Home Ad

Law NTA UGC NET Paper 02: UNIT – III: PUBLIC INTERNATIONAL LAW AND IHL

UNIT III: Public International Law and IHL

UNIT III: Public International Law and IHL

Lecture 1: International law – Definition, Nature and Basis

अंतरराष्ट्रीय विधि की परिभाषा, स्वरूप और इसके मूल आधारों की व्याख्या।

अंतरराष्ट्रीय विधि उन सिद्धांतों और नियमों का समूह है जो विभिन्न राष्ट्रों के बीच संबंधों को नियंत्रित करते हैं... [Definition of International Law

International law lacks a single universally accepted definition. However, jurists have contributed several definitions over time. The term "International Law" was first used by Jeremy Bentham in 1780, though the concept can be traced back to Ancient Greece, Rome, and India. Modern public international law has evolved largely from the European legal tradition.

🔹 Classical Definitions

  • Oppenheim (1905): "The body of customary and conventional rules considered legally binding by civilized states in their intercourse with each other."
  • Brierly: "A body of rules and principles binding upon civilized states in their relations with one another."
  • Hackworth: "A body of rules governing the relations between states."
  • Queen v. Keyn (1876): Defined as “a collection of usages which civilized states have agreed to observe.”
  • Gray: Rules that regulate conduct of states in their interactions.
  • Cobbett: The sum of rules accepted by civilized states determining their conduct towards one another and their subjects.

🔹 Modern Definitions

  • Fenwick: "The body of general principles and specific rules binding upon members of the international community in their mutual relations."
  • Whiteman: "The standard of conduct for states and other entities; dynamic and ever-developing."
  • Starke: International law includes rules states feel bound to observe, rules for international institutions, and rules concerning individuals/non-state actors.
  • Schwarzenberger: "A body of legal rules which apply between sovereign states and other entities granted international personality."

🔹 Is International Law True Law?

There’s a long-standing debate:

  • Opposition View: Not true law – lacks sovereign authority and enforceable sanctions.
  • Supportive View: It is true law – enforced through treaties, customs, ICJ decisions, and State practice.

🔸 Austin's View:

Law must be a command by a sovereign with sanction. Since international law lacks a global sovereign, Austin did not consider it as law.

🔸 Counter-Arguments:

  • Customary laws (e.g., common law in England) exist without a legislative sovereign.
  • States treat treaties and conventions as legally binding.
  • Case: Paquete Habana (1900) 175 US 677 – International law is part of US law.
  • ICJ decisions (e.g., through UN Charter) are binding.
  • Diplomatic immunities and laws of war are generally respected.
  • Prof. Hart: International law is law because states accept it as law.

🔹 Leading Cases with Facts

  1. Lotus Case (France v. Turkey, 1927): States are free to act unless explicitly prohibited by international law. Recognized the permissive character of international law.
  2. Asylum Case (Colombia v. Peru, 1950): Defined conditions for applying customary international law – must be consistent and accepted as law (opinio juris).
  3. North Sea Continental Shelf Case (1969): Opinio juris and uniform state practice are necessary to establish customary law.
  4. Nottebohm Case (1955): For nationality recognition, there must be a genuine link between the person and the state.
  5. Barcelona Traction Case (1970): Introduced the concept of obligations erga omnes – obligations owed to the international community as a whole.

🔹 Nature of International Law

  • Primarily regulates inter-state relations.
  • Increasingly regulates conduct of international organizations, non-state actors, and individuals.
  • Relies on consent, not compulsion.
  • Has no centralized legislature or enforcement body.

🔹 Basis of International Law

The foundations of international law are rooted in ancient civilizations (India, Egypt, Rome) and formalized in Europe.
Hugo Grotius (Dutch jurist, 1625) in De Jure Belli ac Pacis laid modern legal foundations. He promoted the idea of a universal Natural Law – rational, unchangeable, and binding.

🔹 Contemporary Relevance

  • Addresses global issues – climate change, terrorism, cyber law, migration, trade.
  • UN and WTO play major roles in shaping norms.
  • ICJ, ICC, and regional tribunals interpret and enforce international law.
  • Customs, treaties, general principles, and judicial decisions shape the body of law.

🔹 Conclusion

International law continues to evolve. While criticisms persist over its enforceability, states continue to rely upon it for diplomacy, dispute settlement, and cooperation. For the NTA UGC NET Law syllabus, understanding these definitions, classical-modern debates, and landmark cases is essential. 🔹 अंतरराष्ट्रीय विधि की परिभाषा (Definition of International Law)

अंतरराष्ट्रीय विधि की कोई एक सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है। यह वह नियमों का समूह है जो राष्ट्रों के बीच संबंधों को नियंत्रित करता है। “International Law” शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम Jeremy Bentham ने 1780 में किया था। आधुनिक सार्वजनिक अंतरराष्ट्रीय विधि मुख्यतः यूरोपीय विधि परंपरा पर आधारित है।

🔹 पारंपरिक परिभाषाएँ

  • Oppenheim (1905): “यह वह नियमों का समूह है जो सभ्य राज्यों के बीच आपसी व्यवहार में बाध्यकारी होते हैं।”
  • Brierly: “यह नियम और सिद्धांत हैं जो राष्ट्रों के बीच संबंधों में बाध्यकारी हैं।”
  • Hackworth: “राज्यों के बीच संबंधों को नियंत्रित करने वाले नियमों का समूह।”
  • Queen v. Keyn (1876): “वह रीतियाँ जिनका पालन सभ्य राष्ट्र एक-दूसरे से व्यवहार में करते हैं।”

🔹 आधुनिक परिभाषाएँ

  • Fenwick: "यह सामान्य सिद्धांतों और विशेष नियमों का समूह है जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों पर बाध्यकारी होते हैं।"
  • Whiteman: "एक निश्चित समय पर राज्यों और अन्य संस्थाओं के लिए आचरण की मानक व्यवस्था।"
  • Starke: "यह वह नियम हैं जिन्हें राज्य पालन करना अपना कर्तव्य समझते हैं।"
  • Schwarzenberger: "वे विधिक नियम जो सार्वभौमिक राज्यों और अन्य अंतरराष्ट्रीय व्यक्तियों पर लागू होते हैं।"

🔹 क्या अंतरराष्ट्रीय विधि वास्तव में विधि है?

इस पर दो मत हैं:

  • विरोधी मत: यह मात्र नैतिक आचरण संहिता है, विधिक रूप में बाध्यकारी नहीं है।
  • समर्थक मत: यह पूर्ण विधि है क्योंकि इसका पालन राज्य करते हैं, और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय निर्णय देते हैं।

🔸 ऑस्टिन का दृष्टिकोण (Austin's View)

ऑस्टिन के अनुसार, विधि वह है जो संप्रभु द्वारा आदेश के रूप में दी जाती है और उल्लंघन पर दंड होता है। चूंकि अंतरराष्ट्रीय विधि के पास ऐसा कोई संप्रभु नहीं है, ऑस्टिन ने इसे विधि नहीं माना।

🔸 तर्क जो इसे विधि सिद्ध करते हैं:

  • प्रथागत नियम बिना विधायिका के भी स्वीकार्य हैं (जैसे इंग्लैंड का कॉमन लॉ)।
  • राज्य संधियों और सम्मेलन को बाध्यकारी मानते हैं।
  • Paquete Habana (1900): अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय विधि को घरेलू विधि का भाग माना गया।
  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर और ICJ के निर्णय बाध्यकारी हैं।
  • डिप्लोमैटिक एजेंटों को दी गई प्रतिरक्षा का सामान्यतः पालन होता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में इसे विधि के रूप में स्वीकार किया जाता है।

🔹 प्रमुख निर्णय (Leading Cases)

  1. Lotus Case (France v. Turkey, 1927): जब तक कोई कार्य निषिद्ध नहीं है, राज्य स्वतंत्र हैं।
  2. Asylum Case (1950): प्रथागत विधि के लिए एकरूप और व्यापक राज्य अभ्यास आवश्यक है।
  3. North Sea Continental Shelf (1969): Customary Law के लिए Opinio Juris आवश्यक है।
  4. Nottebohm Case (1955): राष्ट्रीयता की मान्यता के लिए प्रामाणिक संबंध आवश्यक है।
  5. Barcelona Traction (1970): ‘Obligations Erga Omnes’ की अवधारणा दी गई।

🔹 प्रकृति (Nature)

  • राज्य-राज्य के संबंधों को नियंत्रित करती है।
  • अब यह व्यक्तियों और गैर-राज्य संस्थाओं पर भी लागू होती है।
  • अनुमति आधारित है, बल आधारित नहीं।
  • कोई केंद्रीकृत विधायिका या न्यायालय नहीं है।

🔹 आधार (Basis)

प्राचीन मिस्र, भारत, यूनान, रोम में इसके प्रमाण हैं। आधुनिक अंतरराष्ट्रीय विधि Grotius के कार्य De Jure Belli ac Pacis (1625) से विकसित हुई।

🔹 समकालीन महत्त्व

  • जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, साइबर लॉ, प्रवासन, व्यापार जैसे विषयों को नियंत्रित करती है।
  • UN, WTO जैसे संगठन विधियों के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाते हैं।
  • ICJ, ICC जैसे न्यायाधिकरण निर्णय प्रदान करते हैं।

🔹 निष्कर्ष

अंतरराष्ट्रीय विधि सतत विकासशील है। इसकी बाध्यता और प्रवर्तन में सीमाएँ होते हुए भी, राज्य इसका पालन करते हैं। यह विधिक परीक्षा, विशेषकर NTA UGC NET Law के लिए अत्यंत आवश्यक विषय है। ]

Lecture 2: Sources of International Law

अंतरराष्ट्रीय विधि के प्रमुख स्रोत – संधियाँ, रीति-रिवाज, न्यायिक निर्णय आदि।

अंतरराष्ट्रीय विधि के स्रोत वे आधार हैं जिनसे इसके नियम प्राप्त होते हैं... 🔹 प्रस्तावना (Introduction)

अंतरराष्ट्रीय विधि का विकास कुछ निश्चित स्रोतों पर आधारित है, जिनका उल्लेख International Court of Justice (ICJ) के Statute – Article 38(1) में किया गया है। ये स्रोत न केवल विधिक नियमों का आधार हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय विवादों के निपटारे में मार्गदर्शक भी हैं।

🔹 Article 38(1) of ICJ Statute के अनुसार प्रमुख स्रोत:

  1. अंतरराष्ट्रीय संधियाँ (International Conventions/Treaties)
  2. अंतरराष्ट्रीय प्रथाएं (International Customs)
  3. सामान्य विधि सिद्धांत (General Principles of Law)
  4. न्यायिक निर्णय (Judicial Decisions) और प्रबुद्ध विधिविदों के विचार (Teachings of Jurists)
  5. सहायक स्रोत: संयुक्त राष्ट्र संघ, सम्मेलन, प्रस्ताव, आचरण संहिताएं आदि।

🔸 1. अंतरराष्ट्रीय संधियाँ (International Conventions or Treaties)

यह लिखित समझौते हैं जिन पर राष्ट्र स्वेच्छा से हस्ताक्षर करते हैं और जिनके अनुसार वे व्यवहार करने के लिए बाध्य होते हैं। इन्हें अंतरराष्ट्रीय विधि का प्राथमिक स्रोत माना जाता है।

  • Ex: Vienna Convention on the Law of Treaties, 1969
Leading Case:

North Sea Continental Shelf Cases (Germany v. Denmark; Germany v. Netherlands, 1969)
निर्णय में ICJ ने कहा कि कोई संधि केवल उन्हीं राष्ट्रों पर बाध्यकारी होती है जिन्होंने उसे स्वीकार किया हो, जब तक कि वह customary law का अंग न बन जाए।

🔸 2. अंतरराष्ट्रीय प्रथाएं (Customary International Law)

यह वह व्यवहार हैं जो लंबे समय से अनुसरण में हैं और जिन्हें राष्ट्र कानूनी रूप से बाध्यकारी मानते हैं (Opinio Juris)। दो प्रमुख तत्व हैं:

  • State Practice – निरंतर और सामान्य व्यवहार
  • Opinio Juris – यह विश्वास कि यह कानूनी बाध्यता है

Leading Case:

Asylum Case (Colombia v. Peru, 1950)
कोर्ट ने कहा कि एक प्रथा को customary law का दर्जा देने के लिए उसे सार्वभौमिक और लगातार पालन में होना चाहिए।

🔸 3. सामान्य विधि सिद्धांत (General Principles of Law Recognised by Civilised Nations)

वे सिद्धांत जो अधिकतर विधिक प्रणालियों में सामान्य रूप से पाए जाते हैं, जैसे – न्याय का सिद्धांत, प्राकृतिक न्याय, उचित प्रक्रिया आदि।

Examples:
  • Res Judicata (पूर्व निर्णय का प्रभाव)
  • Pacta Sunt Servanda (संधियों को निभाना अनिवार्य है)

🔸 4. न्यायिक निर्णय और विद्वानों की राय (Judicial Decisions and Juristic Writings)

न्यायालयों के निर्णय और विश्व प्रसिद्ध विधिविदों की टिप्पणियाँ अंतरराष्ट्रीय विधि के सहायक स्रोत हैं। ये बाध्यकारी नहीं होते, परन्तु मार्गदर्शक होते हैं।

Leading Case:

Lotus Case (France v. Turkey, 1927)
कोर्ट ने कहा कि जो कुछ निषिद्ध नहीं है, उसे राष्ट्र करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह निर्णय customary law की व्याख्या के लिए महत्वपूर्ण है।

🔸 5. सहायक स्रोत (Subsidiary Sources)

संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव, अंतरराष्ट्रीय संगठनों के दस्तावेज़, आचार संहिताएं आदि। जैसे – Universal Declaration of Human Rights, 1948।

🔹 निष्कर्ष (Conclusion)

अंतरराष्ट्रीय विधि के ये स्रोत राज्य के व्यवहार और उनके आपसी संबंधों को दिशा देते हैं। UGC NET जैसी परीक्षाओं में इनका गहन ज्ञान अति आवश्यक है, विशेषतः केस लॉ के संदर्भ में।

Lecture 3: Recognition of States and Governments

राज्यों और सरकारों की मान्यता की प्रक्रिया और इसके प्रभाव।

मान्यता से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसमें एक राज्य या सरकार को अन्य राज्यों द्वारा वैध माना जाता है... 🔹 प्रस्तावना (Introduction)

अंतरराष्ट्रीय विधि में मान्यता (Recognition) का तात्पर्य किसी राष्ट्र या सरकार को अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा वैध राजनीतिक इकाई के रूप में स्वीकार करने से है। यह स्वायत्तता, संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भाग लेने के अधिकार की पुष्टि करता है।

🔹 प्रकार (Types of Recognition)

  1. राष्ट्र की मान्यता (Recognition of States)
  2. सरकार की मान्यता (Recognition of Governments)

🔸 Recognition of State:

एक नए राष्ट्र के उदय पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय उसे मान्यता देता है कि वह स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र है। इसके लिए निम्नलिखित तत्व महत्वपूर्ण हैं:

  • स्थायी जनसंख्या
  • परिभाषित क्षेत्र
  • सरकार
  • अन्य राज्यों के साथ संबंध स्थापित करने की क्षमता

🔸 Recognition of Government:

जब किसी राज्य में विद्रोह या क्रांति के माध्यम से सरकार बदलती है, तो अन्य राज्य नई सरकार को मान्यता देते हैं या नहीं, यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर निर्भर करता है।

🔹 मान्यता के सिद्धांत (Theories of Recognition)

  1. घोषणात्मक सिद्धांत (Declaratory Theory):
    मान्यता केवल यह स्वीकार करती है कि एक राज्य पहले से अस्तित्व में है। यह अस्तित्व के लिए आवश्यक नहीं होती।
  2. संविधानात्मक सिद्धांत (Constitutive Theory):
    मान्यता ही किसी इकाई को राज्य का दर्जा देती है। बिना मान्यता के वह राज्य नहीं माना जाता।

🔹 मान्यता के प्रकार (Modes of Recognition)

  • Express Recognition: औपचारिक वक्तव्य द्वारा
  • Implied Recognition: व्यवहार द्वारा जैसे – राजनयिक संबंध स्थापित करना
  • De Jure Recognition: कानूनी रूप से स्थायी मान्यता
  • De Facto Recognition: केवल अस्थायी या परिस्थितिजन्य मान्यता

🔹 मान्यता के प्रभाव (Legal Effects of Recognition)

  • राजनयिक संबंध स्थापित करने का अधिकार
  • संधियाँ करने की शक्ति
  • अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में भाग लेने का अधिकार
  • अन्य राज्यों की संपत्तियों और अदालतों तक पहुंच

🔹 प्रमुख न्यायिक मामले (Leading Cases)

1. Luther v. Sagor (1921)

ब्रिटिश कोर्ट ने रूस की बोल्शेविक सरकार को De facto मान्यता दी और उसके निर्णयों को वैध माना।

2. Bank of Ethiopia v. National Bank of Egypt (1937)

यह मामला इटली द्वारा इथियोपिया पर कब्जे के बाद मान्यता से जुड़ा था। कोर्ट ने यह माना कि जब तक सरकार को मान्यता नहीं मिलती, वह अपने अधिकार लागू नहीं कर सकती।

3. Azanian People's Organisation (AZAPO) v. President of South Africa (1996)

यह मामला नई लोकतांत्रिक सरकार की मान्यता के सन्दर्भ में था। कोर्ट ने संक्रमणकालीन न्याय के अंतर्गत Truth and Reconciliation Commission की वैधता को मान्यता दी।

4. Taiwan and Kosovo Cases

Taiwan को चीन के कारण UN की मान्यता नहीं मिली, वहीं Kosovo को कई देशों ने मान्यता दी, लेकिन UN में पूर्ण सदस्यता अभी तक नहीं मिली है। यह मामले वर्तमान अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मान्यता की चुनौतियाँ दर्शाते हैं।

🔹 निष्कर्ष (Conclusion)

मान्यता केवल एक औपचारिक कार्यवाही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय विधि में राजनीतिक, कूटनीतिक और विधिक प्रभाव उत्पन्न करने वाला महत्वपूर्ण तत्व है। NTA UGC NET जैसी परीक्षाओं के लिए यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों और विधिक मानदंडों की गहराई को स्पष्ट करता है।

Lecture 4: Nationality, Immigrants, Refugees and IDPs

राष्ट्रीयता, आप्रवासी, शरणार्थी और आंतरिक विस्थापित व्यक्तियों का कानूनी अध्ययन।

राष्ट्रीयता किसी व्यक्ति और राज्य के बीच विधिक संबंध है... 🔹 1. राष्ट्रीयता (Nationality)

राष्ट्रीयता वह विधिक संबंध है जो किसी व्यक्ति और राज्य के बीच होता है। यह व्यक्ति को अधिकारों और कर्तव्यों का आधार प्रदान करता है।

💡 महत्वपूर्ण बिंदु:
  • राष्ट्रीयता जन्म, वंशानुक्रम, प्राकृतिककरण आदि के माध्यम से प्राप्त हो सकती है।
  • राष्ट्रीयता की दो विधियाँ:
    • Jus Soli (Birthplace-based): जैसे अमेरिका।
    • Jus Sanguinis (Blood-based): जैसे भारत।
📌 Leading Case: Nottebohm Case (Liechtenstein v. Guatemala), ICJ 1955

ICJ ने कहा कि वास्तविक और प्रभावी संबंध (Genuine Link) राष्ट्रीयता का मानदंड होना चाहिए। Liechtenstein द्वारा दी गई राष्ट्रीयता को मान्यता नहीं दी गई क्योंकि Nottebohm का वास्तविक संबंध Guatemala से था।

🔹 2. प्रवासी (Immigrants)

प्रवासी वे लोग होते हैं जो रोजगार, शिक्षा, पारिवारिक एकीकरण या अन्य सामाजिक-आर्थिक कारणों से एक देश से दूसरे देश में जाते हैं।

  • प्रवासी कानून, वीज़ा नीतियाँ, और मानवाधिकारों की सुरक्षा इस क्षेत्र में प्रमुख हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रवासी संगठन (IOM) इस दिशा में कार्य करता है।

🔹 3. शरणार्थी (Refugees)

शरणार्थी वह व्यक्ति होता है जो युद्ध, धार्मिक उत्पीड़न, राजनीतिक हिंसा या मानवाधिकार हनन के कारण अपने देश को छोड़कर अन्यत्र शरण लेता है।

📜 प्रमुख संधि:
  • 1951 Refugee Convention और इसका 1967 Protocol
📌 Leading Case: Gurung v. Ministry of Home Affairs (Nepal)

नेपाल सुप्रीम कोर्ट ने नेपाल में रह रहे तिब्बती शरणार्थियों के अधिकारों की रक्षा की और UNHCR दिशानिर्देशों का पालन सुनिश्चित किया।

📌 Current Case: Rohingya Crisis – India

भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं। सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए उन्हें वापस भेजने की दलील दी जबकि याचिकाकर्ताओं ने मानवाधिकारों की रक्षा की मांग की।

🔹 4. आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति (IDPs)

IDPs वे व्यक्ति होते हैं जो संघर्ष, आपदा, या हिंसा के कारण अपने ही देश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलायन करते हैं, परंतु वे अंतरराष्ट्रीय सीमा पार नहीं करते।

  • इनकी सुरक्षा संबंधित देश की जिम्मेदारी होती है।
  • Guiding Principles on Internal Displacement (1998) IDPs की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक हैं।
📌 Current Issue: Manipur Violence (2023-24)

मणिपुर हिंसा के चलते हजारों लोग IDPs बन गए। केंद्र और राज्य सरकारों को उनके पुनर्वास और सुरक्षा हेतु कदम उठाने पड़े। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस पर रिपोर्ट तलब की।

🔹 निष्कर्ष (Conclusion)

राष्ट्रीयता, प्रवासी, शरणार्थी और IDPs जैसे विषय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह मानवाधिकार और मानवीय संवेदनाओं से भी गहराई से जुड़े हुए हैं। NTA UGC NET के दृष्टिकोण से यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और प्रमुख केसों की जानकारी परीक्षा के लिए उपयोगी है।

Lecture 5: Extradition and Asylum

प्रत्यर्पण और शरण की अवधारणा, विधिक सिद्धांत और चुनौतियाँ।

प्रत्यर्पण वह विधिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक राज्य किसी आरोपी व्यक्ति को दूसरे राज्य को सौंपता है... 🔹 प्रत्यर्पण (Extradition)

प्रत्यर्पण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक राष्ट्र किसी अपराधी को दूसरे राष्ट्र को सौंप देता है, जिससे वह व्यक्ति उस राष्ट्र में मुकदमे का सामना कर सके जहां अपराध हुआ है।

📘 उद्देश्य:
  • अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाना
  • अंतरराष्ट्रीय अपराधों की रोकथाम
  • राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा
📜 प्रमुख सिद्धांत:
  • Double Criminality Principle: जिस अपराध के लिए प्रत्यर्पण मांगा गया है वह दोनों देशों में अपराध होना चाहिए।
  • Speciality Rule: प्रत्यर्पित व्यक्ति को केवल उन्हीं आरोपों पर मुकदमा चलाया जाएगा जिनके लिए प्रत्यर्पण हुआ है।
  • No Political Offence Exception: राजनैतिक अपराधों के लिए आमतौर पर प्रत्यर्पण नहीं होता।
📌 Leading Case: Kartar Singh v. State of Punjab, AIR 1961 SC 1787

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रत्यर्पण केवल वैध संधियों और प्रक्रियाओं के तहत ही हो सकता है और व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए।

📌 Case: Abu Salem Extradition Case (Portugal to India)

भारत ने पुर्तगाल से प्रत्यर्पण संधि के तहत अबू सलेम को 2005 में प्रत्यर्पित करवाया। पुर्तगाल कोर्ट ने "स्पेशलिटी रूल" का उल्लंघन न करने की शर्त पर प्रत्यर्पण की अनुमति दी थी।

🔹 आश्रय (Asylum)

आश्रय वह विधिक संरक्षण है जो एक राज्य किसी विदेशी को देता है जो अपने देश में राजनीतिक या अन्य प्रकार के उत्पीड़न से पीड़ित हो।

🛑 प्रकार:
  • राजनैतिक आश्रय (Political Asylum)
  • कूटनीतिक आश्रय (Diplomatic Asylum)
  • क्षेत्रीय आश्रय (Territorial Asylum)
📜 अंतरराष्ट्रीय नियम:
  • Universal Declaration of Human Rights, 1948 – Article 14
  • Convention relating to the Status of Refugees, 1951
📌 Leading Case: Asylum Case (Colombia v. Peru), ICJ, 1950

इस केस में ICJ ने स्पष्ट किया कि कूटनीतिक आश्रय को मान्यता केवल तभी दी जा सकती है जब वह स्पष्ट और सामान्य अंतरराष्ट्रीय रिवाज पर आधारित हो।

📌 भारत से संबंधित मामला: Dalai Lama Asylum Case (1959)

भारत ने चीन में तिब्बतियों पर अत्याचार के बाद दलाई लामा को राजनीतिक आश्रय दिया, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने सराहा और यह भारत की मानवतावादी छवि को दर्शाता है।

📌 वर्तमान मामला: Julian Assange Case

विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे ने ब्रिटेन में इक्वाडोर के दूतावास में शरण ली थी। यह कूटनीतिक आश्रय का एक विशिष्ट उदाहरण है।

🔍 प्रत्यर्पण और आश्रय में अंतर

मापदंड प्रत्यर्पण आश्रय
उद्देश्य अपराधियों को सौंपना उत्पीड़ित को सुरक्षा देना
विनियमन द्विपक्षीय संधियाँ मानवाधिकार और अंतरराष्ट्रीय रिवाज
राजनैतिक अपराध प्रत्यर्पण से छूट आश्रय प्राप्त करने का कारण

🔚 निष्कर्ष

प्रत्यर्पण और आश्रय दोनों ही अंतरराष्ट्रीय कानून के महत्वपूर्ण पहलू हैं। एक अपराध के प्रति जवाबदेही को सुनिश्चित करता है, तो दूसरा मानवाधिकारों की रक्षा करता है। NTA UGC NET परीक्षा में इन विषयों पर आधारित केस स्टडी और सिद्धांत अक्सर पूछे जाते हैं।

Lecture 6: United Nations and its Organs

संयुक्त राष्ट्र और उसकी प्रमुख संस्थाओं की संरचना और कार्य।

संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 1945 में विश्व शांति और सहयोग के लिए की गई थी... 🌐 संयुक्त राष्ट्र का परिचय (Introduction to United Nations)

संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई थी। इसकी सदस्यता प्रारंभ में 51 देशों से शुरू हुई थी, जो अब 190 से अधिक है।

📜 मुख्य उद्देश्य (Objectives of the UN):
  • अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना
  • राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना
  • मानव अधिकारों का संरक्षण

🏛️ संयुक्त राष्ट्र की मुख्य अंग (Principal Organs of the UN)

  1. सुरक्षा परिषद (Security Council)
  2. महासभा (General Assembly)
  3. आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC)
  4. न्यायिक अंग – अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice)
  5. ट्रस्टीशिप काउंसिल (Trusteeship Council)
  6. सचिवालय (Secretariat)
🔹 Security Council
  • 15 सदस्य: 5 स्थायी (P5 - USA, UK, France, China, Russia) + 10 अस्थायी
  • शांति बनाए रखने के लिए कार्रवाई करता है जैसे शांति सैनिकों की तैनाती
  • Veto Power केवल स्थायी सदस्यों को प्राप्त
🔹 General Assembly
  • सभी सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व
  • वित्तीय बजट पारित करना और सिफारिशें देना
  • हर देश को एक वोट
🔹 ECOSOC
  • 54 सदस्यीय परिषद
  • सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मामलों में सहयोग बढ़ाना
🔹 Trusteeship Council

अब निष्क्रिय है क्योंकि अंतिम ट्रस्ट क्षेत्र (पलाऊ) को स्वतंत्रता मिल गई।

🔹 Secretariat
  • महासचिव के नेतृत्व में
  • दैनिक कार्यों का संचालन
  • वर्तमान महासचिव: António Guterres (2025 तक)

⚖️ International Court of Justice (ICJ)

यह संयुक्त राष्ट्र का न्यायिक अंग है, जिसकी स्थापना 1945 में हुई और 1946

🧑‍⚖️ संरचना (Structure):
  • 15 न्यायाधीश, जो विभिन्न देशों से होते हैं (9 साल का कार्यकाल)
  • चुनाव: संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा
🔍 कार्यक्षेत्र (Jurisdiction):
  • राज्यों के बीच कानूनी विवादों का समाधान
  • संयुक्त राष्ट्र के अंगों और एजेंसियों को सलाहकारी मत देना
  • केवल देश ही पार्टी बन सकते हैं, व्यक्ति नहीं
📌 प्रमुख केस: Corfu Channel Case (UK v. Albania) [1949]

इस केस में ICJ ने पहली बार यह निर्णय दिया कि एक राज्य दूसरे राज्य की सीमा में घुसने से पहले उचित सूचना दे।

📌 प्रमुख केस: Nicaragua v. United States (1986)

अमेरिका पर आरोप था कि वह निकारागुआ में विद्रोही गतिविधियों को समर्थन दे रहा है। ICJ ने अमेरिका को दोषी ठहराया और निकारागुआ को मुआवज़ा देने का आदेश दिया।

📌 Advisory Opinion: Legality of Nuclear Weapons, 1996

ICJ ने सलाह दी कि परमाणु हथियारों का प्रयोग सामान्य रूप में अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कर सकता है लेकिन आत्मरक्षा की स्थिति में अस्पष्टता है।

📌 हाल के प्रासंगिक मामले (Recent Case)

  • Ukraine v. Russia (2022) – यूक्रेन ने युद्ध के प्रारंभ में ICJ में केस दर्ज किया। अंतरिम आदेश में रूस को सैन्य कार्रवाई रोकने को कहा गया।

🔚 निष्कर्ष (Conclusion)

संयुक्त राष्ट्र की संस्थाएँ, विशेष रूप से सुरक्षा परिषद और ICJ, वैश्विक न्याय और शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। परीक्षा की दृष्टि से ICJ के कार्य, उसके केस, और UNO की कार्यप्रणाली से संबंधित प्रश्न बार-बार पूछे जाते हैं।

Lecture 7: Settlement of International Disputes

अंतरराष्ट्रीय विवादों का समाधान और विधिक साधन।

राज्यों के बीच उत्पन्न विवादों के समाधान हेतु विभिन्न विधिक उपाय हैं... 🔍 परिचय (Introduction)

अंतर्राष्ट्रीय विवादों का निपटान अंतरराष्ट्रीय कानून की एक मुख्य शाखा है। यह सुनिश्चित करता है कि राज्यों के बीच मतभेदों को युद्ध या संघर्ष के बिना सुलझाया जा सके। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2(3) में कहा गया है कि सभी सदस्य राष्ट्रों को अपने अंतर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान शांतिपूर्ण तरीकों से करना चाहिए।

📚 विवादों के प्रकार (Types of International Disputes)

  • कानूनी विवाद (Legal Disputes): जैसे सीमा विवाद, संधि की व्याख्या आदि
  • राजनीतिक विवाद (Political Disputes): जैसे शक्ति संघर्ष, राजनीतिक नियंत्रण

🕊️ शांतिपूर्ण समाधान की विधियाँ (Peaceful Means of Settlement)

  1. बातचीत (Negotiation): दोनों पक्ष आपसी संवाद से विवाद सुलझाते हैं।
  2. जांच (Inquiry): किसी विवाद की वस्तुनिष्ठ जांच कर समाधान खोजना।
  3. मध्यस्थता (Mediation): कोई तीसरा पक्ष (जैसे कोई राज्य या संस्था) दोनों पक्षों के बीच समाधान खोजने में सहायता करता है।
  4. सुलह (Conciliation): एक आयोग गठन कर रिपोर्ट दी जाती है जो दोनों पक्षों के लिए सलाह होती है।
  5. निर्णयवाद (Arbitration): एक तटस्थ ट्रिब्यूनल विवाद का फैसला करता है (बाध्यकारी होता है)।
  6. न्यायिक निपटान (Judicial Settlement): जैसे कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) द्वारा फैसला देना।
📌 Leading Case: Alabama Claims Arbitration (1872)

अमेरिका ने ब्रिटेन पर आरोप लगाया कि ब्रिटेन ने युद्ध के दौरान अलबामा जहाज के ज़रिए संघ विरोधियों को सहायता दी। यह मामला मध्यस्थता में गया और अमेरिका को मुआवज़ा मिला। यह पहला सफल इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन था।

📌 Leading Case: Corfu Channel Case (UK v. Albania) [1949]

ब्रिटिश जहाज अल्बानियाई जल में बारूदी सुरंग से टकराया। मामला ICJ गया। कोर्ट ने अल्बानिया को जानकारी देने में असफल रहने का दोषी ठहराया और ब्रिटेन को हर्जाना दिलाया।

📌 Leading Case: Island of Palmas Case (Netherlands v. USA, 1928)

यह एक आर्बिट्रेशन केस था जिसमें तय हुआ कि सॉवरेनटी की निरंतरता (effective occupation) अधिक महत्वपूर्ण है। जज मैक्स ह्यूबर ने ऐतिहासिक नियंत्रण को प्राथमिकता दी।

💥 बल के प्रयोग से समाधान (Forcible Means)

हालाँकि UN Charter बल प्रयोग को निषिद्ध करता है, फिर भी कुछ विवादों में सैन्य बल का प्रयोग हुआ है।

  • प्रतिरक्षा (Self-defence): UN चार्टर के अनुच्छेद 51 के अंतर्गत
  • सुरक्षा परिषद की स्वीकृति से सैन्य हस्तक्षेप (जैसे कोरिया युद्ध, 1991 में कुवैत में इराक के खिलाफ)

🌍 अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) की भूमिका

न्यायिक समाधान में ICJ की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह विधिक विवादों का समाधान करता है और सलाहकार मत भी देता है।

⚠️ समस्याएं और चुनौतियाँ (Challenges)

  • राज्यों की संप्रभुता – निर्णयों को मानने से इंकार
  • सुरक्षा परिषद में Veto power – राजनीतिक दबाव
  • लंबी प्रक्रिया और निष्कर्षों में देरी

📌 हालिया मुद्दा: Ukraine v. Russia (2022)

यूक्रेन ने रूस के खिलाफ सैन्य हस्तक्षेप के लिए ICJ में केस दायर किया। कोर्ट ने रूस को अंतरिम आदेश में सैन्य कार्रवाई रोकने को कहा।

🔚 निष्कर्ष (Conclusion)

अंतरराष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान ही विश्व शांति और स्थायित्व के लिए आदर्श मार्ग है। संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था, विशेषकर ICJ और मध्यस्थता प्रणाली, कानूनी और न्यायिक दृष्टिकोण से इसका मूल आधार हैं।

Lecture 8: World Trade Organization (WTO)

डब्ल्यूटीओ की भूमिका, उद्देश्य और सदस्य देशों के अधिकार व दायित्व।

विश्व व्यापार संगठन (WTO) एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है... 🔍 परिचय (Introduction)

WTO यानी World Trade Organization एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना 1 जनवरी 1995 को हुई थी। इसका उद्देश्य वैश्विक व्यापार को सुगम, पारदर्शी और न्यायसंगत बनाना है। यह GATT (General Agreement on Tariffs and Trade) का उत्तराधिकारी है, जिसे 1947 में बनाया गया था।

📌 उद्देश्य (Objectives of WTO)

  • व्यापार में भेदभाव को समाप्त करना
  • टैरिफ और अन्य प्रतिबंधों को घटाना
  • नियम आधारित वैश्विक व्यापार प्रणाली को प्रोत्साहन देना
  • विकासशील देशों को विशेष सहायता प्रदान करना

🏛️ WTO की संरचना (Structure of WTO)

  • Ministerial Conference: सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय जो प्रत्येक 2 वर्षों में बैठक करता है।
  • General Council: दैनिक कार्यों की देखरेख करता है। यह दो भूमिकाएं निभाता है – विवाद समाधान निकाय और व्यापार नीति समीक्षा निकाय।
  • Dispute Settlement Body (DSB): विवादों को सुलझाता है।
  • Trade Policy Review Body: सदस्य देशों की व्यापार नीतियों की समीक्षा करता है।

🌍 सदस्यता (Membership)

WTO के वर्तमान में 164 सदस्य हैं (2024 तक)। भारत इसका संस्थापक सदस्य है। सदस्य देशों को WTO के नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है।

⚖️ विवाद समाधान तंत्र (Dispute Settlement Mechanism)

WTO का Dispute Settlement Understanding (DSU) सदस्य देशों के बीच व्यापारिक विवादों के समाधान का एक संरचित तंत्र है। इसमें Panel और Appellate Body दोनों शामिल होते हैं। इसके निर्णय बाध्यकारी होते हैं।

📌 Leading Case: India – Quantitative Restrictions Case (1997)

अमेरिका ने भारत के खिलाफ शिकायत दर्ज की कि भारत ने कृषि, वस्त्र और अन्य उत्पादों पर आयात प्रतिबंध लगा रखे हैं। WTO Dispute Panel ने भारत के खिलाफ निर्णय दिया, और भारत को अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ा।

📌 Leading Case: Shrimp-Turtle Case (US vs. India, Malaysia, etc.)

अमेरिका ने कुछ देशों से झींगा मछलियों के आयात पर यह कहकर प्रतिबंध लगाया कि उनकी पकड़ पर्यावरण की दृष्टि से नुकसानदायक है। WTO Appellate Body ने निर्णय दिया कि यह प्रतिबंध WTO नियमों के विरुद्ध है।

📚 भारत और WTO

  • भारत विकासशील देशों के हितों की रक्षा में अग्रणी भूमिका निभाता है।
  • भारत ने TRIPS (बौद्धिक संपदा अधिकार) और AoA (Agreement on Agriculture) जैसे विषयों पर कई बार आपत्ति जताई।
  • डोहा विकास एजेंडा में भारत ने किसानों और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए खाद्य सब्सिडी की मांग रखी।

📌 वर्तमान मुद्दे (Current Issues)

  • Appellate Body का ठप हो जाना (अमेरिका द्वारा जज नियुक्ति रोकना)
  • ई-कॉमर्स, डिजिटल ट्रेड के लिए नियमों की मांग
  • विकासशील देशों को 'विशेष और विभेदक उपचार' (S&D Treatment) का मुद्दा

🔍 WTO और IPR (TRIPS Agreement)

WTO के तहत बौद्धिक संपदा से संबंधित TRIPS समझौता भी आता है। यह पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क आदि के मानकों को वैश्विक स्तर पर एकरूपता देता है।

🔚 निष्कर्ष (Conclusion)

WTO एकमात्र बहुपक्षीय संस्था है जो वैश्विक व्यापार को नियमित करने का कार्य करती है। हालाँकि, इसमें कई चुनौतियाँ हैं जैसे विवाद समाधान प्रक्रिया में गतिरोध, विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद। भारत को अपने हितों की रक्षा करते हुए इसमें सक्रिय भागीदारी करनी चाहिए।

Lecture 9: International Humanitarian Law (IHL) – Conventions and Protocols

युद्ध के समय लागू होने वाले मानवीय कानून, जिनेवा संधियाँ और प्रोटोकॉल।

अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून युद्धकाल में मानवाधिकारों की रक्षा करता है... 🔍 परिचय (Introduction)

अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून (International Humanitarian Law - IHL) उन नियमों का समूह है जो सशस्त्र संघर्षों के समय मानवीय पीड़ा को कम करने का प्रयास करता है। इसका मुख्य उद्देश्य संघर्ष के पीड़ितों की रक्षा करना और युद्ध में उपयोग किए जाने वाले हथियारों और विधियों को सीमित करना है।

📘 प्रमुख सिद्धांत (Key Principles)

  • मनुष्यता (Humanity): पीड़ितों की रक्षा और राहत सुनिश्चित करना।
  • भेदभाव (Distinction): सैन्य और नागरिक लक्ष्यों के बीच अंतर।
  • अनुपातिकता (Proportionality): सैन्य लाभ की तुलना में अत्यधिक क्षति न हो।
  • अनिवार्यता (Necessity): केवल सैन्य उद्देश्य के लिए बल का प्रयोग।

📜 जेनेवा कन्वेंशन (Geneva Conventions)

जेनेवा कन्वेंशन IHL का मुख्य आधार है। यह चार प्रमुख कन्वेंशन पर आधारित है:

  1. Convention I (1949): घायल और बीमार सैनिकों की रक्षा।
  2. Convention II: समुद्री संघर्षों में घायल, बीमार और डूबते सैनिकों की रक्षा।
  3. Convention III: युद्ध बंदियों के साथ व्यवहार।
  4. Convention IV: नागरिकों की सुरक्षा, विशेषकर कब्जे वाले क्षेत्रों में।

चारों कन्वेंशन को 1949 में अपनाया गया था और ये लगभग सभी देशों द्वारा अनुमोदित हैं।

📄 अतिरिक्त प्रोटोकॉल (Additional Protocols)

  • प्रोटोकॉल I (1977): अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र संघर्षों के लिए नियम।
  • प्रोटोकॉल II (1977): गैर-अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र संघर्षों के लिए।
  • प्रोटोकॉल III (2005): नए "रेड क्रिस्टल" प्रतीक का समावेश।

🛡️ भारत और IHL

  • भारत ने चारों जेनेवा कन्वेंशन को 1960 में अनुमोदित किया।
  • भारत ने प्रोटोकॉल I और II पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं किए हैं, मुख्य रूप से आतंरिक सुरक्षा कारणों से।
  • भारत का मानना है कि गैर-राज्य तत्वों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिलनी चाहिए।

⚖️ प्रमुख न्यायिक निर्णय (Leading Cases)

📌 Nicaragua v. United States (ICJ, 1986)

अमेरिका पर निकारागुआ में विद्रोहियों को समर्थन देने का आरोप था। ICJ ने पाया कि अमेरिका ने IHL का उल्लंघन किया है और इसके कृत्य अंतरराष्ट्रीय कानून के विपरीत हैं।

📌 Prosecutor v. Tadić (ICTY, 1997)

यह मामला बोस्निया संघर्ष से संबंधित था। अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायाधिकरण ने माना कि IHL के नियम गैर-अंतरराष्ट्रीय संघर्षों पर भी लागू होते हैं।

📌 Israel Wall Advisory Opinion (ICJ, 2004)

ICJ ने सलाह दी कि इज़राइल द्वारा वेस्ट बैंक में बनाई गई सुरक्षा दीवार IHL और मानव अधिकार कानूनों का उल्लंघन करती है।

📌 संबंधित अन्य संधियाँ (Other IHL Conventions)

  • 1868 – St. Petersburg Declaration (विस्फोटक हथियारों पर रोक)
  • 1899, 1907 – हेग कन्वेंशन (युद्ध के नियमों पर)
  • 1925 – जिनेवा गैस प्रोटोकॉल (रासायनिक हथियारों पर प्रतिबंध)
  • 1993 – Chemical Weapons Convention (CWC)
  • 1997 – Ottawa Treaty (एंटी-पर्सनल माइन पर प्रतिबंध)

🧩 चुनौतियाँ (Challenges to IHL)

  • नए प्रकार के युद्ध (जैसे साइबर युद्ध, ड्रोन हमले)
  • गैर-राज्य तत्वों की भूमिका
  • कानूनों का अनुपालन और प्रवर्तन तंत्र की कमी

📌 निष्कर्ष (Conclusion)

IHL युद्ध और संघर्ष के समय मानवीय मूल्यों की रक्षा करता है। हालांकि इसमें कई चुनौतियाँ हैं, फिर भी यह अंतरराष्ट्रीय शांति और मानवता के लिए अत्यंत आवश्यक कानून है। भारत को इसे लेकर अपनी रणनीति को समय-समय पर अद्यतन करना चाहिए।

Lecture 10: Implementation of IHL – Challenges

IHL के क्रियान्वयन में आने वाली कानूनी, व्यावहारिक और राजनीतिक चुनौतियाँ।

IHL को लागू करने में अनेक बाधाएँ आती हैं... 🔍 परिचय (Introduction)

International Humanitarian Law (IHL) के सफल कार्यान्वयन के बिना इसकी उपयोगिता केवल सैद्धांतिक ही रह जाती है। IHL का उद्देश्य है सशस्त्र संघर्षों में मानवीय मूल्यों की रक्षा करना, लेकिन इसका क्रियान्वयन कई कारणों से चुनौतीपूर्ण है।

🚫 IHL कार्यान्वयन में प्रमुख चुनौतियाँ (Key Challenges in Implementation)

1. गैर-राज्य सशस्त्र समूहों की भागीदारी

आज के समय में अधिकांश संघर्ष गैर-राज्य तत्वों द्वारा लड़े जाते हैं जो जेनेवा कन्वेंशन के पक्षकार नहीं होते। इसलिए IHL के नियम उन पर बाध्यकारी नहीं माने जाते, जिससे कार्यान्वयन बाधित होता है।

2. प्रवर्तन तंत्र (Enforcement Mechanism) की कमी

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर IHL के उल्लंघन पर कठोर दंड का अभाव है। उदाहरणतः, इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) के पास सीमित अधिकार और क्षेत्राधिकार है, और कई बड़े देश इसके सदस्य भी नहीं हैं।

3. आधुनिक युद्ध की जटिलता

साइबर युद्ध, ड्रोन हमले, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित हथियारों के प्रयोग ने IHL को नए संकट में डाल दिया है क्योंकि पुराने कानून इन नए युद्ध तरीकों को कवर नहीं करते।

4. मानवीय सहायता की पहुँच में बाधा

युद्ध क्षेत्रों में रेड क्रॉस जैसे मानवीय संगठनों को पीड़ितों तक पहुँचने से रोका जाता है, जिससे IHL का अनुपालन नहीं हो पाता।

5. राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी

कई राष्ट्र IHL के उल्लंघन को राजनीतिक कारणों से नजरअंदाज कर देते हैं या अपने राष्ट्रीय हितों के कारण कार्यवाही नहीं करते।

⚖️ प्रमुख न्यायिक दृष्टिकोण (Judicial Interpretations and Case Law)

📌 Prosecutor v. Jean-Paul Akayesu (ICTR, 1998)

यह मामला रवांडा नरसंहार से संबंधित था, जहाँ पहली बार यौन हिंसा को IHL के उल्लंघन के रूप में माना गया। यह एक मिसाल था कि IHL के तहत व्यक्तिगत दायित्व तय किया जा सकता है।

📌 Tadić Case (ICTY, 1997)

अदालत ने गैर-अंतरराष्ट्रीय संघर्षों में IHL के सिद्धांतों की व्याख्या की और व्यक्तिगत दायित्व की अवधारणा को स्वीकार किया।

📌 IHL के कार्यान्वयन के उपाय (Steps for Better Implementation)

  • राज्यों द्वारा राष्ट्रीय विधानों में IHL का समावेश
  • सैनिकों और नागरिकों के लिए IHL पर प्रशिक्षण
  • संधियों और कन्वेंशनों के प्रचार और प्रभावी निगरानी
  • ICC और अन्य अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरणों को सशक्त बनाना
  • मानवाधिकार संगठनों को अधिक अधिकार प्रदान करना

🧩 भारत की भूमिका

  • भारत ने चारों जेनेवा कन्वेंशन को अनुमोदित किया है।
  • भारत अपने सैनिकों को IHL प्रशिक्षण प्रदान करता है।
  • भारत ने प्रोटोकॉल I और II पर हस्ताक्षर नहीं किया है, मुख्यतः सुरक्षा कारणों से।

📌 निष्कर्ष (Conclusion)

IHL का प्रभावी कार्यान्वयन विश्व शांति, मानवीय मूल्यों और पीड़ितों की रक्षा के लिए अनिवार्य है। हालांकि चुनौतियाँ गंभीर हैं, फिर भी वैश्विक सहयोग, पारदर्शिता और जवाबदेही के माध्यम से इन्हें दूर किया जा सकता है।

Post a Comment

0 Comments