📘 Important Lecture Series for NTA UGC NET Paper 2 – Law
UNIT – X: Comparative Public Law and Systems of Governance
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Lecture 01: Comparative Law – Relevance, Methodology, Problems and Concerns
सापेक्ष विधि का महत्व, तुलना की पद्धति, समस्याएं और चुनौतियां - ✦ It helps in law reform (विधि सुधार में सहायक)
- ✦ Promotes legal harmonization and unification (विधिक सामंजस्य और एकरूपता को बढ़ावा देता है)
- ✦ Improves understanding of foreign legal systems (विदेशी विधिक प्रणाली की समझ विकसित करता है)
- ✦ Enhances cross-border legal cooperation (सीमापार विधिक सहयोग को मजबूत करता है)
- ✦ Vital for global trade and international relations (वैश्विक व्यापार और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में आवश्यक)
- Functional Approach (कार्यात्मक दृष्टिकोण): Focus on how legal systems solve common social problems.
- Contextual Understanding (प्रसंगात्मक समझ): Study the culture, history, and politics behind a legal norm.
- Classification of Legal Systems (विधिक प्रणालियों का वर्गीकरण): For example, Civil Law (France, Germany), Common Law (UK, USA), Socialist Law (China, Cuba), Customary Law (Africa).
- Translation and Interpretation: Legal terms often don’t have exact equivalents; hence careful translation and contextual meaning are needed.
- 🔸 Legal Terminology Barrier: Same terms may have different meanings in different systems.
- 🔸 Translation Difficulties: Contextual meanings get lost or misinterpreted.
- 🔸 Cultural Bias: Researchers may impose their own legal mindset.
- 🔸 Lack of Common Ground: Different values, legal philosophies, and historical roots create hurdles.
- 🔸 Dynamic Nature of Law: Laws change rapidly; comparisons may become outdated quickly.
- ⚠️ Be aware of historical background of both systems.
- ⚠️ Avoid ethnocentrism – don’t judge other systems by your own standards.
- ⚠️ Use reliable sources and case studies.
- ⚠️ Understand the social function of laws in their respective cultures.
- 📍 Comparative Law helps in understanding global legal systems.
- 📍 It has practical applications in reform, trade, treaties, and academic growth.
- 📍 Methodologies include functional and contextual comparison.
- 📍 Translation, culture, and legal philosophy pose major challenges.
- 📍 UGC NET में तुलनात्मक विधि से सीधे प्रश्न पूछे जाते हैं – जैसे कि legal systems की classification, methodology, और examples पर आधारित MCQs।
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Lecture 02: Forms of Governments – Presidential and Parliamentary, Unitary and Federal
शासन के रूप – राष्ट्रपति और संसदीय, एकात्मक और संघात्मक📊 Comparative Table: India and Other Countries
विशेषता (Feature) भारत (India) अमेरिका (USA) यूके (UK) कनाडा (Canada) सरकार का प्रकार (Type of Government) संसदीय संघात्मक राष्ट्रपति संघात्मक संसदीय एकात्मक (Devolution के साथ) संसदीय संघात्मक कार्यपालिका (Executive) राष्ट्रपति (नाममात्र) + प्रधानमंत्री (वास्तविक) राष्ट्रपति ही कार्यपालिका का मुखिया प्रधानमंत्री (Monarch सांकेतिक प्रमुख) प्रधानमंत्री + गवर्नर जनरल (Monarch प्रतिनिधि) कार्यपालिका का चुनाव संसद द्वारा जनता द्वारा प्रत्यक्ष संसद द्वारा संसद द्वारा संविधान की प्रकृति लिखित, कठोर लिखित, कठोर अलिखित (अधिकांश भाग) लिखित, अर्ध-कठोर न्यायपालिका की स्थिति स्वतंत्र स्वतंत्र सैद्धांतिक रूप से स्वतंत्र स्वतंत्र संघात्मकता का मॉडल सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) द्वैध संघवाद (Dual Federalism) एकात्मक (Devolved Powers) सहकारी संघवाद 📌 निष्कर्ष (Conclusion): उपरोक्त तुलनात्मक जानकारी से स्पष्ट है कि भारत ने विभिन्न देशों के संवैधानिक अनुभवों से प्रेरणा लेते हुए संसदीय + संघात्मक प्रणाली का एक समन्वित मॉडल अपनाया है।
📖 UGC NET Law परीक्षा में इस टॉपिक से अक्सर Assertion-Reason या Match the Column आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं।
- Lecture 03: Models of Federalism – USA, Canada and India
संघवाद के मॉडल – अमेरिका, कनाडा और भारत📘 Lecture 03: संघवाद के मॉडल – अमेरिका, कनाडा और भारत (Federalism Models)
संघवाद (Federalism) एक शासन प्रणाली है जिसमें शक्ति का वितरण केंद्र और राज्यों के बीच संविधान द्वारा सुनिश्चित किया जाता है। भारत, अमेरिका और कनाडा – तीनों देशों ने अपने-अपने ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भों में संघात्मक ढाँचे को अपनाया है।
🔹 अमेरिका का संघवाद (USA – Dual Federalism)
- केंद्र और राज्यों के बीच स्पष्ट शक्ति विभाजन होता है।
- प्रत्येक राज्य का अलग संविधान और कानून प्रणाली होती है।
- राज्यों को अपने क्षेत्र में पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है।
- Leading Case: McCulloch v. Maryland (1819) – अमेरिकी संघवाद में implied powers और supremacy clause को स्पष्ट किया गया।
🔹 कनाडा का संघवाद (Canada – Asymmetrical Federalism)
- कनाडा में कुछ प्रांतों (विशेषकर Quebec) को सांस्कृतिक और भाषायी विशेषाधिकार प्राप्त हैं।
- केंद्र और प्रांतों में कुछ overlapping अधिकार हैं।
- Leading Case: Reference re Secession of Quebec (1998) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी प्रांत को कनाडा से एकतरफा अलग होने का अधिकार नहीं है।
🔹 भारत का संघवाद (India – Cooperative Federalism with Unitary Features)
- भारत एक संघीय ढांचे वाला देश है लेकिन इसमें एकात्मक झुकाव
- संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र, राज्य और समवर्ती सूचियाँ दी गई हैं।
- आपातकालीन प्रावधानों में केंद्र को राज्यों पर नियंत्रण का अधिकार प्राप्त होता है।
- Leading Cases:
- S.R. Bommai v. Union of India (1994) – संघीय संरचना और अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को नियंत्रित करने की दृष्टि से ऐतिहासिक निर्णय।
- State of West Bengal v. Union of India (1963) – संघीय संबंधों में केंद्र की प्रमुखता को मान्यता दी गई।
📊 तुलना तालिका (Comparison Table)
तत्व अमेरिका कनाडा भारत शक्ति विभाजन स्पष्ट विषम (Asymmetrical) मिश्रित संविधान कठोर कठोर अर्ध-कठोर विशेष अधिकार राज्यों को अधिक Quebec को विशेष केंद्र को प्राथमिकता नागरिकता एक एक एक 🔖 निष्कर्ष (Conclusion)
भारत, अमेरिका और कनाडा – तीनों संघात्मक व्यवस्थाएँ हैं, लेकिन उनकी कार्यप्रणाली अलग-अलग है। भारत का मॉडल सहकारी संघवाद की ओर अग्रसर है जबकि अमेरिका पूर्ण द्वैध संघवाद का उदाहरण है। कनाडा में सांस्कृतिक विविधता को देखते हुए विषम संघवाद है।
📝 UGC NET Exam में पूछे जा सकने वाले संभावित प्रश्न:
- Assertion-Reason पर आधारित प्रश्न
- Match the Following – देश और उनका संघवाद
- किस देश में कौन-सा केस संघवाद से संबंधित है?
- भारत में कौन-कौन सी धाराएँ संघवाद को प्रभावित करती हैं?
📚 अन्य उपयोगी लिंक:
📚 संघवाद पर भारत, अमेरिका और कनाडा के प्रमुख निर्णय
🇮🇳 भारत (India)
- S.R. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संघवाद संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग की न्यायिक समीक्षा संभव है।
- पश्चिम बंगाल राज्य बनाम भारत संघ (1963): इस मामले में न्यायालय ने संसद को राज्यों की संपत्ति अधिग्रहित करने की शक्ति दी, जिससे केंद्र की प्रधानता को मान्यता मिली।
- कुलदीप नायर बनाम भारत संघ (2006): इस निर्णय में राज्यसभा चुनावों की प्रक्रिया में राज्यों की पूर्ण स्वतंत्रता को नकारा गया, भारत के अर्ध-संघीय (quasi-federal) स्वरूप की पुष्टि की गई।
🇺🇸 अमेरिका (USA)
- McCulloch बनाम Maryland (1819): क्या कोई राज्य संघीय बैंक पर कर लगा सकता है? नहीं। अदालत ने संघीय सत्ता की सर्वोच्चता को मान्यता दी और निहित शक्तियों का सिद्धांत स्थापित किया।
- Gibbons बनाम Ogden (1824): अदालत ने कहा कि अंतर्राज्यीय व्यापार पर केवल कांग्रेस का अधिकार है। इसने केंद्र की शक्ति को और मजबूत किया।
- Printz बनाम United States (1997): अदालत ने कहा कि संघीय सरकार राज्य अधिकारियों को मजबूर नहीं कर सकती — यह राज्य की संप्रभुता की रक्षा करता है।
🇨🇦 कनाडा (Canada)
- Reference re Secession of Quebec (1998): क्या Quebec एकतरफा तरीके से अलग हो सकता है? नहीं। इस फैसले में संवैधानिक प्रक्रिया और संघीय सहयोग को बल दिया गया।
- Ontario Hydro बनाम Ontario Labour Board (1993): इस निर्णय में संघीय और प्रांतीय शक्तियों के बीच सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) की पुष्टि की गई।
- R. v. Big M Drug Mart Ltd. (1985): संघीय कानून को असंवैधानिक करार दिया गया और प्रांतीय अधिकारों की रक्षा की गई।
📌 सारांश तालिका (Summary Table)
देश प्रमुख केस मुख्य निष्कर्ष भारत S.R. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) संघवाद संविधान की मूल विशेषता अमेरिका McCulloch बनाम Maryland (1819) संघीय सत्ता सर्वोच्च है कनाडा Reference re Secession of Quebec (1998) संविधान के तहत ही पृथक्करण संभव इन निर्णयों से यह स्पष्ट होता है कि संघवाद की अवधारणा हर देश में अलग-अलग रूप में व्याख्यायित की जाती है, और न्यायपालिका की भूमिका इसकी व्याख्या एवं सीमांकन में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
- Lecture 04: Rule of Law – ‘Formal’ and ‘Substantive’ Versions
कानून का शासन – औपचारिक और मौलिक स्वरूप📘 Lecture 04: Rule of Law – ‘Formal’ and ‘Substantive’ Versions
🔍 कानून का शासन – औपचारिक और मौलिक स्वरूप
Rule of Law का तात्पर्य है कि कानून सर्वोपरि है और सभी नागरिकों, चाहे वे आम नागरिक हों या शासक, सभी को कानून का पालन करना अनिवार्य है। यह सिद्धांत A.V. Dicey द्वारा प्रतिपादित किया गया था।
Rule of Law के दो प्रमुख स्वरूप माने जाते हैं:
1️⃣ Formal Version (औपचारिक स्वरूप)
- कानून का पालन सभी को समान रूप से करना चाहिए।
- सरकार मनमाने ढंग से कार्य नहीं कर सकती।
- सभी कार्य विधि द्वारा नियंत्रित हों।
उदाहरण: कोई भी व्यक्ति, चाहे वह प्रधानमंत्री हो या सामान्य नागरिक, यदि अपराध करता है, तो उस पर समान कानूनी प्रक्रिया लागू होगी।
2️⃣ Substantive Version (मौलिक या गहन स्वरूप)
- यह केवल प्रक्रियात्मक नहीं, बल्कि न्याय और समानता के सिद्धांतों पर आधारित होता है।
- न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि कानून केवल तकनीकी न हो, बल्कि नैतिक और मानवीय दृष्टिकोण से भी सही हो।
- मानव अधिकारों की रक्षा और कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को बल मिलता है।
उदाहरण: यदि कोई कानून अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव करता है, तो वह कानून भले ही प्रक्रियात्मक रूप से सही हो, लेकिन मौलिक स्वरूप में असंवैधानिक माना जाएगा।
📌 भारत, अमेरिका, और UK में Rule of Law से संबंधित प्रमुख निर्णय (Leading Cases)
🇮🇳 भारत
- Kesavananda Bharati v. State of Kerala (1973): Rule of Law को संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) का हिस्सा माना गया।
- Maneka Gandhi v. Union of India (1978): Substantive Due Process को भारतीय विधि व्यवस्था में जोड़ा गया। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून के उचित प्रक्रिया की व्याख्या करता है।
- Indira Nehru Gandhi v. Raj Narain (1975): Rule of Law को लोकतंत्र और न्याय का अभिन्न अंग माना गया।
🇺🇸 अमेरिका
- Marbury v. Madison (1803): कानून के शासन को मजबूत करते हुए न्यायिक समीक्षा की स्थापना की गई।
- Brown v. Board of Education (1954): समानता के अधिकार की पुष्टि की गई; यह Substantive Rule of Law का प्रतीक है।
🇬🇧 यूनाइटेड किंगडम
- Entick v. Carrington (1765): सरकार नागरिक की स्वतंत्रता में बिना वैध अधिकार के हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
- R (Jackson) v. Attorney General (2005): संसद की सर्वोच्चता की सीमा तय की गई और Rule of Law की रक्षा की गई।
📚 निष्कर्ष (Conclusion)
‘Rule of Law’ केवल कानून का पालन नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे ढांचे की मांग करता है जिसमें न्याय, समानता और मानव अधिकारों की रक्षा हो। भारत में यह संविधान की आत्मा माना गया है और न्यायपालिका ने इसे लगातार मजबूत किया है।
- Lecture 05: Separation of Powers – India, UK, USA and France
शक्तियों का विभाजन – भारत, यूके, यूएसए और फ्रांस📘 Lecture 05: शक्तियों का विभाजन – भारत, यूके, यूएसए और फ्रांस
शक्तियों का विभाजन (Separation of Powers) एक राजनीतिक सिद्धांत है जिसमें सरकार की शक्तियों को तीन प्रमुख अंगों — विधायिका (Legislature), कार्यपालिका (Executive) और न्यायपालिका (Judiciary) — में विभाजित किया जाता है। इसका उद्देश्य शक्ति के केंद्रीकरण से बचना और नियंत्रण एवं संतुलन (Checks and Balances) बनाए रखना है।
🔷 भारत में शक्तियों का विभाजन
भारत में शक्तियों का पूर्ण पृथक्करण नहीं है, बल्कि यहां 'कार्यात्मक पृथक्करण' अपनाया गया है। तीनों अंग स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं, लेकिन कुछ हद तक एक-दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप भी करते हैं।
- विधायिका कानून बनाती है।
- कार्यपालिका कानूनों का क्रियान्वयन करती है।
- न्यायपालिका कानूनों की व्याख्या करती है।
प्रमुख मामला: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) – इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने शक्तियों के पृथक्करण को संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) का हिस्सा माना।
🔷 यूनाइटेड किंगडम (UK)
यूके में संसदीय सर्वोच्चता का सिद्धांत लागू है, इसलिए शक्तियों का पूर्ण पृथक्करण नहीं है। कार्यपालिका और विधायिका आपस में ओवरलैप होती हैं। प्रधानमंत्री और मंत्री संसद से ही चुने जाते हैं।
हालांकि, न्यायपालिका स्वतंत्र है, विशेषकर Constitutional Reform Act, 2005 के बाद से।
महत्वपूर्ण बिंदु: संसद सर्वोच्च है और न्यायालय संसद के बनाए कानून को रद्द नहीं कर सकता।
🔷 संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)
यूएसए में शक्तियों का स्पष्ट विभाजन है। संविधान के तहत तीनों अंग अलग-अलग और स्वतंत्र हैं:
- Congress (Legislature) कानून बनाती है।
- President (Executive) कानूनों को लागू करता है।
- Supreme Court (Judiciary) कानूनों की संवैधानिकता की समीक्षा करती है।
यहां Checks and Balances का तंत्र बेहद प्रभावी है।
प्रमुख मामला: Marbury v. Madison (1803) – इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) की अवधारणा को मान्यता दी।
🔷 फ्रांस
फ्रांस में शक्तियों का सिद्धांत फ्रांसीसी क्रांति के दौरान उत्पन्न हुआ, लेकिन यहां कार्यपालिका राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री के बीच विभाजित है।
फ्रांस में एक Semi-Presidential System है, जहां राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों कार्यपालिका के प्रमुख होते हैं। संविधानात्मक न्यायालय कानूनों की समीक्षा करता है।
प्रमुख पहलू: शक्तियों का अलगाव होता है लेकिन राजनीतिक व्यावहारिकता के अनुसार तालमेल भी होता है।
📌 निष्कर्ष (Conclusion)
शक्तियों का विभाजन एक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की रीढ़ है। भारत, अमेरिका, यूके और फ्रांस — सभी देशों में यह सिद्धांत विभिन्न रूपों में अपनाया गया है। जहां अमेरिका में कठोर पृथक्करण है, वहीं भारत और फ्रांस में व्यावहारिक सहयोग के साथ कार्य किया जाता है। UK में संसद सर्वोच्च है और वहां शक्तियों का पृथक्करण अपेक्षाकृत कम है।
यह सिद्धांत शासन प्रणाली को प्रभावी, पारदर्शी और उत्तरदायी बनाता है।
- Lecture 06: Independence of Judiciary, Judicial Activism and Accountability – India, UK and USA
न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक सक्रियता और जवाबदेही📘 Lecture 06: न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक सक्रियता और जवाबदेही – भारत, यूके और अमेरिका
🔷 1. न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Independence of Judiciary)
न्यायपालिका की स्वतंत्रता लोकतंत्र की रीढ़ है। इसका तात्पर्य यह है कि न्यायालय बिना किसी बाहरी दबाव या हस्तक्षेप के निष्पक्ष रूप से कार्य कर सके।
📍 भारत (India)
- भारत में न्यायपालिका संविधान के अनुच्छेद 50, 124-147, और 214-231 के तहत संरक्षित है।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति, वेतन, और कार्यकाल में सुरक्षा प्रदान की गई है।
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) – न्यायपालिका की स्वतंत्रता को संविधान की मूल संरचना माना गया।
📍 अमेरिका (USA)
- US Constitution का Article III न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।
- जजों को जीवनपर्यंत नियुक्त किया जाता है, जिससे वे राजनीतिक दबाव से मुक्त रहते हैं।
- Marbury v. Madison (1803) – न्यायिक पुनरावलोकन की नींव रखी गई।
📍 यूनाइटेड किंगडम (UK)
- UK में कोई लिखित संविधान नहीं है, लेकिन Constitutional Reform Act, 2005 ने न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक कर दिया।
- Supreme Court की स्थापना 2009 में हुई, जिसने House of Lords की न्यायिक भूमिका समाप्त कर दी।
🔷 2. न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism)
न्यायिक सक्रियता वह प्रक्रिया है जिसमें न्यायालय सामाजिक न्याय, मौलिक अधिकारों और संविधान की रक्षा हेतु सरकार को आदेश देता है, विशेषतः जब विधायिका या कार्यपालिका असफल हो जाती है।
📍 भारत में न्यायिक सक्रियता
- Public Interest Litigation (PIL) – जनहित में मुकदमेबाज़ी की शुरुआत।
- मनु भंडारी बनाम भारत संघ (1978) – सामाजिक मुद्दों पर न्यायालय की हस्तक्षेप।
- विषक न्यायपालिका: MC Mehta Cases, Vishakha v. State of Rajasthan (1997)
📍 USA में
- Judicial Review का प्रयोग सुप्रीम कोर्ट करता है।
- Brown v. Board of Education (1954) – रंगभेद के विरुद्ध ऐतिहासिक निर्णय।
📍 UK में
- UK में न्यायिक सक्रियता सीमित है, क्योंकि संसद सर्वोच्च है।
- Human Rights Act, 1998 के बाद न्यायालय अधिकारों की रक्षा में अधिक सक्रिय हुआ।
🔷 3. न्यायिक जवाबदेही (Judicial Accountability)
न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ-साथ उसकी जवाबदेही भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, ताकि जनता का भरोसा बना रहे।
📍 भारत
- न्यायिक जवाबदेही अधिनियम प्रस्तावित है लेकिन अभी तक कानून नहीं बना।
- Impeachment प्रक्रिया अनुच्छेद 124(4) के तहत बहुत जटिल और दुर्लभ है।
📍 अमेरिका
- Congress जजों पर महाभियोग चला सकती है।
- जवाबदेही के लिए व्यापक मीडिया और स्वतंत्र प्रेस भी प्रभावी भूमिका निभाता है।
📍 UK
- Lord Chancellor और Judicial Appointments Commission जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं।
📝 निष्कर्ष (Conclusion)
भारत, अमेरिका और यूके में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को विभिन्न विधिक तरीकों से संरक्षित किया गया है। भारत और अमेरिका में न्यायिक सक्रियता ने लोकतंत्र को सुदृढ़ किया है, जबकि UK में न्यायिक भूमिका अपेक्षाकृत सीमित है। जवाबदेही सुनिश्चित करना न्यायिक व्यवस्था की पारदर्शिता के लिए अनिवार्य है।
📚 अगले लेक्चर में:
Lecture 07: Systems of Constitutional Review – India, USA, Switzerland and France
- Lecture 07: Systems of Constitutional Review – India, USA, Switzerland and France
संविधानिक समीक्षा प्रणाली – भारत, अमेरिका, स्विट्जरलैंड और फ्रांस📘 Lecture 07: Systems of Constitutional Review – India, USA, Switzerland and France
📖 संविधानिक समीक्षा क्या है? (What is Constitutional Review?)
संविधानिक समीक्षा (Constitutional Review) वह प्रक्रिया है जिसमें न्यायालय किसी कानून, शासन आदेश या कार्यपालिका के निर्णय की वैधानिकता को जांचता है कि वह संविधान के अनुरूप है या नहीं।
🔶 भारत की संविधानिक समीक्षा प्रणाली
- भारत में संविधानिक समीक्षा की शक्ति उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों को अनुच्छेद 13 और 32 के अंतर्गत प्राप्त है।
- यह प्रणाली Judicial Review पर आधारित है।
- प्रमुख निर्णय: Kesavananda Bharati v. State of Kerala (1973) – 'Basic Structure Doctrine' की स्थापना की गई।
- संविधान की कोई भी धारा, यदि मूल संरचना का उल्लंघन करती है, तो उसे रद्द किया जा सकता है।
- Public Interest Litigation (PIL) ने न्यायिक समीक्षा को और सशक्त बनाया।
🔶 अमेरिका की समीक्षा प्रणाली
- अमेरिका में Judicial Review की शुरुआत Marbury v. Madison (1803) केस से हुई।
- US Supreme Court के पास किसी भी कानून को असंवैधानिक घोषित करने की व्यापक शक्ति है।
- संविधान की सर्वोच्चता और Separation of Powers के सिद्धांत को बनाए रखने के लिए Judicial Review अहम भूमिका निभाता है।
🔶 स्विट्ज़रलैंड की समीक्षा प्रणाली
- स्विट्ज़रलैंड में संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की न्यायिक समीक्षा की अनुमति नहीं है।
- यहाँ संसदीय सर्वोच्चता को प्राथमिकता दी जाती है।
- हालाँकि, संविधान संशोधन सीधे जनमत संग्रह (Referendum) के माध्यम से किया जाता है, जिससे जनता का सीधा नियंत्रण रहता है।
🔶 फ्रांस की समीक्षा प्रणाली
- फ्रांस में संविधानिक समीक्षा Constitutional Council द्वारा की जाती है, जो एक विशेष निकाय है – न कि सर्वोच्च न्यायालय।
- यह समीक्षा a priori होती है, यानी कि कानून लागू होने से पहले उसकी वैधता की जाँच की जाती है।
- 2008 के सुधार के बाद a posteriori समीक्षा भी संभव हो गई, जिससे नागरिक भी कानूनी वैधता को चुनौती दे सकते हैं।
⚖️ तुलना तालिका (Comparative Table)
देश समीक्षा प्रकार न्यायिक संस्था विशेषताएँ भारत Judicial Review Supreme Court, High Courts Basic Structure Doctrine, PIL अमेरिका Judicial Review Supreme Court Marbury v. Madison से शुरुआत स्विट्ज़रलैंड Not Applicable नहीं जनमत संग्रह आधारित संविधान परिवर्तन फ्रांस Constitutional Council Review Constitutional Council A Priori & A Posteriori दोनों संभव 📌 निष्कर्ष (Conclusion)
संविधानिक समीक्षा लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए आवश्यक है। भारत और अमेरिका में यह न्यायपालिका द्वारा नियंत्रित होती है, वहीं फ्रांस में एक विशेष निकाय इसे संचालित करता है, और स्विट्ज़रलैंड में यह प्रक्रिया नागरिक जनभागीदारी पर आधारित है। हर मॉडल की अपनी विशेषताएँ और सीमाएँ हैं।
📚 अगले लेक्चर में: Lecture 08: Amendment of the Constitution – India, USA and South Africa- Lecture 08: Amendment of the Constitution – India, USA and South Africa
संविधान संशोधन की प्रक्रिया – भारत, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका📘 Lecture 08: Amendment of the Constitution – India, USA and South Africa
🔶 What is Constitutional Amendment? | संविधान संशोधन क्या है?
A constitutional amendment refers to the process of making changes to the text of a nation's constitution.
संविधान संशोधन का अर्थ है – संविधान के मूल प्रावधानों में परिवर्तन, सुधार या विलोपन की विधिक प्रक्रिया। यह किसी राष्ट्र की संवैधानिक लचीलापन और लोकतांत्रिक विकास की पहचान होती है।🇮🇳 भारत में संविधान संशोधन | Amendment in India
- भारत में संविधान संशोधन की प्रक्रिया अनुच्छेद 368 के अंतर्गत दी गई है।
- संविधान को तीन प्रकार से संशोधित किया जा सकता है:
- 🔹 Simple Majority से (जैसे अनुच्छेद 2, 3)
- 🔹 Special Majority से
- 🔹 Special Majority + States' Consent से (आधे राज्यों की सहमति आवश्यक)
- भारत का संविधान लचीला भी है और कठोर भी – यह एक मिश्रित प्रकृति प्रस्तुत करता है।
- प्रसिद्ध निर्णय: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) – सुप्रीम कोर्ट ने 'Basic Structure Doctrine' की स्थापना की। संसद संविधान संशोधित कर सकती है, लेकिन मूल संरचना से छेड़छाड़ नहीं कर सकती।
🇺🇸 अमेरिका में संविधान संशोधन | Amendment in the USA
- अमेरिका का संविधान दुनिया के सबसे पुराने लिखित संविधानों में से एक है और इसे संशोधित करना बहुत कठिन है।
- Article V के तहत दो तरीके हैं:
- 🔹 Congress के दोनों सदनों में 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पारित, फिर 50 में से 38 राज्यों (3/4) द्वारा अनुमोदन।
- 🔹 Constitutional Convention by states (अब तक उपयोग नहीं किया गया)।
- अब तक केवल 27 संशोधन हुए हैं।
- Bill of Rights (प्रथम 10 संशोधन) – नागरिक अधिकारों की गारंटी।
🇿🇦 दक्षिण अफ्रीका में संविधान संशोधन | Amendment in South Africa
- दक्षिण अफ्रीका का संविधान (1996) विश्व के सबसे आधुनिक संविधानों में गिना जाता है।
- संविधान संशोधन की प्रक्रिया Section 74 में निर्धारित है।
- तीन प्रकार के संशोधन संभव हैं:
- 🔹 Ordinary amendment: Simple majority
- 🔹 Special amendment: Two-thirds majority
- 🔹 Provincial consensus: Two-thirds majority + support from 6/9 provinces (when amendment affects provinces)
- यह प्रणाली काफी संतुलित है और न्यायिक समीक्षा को भी महत्व देती है।
📊 तुलना तालिका | Comparative Table
देश संशोधन की प्रकृति आवश्यक बहुमत खास विशेषता भारत लचीला और कठोर दोनों Simple / Special / Special + States Basic Structure Doctrine अमेरिका अत्यंत कठोर 2/3 Congress + 3/4 States 27 Amendments in 200+ years दक्षिण अफ्रीका संतुलित और उत्तरदायी 2/3 + Provincial Consent (यदि आवश्यक) Modern, human rights focused 📌 निष्कर्ष | Conclusion
भारत, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका तीनों देशों में संविधान संशोधन की प्रक्रियाएँ लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित हैं लेकिन प्रकृति में भिन्न हैं। भारत में अधिक लचीलापन है, अमेरिका में कठोरता है, जबकि दक्षिण अफ्रीका में संतुलन और समावेशिता प्रमुख है।
📚 अगले लेक्चर में: Lecture 09: Ombudsman – Sweden, UK and India- Lecture 09: Ombudsman – Sweden, UK and India
लोकपाल/ओम्बड्समैन की अवधारणा – स्वीडन, यूके और भारत📘 Lecture 09: Ombudsman – Sweden, UK and India
🔶 What is an Ombudsman? | ओम्बड्समैन क्या होता है?
An Ombudsman is an independent, impartial public authority appointed to investigate complaints against maladministration, corruption, or violation of rights by public officials.
ओम्बड्समैन (Ombudsman) एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था होती है जो सरकारी अधिकारियों या संस्थानों द्वारा की गई अनुचित प्रशासनिक कार्यवाही की जांच करती है।🇸🇪 स्वीडन: ओम्बड्समैन की उत्पत्ति
- Sweden is the birthplace of the Ombudsman system (established in 1809).
- It was created to supervise the legality of government actions and protect citizens' rights.
- Swedish Parliamentary Ombudsman (Justitieombudsmannen) reports directly to the Riksdag (Parliament).
- ओम्बड्समैन को संसद नियुक्त करती है और यह कार्यपालिका पर निगरानी रखता है।
- यह मॉडल पूरी दुनिया में पारदर्शी प्रशासन के लिए आदर्श माना जाता है।
🇬🇧 यूनाइटेड किंगडम: पार्लियामेंट्री ओम्बड्समैन
- The UK established its Parliamentary Commissioner for Administration in 1967.
- Known as the “Parliamentary Ombudsman”.
- Citizens can approach the Ombudsman through their Member of Parliament (MP).
- It investigates complaints against government departments, public organizations, and health services (NHS).
- यहां भी ओम्बड्समैन संसद को रिपोर्ट करता है और नागरिकों को न्याय सुनिश्चित करता है।
🇮🇳 भारत में लोकपाल की अवधारणा
- In India, the concept of Ombudsman is known as Lokpal (for centre) and Lokayukta (for states).
- लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के माध्यम से इसे वैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ।
- The Lokpal investigates complaints of corruption against public functionaries including the Prime Minister (with conditions).
- लोकपाल एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसमें अध्यक्ष और न्यायिक/गैर-न्यायिक सदस्य होते हैं।
- लोकायुक्त की स्थापना प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
📊 तुलना तालिका | Comparative Table
देश संस्थापक वर्ष प्रमुख विशेषता किसको रिपोर्ट करता है? स्वीडन 1809 दुनिया में पहला ओम्बड्समैन मॉडल Riksdag (Parliament) UK 1967 MP के माध्यम से आवेदन UK Parliament भारत 2013 (कानूनी अधिनियम) लोकपाल/लोकायुक्त द्वारा भ्रष्टाचार की जांच राष्ट्रपति / राज्यपाल को (अभिलेख) ⚖️ महत्वपूर्ण पहलू | Key Aspects
- All three models promote transparency, accountability and rule of law.
- भारत में अभी भी कुछ राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति लंबित है।
- अंतर्राष्ट्रीय अनुभव भारत के लोकपाल प्रणाली को और बेहतर बनाने में सहायक हो सकते हैं।
📚 निष्कर्ष | Conclusion
लोकपाल/ओम्बड्समैन की अवधारणा लोकतांत्रिक देशों के लिए अनिवार्य है। चाहे वह स्वीडन का सबसे पुराना मॉडल हो, UK का संसदीय आयोग या भारत का बहुप्रतीक्षित लोकपाल – इनका मुख्य उद्देश्य एक पारदर्शी, जिम्मेदार और नागरिकों के प्रति जवाबदेह प्रशासन सुनिश्चित करना है।
📌 अगले लेक्चर में: Lecture 10: Open Government and Right to Information – USA, UK and India- Lecture 10: Open Government and Right to Information – USA, UK and India
उद्घाटित शासन और सूचना का अधिकार📘 Lecture 10: Open Government and Right to Information – USA, UK and India
🔍 Open Government – Meaning and Relevance | उद्घाटित शासन – अर्थ और महत्व
Open Government refers to a governing doctrine which emphasizes transparency, citizen participation, and accountability.
उद्घाटित शासन वह शासन व्यवस्था है जिसमें सरकार की कार्यप्रणाली, निर्णय और दस्तावेज़ नागरिकों के लिए पारदर्शी होते हैं तथा उन्हें नीति निर्माण में भागीदारी का अवसर मिलता है।🇮🇳 भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI), 2005
- RTI Act empowers Indian citizens to request information from public authorities.
- यह अधिनियम नागरिकों को किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण से सूचना मांगने का अधिकार देता है।
- सूचना का उत्तर 30 दिनों के भीतर देना अनिवार्य है।
- Public Information Officer (PIO) हर कार्यालय में नियुक्त होते हैं।
- Information Commission (Central & State) अपील का मंच है।
🚨 RTI की सीमाएँ:
- राष्ट्रीय सुरक्षा, गोपनीयता, और व्यक्तिगत डेटा की सीमाएं होती हैं।
- कुछ विभाग RTI के दायरे से बाहर होते हैं (जैसे IB, RAW आदि)।
🇺🇸 Freedom of Information Act (FOIA), USA
- Passed in 1966; provides public access to federal government records.
- It applies to executive branch agencies but not to Congress or the courts.
- Citizens (even non-US citizens) can request information.
- 9 exemptions apply (e.g., national security, trade secrets).
- U.S. Department of Justice oversees FOIA implementation.
🇬🇧 UK: Freedom of Information Act, 2000
- Applies to over 100,000 public authorities (government departments, NHS, schools, etc.).
- Provides access to recorded information held by public authorities.
- Information Commissioner’s Office (ICO) handles complaints and appeals.
- Exemptions include national security, commercial interests, personal data.
📊 तुलना तालिका | Comparative Table
देश कानून वर्ष निगरानी संस्था मुख्य विशेषता भारत सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 Central/State Information Commission प्रत्येक सरकारी विभाग से सूचना प्राप्त करने का अधिकार USA Freedom of Information Act 1966 U.S. Department of Justice Executive branch के दस्तावेजों की पहुँच UK Freedom of Information Act 2000 Information Commissioner’s Office (ICO) सभी पब्लिक बॉडीज़ को कवर करता है 📚 प्रमुख पहलू | Key Highlights
- All three countries promote transparency through legal instruments.
- भारत का RTI अधिनियम सबसे प्रभावशाली माना जाता है लेकिन इसे कमजोर करने की कोशिशें होती रही हैं।
- USA में FOIA व्यापक है लेकिन प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली हो सकती है।
- UK में यह कानून बहुत अधिक संस्थानों पर लागू होता है और स्पष्ट समयसीमा देता है।
🧠 निष्कर्ष | Conclusion
Open government ensures an informed citizenry, stronger democracy, and reduced corruption. India’s RTI Act, the US FOIA, and the UK’s FOI Act are all instruments of empowering citizens and promoting trust in governance. However, the effectiveness depends on implementation, public awareness, and institutional support.
✅ यह था UNIT – X का अंतिम लेक्चर! यदि आपने सभी भाग नहीं पढ़े हैं, तो नीचे लिंक से अवश्य पढ़ें:
📚 UNIT X: Comparative Public Law – सभी Lecture Notes यहाँ पढ़ें - Lecture 03: Models of Federalism – USA, Canada and India
📘 Lecture 01: Comparative Law – Relevance, Methodology, Problems and Concerns in Comparison
Introduction | परिचय
Comparative Law (तुलनात्मक विधि) is the study of differences and similarities between the laws of different countries. It is one of the most fascinating and dynamic branches of legal studies, as it allows students and researchers to go beyond their own legal systems and understand how others think about justice, governance, and rights.
तुलनात्मक विधि का उद्देश्य केवल विभिन्न देशों की विधियों को जानना नहीं है, बल्कि यह समझना भी है कि कैसे विभिन्न कानूनी परंपराएँ सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कारकों से प्रभावित होती हैं।
🔹 Relevance of Comparative Law | तुलनात्मक विधि का महत्व
Example: जब भारत ने सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI Act) 2005 बनाया, तो उसने स्वीडन और अमेरिका की Freedom of Information Acts का तुलनात्मक अध्ययन किया था।
🔹 Methodology of Comparative Law | तुलनात्मक विधि की कार्यप्रणाली
Comparative law is not merely about comparison—it follows systematic steps to ensure objective understanding. The methodology involves:
Example: In India, ‘Public Interest Litigation’ evolved differently than in the USA, though both are focused on rights and access to justice. Comparison here needs historical and functional analysis.
🔹 Problems in Comparative Law | तुलनात्मक विधि की समस्याएं
उदाहरण: “Equality” शब्द भारत में संवैधानिक मूल्यों के आधार पर व्याख्यायित किया जाता है, जबकि अमेरिका में इसे स्वतंत्रता के परिप्रेक्ष्य में देखा जाता है।
🔹 Concerns in Comparison | तुलना के दौरान सावधानियाँ
For example, Indian ‘Dharma’ in ancient texts cannot be equated with Western legal terms. Context is the key.
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