बाध्यकारी होता है?
न्यायालय ने कहा कि गोरी मोहम्मद का वादा बाध्यकारी था क्योंकि उस पर विश्वास करते हुए केदारनाथ ने कार्यवाही की थी। यह पर्याप्त विचार माना गया।
जब कोई व्यक्ति किसी वादे पर विश्वास करके कार्य करता है, तो वह विचार (consideration) के रूप में स्वीकार्य है, और संविदा बाध्यकारी मानी जाती है।
यह केस भारतीय संविदा अधिनियम में 'promissory liability' की अवधारणा और विचार की व्याख्या को स्पष्ट करता है – Civil Judge परीक्षा में अति महत्वपूर्ण।
मस्जिद की मरम्मत हेतु एक व्यक्ति ने चंदा देने का वादा किया, लेकिन कोई कार्य उस वादे पर आरंभ नहीं हुआ। बाद में वह वादा करने से मुकर गया।
क्या बिना किसी कार्य या क्षति के केवल वादा, संविदा बनाता है?
न्यायालय ने कहा कि बिना किसी विचार (consideration) के केवल वादा करना, संविदा नहीं बनाता।
विचार संविदा की आवश्यक शर्त है। बिना विचार के, संविदा अमान्य मानी जाती है।
यह केस यह स्पष्ट करता है कि केवल मौखिक या लिखित वादा संविदा नहीं होता जब तक कि उस पर कोई कार्रवाई या हानि न हुई हो।
मिसा ने कर्री को एक वादा दिया, लेकिन कर्री ने बदले में कोई मूल्य नहीं दिया था। इस पर विवाद हुआ कि क्या यह संविदा वैध थी।
क्या बिना किसी मूल्य या लाभ के किया गया वादा, संविदा का आधार बन सकता है?
न्यायालय ने परिभाषित किया कि विचार वह मूल्य है, जो एक पक्ष को लाभ या दूसरे पक्ष को हानि के रूप में मिलता है।
Consideration must consist of some act, forbearance, or promise given in return for the promise. यह धारा 2(d) का मूल आधार है।
यह केस विचार की परिभाषा का आधार बनाता है और भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 2(d) के लिए Frequently Asked है।
एक व्यक्ति ने अपनी बहन की शादी के लिए वादा किया कि वह लकड़ी बेचेगा और शादी के खर्चों का भुगतान करेगा। बाद में उसने यह नहीं किया और बहन ने मुकदमा किया।
क्या तीसरे पक्ष को, जो संविदा का हिस्सा नहीं था, संविदा लागू करने का अधिकार है यदि विचार उसके लाभ के लिए था?
न्यायालय ने माना कि चूँकि विचार बहन के लाभ के लिए था, वह संविदा लागू कर सकती है।
यदि विचार किसी तीसरे पक्ष के लाभ हेतु किया गया है, तो वह व्यक्ति भी संविदा को लागू कर सकता है – यह Principle of Privity में अपवाद है।
यह केस संविदा के 'Privity of Contract' सिद्धांत के अपवाद को दर्शाता है और Civil Judge Exam में बार-बार पूछा जाता है।
दो पिता ने अपने-अपने पुत्र और पुत्री के विवाह के उपरांत पैसे देने का वादा किया। एक पिता ने भुगतान नहीं किया, और दूल्हे ने मुकदमा किया।
क्या वह व्यक्ति जो संविदा का पक्षकार नहीं है, लेकिन जिसके लिए वादा किया गया है, संविदा को लागू कर सकता है?
न्यायालय ने कहा कि वादी संविदा का पक्षकार नहीं था और न ही उसने कोई विचार प्रदान किया था, अतः वह संविदा को लागू नहीं कर सकता।
केवल संविदा के पक्षकार ही उसे लागू कर सकते हैं (Doctrine of Privity)।
यह केस संविदा के 'Privity of Contract' के सिद्धांत को परिभाषित करता है और यह दिखाता है कि तीसरा पक्ष, बिना विचार दिए, संविदा लागू नहीं कर सकता।
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