Home Ad

Part 03: 05 Important Contract Law Cases for Civil Judge Exam

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 - केस 11
केस 11: Derry v. Peek (1889)
तथ्य:

एक ट्रामवे कंपनी ने अपने प्रॉस्पेक्टस में दावा किया कि उसे स्टीम पावर से ट्राम चलाने की अनुमति मिलेगी। यह अनुमति सरकार से मिलनी थी लेकिन नहीं मिली। निवेशकों ने नुकसान होने पर मुकदमा किया।

विवाद:

क्या यह धोखाधड़ी थी जब कंपनी को सरकार से अनुमति की अनिश्चितता पता थी?

निर्णय:

न्यायालय ने कहा कि जब तक जानबूझकर गलत तथ्य न हो, तब तक उसे धोखाधड़ी नहीं कहा जा सकता। यहाँ केवल विश्वास था कि अनुमति मिल जाएगी।

विधि द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत:

धोखाधड़ी तब होती है जब जानबूझकर झूठ बोला गया हो, या तथ्य छिपाए गए हों। केवल अनुमान या आशा व्यक्त करना धोखाधड़ी नहीं है।

उपयोगिता:

यह केस भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 17 की परिभाषा को स्पष्ट करता है और धोखाधड़ी व निर्दोष गलतबयानी में अंतर बताता है।

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 - केस 12
केस 12: With v. O’Flanagan (1936)
तथ्य:

एक डॉक्टर ने अपने क्लिनिक को बेचते समय उसकी आमदनी बताई, जो उस समय सही थी। लेकिन सौदे के पूरा होने से पहले आमदनी कम हो गई और खरीदार को यह सूचना नहीं दी गई।

विवाद:

क्या बदलती परिस्थिति की जानकारी न देना भ्रामक प्रस्तुति मानी जाएगी?

निर्णय:

न्यायालय ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति पहले सही जानकारी देता है, लेकिन बाद में वह गलत साबित होती है और उसे अद्यतन नहीं किया गया – तो वह भ्रामक प्रस्तुति मानी जाएगी।

विधि द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत:

जब प्रारंभिक वक्तव्य में परिवर्तन हो, तो उसे खरीदार को बताना जरूरी है। नहीं बताने पर यह Misrepresentation होगा।

उपयोगिता:

यह केस धारा 18 के अंतर्गत यह समझाने में सहायक है कि 'चुप रहना' कब भ्रामक प्रस्तुति बन सकता है।

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 - केस 13
केस 13: Raffles v. Wichelhaus (1864)
तथ्य:

दोनों पक्षों ने एक माल का सौदा किया जो 'Peerless' नामक जहाज से आना था। लेकिन 'Peerless' नामक दो जहाज थे, और दोनों पक्ष अलग-अलग जहाज को समझ रहे थे।

विवाद:

क्या जब दोनों पक्षों की सहमति वस्तु के बारे में ही भिन्न हो, तो संविदा वैध मानी जाएगी?

निर्णय:

न्यायालय ने कहा कि जब दोनों पक्ष वस्तु की पहचान पर ही सहमत नहीं हैं, तो 'consensus ad idem' नहीं होता और संविदा शून्य होती है।

विधि द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत:

जब सहमति में मूल विषय पर भ्रम हो तो वह संविदा वैध नहीं होती। यह 'मूल वस्तु में भ्रम' का सिद्धांत दर्शाता है।

उपयोगिता:

यह केस संविदा में 'Mistake of Fact' की अवधारणा को समझाने में महत्वपूर्ण है और धारा 13 के अंतर्गत बार-बार पूछा जाता है।

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 - केस 14
केस 14: Cundy v. Lindsay (1878)
तथ्य:

Lindsay & Co. ने एक व्यापारी को सामान भेजा, यह सोचकर कि वह प्रसिद्ध फर्म है, लेकिन वह एक धोखेबाज निकला जिसने गलत नाम से ऑर्डर दिया था। बाद में उसने वही सामान तीसरे पक्ष को बेच दिया।

विवाद:

क्या जब पहचान में धोखा होता है, तो क्या संविदा वैध रहती है?

निर्णय:

न्यायालय ने कहा कि संविदा शून्य है क्योंकि पक्षकार की पहचान ही गलत थी। जब आप सामने वाले व्यक्ति की पहचान में धोखा खाते हैं, तो सहमति ही नहीं बनती।

विधि द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत:

यदि कोई संविदा किसी विशिष्ट व्यक्ति के साथ करने का उद्देश्य हो, और पहचान ही गलत हो, तो ऐसी संविदा अमान्य होती है।

उपयोगिता:

यह केस संविदा की सहमति में पहचान की भूमिका को स्पष्ट करता है और Section 20 के अंतर्गत अत्यंत महत्वपूर्ण है।

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 - केस 15
केस 15: Cooper v. Phibbs (1867)
तथ्य:

एक व्यक्ति ने मछली पकड़ने का एक तालाब किराए पर लिया, यह मानकर कि किराए देने वाले व्यक्ति का उस पर अधिकार है। बाद में पता चला कि तालाब का असली मालिक किराएदार स्वयं था।

विवाद:

क्या जब दोनों पक्ष वस्तु के अधिकार को लेकर भ्रम में हों, तो संविदा वैध रहती है?

निर्णय:

न्यायालय ने निर्णय दिया कि यह संविदा शून्य है क्योंकि दोनों पक्ष अधिकार के बारे में भ्रम में थे। किराए की कोई वैधता नहीं थी।

विधि द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत:

जब दोनों पक्ष किसी संविदा की वस्तु के स्वामित्व के बारे में गलतफहमी में हों, तो वह संविदा शून्य होती है (धारा 20)।

उपयोगिता:

यह केस बताता है कि वस्तु के स्वामित्व में भ्रम संविदा को अमान्य बनाता है। Civil Judge Exam में धारा 20 के लिए यह केस प्रमुख है।

Post a Comment

0 Comments