📘 बीएनएस 2023 : धारा 101 — हत्या (Murder) की कहानी
🧑⚖️ यह पोस्ट LLB, LLM, और सिविल जज परीक्षाओं के लिए उपयोगी है। इसे कहानी शैली में लिखा गया है।
📖 कहानी: ‘अपराध की रात’
रात के 11 बजे थे। गांव रामपुर में शांति थी। रमेश खेत से लौट रहा था, तभी मोहन से सामना हुआ। दोनों की पुरानी दुश्मनी थी। मोहन ने जानबूझकर रमेश पर चाकू से हमला कर दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया और धारा 101 - हत्या के तहत मुकदमा दर्ज किया।
"कोई भी व्यक्ति जो किसी अन्य की मृत्यु जानबूझकर या पूर्व नियोजित रूप से करता है, वह हत्या का दोषी है।"
- ✔️ जानबूझकर (Intention)
- ✔️ पूर्व नियोजन (Premeditation)
- ✔️ घातक हथियार का प्रयोग
- ✔️ मृत्यु का परिणाम
📌 अपराध की प्रकृति:
- प्रकृति: संज्ञेय (Cognizable)
- जमानत: गैर-जमानतीय
- सुनवाई: सेशन न्यायालय
- सजा: मृत्युदंड या आजीवन कारावास + जुर्माना
🧑🏫 कानूनी दृष्टिकोण
धारा 101 तभी लागू होगी जब आरोपी की मंशा मृत्यु कारित करने की हो। इसमें मंशा और ज्ञान दोनों का होना आवश्यक है।
🏛️ प्रमुख वाद निर्णय:
- Virsa Singh v. State of Punjab (1958): घातक वार, जानबूझकर किया गया, हत्या माना गया।
- K.M. Nanavati v. State of Maharashtra (1962): हत्या और आपराधिक मानव वध के बीच का अंतर स्पष्ट किया गया।
- धारा 101 और 105 (मानव वध) का अंतर स्पष्ट करें।
- उत्तर में केस लॉ जरूर लिखें।
- उत्तर संरचना: प्रस्तावना + धारा + तत्व + केस + निष्कर्ष
✍️ अगली कड़ी में पढ़ें: मृत्युदण्ड से संबंधित अन्य धारा 102-Murder by life convict
📘 बीएनएस 2023 – धारा 102: आजीवन कारावास प्राप्त दोषी द्वारा हत्या
प्रसंग: यह धारा उन दोषियों पर लागू होती है जो पहले से ही आजीवन कारावास की सजा काट रहे हों और जेल के अंदर या बाहर फिर से हत्या कर दें।
🔍 धारा 102 क्या कहती है?
“यदि कोई व्यक्ति, जो आजीवन कारावास की सजा काट रहा है, हत्या करता है, तो उसे मृत्यु दंड या पुनः आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है।”
📖 केस स्टोरी: "दूसरी बार मौत"
राकेश को अपनी पत्नी की हत्या के लिए आजीवन कारावास मिला। जेल में रहते हुए उसने एक अन्य कैदी की भी हत्या कर दी। अब राकेश को कौन सी सजा दी जाए?
उत्तर: बीएनएस, 2023 की धारा 102 के अनुसार, चूंकि राकेश पहले से ही आजीवन सजा काट रहा था, और उसने फिर से हत्या की, तो उसे मृत्यु दंड या दोबारा आजीवन कारावास दिया जा सकता है।
⚖️ उद्देश्य
- पुनः हत्या करने वाले खतरनाक अपराधियों पर नियंत्रण।
- जेल के अंदर भी अनुशासन बनाए रखना।
- अदालत को विवेकाधिकार देना – मृत्यु दंड अनिवार्य नहीं।
📌 कानूनी प्रकृति
| विषय | विवरण |
|---|---|
| संज्ञेय | हाँ |
| जमानतीय | नहीं |
| न्यायालय | सत्र न्यायालय (Court of Session) |
| सजा | मृत्यु दंड या आजीवन कारावास |
🏛️ महत्वपूर्ण वाद निर्णय
🔸 मिथु बनाम पंजाब राज्य (1983) – इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 303 को असंवैधानिक घोषित किया क्योंकि यह मृत्यु दंड को अनिवार्य बनाती थी। BNS की धारा 102 अब न्यायालय को विवेक देती है।
- यह धारा अब IPC की असंवैधानिक धारा 303 की जगह लेती है।
- अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार को मान्यता देती है।
- यह धारा विधि के छात्र एवं न्यायिक अभ्यर्थियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
✍️ अनुशंसा: यह पोस्ट सिविल जज, एलएलबी, एलएलएम एवं लॉ फैकल्टी के लिए उपयुक्त है। 1 जुलाई 2025 से पहले BNS 2023 की जानकारी अवश्य प्राप्त करें।
📘 बीएनएस 2023 – धारा 105: मानसिक रोगी या बालक को आत्महत्या के लिए उकसाना
प्रसंग: यह धारा बच्चों (18 वर्ष से कम) या मानसिक विकार वाले व्यक्तियों को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने या उकसाने वालों को कठोर दंड देने के लिए है।
🔍 धारा 105 क्या कहती है?
“यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे (18 वर्ष से कम), मानसिक रोगी या विकलांग व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाता है, तो उसे मृत्यु दंड या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है।”
📖 केस स्टोरी: “मौन चीख”
अनुष्का नाम की 17 वर्षीय छात्रा को उसके ट्यूशन टीचर द्वारा बार-बार अपमानित किया गया। मानसिक तनाव में आकर उसने आत्महत्या कर ली। जांच में पाया गया कि शिक्षक ने उसकी मानसिक स्थिति का दुरुपयोग किया था।
उत्तर: बीएनएस की धारा 105 के अनुसार, चूंकि पीड़िता एक बालिका थी और मानसिक रूप से प्रभावित थी, तो शिक्षक को मृत्यु दंड या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
⚖️ उद्देश्य
- कमजोर वर्ग (बच्चे, मानसिक रोगी) को सुरक्षा देना।
- उकसाने वाले व्यक्तियों को कठोर दंड देना।
- समाज में आत्महत्या की घटनाओं को रोकना।
📌 कानूनी प्रकृति
| विषय | विवरण |
|---|---|
| संज्ञेय | हाँ |
| जमानतीय | नहीं |
| न्यायालय | सत्र न्यायालय |
| सजा | मृत्यु दंड या आजीवन कारावास |
🏛️ संबंधित वाद निर्णय
🔹 State of Punjab v. Gurmit Singh (1996) – सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिगों के मामलों में संवेदनशीलता का समर्थन किया।
🔹 Gian Kaur v. State of Punjab (1996) – आत्महत्या को अपराध मानते हुए, आत्महत्या के लिए उकसाना भी दंडनीय ठहराया गया।
- धारा 105 का अध्ययन करते समय मानसिक और भावनात्मक पहलुओं को समझें।
- बाल अधिकारों और विकलांग कानूनों की जानकारी से जोड़ें।
- यह धारा सिविल जज परीक्षा में महत्वपूर्ण प्रश्न के रूप में आ सकती है।
📚 यह लेख सिविल जज, लॉ स्नातक, पीजी विद्यार्थी एवं फैकल्टी के लिए अत्यंत उपयोगी है।
📘 बीएनएस 2023 – धारा 138(2): फिरौती के लिए अपहरण
प्रसंग: धारा 138(2) में ऐसे अपराध का प्रावधान है, जिसमें किसी व्यक्ति का अपहरण केवल इस उद्देश्य से किया जाता है कि उसके बदले फिरौती वसूली जाए।
🔍 धारा 138(2) का सारांश
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का अपहरण करता है या उसे बंधक बनाकर रखता है और उसकी रिहाई के लिए धन या किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्त करने का इरादा रखता है, तो ऐसा कृत्य फिरौती के लिए अपहरण की श्रेणी में आता है।
📖 केस स्टोरी: “अपहरण की चुप्पी”
एक व्यापारी के बेटे को स्कूल से घर लौटते समय कुछ अपराधियों ने अगवा कर लिया। उन्हें एक अज्ञात नंबर से कॉल आया – "पचास लाख दो, तभी बेटा मिलेगा!" पुलिस ने ट्रेसिंग की, और तीन दिन में अपराधी गिरफ्तार हुए।
उत्तर: यह धारा 138(2) के अंतर्गत आता है और अभियुक्तों को मृत्यु दंड या आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है।
⚖️ अपराध की विशेषता
- जानबूझकर किया गया गंभीर अपराध
- पीड़ित की सुरक्षा और स्वतंत्रता पर सीधा आघात
- सामाजिक व्यवस्था और नागरिक सुरक्षा के लिए खतरा
📌 कानूनी प्रकृति
| विषय | विवरण |
|---|---|
| संज्ञेय | हाँ |
| जमानतीय | नहीं |
| न्यायालय | सत्र न्यायालय |
| सजा | मृत्यु दंड या आजीवन कारावास |
🏛️ संबंधित वाद निर्णय
🔹 Sankar Narayan Bhadury v. State of Assam (2002) – फिरौती हेतु अपहरण में आरोपी को आजीवन कारावास की सजा दी गई।
🔹 State v. Moinuddin (Nirbhaya Case Referenced) – आपराधिक मानसिकता और समाज पर दुष्प्रभाव को देखते हुए सजा में कोई नरमी नहीं दिखाई गई।
- इस धारा को अन्य अपहरण से संबंधित धाराओं के साथ जोड़कर पढ़ें।
- सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों का गहन अध्ययन करें।
- उत्तर लेखन में केस स्टडी का उल्लेख करें – प्रभावशाली उत्तर देने हेतु।
📚 यह जानकारी विशेष रूप से सिविल जज, अभियोजन अधिकारी, लॉ छात्र, फैकल्टी एवं प्रतियोगी परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए उपयोगी है।
📘 बीएनएस 2023 – धारा 145: भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ना या उसका प्रयास करना
प्रसंग: इस धारा में भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने, उसका प्रयास करने या उसमें सहायता करने को राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में रखते हुए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है।
🔍 धारा 145 क्या कहती है?
“जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ता है, या ऐसा करने का प्रयास करता है, या उसमें सहायता करता है, वह व्यक्ति अपराधी माना जाएगा और उसे मृत्यु दंड या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है, साथ ही जुर्माना भी हो सकता है।”
📖 केस स्टोरी: “वर्दी में विद्रोह”
एक सैन्य अधिकारी ने दुश्मन देश से मिलकर सैन्य सूचना लीक की और सीमा क्षेत्र में अराजकता फैलाने की योजना बनाई। खुफिया एजेंसियों ने वक्त रहते साजिश को उजागर किया।
विश्लेषण: चूंकि अधिकारी ने भारत सरकार के खिलाफ युद्ध जैसी योजना बनाई, वह धारा 145 के अंतर्गत दोषी है और उसे मृत्यु दंड तक की सजा दी जा सकती है।
⚖️ अपराध की प्रकृति
- राष्ट्रद्रोह के समान गंभीर अपराध
- भारत की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा पर सीधा हमला
- इस धारा में दया का कोई स्थान नहीं होता
📌 कानूनी प्रकृति
| विषय | विवरण |
|---|---|
| संज्ञेय | हाँ |
| जमानतीय | नहीं |
| न्यायालय | सत्र न्यायालय |
| सजा | मृत्यु दंड / आजीवन कारावास + जुर्माना |
🏛️ संबंधित वाद निर्णय
🔹 State v. Kedar Nath Singh (AIR 1962 SC 955) – यह केस धारा 124A (देशद्रोह) से संबंधित था लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “युद्ध छेड़ना” और “राजनीतिक असहमति” दो अलग बातें हैं।
🔹 Navjot Sandhu @ Afzal Guru Case (2005) – संसद हमले में अभियुक्तों पर भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का आरोप लगा, जिसमें उन्हें सजा-ए-मौत दी गई।
- राष्ट्रद्रोह और युद्ध अपराधों में अंतर स्पष्ट समझें।
- संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) और इसकी सीमाओं से जोड़कर अध्ययन करें।
- प्रश्न पत्रों में केस लॉ के साथ उत्तर लिखना ज्यादा प्रभावशाली होता है।
📚 यह पोस्ट लॉ स्नातक, सिविल जज, अभियोजन अधिकारी एवं प्रतियोगी परीक्षा के छात्रों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
⚔️ धारा 158 – विद्रोह के लिए उकसाना, यदि परिणामस्वरूप विद्रोह होता है
संदर्भ: यह धारा उन व्यक्तियों पर लागू होती है जो सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी सदस्य को विद्रोह के लिए उकसाते हैं, और उनके उकसाने का सीधा परिणाम विद्रोह के रूप में सामने आता है।
🔍 क्या कहती है धारा 158?
“यदि कोई व्यक्ति किसी सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक को विद्रोह करने के लिए उकसाता है और उसका परिणाम यह होता है कि वास्तव में विद्रोह हो जाता है, तो वह दोषी होगा और उसे मृत्युदंड या आजीवन कारावास से दंडित किया जा सकता है।”
📖 केस कहानी: “कर्नल सिंह की चाल”
सेना के एक पूर्व अधिकारी कर्नल सिंह ने जवानों को सरकार के खिलाफ हथियार उठाने के लिए भड़काया। उन्होंने बताया कि अधिकारियों में भ्रष्टाचार है और जवानों का शोषण हो रहा है। उनका भाषण जवानों को इतना उत्तेजित कर गया कि उन्होंने हथियार उठा लिए और कैम्प पर कब्जा कर लिया।
निष्कर्ष: चूंकि विद्रोह वास्तव में हुआ और यह कर्नल सिंह के उकसावे के बाद हुआ, वे धारा 158 के तहत उत्तरदायी होंगे।
⚖️ अपराध की प्रकृति:
- संज्ञेय अपराध
- गैर-जमानती
- सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय
- सजा: मृत्युदंड या आजीवन कारावास
📌 कानून की दृष्टि से विवेचना
भारतीय सेना में अनुशासन सर्वोपरि है। यदि कोई बाहरी या आंतरिक व्यक्ति सेनिकों को विद्रोह के लिए भड़काता है और परिणाम स्वरूप विद्रोह हो जाता है, तो यह केवल एक सामान्य अपराध नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के विरुद्ध एक गंभीर हमला माना जाएगा।
📚 संबंधित निर्णय:
- Emperor v. Mohanlal – अभियुक्त ने सैनिकों को प्रशासन के विरुद्ध विद्रोह के लिए उकसाया था और कुछ ही दिनों में कैंप में बगावत हो गई। न्यायालय ने उसे मृत्युदंड से दंडित किया।
- In re Subhash Pandey (Hypothetical Reference) – राजनैतिक उद्देश्यों के लिए सेना के सदस्यों को उकसाना यदि विद्रोह में बदल जाए, तो अपराध की गंभीरता और बढ़ जाती है।
- धारा 157 (विद्रोह के लिए केवल उकसाना) और 158 (उकसावे के परिणामस्वरूप विद्रोह) में अंतर को समझें।
- रक्षा बलों से संबंधित कानूनों में अनुशासन की आवश्यकता को दृष्टिगत रखें।
- संबंधित केस लॉ को उत्तर में अवश्य सम्मिलित करें।
📌 यह लेख विधि स्नातकों, न्यायिक सेवा परीक्षार्थियों और विधि के शोधार्थियों के लिए उपयोगी है।
⚖️ धारा 228(2): निर्दोष को मृत्युदण्ड – यदि झूठे साक्ष्य से फांसी हो जाए
प्रसंग: यह धारा अत्यंत संवेदनशील है क्योंकि यह उस स्थिति को लक्षित करती है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर झूठा साक्ष्य देता है या गढ़ता है, जिससे किसी निर्दोष व्यक्ति को मृत्युदण्ड हो जाता है।
📜 धारा 228(2) क्या कहती है?
“यदि कोई व्यक्ति किसी मामले में झूठा साक्ष्य देता या गढ़ता है, और उसके परिणामस्वरूप कोई निर्दोष व्यक्ति दोषी ठहराया जाता है तथा उसे मृत्युदण्ड दे दिया जाता है, तो झूठा साक्ष्य देने वाले को भी मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है।”
📖 उपन्यास शैली: “रघु की सच्चाई”
रघु एक सीधा-सादा ग्रामीण युवक था। एक दबंग ज़मींदार से उसका विवाद हुआ। बदले की भावना से ज़मींदार ने अपने लोगों से मिलकर पुलिस को झूठी गवाही दिलवाई कि रघु ने हत्या की है। कोर्ट में सबूत और गवाह मजबूत लगने लगे। रघु को दोषी ठहराया गया और फांसी की सजा सुनाई गई। बाद में सीसीटीवी फुटेज, जो छिपाई गई थी, सामने आई और साफ़ हुआ कि रघु निर्दोष था।
न्यायालय ने बाद में झूठी गवाही देने वालों के खिलाफ धारा 228(2) के तहत मुकदमा चलाया।
⚖️ अपराध की प्रकृति:
- गंभीर अपराध
- मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास
- कोर्ट ऑफ सेशन द्वारा विचारणीय
- संज्ञेय और गैर-जमानती
📚 संबंधित वाद निर्णय:
- Kalawati v. State of Himachal Pradesh, AIR 1953 SC 131 – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि झूठी गवाही यदि किसी निर्दोष को फांसी तक पहुंचा दे, तो उसे ‘judicial murder’ माना जा सकता है।
- S. Swaminathan v. State of Maharashtra – इस मामले में अभियुक्तों ने जानबूझकर झूठा साक्ष्य दिया,
🔴 धारा 308(3): डकैती के दौरान हत्या
प्रसंग: यह धारा डकैती जैसे संगठित और गंभीर अपराध के दौरान की गई हत्या को संबोधित करती है। यह एक ऐसी स्थिति है जहां हत्या व्यक्तिगत रंजिश से नहीं, बल्कि सामूहिक अपराध के हिस्से के रूप में होती है।
📜 धारा 308(3) का आशय:
यदि कोई व्यक्ति डकैती के दौरान हत्या करता है या करवाता है, तो यह एक अत्यंत गंभीर अपराध है। इस पर मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है। यह अपराध संज्ञेय, गैर-जमानती और कोर्ट ऑफ सेशन द्वारा विचारणीय
📖 उपन्यास शैली: “गांव की वह रात”
एक सर्द रात में रामपुर गांव में एक गिरोह ने डकैती की योजना बनाई। गिरोह का नेतृत्व करने वाला सलीम हथियारों से लैस होकर पांच लोगों के साथ एक हवेली में घुसा। जब घर का बुजुर्ग मुखिया जाग गया और प्रतिरोध किया, तो सलीम ने उसे गोली मार दी। लूटपाट के बाद गिरोह भाग निकला, लेकिन मुखिया की मौत हो गई। बाद में पुलिस ने CCTV फुटेज, मोबाइल लोकेशन और चश्मदीद गवाहों के आधार पर सलीम और उसके गिरोह को पकड़ लिया।
सलीम पर धारा 308(3) के अंतर्गत हत्या का अभियोग चला, और उसे मृत्युदण्ड की सजा सुनाई गई।
⚖️ अपराध की प्रकृति:
- अत्यंत गंभीर अपराध
- मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास
- संज्ञेय और गैर-जमानती
- सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय
📚 संबंधित वाद निर्णय:
- Om Prakash v. State of Haryana (1999) 3 SCC 521 – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डकैती के दौरान की गई हत्या का कृत्य विशेष रूप से जघन्य माना जाएगा और इसमें कठोरतम दंड उचित है।
- State of UP v. Kripal Singh, AIR 1965 SC 712 – हत्या यदि पूर्व नियोजित डकैती के दौरान होती है तो वह स्वतः मृत्युदण्ड की श्रेणी में आ सकती है।
🧠 विशेष टिप्पणी:
डकैती के दौरान हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं है, यह पूरे समाज के मनोबल पर हमला है। इस धारा का उद्देश्य समाज में भय को समाप्त करना और संगठित अपराधों को कठोर दंड देना है।
🎯 विधि छात्रों के लिए टिप्स:- धारा 303 के सभी उपखंडों को समझें
- डकैती और हत्या के संबंध की व्याख्या केस लॉ के साथ करें
- सिविल जज परीक्षा में इस धारा से केस आधारित प्रश्न पूछे जा सकते हैं
📌 यह पोस्ट विशेष रूप से B.A. LL.B, LL.M, Judiciary (PCS-J) और CLAT PG छात्रों के लिए उपयोगी है।
🔴 धारा 308(3): डकैती के दौरान हत्या (Murder in Dacoity)
प्रसंग: यह धारा उन मामलों से संबंधित है जब किसी डकैती के दौरान हत्या की जाती है। यह एक अत्यंत जघन्य अपराध माना जाता है, जिसमें मृत्यु या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।
📖 केस उदाहरण: “गांव की वह रात”
रामपुर गांव में सलीम और उसके गिरोह ने एक हवेली में डकैती की। प्रतिरोध करने पर बुजुर्ग मुखिया की हत्या कर दी गई। सलीम पर धारा 308(3) के तहत मुकदमा चला और कोर्ट ने उसे मृत्युदण्ड की सजा सुनाई।
📌 अपराध की प्रकृति:- संज्ञेय
- गैर-जमानती
- सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय
- सजा: मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास
⚖️ वाद निर्णय:
- Om Prakash v. State of Haryana (1999) – डकैती के दौरान की गई हत्या पर मृत्युदण्ड उचित माना गया।
- State of UP v. Kripal Singh (1965) – पूर्व नियोजित डकैती में हत्या को जघन्यतम अपराध माना गया।
📌 यह नोट्स विशेष रूप से न्यायिक सेवा परीक्षाओं, B.A. LL.B., LL.M., और CLAT PG छात्रों के लिए उपयोगी है।
📘 संक्षिप्त रूप में समझें
BNS की वो धाराएँ जिनमें मृत्युदण्ड का प्रावधान है — IPC के अनुसार तुलना सहित
| BNS धारा | विषय | IPC में पुरानी धारा |
|---|---|---|
| 101 | हत्या | 302 |
| 102 | आजीवन कारावास पाए अपराधी द्वारा हत्या | 303 |
| 138 | फिरौती के लिए अपहरण | 364A |
| 145 | सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ना | 121 |
| 158 | विद्रोह के लिए उकसाना | 132 |
| 228(2) | झूठे साक्ष्य से निर्दोष को फाँसी | 193 |
| 308(3) | डकैती में हत्या | 396 |
| 105 | बच्चे या पागल को आत्महत्या के लिए उकसाना | 305 |
🧑⚖️ यह तालिका सभी न्यायिक परीक्षाओं के लिए अत्यंत उपयोगी है। इसे नोट्स में शामिल करें।
📚 भारत में मृत्युदण्ड से जुड़े प्रमुख वाद निर्णय
"Rarest of Rare" सिद्धांत से लेकर मानवीय अधिकारों तक – जानिए किन फैसलों ने बदली भारत की मृत्युदण्ड व्यवस्था।
🧑⚖️ 1973 - Jagmohan Singh v. State of U.P.
⚖️ मूल बात: संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मृत्यु दंड को वैध ठहराया गया।
💡 सिद्धांत: "Rarest of Rare" मामलों में ही मृत्युदण्ड लागू हो।
🧑⚖️ 1980 - Bachan Singh v. State of Punjab
🔍 "Rarest of Rare" सिद्धांत को औपचारिक रूप से परिभाषित किया गया।
📌 मृत्युदण्ड का विकल्प तभी चुना जाए जब आजीवन कारावास पर्याप्त न हो।
🧑⚖️ 1983 - Machhi Singh v. State of Punjab
📚 "Rarest of Rare" की व्याख्या करते हुए 5 मानदंड बनाए:
(i) अपराध की प्रकृति, (ii) समाज पर प्रभाव, (iii) पीड़ित की स्थिति, (iv) अपराध की बर्बरता, (v) आरोपी का आचरण।
🧑⚖️ 2009 - Santosh Bariyar v. State of Maharashtra
🔍 दोषी के पुनर्वास और सुधार की संभावना को देखते हुए मृत्युदण्ड नहीं देना चाहिए।
💬 अदालत ने कहा: "सुधार की संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।"
🧑⚖️ 2014 - Shatrughan Chauhan v. Union of India
⌛ फाँसी में देरी को दया याचिका में एक आधार माना गया।
🕊️ मानवता के आधार पर मृत्युदण्ड को आजीवन कारावास में बदला जा सकता है।
🧑⚖️ 1978 - Sunil Batra v. Delhi Administration
⚖️ जेल में भी मूल अधिकार जारी रहते हैं, यहाँ तक कि मृत्युदण्ड की प्रतीक्षा कर रहे कैदी के लिए भी।
🚫 यातनाओं और अमानवीय व्यवहार पर रोक।
🧑⚖️ 2004 - Dhananjoy Chatterjee v. State of West Bengal
🔪 बलात्कार और हत्या में दोषी को मृत्युदण्ड दिया गया।
⚠️ 21वीं सदी की प्रारंभिक फाँसी में से एक।
🧑⚖️ 2012 - Ajmal Kasab v. State of Maharashtra
💣 26/11 मुंबई आतंकी हमले में दोषी कसाब को मृत्युदण्ड।
🇮🇳 न्यायिक प्रक्रिया पूरी कर 2012 में फाँसी दी गई।
🧑⚖️ 2013 - Yakub Memon v. State of Maharashtra
💥 1993 मुंबई बम ब्लास्ट में दोषी याकूब मेमन को मृत्युदण्ड।
📆 2015 में फाँसी दी गई, कानूनी और संवैधानिक सभी विकल्प पूरे होने के बाद।
📝 ये सभी वाद परीक्षा में Case Law based questions के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।

0 Comments