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Indian Partnership Act, 1932 – Complete Notes (10 Units) with Case Laws | UGC NET, Judiciary, LLB

📘 Indian Partnership Act, 1932 – यूनिट वाइज संरचना (Click to Read Details)

📘 UNIT 1: Introduction & Definitions – Indian Partnership Act, 1932

🔰 प्रस्तावना | Introduction:
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) को वाणिज्यिक लेनदेन में साझेदारी के लिए बनाया गया था। यह अधिनियम 1 अक्टूबर 1932 से प्रभावी हुआ। इसे भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 से अलग किया गया और एक विशेष अधिनियम के रूप में स्थापित किया गया।

📜 Section 1 – Short Title, Extent & Commencement:

  • Short Title: This Act may be called the Indian Partnership Act, 1932.
  • Extent: It extends to the whole of India except Jammu and Kashmir (now applicable PAN India post Article 370 abrogation).
  • Commencement: Came into force on 1st October 1932.

📘 Section 2 – Definitions:

इस धारा में कुछ प्रमुख परिभाषाओं को स्पष्ट किया गया है:

  • "Act": The Indian Partnership Act, 1932.
  • "Business": Includes every trade, occupation and profession.
  • "Prescribed": Prescribed by rules made under the Act.
  • "Firm", "Firm-name": Partnership entity and its name.

📌 Section 3 – Application of Provisions of Indian Contract Act:

जहाँ पर इस अधिनियम में प्रावधान नहीं हैं, वहाँ भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के सामान्य सिद्धांत लागू होते हैं।

📘 Section 4 – Definition of "Partnership":

“Partnership is the relation between persons who have agreed to share profits of a business carried on by all or any of them acting for all.”

👉 Partnership की चार प्रमुख विशेषताएँ:

  1. ✔️ दो या दो से अधिक व्यक्ति
  2. ✔️ आपसी सहमति से
  3. ✔️ लाभ साझा करना
  4. ✔️ पारस्परिक एजेंसी – हर साझेदार दूसरों की ओर से कार्य कर सकता है

👥 Firm vs Partnership:

  • Partnership: संबंध (relationship)
  • Firm: साझेदारों का सामूहिक नाम
  • Firm Name: व्यवसाय का संचालन नाम

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Cox v. Hickman (1860): साझेदारी की पहचान केवल लाभ साझा करने से नहीं बल्कि "Mutual Agency" से होती है।
  • 📌 Dulichand Laxminarayan v. CIT (1956): साझेदारी केवल व्यक्तियों के बीच हो सकती है, Hindu Undivided Family (HUF) नहीं।

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

भागीदारी एक संविदात्मक संबंध है जो लाभ साझा करने और पारस्परिक प्रतिनिधित्व (mutual agency) पर आधारित होता है। परीक्षा में Section 4 और "Mutual Agency" की अवधारणा से प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं।

📘 UNIT 2: Nature & Essential Elements of Partnership (धारा 4–8)

🔰 प्रस्तावना | Introduction:
इस यूनिट में साझेदारी (Partnership) के मूलभूत तत्त्वों, साझेदारों के बीच के संबंधों तथा साझेदारी के निर्माण की आवश्यक शर्तों को समझाया गया है। ये तत्व साझेदारी की वैधता निर्धारित करते हैं।

📌 Section 4 – Definition Revisited:

“Partnership is the relation between persons who have agreed to share profits of a business carried on by all or any of them acting for all.”

👉 Partnership की Nature को परिभाषित करने वाले तत्व:

  1. ✔️ Agreement between persons (दो या अधिक व्यक्ति)
  2. ✔️ Sharing of profits (लाभ की साझेदारी)
  3. ✔️ Business (व्यवसाय होना चाहिए)
  4. ✔️ Mutual agency (पारस्परिक प्रतिनिधित्व – हर साझेदार दूसरों की ओर से कार्य कर सकता है)

📌 Section 5 – Partnership arises from Contract not Status:

साझेदारी किसी स्थिति (Status) से उत्पन्न नहीं होती जैसे HUF में होता है। यह केवल अनुबंध (Contract) से ही बनती है।

🧠 उदाहरण:

Hindu Undivided Family का सदस्य साझेदार नहीं होता जब तक कि वह अनुबंध द्वारा ऐसा न बनाए जाए।

📌 Section 6 – Mode of Determining Existence of Partnership:

सिर्फ लाभ साझा करना साझेदारी नहीं है। वास्तविक संबंध Mutual Agency से पहचाना जाता है।

✅ Relevant Test:

  • ✔️ Intention to be partners
  • ✔️ Joint business activity
  • ✔️ Mutual control over decisions
  • ✔️ Authority to represent each other

📌 Section 7 – Partnership at Will:

जब साझेदारी समाप्त करने की कोई निश्चित अवधि या शर्त तय नहीं की जाती, तो वह "Partnership at Will" कहलाती है।

📌 Section 8 – Particular Partnership:

विशिष्ट उद्देश्य या कार्य (जैसे एक प्रोजेक्ट, एक ठेका) के लिए बनाई गई साझेदारी। कार्य पूर्ण होते ही समाप्त हो जाती है।

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Cox v. Hickman (1860): Profit sharing is not conclusive, mutual agency is key.
  • 📌 Mollow March & Co. v. The Court of Wards (1872): Partnership is based on agreement, not co-ownership.
  • 📌 Dulichand Laxminarayan v. CIT (1956): HUF is not a partnership unless expressly contracted.

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

Partnership की वैधता के लिए आवश्यक है कि सभी तत्व – अनुबंध, लाभ की साझेदारी, व्यवसाय, और पारस्परिक एजेंसी – मौजूद हों। विशेष प्रकार की साझेदारियाँ जैसे "At Will" और "Particular" परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं।

📘 UNIT 3: Types of Partners & Types of Partnership (धारा 6–12)

🔰 प्रस्तावना | Introduction:
साझेदारी की प्रकृति और उसमें भाग लेने वाले व्यक्तियों की भूमिकाएँ विविध होती हैं। यह यूनिट विभिन्न प्रकार के साझेदारों (partners) और साझेदारी (partnership) की श्रेणियों को स्पष्ट करती है।

📌 प्रमुख प्रकार की साझेदारी:

  • 1. Partnership at Will (Sec 7): जिसमें समाप्ति की कोई निश्चित अवधि या शर्त नहीं होती
  • 2. Particular Partnership (Sec 8): विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई साझेदारी

📌 Section 6 (Revisited) – Test of Partnership:

साझेदारी का अस्तित्व केवल लाभ साझा करने से नहीं होता, बल्कि Mutual Agency सबसे निर्णायक तत्व होता है।

👥 प्रकार के साझेदार (Types of Partners):

  • 1. Active Partner (सक्रिय साझेदार): व्यवसाय का संचालन करता है, अन्य साझेदारों को बाध्य कर सकता है
  • 2. Sleeping or Dormant Partner: निवेश करता है पर व्यवसाय में सक्रिय नहीं होता
  • 3. Nominal Partner: नाम का उपयोग होता है, पर व्यवसाय में भाग नहीं लेता
  • 4. Partner in Profits Only: केवल लाभ में हिस्सा होता है, नुकसान में नहीं
  • 5. Sub-Partner: एक साझेदार अपने लाभ को किसी अन्य के साथ बाँटता है – साझेदारी से बाहर व्यक्ति
  • 6. Partner by Estoppel or Holding Out: स्वयं को साझेदार के रूप में प्रस्तुत करता है, और अन्य लोग उस पर विश्वास करते हैं

📌 Section 9 – General Duties of Partners:

सभी साझेदारों को एक-दूसरे के प्रति ईमानदारी और सच्चाई से कार्य करना चाहिए और साझेदारी के सामान्य हित में काम करना चाहिए।

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Cox v. Hickman (1860): Mutual agency defines partnership, not just profit sharing
  • 📌 Snow v. Milford (1868): Nominal partner liable to outsiders even if not involved
  • 📌 Lake v. Duke of Argyll (1847): Sub-partner not liable to third parties

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

साझेदारी की प्रकृति समझने के लिए यह आवश्यक है कि छात्र हर प्रकार के साझेदार की विशेषताओं और उनके उत्तरदायित्वों को भली-भाँति समझें। "Partner by Estoppel" से जुड़े केस लॉ परीक्षा में बार-बार पूछे जाते हैं।

📘 UNIT 4: Rights and Duties of Partners (धारा 9–17)

🔰 प्रस्तावना | Introduction:
साझेदारी व्यवसाय में प्रत्येक साझेदार के कुछ कानूनी अधिकार और नैतिक/कानूनी कर्तव्य होते हैं, जिनका उद्देश्य साझेदारी को ईमानदारी, पारदर्शिता और विश्वास के साथ संचालित करना होता है।

📌 Section 9 – General Duties of Partners:

  • ✔️ ईमानदारी (Good faith)
  • ✔️ साझेदारी के प्रति वफादारी
  • ✔️ व्यक्तिगत लाभ नहीं लेना
  • ✔️ आपसी विश्वास और पारदर्शिता बनाए रखना

📌 Section 10 – Duty to Indemnify:

कोई साझेदार यदि साझेदारी को हानि पहुँचाता है (willfully or negligently), तो उसे हर्जाना देना होगा।

📘 अधिकार (Rights of Partners):

  • Sec 12(a): प्रत्येक साझेदार व्यवसाय में भाग लेने का अधिकारी होता है
  • Sec 12(b): निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाएँगे
  • Sec 12(c): साझेदारों को व्यावसायिक जानकारी तक पहुँच प्राप्त होगी
  • Sec 13(a): साझेदार को लाभ में बराबर हिस्सा मिलेगा, जब तक अन्यथा न हो
  • Sec 13(b): साझेदार को साझेदारी के कामों के लिए क्षतिपूर्ति का अधिकार है

📘 कर्तव्य (Duties of Partners):

  • ✔️ साझेदारी को हानि से बचाना (Sec 10)
  • ✔️ साझेदारी का हित सर्वोपरि रखना
  • ✔️ साझेदारों की अनुमति के बिना कार्य न करना (Sec 12(e))
  • ✔️ निजी लेन-देन में साझेदारी का नाम उपयोग न करना

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Bentley v. Craven (1853): साझेदार द्वारा व्यक्तिगत लाभ उठाने पर लाभ लौटाने का आदेश
  • 📌 Blisset v. Daniel (1853): साझेदारों के हितों की उपेक्षा करने पर साझेदार को हटाया गया
  • 📌 Cox v. Hickman (1860): साझेदारों की संयुक्त जिम्मेदारी तभी जब कार्य पारस्परिक हो

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

प्रत्येक साझेदार साझेदारी का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए उस पर विश्वास का विशेष उत्तरदायित्व होता है। कर्तव्यों का उल्लंघन करने वाले साझेदार से हानि की भरपाई ली जा सकती है। ये प्रावधान व्यवसाय में नैतिकता और नियंत्रण बनाए रखते हैं।

📘 UNIT 5: Incoming & Outgoing Partners (धारा 31–38)

🔰 प्रस्तावना | Introduction:
इस यूनिट में नए साझेदार के प्रवेश और पुराने साझेदार की साझेदारी से विदाई की प्रक्रिया, अधिकार, दायित्व तथा उत्तरदायित्व को स्पष्ट किया गया है। यह विशेष रूप से साझेदारी की निरंतरता के लिए महत्वपूर्ण है।

📌 Section 31 – Admission of a New Partner:

  • ✔️ कोई भी नया साझेदार सभी मौजूदा साझेदारों की सहमति के बिना नहीं लिया जा सकता।
  • ✔️ नया साझेदार केवल आवर्ती उत्तरदायित्व का वहन करता है – पुराने ऋणों के लिए तभी उत्तरदायी होगा यदि वह सहमत हो।

📌 Section 32 – Retirement of a Partner:

  • ✔️ तीन तरीके से रिटायरमेंट संभव है:
    • ➡️ आपसी सहमति
    • ➡️ साझेदारी समझौते के अनुसार
    • ➡️ नोटिस देकर यदि Partnership at Will है
  • ✔️ रिटायरिंग साझेदार तब तक तीसरे पक्ष के लिए उत्तरदायी रहेगा जब तक उचित Public Notice न दिया जाए।

📌 Section 33 – Expulsion of a Partner:

  • ✔️ साझेदार को साझेदारी से निकालने का अधिकार तभी जब:
    • ➡️ समझौते में प्रावधान हो
    • ➡️ उचित कारण और Good Faith में कार्यवाही हो

📌 Section 34 – Insolvency of a Partner:

यदि कोई साझेदार दिवालिया हो जाता है, तो वह स्वचालित रूप से साझेदारी से बाहर हो जाता है, लेकिन पहले किए गए कार्यों के लिए उत्तरदायी रहेगा।

📌 Section 35 – Liability of Estate of Deceased Partner:

मृत साझेदार की संपत्ति केवल उसके मृत्यु से पहले किए गए कार्यों के लिए उत्तरदायी होती है, बशर्ते कि वह फर्म जारी न रही हो।

📌 Section 36 – Right of Outgoing Partner to Carry on Competing Business:

  • ✔️ रिटायर पार्टनर अपनी अलग फर्म खोल सकता है
  • ✔️ परंतु वह पुरानी फर्म का नाम, ग्राहक सूची या गोपनीय जानकारी का दुरुपयोग नहीं कर सकता

📌 Section 37 – Right of Outgoing Partner to Share Subsequent Profits:

यदि रिटायर साझेदार का कैपिटल फर्म में बना हुआ है, और शेष साझेदार उसका उपयोग करते हैं, तो उसे लाभ में हिस्सेदारी या 6% वार्षिक ब्याज का अधिकार होता है।

📌 Section 38 – Revocation of Continuing Guarantee:

Continuing Guarantee जो एक साझेदार द्वारा दी गई हो, उसकी जिम्मेदारी रिटायरमेंट के साथ समाप्त हो जाती है यदि Public Notice दिया गया हो।

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Ellis v. Colman (1883): New partner liable for debts only if he agrees
  • 📌 Garner v. Murray (1904): Insolvency पर फर्म के दायित्वों का विभाजन
  • 📌 Bentley v. Craven (1853): Retired partner entitled to share if capital is used

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

साझेदारों का प्रवेश और बहिर्गमन साझेदारी व्यवसाय के जीवनचक्र का हिस्सा है। लेकिन यह उचित कानूनी प्रक्रिया, सहमति और नोटिस के साथ होना चाहिए। यह यूनिट परीक्षा में केस लॉ आधारित प्रश्नों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

📘 UNIT 6: Minor as a Partner (धारा 30)

🔰 प्रस्तावना | Introduction:
भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के अनुसार एक नाबालिग (minor) वैध अनुबंध नहीं कर सकता। हालांकि, भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 30 विशेष प्रावधान करती है जिससे एक नाबालिग को साझेदारी के लाभों में शामिल किया जा सकता है — लेकिन सीमित अधिकारों के साथ।

📌 Who is a Minor?

जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है (या 21 वर्ष यदि अभिभावक नियुक्त है), वह Minor कहलाता है और कानूनी रूप से अनुबंध करने में अयोग्य होता है।

📘 Section 30 – Minor Partner के प्रावधान:

✔️ Minor को Partner कैसे बनाया जा सकता है?

  • ➡️ Minor को केवल लाभ में साझेदार बनाया जा सकता है
  • ➡️ उसे सभी साझेदारों की सहमति से शामिल किया जाना चाहिए
  • ➡️ Minor को व्यवसाय चलाने का अधिकार नहीं होता
  • ➡️ उसकी उत्तरदायित्व केवल उसके लाभों तक सीमित होती है

🛡️ Protection to Minor:

  • 🔸 वह फर्म की देनदारियों (liabilities) के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं है
  • 🔸 उसे फर्म के खाते, बही-खाते देखने का अधिकार होता है

📅 Upon Attaining Majority:

  • ➡️ 6 महीनों के भीतर Minor को यह चुनना होता है कि वह Partner बनना चाहता है या नहीं
  • ➡️ यदि कोई बयान नहीं देता, तो माना जाएगा कि उसने Partner बनना स्वीकार कर लिया है
  • ➡️ यदि स्वीकार करता है तो उसे पूर्व अवधि की देनदारियों के लिए भी उत्तरदायी माना जाएगा

📘 Legal Effects of Options After Majority:

  • ✔️ यदि वह Partner बनना स्वीकार करता है — ➤ फर्म का पूर्ण उत्तरदायी सदस्य
  • ✔️ यदि इंकार करता है — ➤ उसका नाम फर्म से हटा दिया जाएगा और देनदारियाँ नहीं रहेंगी

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 CIT v. Dwarkadas (1971): Minor cannot be a full partner, only entitled to benefits
  • 📌 S.C. Mandal v. CIT (1955): Minor is not liable for firm’s losses
  • 📌 Raghunandan v. Harmohan (1972): After attaining majority, liability begins from the date of becoming major

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

Minor को साझेदारी में केवल लाभ का हिस्सेदार बनाया जा सकता है। Majority प्राप्त होने के बाद उसे 6 महीने में निर्णय लेना आवश्यक है। यह प्रावधान साझेदारी अधिनियम को संविदा अधिनियम से विशेष बनाता है और परीक्षा में इससे संबंधित केस आधारित प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं।

📘 UNIT 7: Dissolution of Firm (धारा 39–47)

🔰 प्रस्तावना | Introduction:
Dissolution का अर्थ है साझेदारी फर्म का विधिक रूप से अंत। जब साझेदारी का उद्देश्य समाप्त हो जाता है या साझेदारों के बीच विश्वास भंग हो जाता है, तो Dissolution की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस यूनिट में फर्म को समाप्त करने के आधार, विधियाँ और परिणामों को समझाया गया है।

📘 Section 39 – Dissolution of a Firm:

जब साझेदारों के बीच का संबंध समाप्त हो जाता है और फर्म का व्यापार पूरी तरह से बंद हो जाता है, तो यह Dissolution कहलाता है।

📌 Section 40 – By Agreement:

सभी साझेदार आपसी सहमति से फर्म को समाप्त कर सकते हैं।

📌 Section 41 – Compulsory Dissolution:

  • ✔️ सभी साझेदारों का दिवालिया हो जाना
  • ✔️ सभी साझेदारों में से कोई अवैध कार्य में लिप्त हो
  • ✔️ फर्म का व्यापार कानूनन प्रतिबंधित हो जाए

📌 Section 42 – Dissolution by Operation of Law:

  • ✔️ निश्चित अवधि पूरी हो जाना
  • ✔️ किसी विशेष कार्य का उद्देश्य पूरा हो जाना
  • ✔️ किसी साझेदार की मृत्यु
  • ✔️ दिवालियापन

📌 Section 43 – Dissolution by Notice:

यदि फर्म "Partnership at Will" है, तो कोई भी साझेदार लिखित नोटिस द्वारा फर्म को समाप्त कर सकता है।

📌 Section 44 – Dissolution by Court:

न्यायालय निम्नलिखित आधारों पर फर्म को भंग कर सकता है:

  • ✔️ किसी साझेदार की मानसिक अक्षमता
  • ✔️ साझेदारों के बीच लगातार विवाद
  • ✔️ साझेदार अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन करता हो
  • ✔️ फर्म को घाटा हो रहा हो
  • ✔️ न्यायिक रूप से यह उचित हो

📘 Section 45 – Liability for Acts after Dissolution:

जब तक उचित Public Notice न दिया जाए, साझेदार पूर्व कार्यों के लिए उत्तरदायी रहेंगे।

📘 Section 46 – Right to Have Business Wound Up:

सभी साझेदार फर्म की परिसमापन (winding up) के लिए अधिकार रखते हैं और लाभ/नुकसान के अनुसार बँटवारे का हकदार होते हैं।

📘 Section 47 – Continuing Authority of Partners for Winding Up:

भंग होने के बाद भी साझेदारों की सीमित शक्ति जारी रहती है — जैसे बकाया वसूलना, देनदारियों का भुगतान करना आदि।

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Garner v. Murray (1904): Insolvent partner की पूंजी का वितरण कैसे हो, यह तय किया गया
  • 📌 Suresh Kumar v. Amitabh Sinha (2004): न्यायालय द्वारा Dissolution का आधार उचित ठहराया गया
  • 📌 Re Yenidje Tobacco Co. Ltd. (1916): साझेदारों के बीच विश्वास का ह्रास होने पर फर्म को भंग किया गया

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

Dissolution साझेदारी का अंतिम चरण है। इसके विभिन्न प्रकारों, नोटिस, न्यायालयीय आदेश एवं जिम्मेदारियों को समझना महत्वपूर्ण है। यह विषय परीक्षा में केस आधारित एवं धारावार प्रश्नों के रूप में पूछा जाता है।

📘 UNIT 8: Registration of Firm (धारा 56–71)

🔰 प्रस्तावना | Introduction:
Registration का अर्थ है फर्म को विधिक पहचान प्रदान करना। यद्यपि भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 के तहत फर्म का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, लेकिन इसका पंजीकरण कराना कई कानूनी लाभ देता है। इस यूनिट में पंजीकरण की प्रक्रिया, आवश्यक शर्तें और उसका प्रभाव विस्तार से समझाया गया है।

📘 Section 56 – Power to Make Rules:

राज्य सरकार को पंजीकरण की प्रक्रिया से संबंधित नियम बनाने का अधिकार है।

📌 Section 57 – Appointment of Registrar:

राज्य सरकार फर्मों के पंजीकरण के लिए रजिस्ट्रार नियुक्त करती है।

📌 Section 58 – Application for Registration:

  • ✔️ Application फर्म के किसी साझेदार द्वारा Registrar को दी जाती है
  • ✔️ इसमें निम्नलिखित जानकारी होनी चाहिए:
    • ➡️ फर्म का नाम
    • ➡️ व्यवसाय का स्थान
    • ➡️ साझेदारों के नाम और पता
    • ➡️ फर्म की आरंभ तिथि
  • ✔️ सभी साझेदारों द्वारा हस्ताक्षर आवश्यक है

📌 Section 59 – Registration Entry in Register of Firms:

Registrar दस्तावेजों की जांच कर रजिस्ट्रेशन प्रमाणपत्र जारी करता है और फर्म का नाम Register of Firms में दर्ज करता है।

📘 Section 60–71: Post-Registration Provisions

  • Sec 60: Subsequent changes (name, place, etc.) को सूचित करना आवश्यक है
  • Sec 61: Opening of additional place of business must be reported
  • Sec 62–65: Admission, Retirement, Death, Change of Constitution को भी Registrar को सूचित करना चाहिए
  • Sec 66–67: Registrar द्वारा index और register maintain किया जाता है
  • Sec 68–71: Certified copies, inspection और corrections से संबंधित प्रावधान

📌 प्रक्रिया सारांश | Process Summary:

  1. 📄 Form भरें – सभी आवश्यक जानकारी के साथ
  2. ✍ सभी साझेदारों के हस्ताक्षर
  3. 🗂️ दस्तावेज़ Registrar को जमा करें
  4. 📋 Entry in Register of Firms
  5. 📜 Registration Certificate जारी

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Firm v. Registrar (AIR 1953): Registrar को आवेदन अस्वीकार करने का अधिकार नहीं जब तक नियम पूरे हों
  • 📌 CIT v. Bagyalakshmi & Co. (1965): केवल registration से कानूनी पहचान मिलती है

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

Registration प्रक्रिया अनिवार्य नहीं होते हुए भी अत्यंत लाभकारी है। इससे फर्म को कानूनी सुरक्षा, मुकदमेबाज़ी का अधिकार और पारदर्शिता प्राप्त होती है। इसलिए परीक्षा में Registration process, Sec 58–59 तथा post-registration obligations से संबंधित प्रश्न बार-बार पूछे जाते हैं।

📘 UNIT 9: Effect of Non-Registration (धारा 69)

🔰 प्रस्तावना | Introduction:
हालाँकि भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 में फर्म का पंजीकरण (Registration) अनिवार्य नहीं है, लेकिन धारा 69 यह स्पष्ट करती है कि गैर-पंजीकृत फर्म (Unregistered Firm) के क्या कानूनी परिणाम हो सकते हैं। यह यूनिट इन प्रभावों को विस्तार से समझाती है।

📘 Section 69 – Effect of Non-Registration:

📌 Subsection (1):

गैर-पंजीकृत फर्म अथवा साझेदार, किसी अन्य साझेदार या फर्म के विरुद्ध कोई भी दावा न्यायालय में नहीं कर सकता, जब तक फर्म पंजीकृत न हो और संबंधित साझेदार का नाम Register of Firms में दर्ज न हो।

📌 Subsection (2):

गैर-पंजीकृत फर्म किसी तीसरे पक्ष (third party) के विरुद्ध भी कोई दावा नहीं कर सकती।

📌 Subsection (3):

इस धारा का प्रभाव उन मामलों पर नहीं होगा जहाँ:

  • ✔️ फर्म का मूल्य ₹100 से कम हो
  • ✔️ मुचलका वसूलने का मामला हो
  • ✔️ दिवालियापन / मृतक संपत्ति के दावे

📌 Subsection (4):

धारा 69 रक्षा (Defence)

📌 Key Legal Outcomes:

  • ❌ कोई भी साझेदार फर्म से मुनाफा या हक का दावा नहीं कर सकता जब तक फर्म पंजीकृत न हो
  • ❌ Third Party के विरुद्ध Recovery suit दाख़िल नहीं किया जा सकता
  • ✔️ However, firm can defend itself in a suit (as defendant)

📚 प्रमुख केस लॉ:

  • 📌 Firm Ram Kripal v. Kamta Prasad (AIR 1952): Unregistered firm का मुकदमा अदालत में अमान्य ठहराया गया
  • 📌 Jagat Singh & Sons v. Firm Jugal Kishore (1954): बिना रजिस्ट्रेशन के third party पर दावा अस्वीकृत
  • 📌 Union of India v. Firm Madan Lal (1962): Defence की अनुमति दी गई, लेकिन मुकदमा दायर करने की नहीं

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

पंजीकरण आवश्यक नहीं है, लेकिन फर्म की कानूनी शक्ति सीमित हो जाती है यदि वह पंजीकृत नहीं है। विशेष रूप से न्यायालय में किसी भी प्रकार का दावा या वसूली करने में बाधा उत्पन्न होती है। परीक्षा में यह यूनिट अक्सर केस आधारित प्रश्नों के रूप में पूछा जाता है।

📘 UNIT 10: Miscellaneous & Leading Case Laws (अन्य प्रावधान एवं प्रमुख केस लॉ)

🔰 प्रस्तावना | Introduction:
इस अंतिम यूनिट में भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 के अंतर्गत शेष महत्त्वपूर्ण और विविध प्रावधानों के साथ-साथ उन प्रमुख केस कानूनों (Leading Case Laws) का संक्षिप्त अध्ययन किया गया है जो परीक्षा में बार-बार पूछे जाते हैं।

📘 Important Miscellaneous Sections:

  • Section 48 – Mode of Settlement of Accounts: Dissolution के बाद खातों के निपटान की विधि
  • Section 49 – Payment of Firm’s Debts & Separate Debts: फर्म और साझेदारों के व्यक्तिगत ऋणों का प्राथमिकता क्रम
  • Section 50 – Personal Profit Earned After Dissolution: Dissolution के बाद लाभ कमाने पर फर्म का अधिकार
  • Section 55 – Goodwill: Goodwill की बिक्री पर साझेदारों का अधिकार
  • Section 72 – Rule-Making Power: राज्य सरकार को नियम बनाने की शक्ति

📚 प्रमुख केस लॉ (Leading Case Laws):

  • 📌 Cox v. Hickman (1860): Profit-sharing alone doesn't prove partnership — mutual agency is essential
  • 📌 Dulichand Laxminarayan v. CIT (1956): Hindu Undivided Family is not a partnership firm under law
  • 📌 Garner v. Murray (1904): Insolvency of a partner and distribution of assets upon dissolution
  • 📌 Bentley v. Craven (1853): Duty of partners to act in good faith — personal profit must be returned to the firm
  • 📌 Firm Ram Kripal v. Kamta Prasad (1952): Effect of non-registration — suit not maintainable by unregistered firm
  • 📌 Re Yenidje Tobacco Co. Ltd. (1916): Dissolution of firm by court due to loss of mutual trust
  • 📌 Suresh Kumar v. Amitabh Sinha (2004): Partnership dissolved by court due to persistent quarrels

📌 Goodwill का महत्व:

  • ✔️ फर्म के नाम, प्रतिष्ठा और ग्राहक संबंधों को सम्मिलित करता है
  • ✔️ बिक्री योग्य संपत्ति है और साझेदार इसका मूल्य प्राप्त कर सकते हैं
  • ✔️ Dissolution पर साझेदार Goodwill के हिस्सेदार होते हैं

📒 क्लास-नोट्स का निष्कर्ष:

यह यूनिट उन धाराओं और केस लॉ को कवर करती है जो सामान्यतः परीक्षा में Leading Case Based Questions के रूप में पूछे जाते हैं। Partnership Act की प्रभावशीलता को समझने के लिए इन केसों का विश्लेषण आवश्यक है। प्रत्येक लॉ छात्र को इन केसों के तथ्य और निर्णय की बुनियादी समझ होनी चाहिए।

📦 Quick Revision Table – Indian Partnership Act, 1932

Unit Title Sections Details
Unit 1 Introduction & Definitions Sec 1–4 📘 यहाँ क्लिक करें
Unit 2 Nature & Essential Elements of Partnership Sec 4–8 📘 यहाँ क्लिक करें
Unit 3 Types of Partners & Partnership Sec 6–12 📘 यहाँ क्लिक करें
Unit 4 Rights and Duties of Partners Sec 9–17 📘 यहाँ क्लिक करें
Unit 5 Incoming & Outgoing Partners Sec 31–38 📘 यहाँ क्लिक करें
Unit 6 Minor as a Partner Sec 30 📘 यहाँ क्लिक करें
Unit 7 Dissolution of Firm Sec 39–47 📘 यहाँ क्लिक करें
Unit 8 Registration of Firm Sec 56–71 📘 यहाँ क्लिक करें
Unit 9 Effect of Non-Registration Sec 69 📘 यहाँ क्लिक करें
Unit 10 Miscellaneous & Case Laws Various 📘 यहाँ क्लिक करें
Unit Title Sections Key Concepts
Unit 1 Introduction & Definitions 1–4 Meaning of partnership, firm name, legal nature
Unit 2 Nature & Essential Elements 4–8 Contractual basis, mutual agency, profit sharing
Unit 3 Types of Partners & Partnership 6–12 Active, dormant, nominal, sub-partner, at-will, particular
Unit 4 Rights & Duties of Partners 9–17 Good faith, indemnity, participation rights, equal share
Unit 5 Incoming & Outgoing Partners 31–38 Admission, retirement, expulsion, liabilities, rights
Unit 6 Minor as a Partner 30 Only entitled to benefits, rights after majority
Unit 7 Dissolution of Firm 39–47 By agreement, by court, liabilities, public notice
Unit 8 Registration of Firm 56–71 Registrar, procedure, changes, certified copies
Unit 9 Effect of Non-Registration 69 Cannot sue in court, exceptions, legal bar
Unit 10 Miscellaneous & Leading Case Laws 48–55, 72 + Cases Goodwill, profit after dissolution, key judgments

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