श्री Balfour और उनकी पत्नी इंग्लैंड में रहते थे। श्रीमती Balfour की तबीयत खराब थी, इसलिए वे इंग्लैंड में रहीं जबकि श्री Balfour घर वापिस आ गए। उन्होंने अपनी पत्नी को हर महीने भत्ता भेजने का वादा किया। बाद में, उन्होंने पैसे भेजने बंद कर दिए और पत्नी ने संविदा के उल्लंघन के लिए मुकदमा दायर किया।
क्या पति-पत्नी के बीच ऐसा वादा एक संविदात्मक बाध्यता बनाता है?
न्यायालय ने कहा कि यह एक सामाजिक व्यवस्था थी, कानूनी संविदा नहीं। ऐसी पारिवारिक व्यवस्थाएँ वैध संविदा की श्रेणी में नहीं आतीं क्योंकि इनमें कानूनी बाध्यता का अभाव होता है।
धारा 10 के अनुसार, संविदा की वैधता के लिए यह आवश्यक है कि पक्षों की मंशा कानूनी दायित्व स्थापित करने की हो। सामाजिक और घरेलू व्यवस्थाएँ कानूनी संविदा नहीं मानी जातीं जब तक कि स्पष्ट रूप से कानूनी दायित्व का आशय न हो।
यह केस यह स्पष्ट करता है कि सभी समझौते संविदा नहीं होते। न्यायालय यह जांच करता है कि क्या पक्षों की मंशा थी कानूनी दायित्व उत्पन्न करने की। यह केस विशेष रूप से न्यायिक परीक्षा और कानून की पढ़ाई में धारा 10 की व्याख्या में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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