Lecture 1: संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों की संरचना और महत्
🔷 परिचय:
संविधान की प्रस्तावना (Preamble) भारतीय संविधान की आत्मा मानी जाती है। यह संविधान की उद्देशिका है, जो न केवल हमारे संविधान की मूल भावना को दर्शाती है, बल्कि इसमें राष्ट्र की आकांक्षाओं, मूल्यों और लक्ष्यों की अभिव्यक्ति भी होती है।
🔷 प्रस्तावना का पाठ:
“हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए...” (पूरा पाठ यहाँ जोड़ा गया है)
🔷 प्रस्तावना के मूल तत्व:
- प्रभुत्व-संपन्न (Sovereign)
- समाजवादी (Socialist)
- पंथनिरपेक्ष (Secular)
- लोकतंत्रात्मक (Democratic)
- गणराज्य (Republic)
🔷 प्रमुख उद्देश्य:
- न्याय: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक
- स्वतंत्रता: विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना
- समानता: अवसर और प्रतिष्ठा की समानता
- बंधुता: व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्रीय एकता व अखंडता
🔷 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत “Objectives Resolution” से प्रेरित। अमेरिकी संविधान से भी प्रस्तावना प्रेरित है।
🔷 संशोधन:
42वें संशोधन (1976) द्वारा "समाजवादी", "पंथनिरपेक्ष" और "राष्ट्रीय एकता और अखंडता" जैसे शब्द जोड़े गए।
🔷 न्यायिक व्याख्याएँ:
- केसवानंद भारती केस (1973): प्रस्तावना संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।
- एस.आर. बोम्मई केस (1994): धर्मनिरपेक्षता को संविधान की मूल संरचना बताया।
- बेरुबारी केस (1960): शुरुआत में प्रस्तावना को संविधान का हिस्सा नहीं माना गया था।
🔷 परीक्षा उपयोगी बिंदु:
तत्व | अर्थ | संशोधन |
---|---|---|
समाजवादी | आर्थिक समानता | 42वां संशोधन |
पंथनिरपेक्ष | धर्म की स्वतंत्रता | 42वां संशोधन |
न्याय | सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक | मूल प्रस्तावना |
🔷 आलोचना:
प्रस्तावना को अस्पष्ट व आदर्शवादी कहा गया है, किंतु यह संविधान की मूल भावना को प्रतिबिंबित करती है।
🔷 निष्कर्ष:
प्रस्तावना संविधान की आत्मा है, जो राष्ट्र के आदर्शों और लक्ष्यों को प्रतिबिंबित करती है। यह संविधान के अनुच्छेदों को व्याख्यायित करने में भी सहायक है और वर्तमान समय में भी अत्यंत प्रासंगिक है।
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