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Indian Contract Act 1872 – Complete 10 Units Notes with Case Laws and Sections (UGC NET, LLB, Judiciary)

📘 यह नोट्स क्यों जरूरी है?

Indian Contract Act, 1872 की यह नोट्स UGC NET (Law), LLB, Civil Judge और APO जैसे परीक्षाओं के लिए विशेष रूप से तैयार की गई है। यह नोट्स संक्षिप्त, अवधारणात्मक और केस लॉ आधारित है। इसे पढ़ने के बाद:

  • आपकी सभी Contract Law की धारणाएँ स्पष्ट हो जाएँगी।
  • धारा, परिभाषा, दृष्टांत और केस लॉ एक ही स्थान पर मिलेंगे।
  • कोई भी कानूनी प्रतियोगी परीक्षा सफलता से उत्तीर्ण कर सकते हैं।

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📦 UNIT 1: Introduction & Definitions

यह यूनिट भारतीय संविदा अधिनियम की मूल समझ के लिए महत्वपूर्ण है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 1: Introduction & Definitions

🔰 विषय की शुरुआत:
Indian Contract Act, 1872 भारत में निजी और व्यावसायिक समझौतों को वैधानिक ढांचे में लाने वाला सबसे महत्वपूर्ण अधिनियम है...

📘 UNIT 1: Introduction & Definitions

🔰 विषय की शुरुआत:
Indian Contract Act, 1872 भारत में निजी और व्यावसायिक समझौतों को वैधानिक ढांचे में लाने वाला सबसे महत्वपूर्ण अधिनियम है। यह अधिनियम बताता है कि कब कोई समझौता (Agreement) कानूनन एक संविदा (Contract) बन जाता है और किन शर्तों के साथ वह वैध (Valid) माना जाता है।

📌 लागू होने की तिथि:

यह अधिनियम 1 सितंबर 1872 से लागू हुआ और इसका आधार अंग्रेज़ी कॉमन लॉ (English Common Law) है।

📌 उद्देश्य:

  • दो या दो से अधिक पक्षों के बीच संविदात्मक संबंधों को विनियमित करना
  • संविदा की व्याख्या, निष्पादन और उल्लंघन की स्थितियों को स्पष्ट करना
  • न्यायिक व्याख्याओं के माध्यम से अनुशासन और उत्तरदायित्व तय करना

📖 महत्वपूर्ण परिभाषाएँ [Section 2]:

  • Proposal (प्रस्ताव) – Section 2(a): जब कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से कुछ करने या न करने का प्रस्ताव देता है।
  • Acceptance (स्वीकृति) – Section 2(b): जब प्रस्ताव प्राप्त करने वाला उसे सहमति देता है।
  • Agreement (समझौता) – Section 2(e): प्रस्ताव + स्वीकृति = समझौता
  • Contract (संविदा) – Section 2(h): वह समझौता जो कानूनी रूप से लागू किया जा सकता है।
  • Void Agreement (शून्य समझौता) – Section 2(g): ऐसा समझौता जो कानूनन लागू नहीं किया जा सकता।
  • Voidable Contract: ऐसा अनुबंध जो किसी एक पक्ष की इच्छा पर वैध या शून्य हो सकता है।

📚 क्लास नोट्स उदाहरण:

Case: Balfour v. Balfour (1919)
पति-पत्नी के बीच घरेलू समझौते को संविदा नहीं माना गया क्योंकि उनका इरादा कानूनी संबंध बनाने का नहीं था।

Case: Rose & Frank Co. v. Crompton Bros (1925)
कोर्ट ने कहा कि यदि समझौते में स्पष्ट रूप से यह कहा गया हो कि यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, तो वह संविदा नहीं मानी जाएगी।

📋 प्रमुख विशेषताएँ:

  • संविदा केवल सहमति से नहीं बनती, उसमें वैधानिकता आवश्यक होती है।
  • “All contracts are agreements but all agreements are not contracts” – यह कथन संविदा की नींव को दर्शाता है।

📝 निष्कर्ष:

इस यूनिट का अध्ययन संविदा कानून की नींव है। परिभाषाओं को धाराओं के साथ समझना और उन्हें दृष्टांतों व केस लॉ द्वारा जोड़ना आपको परीक्षा में सही उत्तर लिखने में मदद करेगा। इसे बार-बार दोहराकर स्मरण करें।

📦 UNIT 2: Essentials of a Valid Contract

इस यूनिट में एक वैध संविदा के सभी तत्व शामिल हैं। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 2: Essentials of a Valid Contract

🔰 प्रस्तावना:
केवल समझौता (Agreement) संविदा (Contract) नहीं होता, बल्कि कुछ आवश्यक तत्वों का पूरा होना जरूरी होता है। ये सभी तत्व मिलकर संविदा को वैध बनाते हैं। यह यूनिट UGC NET, Civil Judge, और सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

📌 धारा 10: Valid Contract की आवश्यकताएँ

  • ✔️ प्रस्ताव और स्वीकृति (Offer and Acceptance)
  • ✔️ पक्षों की क्षमता (Capacity of Parties) – Section 11
  • ✔️ मुक्त सहमति (Free Consent) – Section 13–19
  • ✔️ विधिसंगत विचार (Lawful Consideration) – Section 25
  • ✔️ विधिसंगत उद्देश्य (Lawful Object) – Section 23
  • ✔️ संविदा की निश्चितता (Certainty) – Section 29
  • ✔️ संभाव्य प्रदर्शन (Possibility of Performance) – Section 56
  • ✔️ कानूनी संबंधों का इरादा

📚 महत्वपूर्ण केस लॉ:

  • Mohori Bibee v. Dharmodas Ghose (1903): नाबालिग द्वारा किया गया अनुबंध शून्य होता है।
  • Lalman Shukla v. Gauri Dutt (1913): केवल तभी संविदा बनती है जब प्रस्ताव ज्ञात हो।
  • Harvey v. Facey (1893): केवल सूचना देना प्रस्ताव नहीं होता।

📘 व्याख्या:

1. Capacity [Sec 11]: व्यक्ति को संविदा करने के लिए बालिग, ध्वनि मस्तिष्क वाला और कानून द्वारा अपात्र न होना चाहिए।

2. Free Consent [Sec 13–19]: यदि सहमति धोखा, दबाव, या गलती पर आधारित हो तो वह संविदा अमान्य या रद्द करने योग्य हो सकती है।

3. Lawful Consideration & Object: जो उद्देश्य या विचार अवैध, धोखाधड़ी या अनैतिक हो, तो वह अनुबंध अमान्य होगा।

📒 नोट्स शैली में समापन:

एक वैध संविदा के निर्माण हेतु इन सभी तत्वों का होना अनिवार्य है। यदि इनमें से कोई भी तत्व गायब है, तो वह अनुबंध या तो शून्य, रद्द करने योग्य, या अमान्य होगा। परीक्षा में केस लॉ और धाराओं के साथ उत्तर देना उच्च अंक सुनिश्चित करता है।

📦 UNIT 3: Offer and Acceptance

प्रस्ताव और स्वीकृति की प्रक्रिया को समझने के लिए यह यूनिट जरूरी है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 3: Offer and Acceptance

🔰 प्रस्तावना:
संविदा निर्माण की प्रक्रिया का पहला चरण "प्रस्ताव और स्वीकृति" है। यदि कोई प्रस्ताव (Offer) विधिसंगत तरीके से किया गया है और उसकी स्वीकृति (Acceptance) स्पष्ट और बिना शर्त है, तभी समझौता बनता है।

📌 Section 2(a) – प्रस्ताव (Offer):

प्रस्ताव वह होता है जब कोई व्यक्ति दूसरे को कुछ करने या न करने के लिए आमंत्रित करता है।

📌 Section 2(b) – स्वीकृति (Acceptance):

जब प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो यह समझौता (Agreement) बनता है।

📋 प्रस्ताव के प्रकार:

  • 🔹 विशिष्ट प्रस्ताव (Specific Offer): किसी विशेष व्यक्ति को किया गया
  • 🔹 सार्वजनिक प्रस्ताव (General Offer): आम जनता के लिए
  • 🔹 निहित प्रस्ताव (Implied Offer): आचरण से
  • 🔹 प्रतिप्रस्ताव (Counter Offer): प्रस्ताव को संशोधित करना

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Carlill v. Carbolic Smoke Ball Co. (1893): General offer की वैधता को स्वीकार किया गया।
  • 📌 Lalman Shukla v. Gauri Dutt (1913): केवल उसी को संविदा का लाभ मिलता है जिसे प्रस्ताव ज्ञात हो।
  • 📌 Harvey v. Facey (1893): जानकारी देना प्रस्ताव नहीं माना जाएगा।

📌 Communication of Offer & Acceptance – Section 4:

  • Offer: तब पूर्ण होती है जब यह प्रस्तावित व्यक्ति तक पहुँचती है।
  • Acceptance: प्रस्तावकर्ता के लिए तब पूर्ण जब यह उसे ज्ञात होती है।

📌 Revocation (Revoking Offer/Acceptance) – Section 5 & 6:

  • प्रस्ताव कभी भी स्वीकृति से पहले वापस लिया जा सकता है।
  • स्वीकृति भेजने से पहले वापस ली जा सकती है परंतु पोस्ट/संचार हो चुका हो तो नहीं।

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

प्रस्ताव और स्वीकृति संविदा की पहली सीढ़ी है। यह प्रक्रिया स्पष्ट, बिना शर्त और समय पर होनी चाहिए। परीक्षा में इसके केस लॉ, धाराओं और प्रकारों का उल्लेख कर उत्तर लिखना चाहिए।

📦 UNIT 4: Consideration

संविदा के लिए आवश्यक विचार (consideration) की अवधारणा इस यूनिट में है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 4: Consideration (विचार)

🔰 प्रस्तावना:
“No Consideration, No Contract” – यह Contract Law का सबसे प्रसिद्ध सिद्धांत है। Consideration (विचार) का अर्थ है कि एक पक्ष दूसरे पक्ष के बदले कुछ देता है। यह संविदा की वैधता का मूल आधार होता है।

📌 Section 2(d) – Definition:

“जब वादे के बदले में कुछ किया गया, न किया गया, या प्रतिज्ञा की गई, उसे Consideration कहते हैं।”

📋 Consideration की आवश्यक शर्तें:

  • ✔️ यह वादे करने वाले के कहने पर हो
  • ✔️ यह अतीत, वर्तमान या भविष्य का हो सकता है
  • ✔️ यह वास्तविक और क़ानूनी होना चाहिए
  • ✔️ यह कुछ मूल्यवान होना चाहिए (Not necessarily monetary)

📘 प्रकार:

  • 🔹 Past Consideration (भूतकालीन)
  • 🔹 Present Consideration (वर्तमान)
  • 🔹 Future Consideration (भविष्य)

📚 महत्वपूर्ण केस लॉ:

  • Currie v. Misa (1875): Consideration को “कुछ मूल्यवान” के रूप में परिभाषित किया गया।
  • Abdul Aziz v. Masum Ali (1914): बिना विचार के किया गया वादा बाध्यकारी नहीं होता।
  • Kedar Nath v. Gorie Mohammad (1886): यदि लाभार्थी ने भरोसा करके कुछ किया हो, तो Consideration माना जाता है।

📌 Doctrine of Privity of Contract:

तीसरा व्यक्ति जो Contract में पक्ष नहीं है, वह उस पर अधिकार नहीं जता सकता, चाहे उसे Consideration प्राप्त हो या नहीं।

Exceptions:

  • Beneficiary of Trust
  • Marriage Settlements
  • Agency
  • Assignment of Contract

📌 Section 25 – When Agreement without Consideration is valid:

  • ➡️ Natural Love & Affection (यदि लिखा हुआ हो)
  • ➡️ Past Voluntary Service
  • ➡️ Time-barred debt को लिखित रूप में मानना

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

संविदा का कोई भी पक्ष बिना Consideration के वैध नहीं माना जा सकता, जब तक वह Section 25 के अंतर्गत छूट न रखता हो। परीक्षा के लिए यह यूनिट धाराओं और केस लॉ के साथ रटने योग्य है।

📦 UNIT 5: Free Consent

स्वेच्छा से दी गई सहमति की शर्तों को समझना इस यूनिट में आवश्यक है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 5: Free Consent (मुक्त सहमति)

🔰 प्रस्तावना:
किसी भी संविदा के लिए पक्षों की सहमति का मुक्त (Free) होना अनिवार्य है। यदि सहमति बलपूर्वक, धोखाधड़ी, या गलतफहमी पर आधारित हो तो वह अनुबंध वैध नहीं माना जाएगा।

📌 Section 13 – Consent की परिभाषा:

“जब दो या दो से अधिक व्यक्तियों की मानसिकता किसी एक ही चीज़ के संबंध में समान हो, तो उसे सहमति कहा जाता है।”

📌 Section 14 – Free Consent:

Consent तब ‘Free’ मानी जाती है जब वह निम्नलिखित कारणों से प्रभावित न हो:

  • ❌ Coercion (बल प्रयोग) – Section 15
  • ❌ Undue Influence (अत्यधिक प्रभाव) – Section 16
  • ❌ Fraud (धोखाधड़ी) – Section 17
  • ❌ Misrepresentation (भ्रम उत्पन्न करना) – Section 18
  • ❌ Mistake (भूल) – Sections 20–22

📋 Coercion – Section 15:

ऐसा कोई भी कार्य जो कानूनन अपराध हो, या किसी व्यक्ति की संपत्ति को क्षति पहुँचाने की धमकी हो।

📋 Undue Influence – Section 16:

जब एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की मानसिक स्थिति का अनुचित लाभ उठाता है। जैसे डॉक्टर-रोगी, गुरु-शिष्य संबंध।

📋 Fraud – Section 17:

जानबूझकर झूठ बोलना, तथ्य छिपाना, या अनुबंध करवाने के लिए गलत सूचना देना।

📋 Misrepresentation – Section 18:

अनजाने में गलत सूचना देना जो दूसरे पक्ष को प्रभावित करे।

📋 Mistake – Sections 20 to 22:

तथ्य या कानून में भ्रम होना।

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Chinnaya v. Ramayya (1882): स्वतंत्र सहमति न होने पर संविदा अमान्य हो सकती है।
  • 📌 Derry v. Peek (1889): धोखाधड़ी और भ्रम के बीच अंतर को स्पष्ट किया गया।
  • 📌 Ranganayakamma v. Alwar Setti (1889): जब सहमति दबाव में ली जाए तो अनुबंध अमान्य होगा।

📒 निष्कर्ष:

अनुबंध की वैधता के लिए केवल सहमति पर्याप्त नहीं है, बल्कि वह ‘मुक्त’ भी होनी चाहिए। परीक्षा में प्रश्न अक्सर केस आधारित होते हैं, इसलिए आपको धाराओं, उदाहरणों और केस लॉ को अच्छी तरह समझना और याद रखना होगा।

📦 UNIT 6: Legality of Object

इस यूनिट में विधिसंगत उद्देश्य और गैरकानूनी संविदा के प्रभाव की चर्चा है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 6: Legality of Object (उद्देश्य की वैधता)

🔰 प्रस्तावना:
एक संविदा तभी वैध होती है जब उसका उद्देश्य और विचार दोनों विधिसंगत (Lawful) हों। यदि उद्देश्य या विचार गैरकानूनी, अनैतिक या सार्वजनिक नीति के विरुद्ध हो, तो वह संविदा शून्य मानी जाती है।

📌 Section 23 – Lawful Object:

संविदा का उद्देश्य विधिसंगत होना चाहिए। अनुबंध शून्य हो जाएगा यदि:

  • ❌ वह कानून द्वारा निषिद्ध हो
  • ❌ उसका उद्देश्य धोखाधड़ी हो
  • ❌ वह किसी व्यक्ति या संपत्ति को हानि पहुँचाए
  • ❌ वह न्याय, नीति या नैतिकता के विरुद्ध हो

📚 उदाहरण:

  • 🔹 चोरी करने के लिए की गई साझेदारी – शून्य
  • 🔹 रिश्वत देने के लिए किया गया अनुबंध – शून्य
  • 🔹 जुए की राशि बांटने का अनुबंध – शून्य

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Gherulal Parakh v. Mahadeodas (1959): जुए से संबंधित अनुबंध शून्य लेकिन अवैध नहीं होता जब तक कि वह निषिद्ध न हो।
  • 📌 Ram Sarup v. Bansi Mandar (1915): रिश्वत देने के लिए किया गया अनुबंध अमान्य है।
  • 📌 Surasaibai v. Malati (1988): अनुबंध जो सार्वजनिक नीति के विरुद्ध हो, वह शून्य है।

📌 Object और Consideration में अंतर:

  • Object: वह उद्देश्य जिसके लिए संविदा की जाती है
  • Consideration: वह मूल्य जो पक्षकार एक-दूसरे को देते हैं

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

उद्देश्य की वैधता अनुबंध की वैधता का प्रमुख आधार है। Section 23 में दिए गए परीक्षण परीक्षा में कई बार सीधे पूछे जाते हैं। इस यूनिट को केस लॉ और उदाहरणों के साथ समझना अत्यंत जरूरी है।

📦 UNIT 7: Void Agreements

शून्य समझौतों की श्रेणियाँ और कारण इस यूनिट में दिए गए हैं। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 7: Void Agreements (शून्य समझौते)

🔰 प्रस्तावना:
“Void” का अर्थ होता है — ऐसा समझौता जो प्रारंभ से ही शून्य (Null) हो, और कानून द्वारा मान्यता प्राप्त न हो। यह यूनिट उन परिस्थितियों को स्पष्ट करती है जिनमें कोई समझौता संविदा नहीं बनता।

📌 Section 2(g):

“ऐसा समझौता जो कानूनन प्रवर्तनीय नहीं है, वह शून्य समझौता (Void Agreement) कहलाता है।”

📋 प्रमुख कारण जिनसे समझौता शून्य हो जाता है:

  • 🔹 Minor द्वारा किया गया अनुबंध – Sec 11
  • 🔹 कानूनन निषिद्ध उद्देश्य – Sec 23
  • 🔹 गैरकानूनी विचार – Sec 25
  • 🔹 संविदा की असंभाव्यता – Sec 56
  • 🔹 अनिश्चित समझौता – Sec 29
  • 🔹 जुए से संबंधित समझौता – Sec 30
  • 🔹 व्यापार/विवाह की रोक – Sec 26, 27

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Mohori Bibee v. Dharmodas Ghose (1903): नाबालिग द्वारा किया गया अनुबंध शून्य होता है।
  • 📌 Gherulal Parakh v. Mahadeodas (1959): जुए पर आधारित समझौता शून्य है, लेकिन अवैध नहीं जब तक कानूनन मना न हो।
  • 📌 Narayan v. Parvati (1929): विवाह में रोक लगाने वाला अनुबंध शून्य माना गया।

📌 Important Sections to Memorize:

SectionReason
Sec 11Competency to Contract
Sec 23Unlawful Object
Sec 25Agreement without Consideration
Sec 26Restraint of Marriage
Sec 27Restraint of Trade
Sec 29Uncertain Agreements
Sec 30Wagering Agreements

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

शून्य समझौते संविदा के मूल तत्वों के अभाव में उत्पन्न होते हैं। UGC NET, Civil Judge, और अन्य परीक्षाओं में इस यूनिट से अक्सर कथनों पर आधारित प्रश्न आते हैं। सभी धाराओं और केस लॉ को उदाहरण सहित याद रखें।

📦 UNIT 8: Quasi Contracts

जहाँ कोई औपचारिक संविदा नहीं होती फिर भी दायित्व बनता है – यह इस यूनिट में है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 8: Quasi Contracts (अर्ध-संविदाएं)

🔰 प्रस्तावना:
Quasi Contract का अर्थ है — "ऐसी स्थिति जिसमें कोई औपचारिक संविदा (formal contract) मौजूद नहीं होती, लेकिन फिर भी कानून के द्वारा एक पक्ष को दूसरे के प्रति उत्तरदायी ठहराया जाता है।" ये न्याय और नैतिकता के सिद्धांत पर आधारित होते हैं ताकि कोई भी व्यक्ति अनुचित लाभ प्राप्त न कर सके।

📌 मूल आधार:

  • ➡️ "Unjust Enrichment" – अनुचित लाभ
  • ➡️ "Nemo Debet Locupletari Ex Aliena Jactura" – कोई भी व्यक्ति दूसरे के नुकसान पर समृद्ध नहीं हो सकता।

📌 Sections 68 to 72 – Quasi Contracts:

  • Section 68: आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति (Necessaries Supplied to Incompetent Person)
  • Section 69: किसी अन्य के लिए भुगतान (Payment by Interested Person)
  • Section 70: गैर-इच्छित लाभ प्राप्त करना (Obligation of Person Enjoying Benefit of Non-Gratuitous Act)
  • Section 71: खोई हुई वस्तु का खोजकर्ता (Responsibility of Finder of Goods)
  • Section 72: गलती या बल से प्राप्त वस्तु की वापसी (Money Paid or Thing Delivered by Mistake or Under Coercion)

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 State of West Bengal v. B.K. Mondal (1962): बिना संविदा के निर्माण कार्य किया गया, लेकिन लाभ प्राप्त होने पर सरकार भुगतान की उत्तरदायी मानी गई।
  • 📌 Radhakrishna Agarwal v. State of Bihar (1977): Quasi Contract और Formal Contract के बीच अंतर स्पष्ट किया गया।
  • 📌 Krishna v. State of Madras (1955): गलती से भुगतान की गई राशि की वापसी की जिम्मेदारी निर्धारित की गई।

📘 परीक्षोपयोगी बिंदु:

  • ❓ क्या Quasi Contract एक वास्तविक संविदा होती है? ➤ नहीं, यह कानूनी दायित्व होता है।
  • ❓ क्या इसमें सहमति की आवश्यकता होती है? ➤ नहीं, यह बिना सहमति के उत्पन्न होता है।
  • ❓ क्या यह अनुबंध कानून का हिस्सा है? ➤ हाँ, Sec 68–72 के अंतर्गत।

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

Quasi Contracts संविदा के उन नियमों को स्थापित करते हैं जहाँ नैतिक और न्यायसंगत सिद्धांतों के आधार पर उत्तरदायित्व तय होता है। परीक्षा में अक्सर Section 68 से 72 के आधार पर कथनों या केस-आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं।

📦 UNIT 9: Contingent Contracts

भविष्य की अनिश्चित घटनाओं पर आधारित संविदा की धारणा इस यूनिट में है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 9: Contingent Contracts (आश्रित संविदाएं)

🔰 प्रस्तावना:
Contingent Contract एक ऐसा अनुबंध होता है जिसकी वैधता या प्रवर्तन एक अनिश्चित भविष्य की घटना पर निर्भर करता है। यह संविदा तब तक प्रभावी नहीं होती जब तक कि वह घटना घटित न हो या न हो।

📌 Section 31 – परिभाषा:

“Contingent Contract वह अनुबंध है जो किसी अनिश्चित घटना के घटित या न होने पर निर्भर करता है।”

📋 विशेषताएँ:

  • ✔️ यह मुख्य अनुबंध से अलग एक आश्रित अनुबंध होता है
  • ✔️ घटना अनिश्चित और भविष्य की होनी चाहिए
  • ✔️ Contract तभी लागू होता है जब वह घटना घटे या न घटे

📘 उदाहरण:

  • यदि A कहता है कि “मैं B को ₹10,000 दूँगा, यदि वह परीक्षा पास कर लेता है।”
  • यदि बी पास नहीं होता, अनुबंध निष्प्रभावी रहता है।

📌 Section 32 to 36 – नियम:

  • Sec 32: घटना घटने पर अनुबंध लागू होता है
  • Sec 33: यदि घटना असंभव हो जाए, अनुबंध अमान्य
  • Sec 34: यदि घटना किसी व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर है
  • Sec 35: न होने की स्थिति में लागू अनुबंध
  • Sec 36: अनुबंध जिस घटना के घटने पर आश्रित हो, और वह निषिद्ध हो जाए

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 N.P.O. Ltd. v. NDMC (1990): संयोगित संविदाओं की व्याख्या न्यायालय द्वारा की गई
  • 📌 Bombay Steam Navigation Co. v. Vasudev Baburao (1961): घटना की असंभवता पर अनुबंध निरस्त हुआ

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

Contingent Contracts विधिसंगत और व्यावहारिक कानून के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होते हैं, खासकर बीमा, व्यापार, और भविष्य की योजना में। UGC NET, Civil Judge और अन्य लॉ परीक्षाओं में इससे संबंधित केस-आधारित प्रश्न आते हैं।

📦 UNIT 10: Discharge and Remedies

संविदा का अंत और उल्लंघन के उपायों को विस्तार से समझाया गया है। यहाँ क्लिक करें विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए

📘 UNIT 10: Discharge of Contract & Remedies for Breach

🔰 प्रस्तावना:
Discharge of Contract का अर्थ है – संविदा के पक्षकारों द्वारा अपने-अपने दायित्वों को पूरा कर लेना, जिससे संविदा समाप्त हो जाती है। यदि पक्षकार अपने वादे को पूरा करने में विफल रहता है, तो इसे Breach (उल्लंघन) कहा जाता है और इसके लिए कुछ Remedies (उपाय) उपलब्ध होते हैं।

📌 Discharge of Contract – प्रमुख तरीके:

  • ✔️ By Performance – दोनों पक्षों द्वारा कार्य पूर्ण होना
  • ✔️ By Mutual Agreement – Novation, Rescission, Alteration
  • ✔️ By Impossibility – Sec 56: असंभवता (doctrine of frustration)
  • ✔️ By Operation of Law – दिवालियापन, मृत्यु आदि
  • ✔️ By Breach – अनुबंध का उल्लंघन

📘 Sec 56: Doctrine of Impossibility / Frustration

यदि कार्य प्रारंभ से असंभव था या बाद में असंभव हो गया, तो संविदा स्वतः शून्य हो जाती है।

📌 Remedies for Breach of Contract (Sec 73 to 75):

  • 🔹 Rescission – अनुबंध को समाप्त करना
  • 🔹 Damages – वास्तविक हानि की भरपाई
  • 🔹 Specific Performance – अदालत द्वारा कार्य करवाना
  • 🔹 Injunction – रोक लगाने का आदेश
  • 🔹 Quantum Meruit – आंशिक कार्य के लिए भुगतान

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Taylor v. Caldwell (1863): Performance असंभव होने पर संविदा स्वतः समाप्त
  • 📌 Hadley v. Baxendale (1854): हानि की भरपाई केवल अपेक्षित हानि तक
  • 📌 Satyabrata Ghose v. Mugneeram (1954): भारत में Sec 56 की व्याख्या

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

संविदा का अंत और उसका उल्लंघन कानून द्वारा नियंत्रित होता है। परीक्षा में अक्सर Remedies के प्रकार, Sections और केस लॉ आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। स्पष्ट उत्तर के लिए धाराओं और उदाहरणों के साथ उत्तर दें।

🧾 Quick Revision Table – Indian Contract Act, 1872

Unit Title Important Sections Key Concepts
Unit 1 Introduction & Definitions Sec 2(a) to 2(h) Proposal, Agreement, Contract
Unit 2 Essentials of Valid Contract Sec 10, 11, 13, 14 Consent, Capacity, Legality
Unit 3 Offer and Acceptance Sec 2, 3–9 Types, Communication, Revocation
Unit 4 Consideration Sec 2(d), 25 Definition, Exceptions, Case Laws
Unit 5 Free Consent Sec 13–19 Coercion, Fraud, Mistake
Unit 6 Legality of Object Sec 23 Lawful Object, Public Policy
Unit 7 Void Agreements Sec 25–30 Wager, Marriage Restraint, Trade
Unit 8 Quasi Contracts Sec 68–72 No Contract but Legal Obligation
Unit 9 Contingent Contracts Sec 31–36 Future Event-based Contracts
Unit 10 Discharge & Remedies Sec 39, 56, 73–75 Impossibility, Damages, Specific Relief

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