📚 Hindu Law - यूनिट वाइज अध्ययन
नीचे दिए गए यूनिट्स से आप प्रत्येक भाग को विस्तार से पढ़ सकते हैं। हर यूनिट में केस लॉ, उदाहरण और परीक्षा उपयोगी बिंदु शामिल हैं।
Unit No. | Title / शीर्षक | Details |
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Unit No. | Title | Jump Link |
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Unit 1 | Sources of Hindu Law, Who is Hindu, and Leading Cases | 📘 Click here |
Unit 2 | Hindu Marriage Act, 1955 (Sections 1–30) | 📘 Click here |
Unit 3 | Hindu Adoption and Maintenance Act, 1956 | 📘 Click here |
Unit 4 | Hindu Minority and Guardianship Act, 1956 | 📘 Click here |
Unit 5 | Hindu Succession Act, 1956 (Male & Female) | 📘 Click here |
Unit 6 | Hindu Law of Partition (Mitakshara & Dayabhaga) | 📘 Click here |
Unit 7 | Karta – Legal Status, Powers & Duties | 📘 Click here |
Unit 8 | Hindu Succession – Comparison of Male & Female | 📘 Click here |
Unit 9 | Gift, Will & Testamentary Succession | 📘 Click here |
Unit 10 | Religious & Charitable Endowments | 📘 Click here |
📘 Unit 1: Sources of Hindu Law (हिंदू विधि के स्रोत)
🔰 प्रस्तावना:
हिंदू विधि न केवल भारत के प्राचीनतम व्यक्तिगत कानूनों में से एक है, बल्कि यह सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक जीवन को भी नियंत्रित करता है। यह विधि हजारों वर्षों से धर्मशास्त्र, स्मृतियों, आचार, परंपराओं और न्यायिक निर्णयों पर आधारित है। इस यूनिट में हम हिंदू विधि के मुख्य स्रोतों का अध्ययन करेंगे, साथ ही ‘हिंदू कौन है’ इस पर न्यायालयों की व्याख्या भी देखेंगे।
📌 I. Types of Sources of Hindu Law
- 1. श्रुति (Shruti): वेद – चार वेदों में (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) जीवन के नियम निहित हैं। इसे "श्रुति" इसलिए कहा गया क्योंकि इसे सुना और स्मरण किया गया।
- 2. स्मृति (Smriti): मनु स्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति आदि। यह श्रुति का व्यावहारिक विस्तार है। मनुस्मृति को सबसे प्रमुख माना गया है।
- 3. आचार / सादाचार (Custom & Usage): यदि कोई प्रथा लंबे समय से अपनाई गई हो, सामाजिक स्वीकृति हो, और वह अनैतिक न हो – तो उसे मान्य कानून माना जाता है।
- 4. न्याय और सद्विवेक (Equity, Justice & Good Conscience): जहाँ कोई वैधानिक या धार्मिक नियम नहीं है, वहाँ तर्क, विवेक और नैतिकता के आधार पर निर्णय लिया जाता है।
- 5. न्यायिक दृष्टांत (Judicial Decisions): सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के निर्णय वर्तमान हिंदू विधि का अनिवार्य स्रोत बन चुके हैं।
- 6. विधिक विधान (Legislation): 1955-56 के सुधारों के बाद हिंदू विधि चार मुख्य अधिनियमों के माध्यम से नियंत्रित होती है:
- 📘 Hindu Marriage Act, 1955
- 📘 Hindu Succession Act, 1956
- 📘 Hindu Adoption & Maintenance Act, 1956
- 📘 Hindu Minority and Guardianship Act, 1956
👤 II. Who is a Hindu? (हिंदू कौन है?)
- जो हिंदू, जैन, बौद्ध या सिख धर्म को मानता है।
- जो हिंदू परंपरा, रीति-रिवाज, जीवनशैली और धर्मशास्त्र के अनुसार जीवन जीता है।
- जिसने विधिपूर्वक धर्म परिवर्तन कर हिंदू धर्म स्वीकार किया है।
- जिनका जन्म हिंदू परिवार में हुआ है, भले ही माता-पिता में से कोई एक गैर-हिंदू हो (Ref: Sridharan Case)।
Judicial Test: क्या व्यक्ति स्वयं को हिंदू मानता है? क्या समाज उसे हिंदू मानता है? क्या वह हिंदू संस्कारों, पूजा-पद्धति और आचरण को अपनाता है?
⚖️ III. Leading Case Laws
- 1. Abraham v. Abraham (1863): ईसाई धर्म स्वीकार करने के बाद वह व्यक्ति हिंदू नहीं रह गया। धर्मांतरण से हिंदू विधि समाप्त होती है।
- 2. Perumal v. Ponnuswamy (1970): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू बनने के लिए धर्म परिवर्तन की औपचारिकता से अधिक आचरण और भावना की आवश्यकता है।
- 3. Collector of Madurai v. Ramalingam (1902): "Custom overrides Shastra" – लंबे समय से प्रचलित प्रथा को मान्यता दी गई।
- 4. Saraswati Ammal v. Jagadambal: Custom केवल तभी मान्य होता है जब वह न्याय, सदाचार और सार्वजनिक नीति के विरुद्ध न हो।
- 5. Commissioner of Wealth Tax v. Sridharan (1985): पिता हिंदू और माता ईसाई – पुत्र को हिंदू माना गया क्योंकि उसका पालन-पोषण हिंदू तरीके से हुआ और वह HUF का सदस्य था।
- 6. Appovier v. Ramasubbien (1866): संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति का विभाजन आचरण से भी हो सकता है।
📒 निष्कर्ष (Conclusion):
Hindu Law के Sources न केवल धार्मिक हैं, बल्कि आधुनिक कानूनी व्यवस्थाओं के अनुरूप भी विकसित हो चुके हैं। भारतीय संसद द्वारा पारित विधानों ने इसे एक मजबूत विधिक ढांचा प्रदान किया है। UGC NET, Judiciary, और Law Exams में 'Sources of Hindu Law' एक Frequently Asked Topic है — अतः इसे भलीभांति तैयार करना आवश्यक है।
📘 Unit 2: Hindu Marriage and Divorce (हिंदू विवाह और तलाक)
🔰 प्रस्तावना:
विवाह हिन्दू धर्म में केवल एक अनुबंध नहीं बल्कि धार्मिक संस्कार (संस्कार) माना गया है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 द्वारा वैधानिक ढांचे में लाया गया। यह यूनिट विवाह की शर्तें, विधियों, वैध, शून्य और शून्यकरणीय विवाह, तलाक और न्यायिक पृथक्करण के आधारों पर केंद्रित है।
📌 I. Valid Hindu Marriage की शर्तें (Section 5)
- दोनों पक्ष हिंदू होने चाहिए।
- किसी पक्ष की जीवित अवस्था में दूसरी शादी नहीं होनी चाहिए।
- मन:स्थिति ठीक होनी चाहिए – वैध सहमति देने में सक्षम हो।
- विवाह के समय वर की आयु 21 वर्ष और वधु की 18 वर्ष होनी चाहिए।
- निषिद्ध संबंध या सपींडा संबंध न हो – जब तक प्रचलित रिवाज अनुमति न दे।
🔥 Leading Case: Ram Singh v. Sushila Bai
यदि Saptapadi (सात फेरे) customary rites का हिस्सा है और नहीं किया गया, तो विवाह शून्य घोषित किया जा सकता है:contentReference[oaicite:0]{index=0}।
📌 II. Customary Rites (Section 7)
विवाह तब पूरा माना जाता है जब सापतपदी (सात फेरे) जैसे customary rites संपन्न हो जाएँ।
📌 III. Void और Voidable Marriage
🚫 Void Marriages (Section 11)
- पहले से विवाहित होना।
- सपींडा या निषिद्ध संबंध में विवाह।
- Saptapadi न किया गया (यदि अनिवार्य है)।
⚠️ Voidable Marriages (Section 12)
- सहमति बल या धोखे से प्राप्त।
- पति नपुंसक हो और विवाह consummate न हो।
- पत्नी गर्भवती हो किसी अन्य पुरुष से और पति को जानकारी न हो।
🔥 Leading Case: Yuvaraja Singh v. Yuvarani Kumari
विवाह को consummate नहीं किया जा सका – पति नपुंसक था – विवाह voidable घोषित किया गया:contentReference[oaicite:1]{index=1}।
📌 IV. Divorce (Section 13)
किसी भी पक्ष द्वारा तलाक की याचिका दायर की जा सकती है यदि नीचे दिए गए आधारों में से कोई एक सिद्ध हो:
- परस्त्रीगमन (adultery)
- क्रूरता (मानसिक या शारीरिक)
- त्याग (desertion) – कम से कम 2 वर्षों तक
- धर्म परिवर्तन
- अस्वस्थ मानसिक स्थिति (incurable)
- कोढ़, संक्रामक रोग, संन्यास
- गायब रहना – 7 वर्षों से ज्यादा
🔥 विशेष आधार (Special Grounds for Wife – Section 13(2)):
- पति की दूसरी शादी
- पति द्वारा बलात्कार, सोडोमी या पशुवत व्यवहार
- पोषण का आदेश मिलने पर भी साथ न रहना
🔥 Leading Case: Dastane v. Dastane (1975)
Supreme Court ने 'Preponderance of probability' test को मान्यता दी और मानसिक क्रूरता को तलाक का वैध आधार माना:contentReference[oaicite:2]{index=2}।
🔥 Leading Case: Bipinchandra v. Prabhavati
Desertion की व्याख्या – दो आवश्यकताएँ: factum of separation और animus deserendi (त्याग का इरादा):contentReference[oaicite:3]{index=3}।
📌 V. Restitution of Conjugal Rights (Section 9)
यदि कोई पति/पत्नी दूसरे से बिना वैध कारण के अलग हो जाता है, तो दूसरा पक्ष अदालत में आवेदन देकर पुनः साथ रहने का आदेश प्राप्त कर सकता है।
📌 VI. Judicial Separation (Section 10)
तलाक के सभी आधारों पर न्यायिक पृथक्करण भी प्राप्त किया जा सकता है। विवाह विच्छेद नहीं होता परंतु पति-पत्नी को साथ रहने की बाध्यता नहीं रहती।
📒 निष्कर्ष:
विवाह और तलाक पर केंद्रित यह यूनिट UGC NET Law, Civil Judge परीक्षा और LLB के लिए अति महत्वपूर्ण है। केस लॉ और उदाहरणों से प्रश्न पूछे जाते हैं। इस नोट्स को पढ़कर छात्र Conceptual Clarity प्राप्त कर सकते हैं।
📘 Hindu Marriage Act: Sections 14 to 25
🔰 प्रस्तावना:
ये धाराएँ विवाह विच्छेद, न्यायिक पृथक्करण, मुकदमे की प्रक्रिया, भरण-पोषण एवं स्थायी निर्वाह संबंधी प्रावधानों से संबंधित हैं। ये UGC NET, Judiciary Exams और Law पाठ्यक्रमों में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
📌 धारा 14: विवाह विच्छेद याचिका में देरी
कोई भी पक्ष विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक की याचिका नहीं दायर कर सकता, जब तक विशेष अपवाद जैसे असाधारण कठिनाई सिद्ध न की जाए।
💡 Leading Case: Anil Kumar Jain v. Maya Jain
आपसी सहमति से तलाक की याचिका पर कोर्ट ने 6 माह की प्रतीक्षा अवधि को माफ किया था।
📌 धारा 15: पुनर्विवाह की स्वतंत्रता
जब तलाक का अंतिम आदेश हो जाए और अपील नहीं लंबित हो, तब पक्ष पुनः विवाह कर सकते हैं।
📌 धारा 16: अवैध विवाह से उत्पन्न संतानें
शून्य विवाह से उत्पन्न संतानें वैध मानी जाएँगी, लेकिन केवल माता-पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार का अधिकार होगा।
📌 धारा 17: पुनर्विवाह पर दंड
यदि कोई हिंदू अपने जीवित पति/पत्नी के रहते दूसरा विवाह करता है तो IPC की धारा 494 और 495 के तहत दंडनीय है।
📌 धारा 18: वैवाहिक दोषों के लिए सज़ा
- शर्तों (धारा 5) का उल्लंघन करने पर 1 महीने की जेल/₹1000 जुर्माना।
- जैसे वधु की आयु 18 वर्ष से कम होना, निषिद्ध संबंध आदि।
📌 धारा 19: याचिका दाखिल करने का क्षेत्राधिकार
किस जिले में याचिका दायर हो सकती है, जैसे - विवाह का स्थान, प्रतिवादी का निवास, पत्नी का निवास आदि के आधार पर।
📌 धारा 20: याचिका की सामग्री
याचिका में स्पष्ट रूप से सभी तथ्यों का उल्लेख हो तथा शपथ-पत्र संलग्न हो।
📌 धारा 21: प्रक्रिया
सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के अंतर्गत मामलों की सुनवाई होती है।
📌 धारा 22: गोपनीय सुनवाई
मामले की कार्यवाही कैमरा में होगी और प्रकाशन पर रोक होगी। उल्लंघन पर ₹1000 तक जुर्माना संभव है।
📌 धारा 23: राहत के लिए न्यायालय की संतुष्टि
- याचिकाकर्ता दोष में न हो
- कोई मिलीभगत या विलंब न हो
- तथ्य न्यायालय को संतुष्ट करें
📌 धारा 24: Pendente Lite Maintenance
यदि पति या पत्नी आयविहीन है, तो उसे मुकदमे के दौरान भरण-पोषण और खर्चा दिया जा सकता है।
🔍 केस: Ravindra Nath v. Renu Kumari – पत्नी के पास स्वतंत्र आय नहीं थी, कोर्ट ने pendente lite maintenance दिया।
📌 धारा 25: स्थायी निर्वाह (Permanent Alimony)
कोर्ट डिक्री के समय या बाद में आजीवन या मासिक निर्वाह तय कर सकता है। यह पक्षों की स्थिति, आय, आचरण इत्यादि पर निर्भर करता है।
उपधाराएँ:
- (2): परिस्थिति में परिवर्तन होने पर आदेश में संशोधन हो सकता है।
- (3): यदि पत्नी पुनः विवाह करती है या चरित्रहीन होती है तो भुगतान समाप्त हो सकता है।
🔥 केस: Krishna Bhattacharjee v. Sarathi Choudhury (2015) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 25 के अंतर्गत दावा विवाह विच्छेद के बाद भी किया जा सकता है।
📌 निष्कर्ष:
धारा 14 से 25 तक विवाह विच्छेद, पुनर्विवाह, वैधता, खर्च और स्थायी निर्वाह से जुड़ी हुई हैं। ये विधिक परीक्षाओं के लिए सीधे-सीधे प्रश्नों का आधार बनती हैं।
📘 Hindu Marriage Act: Sections 26 to 30
🔰 प्रस्तावना:
धारा 26 से 30 तक में बच्चों की अभिरक्षा, संपत्ति का वितरण, अपील, अन्य कानूनों से सम्बन्ध और विशेष अपवर्जन का प्रावधान दिया गया है।
📌 धारा 26: बच्चों की अभिरक्षा (Custody of Children)
मुकदमे की कार्यवाही के दौरान या डिक्री के पश्चात्, कोर्ट बच्चों की अभिरक्षा, भरण-पोषण और शिक्षा से संबंधित ऐसे आदेश दे सकता है जो बच्चों की भलाई के अनुकूल हो।
🧑⚖️ केस: Rosy Jacob v. Jacob A. Chakramakkal (1973) – सर्वोच्च न्यायालय ने "बच्चों के सर्वोत्तम हित" के सिद्धांत को दोहराया।
📌 धारा 27: संपत्ति का निपटान (Disposal of Property)
विवाह के समय प्राप्त की गई संयुक्त उपहार या संपत्ति का वितरण न्यायालय द्वारा तलाक की कार्यवाही में किया जा सकता है।
📌 धारा 28: अपील का अधिकार (Appeals)
धारा 9, 10, 13 और 14 के तहत दिए गए आदेशों के विरुद्ध प्रथम अपीलीय अधिकार सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार उपलब्ध होगा।
📌 धारा 29: अन्य कानूनों पर प्रभाव नहीं (Savings)
यह अधिनियम किसी अन्य कानून, परंपरा या विशेष रूप से किसी जातीय प्रथा को निरस्त नहीं करता जब तक वे इस अधिनियम से असंगत न हों।
📌 धारा 30: लागू नहीं (Repealed / Notified)
कुछ प्रारंभिक संस्करणों में धारा 30 शामिल थी जो बाद में हटा दी गई। वर्तमान में इसका कोई स्वतंत्र कानूनी प्रभाव नहीं है।
📌 निष्कर्ष:
धारा 26 से 30 बच्चों की सुरक्षा, संपत्ति के न्यायोचित वितरण और कानूनी अधिकारों की स्पष्टता से संबंधित हैं। न्यायिक परीक्षाओं और विधि छात्रों के लिए यह खंड अत्यंत महत्वपूर्ण है।
📘 UNIT 3: Hindu Adoption and Maintenance Act, 1956
🔰 महत्व: यह अधिनियम दो प्रमुख भागों में विभाजित है – दत्तक ग्रहण (Adoption) और भरण-पोषण (Maintenance)। इस अधिनियम की जानकारी कानून की पढ़ाई करने वाले छात्रों, न्यायिक परीक्षार्थियों, तथा विधि शिक्षकों के लिए अत्यंत आवश्यक है।
📌 उद्देश्य (Object of the Act)
प्राचीन काल में दत्तक पुत्र धार्मिक उद्देश्यों हेतु आवश्यक होता था, लेकिन 1956 के इस अधिनियम ने इसे एक धर्मनिरपेक्ष (secular) रूप दिया और दत्तक को कानूनी अधिकार प्रदान किए।
🔥 Leading Case: Amarendra Mansingh v. Sanatan Singh – Privy Council ने दत्तक का धार्मिक उद्देश्य सर्वोपरि माना, लेकिन नए कानून में यह गौण हो गया।
📌 वैध दत्तक के लिए आवश्यकताएँ (Section 6)
- दत्तक लेने वाले की क्षमता और अधिकार
- दत्तक देने वाले की विधिक क्षमता
- दत्तक लिए जाने वाले बालक की योग्यता
- अन्य वैध शर्तों का पालन
🧑⚖️ केस: S. Ghosh v. Krishna Sundari
कोर्ट ने कहा कि "actual giving and taking" ज़रूरी है। केवल दस्तावेज़ से दत्तक वैध नहीं माना जाएगा।
📌 दत्तक लेने की क्षमता (Section 7 & 8)
- पुरुष: विवाहित पुरुष को पत्नी की सहमति आवश्यक, सिवाय कुछ अपवादों के
- स्त्री: अविवाहित, विधवा या तलाकशुदा स्त्री स्वयं दत्तक ले सकती है
📌 दत्तक देने की विधि (Section 9)
- केवल माता-पिता या अभिभावक ही दत्तक दे सकते हैं
- अभिभावक को कोर्ट की अनुमति आवश्यक है
📌 कौन दत्तक लिया जा सकता है (Section 10)
- हिंदू होना चाहिए
- 15 वर्ष से कम उम्र हो (जब तक कोई रीति अनुमति न दे)
- अविवाहित होना चाहिए
- पहले कभी दत्तक न लिया गया हो
📌 अन्य शर्तें (Section 11)
- यदि पुत्र लिया जा रहा है, तो पहले से पुत्र नहीं होना चाहिए
- दत्तक बेटी के लिए पहले से कोई बेटी नहीं होनी चाहिए
- पुरुष द्वारा लड़की को दत्तक लेने पर कम से कम 21 वर्ष का अंतर आवश्यक
- प्रामाणिक 'देना और लेना' अनिवार्य है
📌 दत्तक का प्रभाव (Section 12)
- दत्तक बच्चा, दत्तक माता-पिता का संतान माना जाएगा
- पूर्व पारिवारिक संबंध समाप्त हो जाते हैं
- परंतु, संपत्ति का अधिकार या निषेध बरकरार रहता है
📌 केस: Subash Misir v. Thagir Misir – दत्तक पुत्र दोनों माता-पिता का पुत्र माना गया।
📌 दत्तक से संबंधित अन्य धाराएँ
- धारा 13: दत्तक से संपत्ति अधिकार समाप्त नहीं होते
- धारा 15: वैध दत्तक को रद्द नहीं किया जा सकता
- धारा 16: रजिस्टर्ड दस्तावेज़ को कोर्ट मान्य मानती है
- धारा 17: दत्तक पर किसी प्रकार का भुगतान प्रतिबंधित है
📌 निष्कर्ष:
यह अधिनियम एक स्पष्ट और व्यवस्थित प्रक्रिया देता है जिससे दत्तक प्रक्रिया कानूनी रूप से वैध बनती है। इस अधिनियम के समझने से विधि छात्र, जज एग्जाम, यूजीसी नेट और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता पाना आसान होगा।
📘 Hindu Adoption and Maintenance Act: Sections 18 to 28 (Maintenance)
🔰 प्रस्तावना: इस भाग में विभिन्न व्यक्तियों जैसे पत्नी, विधवा बहू, बच्चों, वृद्ध माता-पिता और आश्रितों को भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार मिलता है। यह सामाजिक न्याय का दर्पण है।
📌 Section 18: Maintenance of Wife
एक हिंदू पत्नी को अपने पति से जीवन भर भरण-पोषण का अधिकार है, भले ही विवाह अधिनियम के पहले या बाद में हुआ हो। यदि वह पति से अलग रहती है तो भी कुछ शर्तों के तहत उसे भरण-पोषण मिलेगा।
- पति द्वारा परित्याग (desertion)
- क्रूरता, कुष्ठ रोग, दूसरी पत्नी का होना
- कॉनक्यूबाइन के साथ रहना
- धर्म परिवर्तन
- अन्य न्यायसंगत कारण
❌ अपवाद: यदि पत्नी अपवित्र है या धर्म बदल लेती है तो उसे अधिकार नहीं।
📌 Section 19: Maintenance of Widowed Daughter-in-law
पति की मृत्यु के बाद बहू को ससुर से भरण-पोषण मिल सकता है यदि वह स्वयं, पति की संपत्ति, माता-पिता या संतान से भरण-पोषण पाने में असमर्थ हो।
📌 Section 20: Maintenance of Children and Aged Parents
एक हिंदू को वैध/अवैध बच्चे (जब तक वे नाबालिग हों) और वृद्ध माता-पिता का भरण-पोषण करना होगा यदि वे स्वयं नहीं कर सकते।
📘 स्पेशल: एक पुत्री (विवाहित नहीं) के विवाह खर्च को भी शामिल किया गया है।
📌 Section 21 & 22: Dependents and Their Maintenance
निम्नलिखित को आश्रित माना गया है: माता-पिता, विधवा, नाबालिग संतान, अविवाहित पुत्री, विधवा बहू आदि। इन आश्रितों को मृत व्यक्ति की संपत्ति से उसके उत्तराधिकारी द्वारा भरण-पोषण देना होगा।
📌 Section 23: Amount of Maintenance
कोर्ट यह तय करेगा कि भरण-पोषण की राशि कितनी होनी चाहिए, निम्नलिखित आधारों पर:
- आर्थिक स्थिति
- प्रस्तावित भरण-पोषण की आवश्यकता
- संपत्ति व आय
- पारिवारिक दायित्व
📌 Section 24: Only Hindus Entitled
जो व्यक्ति हिंदू नहीं रहा (जैसे धर्म परिवर्तन) वह भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकता।
📌 Section 25: Alteration of Maintenance
यदि बाद में परिस्थिति बदल जाए (जैसे नौकरी मिल जाए या संपत्ति प्राप्त हो), तो कोर्ट भरण-पोषण को घटा/बढ़ा सकता है।
📌 Sections 26 to 28
- Section 26: कर्जों को प्राथमिकता मिलेगी
- Section 27: भरण-पोषण तभी संपत्ति पर भार बनेगा जब कोर्ट/वसीयत/एग्रीमेंट हो
- Section 28: अगर संपत्ति ट्रांसफर हुई है और ट्रांसफरी को जानकारी थी तो वह भरण-पोषण देने के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
📌 निष्कर्ष:
धारा 18 से 28 तक का प्रावधान महिला, बच्चे, वृद्ध व समाज के वंचित वर्ग के लिए एक सुरक्षा कवच है। विधि छात्रों के लिए यह परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
5 Guardianship (अभिभावकता) 📘 यहाँ क्लिक करें
📘 UNIT 5: Hindu Succession Act, 1956
🔰 उद्देश्य: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 का उद्देश्य है कि किसी हिंदू व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का न्यायपूर्ण और समान रूप से उत्तराधिकार हो।
📌 Section 6: Coparcenary Rights (2005 Amendment)
- पुत्री को जन्म से ही coparcener का दर्जा
- पुत्र की तरह अधिकार और दायित्व
- Testamentary disposition के माध्यम से महिला संपत्ति को बाँट सकती है
- Case: Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा: पुत्री को समान अधिकार बिना शर्त मिलेंगे।
📌 Section 8-10: Succession to Males
Section 8: पुरुष के उत्तराधिकार में निम्नलिखित क्रम:
- Class I Heirs (पुत्र, पुत्री, पत्नी, माता)
- Class II Heirs (पिता, भाई, बहन आदि)
- Agnates
- Cognates
Section 9: Class I के उत्तराधिकारी एक साथ उत्तराधिकारी बनते हैं।
Section 10: Property को समान रूप से बाँटा जाएगा (per capita not per stirpes)
📌 Section 14: Property of Hindu Female
महिला को उसकी संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व प्राप्त है, चाहे वो किस भी प्रकार से प्राप्त हो।
Case: Kotturuswami v. Veeravva (1959) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला के पास यदि केवल symbolic possession है, तब भी वह पूर्ण स्वामिनी होगी।
📌 Section 15 & 16: Succession to Females
- पुत्र, पुत्री और पति
- पति के उत्तराधिकारी
- माता-पिता
- पिता के उत्तराधिकारी
- माता के उत्तराधिकारी
Rule: Entry के अनुसार प्राथमिकता दी जाएगी (Rule 1 to 3)
📌 Section 23: Dwelling House
महिला उत्तराधिकारी केवल तभी घर में विभाजन का दावा कर सकती है जब पुरुष उत्तराधिकारी ऐसा चाहें। लेकिन अविवाहित, विधवा या परित्यक्त पुत्री को निवास का अधिकार होगा।
📌 Section 24 to 28: Disqualifications
- Sec 24: पुनर्विवाहित विधवा उत्तराधिकार नहीं ले सकती
- Sec 25: Murder करने वाला उत्तराधिकारी नहीं बन सकता
- Sec 26: Convert के बच्चे उत्तराधिकार से वंचित
- Sec 27: Disqualified व्यक्ति को मृत मानकर उत्तराधिकार होगा
- Sec 28: बीमारी या विकृति से उत्तराधिकार नहीं छिनेगा
📌 Section 30: Testamentary Succession
कोई भी हिंदू अपनी संपत्ति को वसीयत द्वारा बाँट सकता है। Coparcenary share को भी वसीयत के द्वारा बाँटा जा सकता है।
📌 निष्कर्ष:
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 से महिलाओं को समान अधिकार, कानूनी उत्तराधिकार का स्पष्ट क्रम, और सामाजिक न्याय की भावना प्राप्त हुई है। यह अधिनियम हर कानून के विद्यार्थी के लिए अत्यंत आवश्यक है।
📘 UNIT 6: Hindu Law of Partition – Mitakshara & Dayabhaga
🔰 परिचय: 'Partition' का अर्थ है संयुक्त हिंदू परिवार में सह-उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति का विभाजन। यह विभाजन न केवल संपत्ति का होता है बल्कि स्थिति (status) का भी होता है।
📌 Mitakshara Coparcenary में विभाजन
- Mitakshara Law में पुत्र को जन्म से coparcenary अधिकार प्राप्त होता है।
- Coparcenary में चार पीढ़ियाँ होती हैं: पिता, पुत्र, पौत्र, और प्रपौत्र।
- Partition केवल पुरुष coparceners के बीच ही होता है, लेकिन HSA 2005 Amendment के बाद बेटियाँ भी coparceners बनीं।
- Partition = Status + Share का विभाजन
- Lord Westbury (Appovier v. Ramasubbien): “Partition is a severance of joint status, not necessarily metes and bounds.”
📌 Dayabhaga School में विभाजन
- पुत्र को coparcenary अधिकार केवल पिता की मृत्यु के बाद प्राप्त होता है।
- अधिकार by succession मिलता है न कि by birth।
- विभाजन के समय तक पिता सम्पत्ति का पूर्ण स्वामी होता है।
- बंगाल और असम में Dayabhaga मान्य है।
📌 विभाजन के तरीके (Modes of Partition)
- By notice: कोई coparcener स्पष्ट रूप से अपनी अलग स्थिति जाहिर कर दे।
- By suit: अदालत में वाद द्वारा (including minor through guardian)
- By agreement: सभी coparceners के बीच मौखिक या लिखित सहमति
- By conduct or telegram: Partition का इरादा व्यवहार से भी सिद्ध हो सकता है
- By arbitration or will: विभाजन हेतु मध्यस्थता या वसीयत
- By conversion or civil marriage
📌 Leading Cases
- 📌 Appovier v. Ramasubbien (Privy Council) – "Partition can occur by intention even without physical division":contentReference[oaicite:0]{index=0}
- 📌 Rukmabai v. Laxminarayan (1960) – Hindu family presumed to be joint until intention to divide is proved
- 📌 Raghavamma v. Kenchamma – Telegram of intention to partition valid; will by separated coparcener is valid
- 📌 Puttarangamma v. Ranganna (1968) – Severance of status can happen by declaration
- 📌 Bhagwan Dayal v. Rewati Devi – Reunion must be by consent and proved as fact:contentReference[oaicite:1]{index=1}
📌 Coparcenary Rights of Daughter – Post 2005
बेटियाँ भी जन्म से coparcener बनीं और उन्हें समान अधिकार प्राप्त हुआ। Partition में उनकी हिस्सेदारी अनिवार्य हो गई।
Case: Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020) – Daughter को जन्म से coparcenary का अधिकार है, चाहे पिता की मृत्यु 2005 से पहले हो या बाद में।
📚 Leading Case Laws on Section 6 – Daughter’s Right in Coparcenary Property
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📌 Mary Roy v. State of Kerala (1986)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रावनकोर क्रिश्चियन एक्ट, 1916, जो महिलाओं को संपत्ति से वंचित करता था, वह असंवैधानिक है। महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत समान अधिकार दिए गए।
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📌 Prakash v. Phulavati (2016)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पिता 09/09/2005 से पहले मर चुका है, तो पुत्री को संशोधित धारा 6 के तहत coparcenary अधिकार नहीं मिलेगा।
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📌 Danamma v. Amar (2018)
कोर्ट ने कहा कि यदि मुकदमा लंबित है, तो पुत्री संशोधित धारा 6 के तहत coparcenary संपत्ति में हिस्सा मांग सकती है, भले ही पिता की मृत्यु 2005 से पहले हुई हो।
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📌 Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020 – Constitutional Bench)
यह ऐतिहासिक निर्णय था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बेटी को जन्म से ही coparcenary का समान अधिकार प्राप्त है, और पिता की मृत्यु की तिथि महत्वहीन है।
“Daughter must be treated equally in rights and liabilities as a son.”
-
📌 Arunachala Gounder v. Ponnusamy (2022)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि महिला को पैतृक संपत्ति प्राप्त हुई है, तो वह “coparcenary” मानी जाएगी और उसकी मृत्यु के बाद वह उसकी legal heirs को जाएगी, न कि मूल परिवार को।
🧾 निष्कर्ष: 2005 संशोधन और उपरोक्त निर्णयों ने पुत्रियों को समान उत्तराधिकार अधिकार प्रदान किए, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 की भावना के अनुरूप है। अब पुत्री जन्म से ही पारिवारिक संपत्ति में coparcener होती है।
📌 पुनः मिलन (Reunion) और Re-opening of Partition
- Partition के बाद अगर भाई, पिता, चाचा पुनः एक साथ रहते हैं और साझे में संपत्ति रखते हैं तो उसे "Reunion" कहते हैं।
- Case: Bhagwan Dayal v. Rewati Devi – Reunion must be intentional and provable
- Partition दुबारा खोला जा सकता है – (i) Fraud, (ii) Mistake, (iii) Minor’s interest harmed
- Case: Ratnam v. Kuppuswami (1976)
📌 Exam Highlights:
- Partition is both legal and factual
- Daughter's right under Section 6 is crucial for current questions
- Difference between Mitakshara and Dayabhaga systems must be remembered
📖 निष्कर्ष: Partition की प्रक्रिया, उसका प्रभाव, और बेटियों के अधिकार हिंदू विधि में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन्हें LLB, NET, JUDGE परीक्षा में अच्छे से याद करना चाहिए।
6 Mitakshara Coparcenary & Karta 📘 यहाँ क्लिक करें
📘 UNIT 7: Hindu Law – Karta and His Legal Position
🔰 परिचय: 'Karta' हिंदू संयुक्त परिवार का प्रमुख प्रबंधक होता है। Mitakshara प्रणाली में यह भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। Karta पूरे परिवार का प्रतिनिधित्व करता है और उसके कार्यों से सभी coparceners बाध्य होते हैं।
📌 कौन हो सकता है Karta?
- सामान्यतः पिता होता है या फिर सबसे बड़ा पुरुष coparcener
- कोई कनिष्ठ पुरुष सदस्य भी Karta बन सकता है – सभी coparceners की सहमति से
- न्यायालयीन निर्णय: CIT v. Govindram Sugar Mills – महिला Karta नहीं बन सकती:contentReference[oaicite:0]{index=0}
📌 Karta के अधिकार (Powers of Karta)
- प्रबंध अधिकार (Management Authority): पूर्ण प्रबंधन अधिकार और निर्णय लेने की स्वतंत्रता
- प्रतिनिधित्व: परिवार का कानूनी और वित्तीय मामलों में प्रतिनिधित्व
- ऋण लेना: पारिवारिक उद्देश्य के लिए ऋण ले सकता है और सभी coparceners बाध्य होंगे
- संपत्ति का विक्रय / बंधक: लीगल नेसेसिटी या पारिवारिक हित हेतु
- कानूनी कार्यवाही: Karta स्वयं नाम से मुकदमा दायर कर सकता है या मुकदमा चलाया जा सकता है:contentReference[oaicite:1]{index=1}
- व्यापार: संयुक्त परिवार के व्यापार को चला सकता है और संपत्ति गिरवी रख सकता है
📌 Karta की जिम्मेदारियाँ (Duties of Karta)
- सदस्यों की देखभाल करना (maintenance and residence)
- सच्चे और उचित हिसाब रखना, विशेषकर जब सदस्य मांग करें
- किसी भी पारिवारिक हित को नुकसान नहीं पहुँचाना
- सभी कार्य पारिवारिक उद्देश्य हेतु होने चाहिए
📌 Karta की संपत्ति विक्रय की शक्ति (Power of Alienation)
Mitakshara सिद्धांत: 'Apat Kale, Kutumbarthe, Dharmarthe'
- आपत्ति की स्थिति (Legal Necessity)
- पारिवारिक हित (Benefit of the Estate)
- धार्मिक कार्यों के लिए (Pious Purpose)
- Case: Guramma v. Mallappa (1964) – बेटी के विवाह के बाद पिता द्वारा संपत्ति दान वैध ठहराया गया:contentReference[oaicite:2]{index=2}
📌 क्या महिला Karta बन सकती है?
- परंपरागत रूप से नहीं
- लेकिन Sucheta Kriplani v. CIT (1981) – उच्च न्यायालय ने कहा कि विधवा महिला (in some circumstances) प्रबंधक बन सकती है यदि वह प्रमुख हो
- Case: Sujata Sharma v. Manu Gupta (2015) – दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बेटी भी HUF की Karta बन सकती है, विशेष रूप से HSA 2005 के बाद
📌 Karta की Sui Generis स्थिति (Legal Status)
- Karta न तो trustee है और न ही agent
- उसके कार्यों के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं जब तक कोई धोखाधड़ी या दुरुपयोग न हो
- यदि कोई coparcener असंतुष्ट है, तो उसका उपाय है partition
📌 प्रमुख केस कानून (Leading Cases)
- 📌 CIT v. Govindram Sugar Mills – महिला Karta नहीं हो सकती
- 📌 Guramma v. Mallappa (1964) – कानूनी आवश्यकता के आधार पर संपत्ति का दान वैध
- 📌 Sujata Sharma v. Manu Gupta (2015) – बेटी को HUF की Karta माना गया
- 📌 Amarendra Mansingh v. Sanatan Singh – ट्रस्टी/गार्जियन/Karta की भूमिका में alienation की अनुमति है जरूरत पड़ने पर:contentReference[oaicite:3]{index=3}
📖 निष्कर्ष: Karta संयुक्त हिंदू परिवार की धुरी है। वह संपत्ति, विवाद, कानूनी कार्यों, और अन्य जिम्मेदारियों में पूरे परिवार का नेतृत्व करता है। आधुनिक संदर्भ में महिलाओं को भी Karta के रूप में मान्यता मिलना एक संवैधानिक समानता की दिशा में बढ़ता कदम है।
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📘 UNIT 7: Hindu Law – Karta and His Legal Position
🔰 परिचय: 'Karta' हिंदू संयुक्त परिवार का प्रमुख प्रबंधक होता है। Mitakshara प्रणाली में यह भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। Karta पूरे परिवार का प्रतिनिधित्व करता है और उसके कार्यों से सभी coparceners बाध्य होते हैं।
📌 कौन हो सकता है Karta?
- सामान्यतः पिता होता है या फिर सबसे बड़ा पुरुष coparcener
- कोई कनिष्ठ पुरुष सदस्य भी Karta बन सकता है – सभी coparceners की सहमति से
- न्यायालयीन निर्णय: CIT v. Govindram Sugar Mills – महिला Karta नहीं बन सकती:contentReference[oaicite:0]{index=0}
📌 Karta के अधिकार (Powers of Karta)
- प्रबंध अधिकार (Management Authority): पूर्ण प्रबंधन अधिकार और निर्णय लेने की स्वतंत्रता
- प्रतिनिधित्व: परिवार का कानूनी और वित्तीय मामलों में प्रतिनिधित्व
- ऋण लेना: पारिवारिक उद्देश्य के लिए ऋण ले सकता है और सभी coparceners बाध्य होंगे
- संपत्ति का विक्रय / बंधक: लीगल नेसेसिटी या पारिवारिक हित हेतु
- कानूनी कार्यवाही: Karta स्वयं नाम से मुकदमा दायर कर सकता है या मुकदमा चलाया जा सकता है:contentReference[oaicite:1]{index=1}
- व्यापार: संयुक्त परिवार के व्यापार को चला सकता है और संपत्ति गिरवी रख सकता है
📌 Karta की जिम्मेदारियाँ (Duties of Karta)
- सदस्यों की देखभाल करना (maintenance and residence)
- सच्चे और उचित हिसाब रखना, विशेषकर जब सदस्य मांग करें
- किसी भी पारिवारिक हित को नुकसान नहीं पहुँचाना
- सभी कार्य पारिवारिक उद्देश्य हेतु होने चाहिए
📌 Karta की संपत्ति विक्रय की शक्ति (Power of Alienation)
Mitakshara सिद्धांत: 'Apat Kale, Kutumbarthe, Dharmarthe'
- आपत्ति की स्थिति (Legal Necessity)
- पारिवारिक हित (Benefit of the Estate)
- धार्मिक कार्यों के लिए (Pious Purpose)
- Case: Guramma v. Mallappa (1964) – बेटी के विवाह के बाद पिता द्वारा संपत्ति दान वैध ठहराया गया:contentReference[oaicite:2]{index=2}
📌 क्या महिला Karta बन सकती है?
- परंपरागत रूप से नहीं
- लेकिन Sucheta Kriplani v. CIT (1981) – उच्च न्यायालय ने कहा कि विधवा महिला (in some circumstances) प्रबंधक बन सकती है यदि वह प्रमुख हो
- Case: Sujata Sharma v. Manu Gupta (2015) – दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बेटी भी HUF की Karta बन सकती है, विशेष रूप से HSA 2005 के बाद
📌 Karta की Sui Generis स्थिति (Legal Status)
- Karta न तो trustee है और न ही agent
- उसके कार्यों के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं जब तक कोई धोखाधड़ी या दुरुपयोग न हो
- यदि कोई coparcener असंतुष्ट है, तो उसका उपाय है partition
📌 प्रमुख केस कानून (Leading Cases)
- 📌 CIT v. Govindram Sugar Mills – महिला Karta नहीं हो सकती
- 📌 Guramma v. Mallappa (1964) – कानूनी आवश्यकता के आधार पर संपत्ति का दान वैध
- 📌 Sujata Sharma v. Manu Gupta (2015) – बेटी को HUF की Karta माना गया
- 📌 Amarendra Mansingh v. Sanatan Singh – ट्रस्टी/गार्जियन/Karta की भूमिका में alienation की अनुमति है जरूरत पड़ने पर:contentReference[oaicite:3]{index=3}
📖 निष्कर्ष: Karta संयुक्त हिंदू परिवार की धुरी है। वह संपत्ति, विवाद, कानूनी कार्यों, और अन्य जिम्मेदारियों में पूरे परिवार का नेतृत्व करता है। आधुनिक संदर्भ में महिलाओं को भी Karta के रूप में मान्यता मिलना एक संवैधानिक समानता की दिशा में बढ़ता कदम है।
8 Succession & Stridhana 📘 यहाँ क्लिक करें
📘 UNIT 8: Hindu Law of Succession – Male & Female
🔰 परिचय: उत्तराधिकार (Succession) हिंदू विधि का एक महत्वपूर्ण विषय है, जो यह निर्धारित करता है कि किसी हिंदू की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति किन लोगों में और कैसे वितरित होगी। Hindu Succession Act, 1956 (संशोधित 2005) इसका प्रमुख स्रोत है।
📌 Section 6 – Coparcenary Rights & Daughters (HSA 2005)
- 2005 के संशोधन के बाद बेटी को भी जन्म से coparcener का दर्जा मिला।
- वह पुत्र के समान अधिकार और उत्तरदायित्व रखती है।
- संपत्ति में हिस्सा, उत्तराधिकार, विभाजन का अधिकार – सभी समान रूप से मिलते हैं।
- Leading Case: Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020) – बेटी को जन्म से अधिकार है, भले ही पिता की मृत्यु 2005 से पहले हुई हो:contentReference[oaicite:0]{index=0}
📌 Section 14 – Female Hindu's Property
- महिला हिंदू के पास जो भी संपत्ति है (Stridhan, उत्तराधिकार, उपहार आदि से प्राप्त), वह उसकी पूर्ण संपत्ति मानी जाएगी।
- उसे Limited Owner नहीं माना जाएगा।
- Case: Eramma v. Virupanna – महिला जो संपत्ति अपने पति से प्राप्त करती है, वह Section 14(1) के अंतर्गत आती है:contentReference[oaicite:1]{index=1}
- Case: Kotturuswami v. Veeravva – Constructive possession भी अधिकार देता है:contentReference[oaicite:2]{index=2}
📌 Section 15 – Succession of Female Hindus
- पहले – पुत्र, पुत्रियाँ, पति
- दूसरे – पति के उत्तराधिकारी
- तीसरे – माता-पिता
- चौथे – पिता के उत्तराधिकारी
- पाँचवे – माता के उत्तराधिकारी
- Exception: पिता से प्राप्त संपत्ति – पिता के वारिसों को जाएगी
- पति या ससुर से प्राप्त संपत्ति – पति के वारिसों को जाएगी:contentReference[oaicite:3]{index=3}
📌 Section 16 – Order of Succession of Female Hindu
- एक ही श्रेणी में आने वाले उत्तराधिकारी समान रूप से हिस्सा प्राप्त करेंगे
- पूर्व मृत संतान के बच्चे, उसी हिस्से के हकदार होंगे
- ध्यान रखें: उत्तराधिकार "Per Capita" के अनुसार होता है, "Per Stirpes" नहीं:contentReference[oaicite:4]{index=4}
📌 Section 8 – Succession of Male Hindus
- Class I heirs: पुत्र, पुत्री, पत्नी, माता, आदि
- Class II heirs: पिता, भाई, बहन, आदि
- Class I को प्राथमिकता है – सभी साथ-साथ बराबर हिस्सा लेते हैं
📌 महत्वपूर्ण केस कानून (Leading Cases)
- Mary Roy v. State of Kerala (1986) – क्रिश्चियन महिला की उत्तराधिकार को समानता का अधिकार मिला
- Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma – बेटी को coparcenary अधिकार जन्म से मिला
- Eramma v. Virupanna – Limited estate का abolition और full ownership का अधिकार
- Kotturuswami v. Veeravva – Constructive possession = legal right
- Arunachala Mudaliar v. Muruganatha – Will द्वारा दी गई संपत्ति ancestral नहीं होती:contentReference[oaicite:5]{index=5}
📌 मुख्य विशेषताएँ – संशोधित उत्तराधिकार विधि (HSA 2005)
- बेटी भी coparcenary में समान अधिकार रखती है
- संपत्ति का उत्तराधिकार अब लैंगिक समानता के सिद्धांत पर आधारित है
- सभी प्रकार की inherited, gifted या self-acquired संपत्ति पर महिला का पूर्ण अधिकार
- Limited Estate की अवधारणा समाप्त
📖 निष्कर्ष: Hindu Succession Act 1956 और 2005 के संशोधन ने उत्तराधिकार में महिलाओं के अधिकारों को दृढ़ किया है। चाहे वह स्वामित्व हो, संपत्ति का बंटवारा हो, या coparcenary में अधिकार, सबमें बेटियाँ और महिलाएँ समान रूप से भागीदार हैं।
9 Pious Obligation, Debts & Endowments 📘 यहाँ क्लिक करें
📘 UNIT 9: Hindu Law – Gift & Testamentary Succession
🔰 परिचय: हिंदू विधि में संपत्ति का हस्तांतरण दो प्रकार से होता है – जीवित रहते हुए (Gift) और मृत्यु के बाद (Will/Testament)। यह दोनों विधियाँ संपत्ति के उत्तराधिकार को प्रभावित करती हैं।
📌 A. Gift (दान) under Hindu Law
Gift की परिभाषा: जब बिना किसी प्रतिफल के, स्वेच्छा से किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति प्रदान की जाती है, तो उसे दान कहते हैं।
- Conditions: Donor का स्वेच्छा से देना, Donee का स्वीकार करना, और संपत्ति का ट्रांसफर
- Gift तभी वैध है जब:
- Donor सक्षम (sound mind) हो
- Donee जीवित हो और स्वीकार कर सके
- Gift movable या immovable दोनों हो सकती है
- संपत्ति का स्वामित्व तुरंत बदलता है
Stridhana में Gift: Stridhana में Gift को महिला पूर्ण स्वामित्व से रख सकती है, विशेषकर Saudayika (निकट रिश्तेदारों से प्राप्त)।
Leading Case: Rajamma v. Vajravelu Chetti – पति से अनुमति के बिना महिला का Saudayika Gift वैध माना गया:contentReference[oaicite:0]{index=0}
📌 B. Will (वसीयत) – Testamentary Succession
Will की परिभाषा: जब कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति के वितरण की योजना मृत्यु के बाद करता है, तो वह वसीयत कहलाती है।
- Hindu Succession Act के अनुसार, Will बनाने की पूरी स्वतंत्रता है।
- Will को Indian Succession Act, 1925 के तहत नियंत्रित किया जाता है।
- यह Self-acquired या coparcenary property को कवर कर सकती है।
Special Provision: Coparcener का हिस्सा भी वसीयत से स्थानांतरित किया जा सकता है (Section 6 HSA Amendment 2005):contentReference[oaicite:1]{index=1}
Conditions of Valid Will:
- Donor सक्षम और स्वतंत्र होना चाहिए
- Will लिखित रूप में हो, दो गवाहों के हस्ताक्षर आवश्यक
- Executor को नामित किया जा सकता है
Leading Case: Guramma Bhratar Chandrashekhar v. Mallappa – उपयुक्त उद्देश्य के लिए की गई वसीयत या उपहार वैध मानी गई:contentReference[oaicite:2]{index=2}
📌 C. Comparison: Gift vs Will
Particulars
Gift
Will
प्रभाव
जीवनकाल में प्रभावी
मृत्यु के बाद प्रभावी
स्वीकृति
तत्काल ट्रांसफर के लिए आवश्यक
स्वीकृति जरूरी नहीं
गवाह
जरूरी नहीं
दो गवाह जरूरी
रद्द करना
रद्द नहीं किया जा सकता
किसी भी समय बदला या रद्द किया जा सकता है
📌 D. परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
- Gift के लिए Donee की स्वीकृति आवश्यक
- Testamentary Succession Hindu Succession Act और Indian Succession Act दोनों से नियंत्रित होती है
- 2005 संशोधन के बाद बेटी भी वसीयत कर सकती है
- Stridhana और Saudayika – महिला अधिकारों को समझना आवश्यक है
📖 निष्कर्ष: हिंदू विधि में संपत्ति हस्तांतरण के दोनों माध्यम – दान और वसीयत – कानूनी रूप से सशक्त और मान्य हैं। प्रत्येक विधि का अपना महत्व है और इनके सिद्धांत न्यायालय द्वारा कई केसों में स्पष्ट किए गए हैं।
10 Leading Cases & Customary Laws 📘 यहाँ क्लिक करें
📘 UNIT 10: Hindu Religious & Charitable Endowments
🔰 परिचय: हिंदू धर्म में धार्मिक और परोपकारी दान (Endowments) का विशेष महत्व है। यह Endowments सार्वजनिक मंदिरों, मठों और अन्य धार्मिक स्थलों के संचालन के लिए बनाए जाते हैं। इनका कानूनी स्वरूप विशिष्ट होता है और इनसे जुड़ी संपत्ति को ‘Debutter property’ कहा जाता है।
📌 A. प्रकार – Ishta और Purta
- Ishta: यज्ञ, वैदिक अनुष्ठान, ब्राह्मणों को दान आदि
- Purta: मंदिर, कुएं, तालाब, धर्मशाला, शिक्षण संस्थान, गौशाला आदि का निर्माण
- दान का उद्देश्य – स्वर्ग (Ishta) और मोक्ष (Purta)
- उदाहरण – विद्या दान (Education), स्वास्थ्य सहायता, सार्वजनिक हित कार्य:contentReference[oaicite:0]{index=0}
📌 B. Creation of Endowment
- Founder: हिंदू, सक्षम मानसिक स्थिति में होना चाहिए।
- Intention: स्पष्ट उद्देश्य – धार्मिक या परोपकारी।
- Formalities: रजिस्ट्री आवश्यक नहीं। धार्मिक संस्कार (Sankalpa/Samarpan) अनिवार्य नहीं:contentReference[oaicite:1]{index=1}
- Case: Devaki Nandan v. Muralidhar – केवल मंशा से Endowment वैध माना गया:contentReference[oaicite:2]{index=2}
📌 C. Legal Status: Debutter Property
- मंदिर या मठ एक Juridical Person होता है
- प्रॉपर्टी की मालिकाना हक देवता (Idol) के नाम होती है, न कि पुजारी के
- प्रॉपर्टी का संचालन Mahant (मठ) या Shebait (मंदिर) करते हैं
📌 D. Shebait & Mahant – Role & Powers
- Shebait: देवस्थान (Temple) का व्यवस्थापक – केवल ट्रस्टी के समान
- Mahant: मठ का अध्यात्मिक प्रमुख, धार्मिक शिक्षा एवं अनुशासन का रक्षक
- पद हरण: दुर्व्यवहार, अनियमितता पर हटाया जा सकता है
- Leading Case: Hanuman Prasad v. Baboo – Only for legal necessity, alienation permitted:contentReference[oaicite:3]{index=3}
📌 E. Alienation of Debutter Property
- Legal Necessity: प्रॉपर्टी बेचना तभी वैध जब संस्था के हित में हो
- Case: Palaniappa v. Devasikamony – ‘Legal necessity’ का विस्तार से विश्लेषण:contentReference[oaicite:4]{index=4}
📌 F. Temple – Public vs Private
- Case: Collector of Madura v. Ramalingam – यदि जनता स्वतंत्र रूप से पूजन करे तो मंदिर सार्वजनिक माना जाएगा:contentReference[oaicite:5]{index=5}
📌 G. राज्य का हस्तक्षेप
- राज्य सरकारों को अधिकार – धार्मिक और परोपकारी न्यासों पर कानून बनाने के लिए
- Commissioner नियुक्त किए जाते हैं इन Endowments की सुरक्षा के लिए
- हिंदू धर्मशास्रिक उद्देश्य से विपरीत उद्देश्य के लिए किया गया दान – अमान्य
📌 परीक्षा उपयोगी नोट्स:
- Debutter Property का मालिक देवता होता है
- Mahant/Shebait के पास सीमित अधिकार होते हैं
- दान हेतु न रजिस्ट्री आवश्यक, न ही संकल्प
- Legal Necessity का सिद्ध होना आवश्यक
📖 निष्कर्ष: हिंदू धार्मिक और परोपकारी दान (Endowments) हमारी सांस्कृतिक विरासत और समाज सेवा का मूल आधार हैं। न्यायालयों ने इनकी मान्यता, प्रबंधन और सीमाओं को स्पष्ट किया है जिससे यह कानूनी रूप से संरक्षित रहें।
📘 UNIT 5: Hindu Succession Act, 1956
🔰 उद्देश्य: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 का उद्देश्य है कि किसी हिंदू व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का न्यायपूर्ण और समान रूप से उत्तराधिकार हो।
📌 Section 6: Coparcenary Rights (2005 Amendment)
- पुत्री को जन्म से ही coparcener का दर्जा
- पुत्र की तरह अधिकार और दायित्व
- Testamentary disposition के माध्यम से महिला संपत्ति को बाँट सकती है
- Case: Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा: पुत्री को समान अधिकार बिना शर्त मिलेंगे।
📌 Section 8-10: Succession to Males
Section 8: पुरुष के उत्तराधिकार में निम्नलिखित क्रम:
- Class I Heirs (पुत्र, पुत्री, पत्नी, माता)
- Class II Heirs (पिता, भाई, बहन आदि)
- Agnates
- Cognates
Section 9: Class I के उत्तराधिकारी एक साथ उत्तराधिकारी बनते हैं।
Section 10: Property को समान रूप से बाँटा जाएगा (per capita not per stirpes)
📌 Section 14: Property of Hindu Female
महिला को उसकी संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व प्राप्त है, चाहे वो किस भी प्रकार से प्राप्त हो।
Case: Kotturuswami v. Veeravva (1959) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला के पास यदि केवल symbolic possession है, तब भी वह पूर्ण स्वामिनी होगी।
📌 Section 15 & 16: Succession to Females
- पुत्र, पुत्री और पति
- पति के उत्तराधिकारी
- माता-पिता
- पिता के उत्तराधिकारी
- माता के उत्तराधिकारी
Rule: Entry के अनुसार प्राथमिकता दी जाएगी (Rule 1 to 3)
📌 Section 23: Dwelling House
महिला उत्तराधिकारी केवल तभी घर में विभाजन का दावा कर सकती है जब पुरुष उत्तराधिकारी ऐसा चाहें। लेकिन अविवाहित, विधवा या परित्यक्त पुत्री को निवास का अधिकार होगा।
📌 Section 24 to 28: Disqualifications
- Sec 24: पुनर्विवाहित विधवा उत्तराधिकार नहीं ले सकती
- Sec 25: Murder करने वाला उत्तराधिकारी नहीं बन सकता
- Sec 26: Convert के बच्चे उत्तराधिकार से वंचित
- Sec 27: Disqualified व्यक्ति को मृत मानकर उत्तराधिकार होगा
- Sec 28: बीमारी या विकृति से उत्तराधिकार नहीं छिनेगा
📌 Section 30: Testamentary Succession
कोई भी हिंदू अपनी संपत्ति को वसीयत द्वारा बाँट सकता है। Coparcenary share को भी वसीयत के द्वारा बाँटा जा सकता है।
📌 निष्कर्ष:
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 से महिलाओं को समान अधिकार, कानूनी उत्तराधिकार का स्पष्ट क्रम, और सामाजिक न्याय की भावना प्राप्त हुई है। यह अधिनियम हर कानून के विद्यार्थी के लिए अत्यंत आवश्यक है।
📘 UNIT 6: Hindu Law of Partition – Mitakshara & Dayabhaga
🔰 परिचय: 'Partition' का अर्थ है संयुक्त हिंदू परिवार में सह-उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति का विभाजन। यह विभाजन न केवल संपत्ति का होता है बल्कि स्थिति (status) का भी होता है।
📌 Mitakshara Coparcenary में विभाजन
- Mitakshara Law में पुत्र को जन्म से coparcenary अधिकार प्राप्त होता है।
- Coparcenary में चार पीढ़ियाँ होती हैं: पिता, पुत्र, पौत्र, और प्रपौत्र।
- Partition केवल पुरुष coparceners के बीच ही होता है, लेकिन HSA 2005 Amendment के बाद बेटियाँ भी coparceners बनीं।
- Partition = Status + Share का विभाजन
- Lord Westbury (Appovier v. Ramasubbien): “Partition is a severance of joint status, not necessarily metes and bounds.”
📌 Dayabhaga School में विभाजन
- पुत्र को coparcenary अधिकार केवल पिता की मृत्यु के बाद प्राप्त होता है।
- अधिकार by succession मिलता है न कि by birth।
- विभाजन के समय तक पिता सम्पत्ति का पूर्ण स्वामी होता है।
- बंगाल और असम में Dayabhaga मान्य है।
📌 विभाजन के तरीके (Modes of Partition)
- By notice: कोई coparcener स्पष्ट रूप से अपनी अलग स्थिति जाहिर कर दे।
- By suit: अदालत में वाद द्वारा (including minor through guardian)
- By agreement: सभी coparceners के बीच मौखिक या लिखित सहमति
- By conduct or telegram: Partition का इरादा व्यवहार से भी सिद्ध हो सकता है
- By arbitration or will: विभाजन हेतु मध्यस्थता या वसीयत
- By conversion or civil marriage
📌 Leading Cases
- 📌 Appovier v. Ramasubbien (Privy Council) – "Partition can occur by intention even without physical division":contentReference[oaicite:0]{index=0}
- 📌 Rukmabai v. Laxminarayan (1960) – Hindu family presumed to be joint until intention to divide is proved
- 📌 Raghavamma v. Kenchamma – Telegram of intention to partition valid; will by separated coparcener is valid
- 📌 Puttarangamma v. Ranganna (1968) – Severance of status can happen by declaration
- 📌 Bhagwan Dayal v. Rewati Devi – Reunion must be by consent and proved as fact:contentReference[oaicite:1]{index=1}
📌 Coparcenary Rights of Daughter – Post 2005
बेटियाँ भी जन्म से coparcener बनीं और उन्हें समान अधिकार प्राप्त हुआ। Partition में उनकी हिस्सेदारी अनिवार्य हो गई।
Case: Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020) – Daughter को जन्म से coparcenary का अधिकार है, चाहे पिता की मृत्यु 2005 से पहले हो या बाद में।
📚 Leading Case Laws on Section 6 – Daughter’s Right in Coparcenary Property
-
📌 Mary Roy v. State of Kerala (1986)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रावनकोर क्रिश्चियन एक्ट, 1916, जो महिलाओं को संपत्ति से वंचित करता था, वह असंवैधानिक है। महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत समान अधिकार दिए गए। -
📌 Prakash v. Phulavati (2016)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पिता 09/09/2005 से पहले मर चुका है, तो पुत्री को संशोधित धारा 6 के तहत coparcenary अधिकार नहीं मिलेगा। -
📌 Danamma v. Amar (2018)
कोर्ट ने कहा कि यदि मुकदमा लंबित है, तो पुत्री संशोधित धारा 6 के तहत coparcenary संपत्ति में हिस्सा मांग सकती है, भले ही पिता की मृत्यु 2005 से पहले हुई हो। -
📌 Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020 – Constitutional Bench)
यह ऐतिहासिक निर्णय था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बेटी को जन्म से ही coparcenary का समान अधिकार प्राप्त है, और पिता की मृत्यु की तिथि महत्वहीन है।
“Daughter must be treated equally in rights and liabilities as a son.” -
📌 Arunachala Gounder v. Ponnusamy (2022)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि महिला को पैतृक संपत्ति प्राप्त हुई है, तो वह “coparcenary” मानी जाएगी और उसकी मृत्यु के बाद वह उसकी legal heirs को जाएगी, न कि मूल परिवार को।
🧾 निष्कर्ष: 2005 संशोधन और उपरोक्त निर्णयों ने पुत्रियों को समान उत्तराधिकार अधिकार प्रदान किए, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 की भावना के अनुरूप है। अब पुत्री जन्म से ही पारिवारिक संपत्ति में coparcener होती है।
📌 पुनः मिलन (Reunion) और Re-opening of Partition
- Partition के बाद अगर भाई, पिता, चाचा पुनः एक साथ रहते हैं और साझे में संपत्ति रखते हैं तो उसे "Reunion" कहते हैं।
- Case: Bhagwan Dayal v. Rewati Devi – Reunion must be intentional and provable
- Partition दुबारा खोला जा सकता है – (i) Fraud, (ii) Mistake, (iii) Minor’s interest harmed
- Case: Ratnam v. Kuppuswami (1976)
📌 Exam Highlights:
- Partition is both legal and factual
- Daughter's right under Section 6 is crucial for current questions
- Difference between Mitakshara and Dayabhaga systems must be remembered
📖 निष्कर्ष: Partition की प्रक्रिया, उसका प्रभाव, और बेटियों के अधिकार हिंदू विधि में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन्हें LLB, NET, JUDGE परीक्षा में अच्छे से याद करना चाहिए।
📘 UNIT 7: Hindu Law – Karta and His Legal Position
🔰 परिचय: 'Karta' हिंदू संयुक्त परिवार का प्रमुख प्रबंधक होता है। Mitakshara प्रणाली में यह भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। Karta पूरे परिवार का प्रतिनिधित्व करता है और उसके कार्यों से सभी coparceners बाध्य होते हैं।
📌 कौन हो सकता है Karta?
- सामान्यतः पिता होता है या फिर सबसे बड़ा पुरुष coparcener
- कोई कनिष्ठ पुरुष सदस्य भी Karta बन सकता है – सभी coparceners की सहमति से
- न्यायालयीन निर्णय: CIT v. Govindram Sugar Mills – महिला Karta नहीं बन सकती:contentReference[oaicite:0]{index=0}
📌 Karta के अधिकार (Powers of Karta)
- प्रबंध अधिकार (Management Authority): पूर्ण प्रबंधन अधिकार और निर्णय लेने की स्वतंत्रता
- प्रतिनिधित्व: परिवार का कानूनी और वित्तीय मामलों में प्रतिनिधित्व
- ऋण लेना: पारिवारिक उद्देश्य के लिए ऋण ले सकता है और सभी coparceners बाध्य होंगे
- संपत्ति का विक्रय / बंधक: लीगल नेसेसिटी या पारिवारिक हित हेतु
- कानूनी कार्यवाही: Karta स्वयं नाम से मुकदमा दायर कर सकता है या मुकदमा चलाया जा सकता है:contentReference[oaicite:1]{index=1}
- व्यापार: संयुक्त परिवार के व्यापार को चला सकता है और संपत्ति गिरवी रख सकता है
📌 Karta की जिम्मेदारियाँ (Duties of Karta)
- सदस्यों की देखभाल करना (maintenance and residence)
- सच्चे और उचित हिसाब रखना, विशेषकर जब सदस्य मांग करें
- किसी भी पारिवारिक हित को नुकसान नहीं पहुँचाना
- सभी कार्य पारिवारिक उद्देश्य हेतु होने चाहिए
📌 Karta की संपत्ति विक्रय की शक्ति (Power of Alienation)
Mitakshara सिद्धांत: 'Apat Kale, Kutumbarthe, Dharmarthe'
- आपत्ति की स्थिति (Legal Necessity)
- पारिवारिक हित (Benefit of the Estate)
- धार्मिक कार्यों के लिए (Pious Purpose)
- Case: Guramma v. Mallappa (1964) – बेटी के विवाह के बाद पिता द्वारा संपत्ति दान वैध ठहराया गया:contentReference[oaicite:2]{index=2}
📌 क्या महिला Karta बन सकती है?
- परंपरागत रूप से नहीं
- लेकिन Sucheta Kriplani v. CIT (1981) – उच्च न्यायालय ने कहा कि विधवा महिला (in some circumstances) प्रबंधक बन सकती है यदि वह प्रमुख हो
- Case: Sujata Sharma v. Manu Gupta (2015) – दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बेटी भी HUF की Karta बन सकती है, विशेष रूप से HSA 2005 के बाद
📌 Karta की Sui Generis स्थिति (Legal Status)
- Karta न तो trustee है और न ही agent
- उसके कार्यों के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं जब तक कोई धोखाधड़ी या दुरुपयोग न हो
- यदि कोई coparcener असंतुष्ट है, तो उसका उपाय है partition
📌 प्रमुख केस कानून (Leading Cases)
- 📌 CIT v. Govindram Sugar Mills – महिला Karta नहीं हो सकती
- 📌 Guramma v. Mallappa (1964) – कानूनी आवश्यकता के आधार पर संपत्ति का दान वैध
- 📌 Sujata Sharma v. Manu Gupta (2015) – बेटी को HUF की Karta माना गया
- 📌 Amarendra Mansingh v. Sanatan Singh – ट्रस्टी/गार्जियन/Karta की भूमिका में alienation की अनुमति है जरूरत पड़ने पर:contentReference[oaicite:3]{index=3}
📖 निष्कर्ष: Karta संयुक्त हिंदू परिवार की धुरी है। वह संपत्ति, विवाद, कानूनी कार्यों, और अन्य जिम्मेदारियों में पूरे परिवार का नेतृत्व करता है। आधुनिक संदर्भ में महिलाओं को भी Karta के रूप में मान्यता मिलना एक संवैधानिक समानता की दिशा में बढ़ता कदम है।
📘 UNIT 7: Hindu Law – Karta and His Legal Position
🔰 परिचय: 'Karta' हिंदू संयुक्त परिवार का प्रमुख प्रबंधक होता है। Mitakshara प्रणाली में यह भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। Karta पूरे परिवार का प्रतिनिधित्व करता है और उसके कार्यों से सभी coparceners बाध्य होते हैं।
📌 कौन हो सकता है Karta?
- सामान्यतः पिता होता है या फिर सबसे बड़ा पुरुष coparcener
- कोई कनिष्ठ पुरुष सदस्य भी Karta बन सकता है – सभी coparceners की सहमति से
- न्यायालयीन निर्णय: CIT v. Govindram Sugar Mills – महिला Karta नहीं बन सकती:contentReference[oaicite:0]{index=0}
📌 Karta के अधिकार (Powers of Karta)
- प्रबंध अधिकार (Management Authority): पूर्ण प्रबंधन अधिकार और निर्णय लेने की स्वतंत्रता
- प्रतिनिधित्व: परिवार का कानूनी और वित्तीय मामलों में प्रतिनिधित्व
- ऋण लेना: पारिवारिक उद्देश्य के लिए ऋण ले सकता है और सभी coparceners बाध्य होंगे
- संपत्ति का विक्रय / बंधक: लीगल नेसेसिटी या पारिवारिक हित हेतु
- कानूनी कार्यवाही: Karta स्वयं नाम से मुकदमा दायर कर सकता है या मुकदमा चलाया जा सकता है:contentReference[oaicite:1]{index=1}
- व्यापार: संयुक्त परिवार के व्यापार को चला सकता है और संपत्ति गिरवी रख सकता है
📌 Karta की जिम्मेदारियाँ (Duties of Karta)
- सदस्यों की देखभाल करना (maintenance and residence)
- सच्चे और उचित हिसाब रखना, विशेषकर जब सदस्य मांग करें
- किसी भी पारिवारिक हित को नुकसान नहीं पहुँचाना
- सभी कार्य पारिवारिक उद्देश्य हेतु होने चाहिए
📌 Karta की संपत्ति विक्रय की शक्ति (Power of Alienation)
Mitakshara सिद्धांत: 'Apat Kale, Kutumbarthe, Dharmarthe'
- आपत्ति की स्थिति (Legal Necessity)
- पारिवारिक हित (Benefit of the Estate)
- धार्मिक कार्यों के लिए (Pious Purpose)
- Case: Guramma v. Mallappa (1964) – बेटी के विवाह के बाद पिता द्वारा संपत्ति दान वैध ठहराया गया:contentReference[oaicite:2]{index=2}
📌 क्या महिला Karta बन सकती है?
- परंपरागत रूप से नहीं
- लेकिन Sucheta Kriplani v. CIT (1981) – उच्च न्यायालय ने कहा कि विधवा महिला (in some circumstances) प्रबंधक बन सकती है यदि वह प्रमुख हो
- Case: Sujata Sharma v. Manu Gupta (2015) – दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बेटी भी HUF की Karta बन सकती है, विशेष रूप से HSA 2005 के बाद
📌 Karta की Sui Generis स्थिति (Legal Status)
- Karta न तो trustee है और न ही agent
- उसके कार्यों के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं जब तक कोई धोखाधड़ी या दुरुपयोग न हो
- यदि कोई coparcener असंतुष्ट है, तो उसका उपाय है partition
📌 प्रमुख केस कानून (Leading Cases)
- 📌 CIT v. Govindram Sugar Mills – महिला Karta नहीं हो सकती
- 📌 Guramma v. Mallappa (1964) – कानूनी आवश्यकता के आधार पर संपत्ति का दान वैध
- 📌 Sujata Sharma v. Manu Gupta (2015) – बेटी को HUF की Karta माना गया
- 📌 Amarendra Mansingh v. Sanatan Singh – ट्रस्टी/गार्जियन/Karta की भूमिका में alienation की अनुमति है जरूरत पड़ने पर:contentReference[oaicite:3]{index=3}
📖 निष्कर्ष: Karta संयुक्त हिंदू परिवार की धुरी है। वह संपत्ति, विवाद, कानूनी कार्यों, और अन्य जिम्मेदारियों में पूरे परिवार का नेतृत्व करता है। आधुनिक संदर्भ में महिलाओं को भी Karta के रूप में मान्यता मिलना एक संवैधानिक समानता की दिशा में बढ़ता कदम है।
📘 UNIT 8: Hindu Law of Succession – Male & Female
🔰 परिचय: उत्तराधिकार (Succession) हिंदू विधि का एक महत्वपूर्ण विषय है, जो यह निर्धारित करता है कि किसी हिंदू की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति किन लोगों में और कैसे वितरित होगी। Hindu Succession Act, 1956 (संशोधित 2005) इसका प्रमुख स्रोत है।
📌 Section 6 – Coparcenary Rights & Daughters (HSA 2005)
- 2005 के संशोधन के बाद बेटी को भी जन्म से coparcener का दर्जा मिला।
- वह पुत्र के समान अधिकार और उत्तरदायित्व रखती है।
- संपत्ति में हिस्सा, उत्तराधिकार, विभाजन का अधिकार – सभी समान रूप से मिलते हैं।
- Leading Case: Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020) – बेटी को जन्म से अधिकार है, भले ही पिता की मृत्यु 2005 से पहले हुई हो:contentReference[oaicite:0]{index=0}
📌 Section 14 – Female Hindu's Property
- महिला हिंदू के पास जो भी संपत्ति है (Stridhan, उत्तराधिकार, उपहार आदि से प्राप्त), वह उसकी पूर्ण संपत्ति मानी जाएगी।
- उसे Limited Owner नहीं माना जाएगा।
- Case: Eramma v. Virupanna – महिला जो संपत्ति अपने पति से प्राप्त करती है, वह Section 14(1) के अंतर्गत आती है:contentReference[oaicite:1]{index=1}
- Case: Kotturuswami v. Veeravva – Constructive possession भी अधिकार देता है:contentReference[oaicite:2]{index=2}
📌 Section 15 – Succession of Female Hindus
- पहले – पुत्र, पुत्रियाँ, पति
- दूसरे – पति के उत्तराधिकारी
- तीसरे – माता-पिता
- चौथे – पिता के उत्तराधिकारी
- पाँचवे – माता के उत्तराधिकारी
- Exception: पिता से प्राप्त संपत्ति – पिता के वारिसों को जाएगी
- पति या ससुर से प्राप्त संपत्ति – पति के वारिसों को जाएगी:contentReference[oaicite:3]{index=3}
📌 Section 16 – Order of Succession of Female Hindu
- एक ही श्रेणी में आने वाले उत्तराधिकारी समान रूप से हिस्सा प्राप्त करेंगे
- पूर्व मृत संतान के बच्चे, उसी हिस्से के हकदार होंगे
- ध्यान रखें: उत्तराधिकार "Per Capita" के अनुसार होता है, "Per Stirpes" नहीं:contentReference[oaicite:4]{index=4}
📌 Section 8 – Succession of Male Hindus
- Class I heirs: पुत्र, पुत्री, पत्नी, माता, आदि
- Class II heirs: पिता, भाई, बहन, आदि
- Class I को प्राथमिकता है – सभी साथ-साथ बराबर हिस्सा लेते हैं
📌 महत्वपूर्ण केस कानून (Leading Cases)
- Mary Roy v. State of Kerala (1986) – क्रिश्चियन महिला की उत्तराधिकार को समानता का अधिकार मिला
- Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma – बेटी को coparcenary अधिकार जन्म से मिला
- Eramma v. Virupanna – Limited estate का abolition और full ownership का अधिकार
- Kotturuswami v. Veeravva – Constructive possession = legal right
- Arunachala Mudaliar v. Muruganatha – Will द्वारा दी गई संपत्ति ancestral नहीं होती:contentReference[oaicite:5]{index=5}
📌 मुख्य विशेषताएँ – संशोधित उत्तराधिकार विधि (HSA 2005)
- बेटी भी coparcenary में समान अधिकार रखती है
- संपत्ति का उत्तराधिकार अब लैंगिक समानता के सिद्धांत पर आधारित है
- सभी प्रकार की inherited, gifted या self-acquired संपत्ति पर महिला का पूर्ण अधिकार
- Limited Estate की अवधारणा समाप्त
📖 निष्कर्ष: Hindu Succession Act 1956 और 2005 के संशोधन ने उत्तराधिकार में महिलाओं के अधिकारों को दृढ़ किया है। चाहे वह स्वामित्व हो, संपत्ति का बंटवारा हो, या coparcenary में अधिकार, सबमें बेटियाँ और महिलाएँ समान रूप से भागीदार हैं।
📘 UNIT 9: Hindu Law – Gift & Testamentary Succession
🔰 परिचय: हिंदू विधि में संपत्ति का हस्तांतरण दो प्रकार से होता है – जीवित रहते हुए (Gift) और मृत्यु के बाद (Will/Testament)। यह दोनों विधियाँ संपत्ति के उत्तराधिकार को प्रभावित करती हैं।
📌 A. Gift (दान) under Hindu Law
Gift की परिभाषा: जब बिना किसी प्रतिफल के, स्वेच्छा से किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति प्रदान की जाती है, तो उसे दान कहते हैं।
- Conditions: Donor का स्वेच्छा से देना, Donee का स्वीकार करना, और संपत्ति का ट्रांसफर
- Gift तभी वैध है जब:
- Donor सक्षम (sound mind) हो
- Donee जीवित हो और स्वीकार कर सके
- Gift movable या immovable दोनों हो सकती है
- संपत्ति का स्वामित्व तुरंत बदलता है
Stridhana में Gift: Stridhana में Gift को महिला पूर्ण स्वामित्व से रख सकती है, विशेषकर Saudayika (निकट रिश्तेदारों से प्राप्त)।
Leading Case: Rajamma v. Vajravelu Chetti – पति से अनुमति के बिना महिला का Saudayika Gift वैध माना गया:contentReference[oaicite:0]{index=0}
📌 B. Will (वसीयत) – Testamentary Succession
Will की परिभाषा: जब कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति के वितरण की योजना मृत्यु के बाद करता है, तो वह वसीयत कहलाती है।
- Hindu Succession Act के अनुसार, Will बनाने की पूरी स्वतंत्रता है।
- Will को Indian Succession Act, 1925 के तहत नियंत्रित किया जाता है।
- यह Self-acquired या coparcenary property को कवर कर सकती है।
Special Provision: Coparcener का हिस्सा भी वसीयत से स्थानांतरित किया जा सकता है (Section 6 HSA Amendment 2005):contentReference[oaicite:1]{index=1}
Conditions of Valid Will:
- Donor सक्षम और स्वतंत्र होना चाहिए
- Will लिखित रूप में हो, दो गवाहों के हस्ताक्षर आवश्यक
- Executor को नामित किया जा सकता है
Leading Case: Guramma Bhratar Chandrashekhar v. Mallappa – उपयुक्त उद्देश्य के लिए की गई वसीयत या उपहार वैध मानी गई:contentReference[oaicite:2]{index=2}
📌 C. Comparison: Gift vs Will
Particulars | Gift | Will |
---|---|---|
प्रभाव | जीवनकाल में प्रभावी | मृत्यु के बाद प्रभावी |
स्वीकृति | तत्काल ट्रांसफर के लिए आवश्यक | स्वीकृति जरूरी नहीं |
गवाह | जरूरी नहीं | दो गवाह जरूरी |
रद्द करना | रद्द नहीं किया जा सकता | किसी भी समय बदला या रद्द किया जा सकता है |
📌 D. परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
- Gift के लिए Donee की स्वीकृति आवश्यक
- Testamentary Succession Hindu Succession Act और Indian Succession Act दोनों से नियंत्रित होती है
- 2005 संशोधन के बाद बेटी भी वसीयत कर सकती है
- Stridhana और Saudayika – महिला अधिकारों को समझना आवश्यक है
📖 निष्कर्ष: हिंदू विधि में संपत्ति हस्तांतरण के दोनों माध्यम – दान और वसीयत – कानूनी रूप से सशक्त और मान्य हैं। प्रत्येक विधि का अपना महत्व है और इनके सिद्धांत न्यायालय द्वारा कई केसों में स्पष्ट किए गए हैं।
📘 UNIT 10: Hindu Religious & Charitable Endowments
🔰 परिचय: हिंदू धर्म में धार्मिक और परोपकारी दान (Endowments) का विशेष महत्व है। यह Endowments सार्वजनिक मंदिरों, मठों और अन्य धार्मिक स्थलों के संचालन के लिए बनाए जाते हैं। इनका कानूनी स्वरूप विशिष्ट होता है और इनसे जुड़ी संपत्ति को ‘Debutter property’ कहा जाता है।
📌 A. प्रकार – Ishta और Purta
- Ishta: यज्ञ, वैदिक अनुष्ठान, ब्राह्मणों को दान आदि
- Purta: मंदिर, कुएं, तालाब, धर्मशाला, शिक्षण संस्थान, गौशाला आदि का निर्माण
- दान का उद्देश्य – स्वर्ग (Ishta) और मोक्ष (Purta)
- उदाहरण – विद्या दान (Education), स्वास्थ्य सहायता, सार्वजनिक हित कार्य:contentReference[oaicite:0]{index=0}
📌 B. Creation of Endowment
- Founder: हिंदू, सक्षम मानसिक स्थिति में होना चाहिए।
- Intention: स्पष्ट उद्देश्य – धार्मिक या परोपकारी।
- Formalities: रजिस्ट्री आवश्यक नहीं। धार्मिक संस्कार (Sankalpa/Samarpan) अनिवार्य नहीं:contentReference[oaicite:1]{index=1}
- Case: Devaki Nandan v. Muralidhar – केवल मंशा से Endowment वैध माना गया:contentReference[oaicite:2]{index=2}
📌 C. Legal Status: Debutter Property
- मंदिर या मठ एक Juridical Person होता है
- प्रॉपर्टी की मालिकाना हक देवता (Idol) के नाम होती है, न कि पुजारी के
- प्रॉपर्टी का संचालन Mahant (मठ) या Shebait (मंदिर) करते हैं
📌 D. Shebait & Mahant – Role & Powers
- Shebait: देवस्थान (Temple) का व्यवस्थापक – केवल ट्रस्टी के समान
- Mahant: मठ का अध्यात्मिक प्रमुख, धार्मिक शिक्षा एवं अनुशासन का रक्षक
- पद हरण: दुर्व्यवहार, अनियमितता पर हटाया जा सकता है
- Leading Case: Hanuman Prasad v. Baboo – Only for legal necessity, alienation permitted:contentReference[oaicite:3]{index=3}
📌 E. Alienation of Debutter Property
- Legal Necessity: प्रॉपर्टी बेचना तभी वैध जब संस्था के हित में हो
- Case: Palaniappa v. Devasikamony – ‘Legal necessity’ का विस्तार से विश्लेषण:contentReference[oaicite:4]{index=4}
📌 F. Temple – Public vs Private
- Case: Collector of Madura v. Ramalingam – यदि जनता स्वतंत्र रूप से पूजन करे तो मंदिर सार्वजनिक माना जाएगा:contentReference[oaicite:5]{index=5}
📌 G. राज्य का हस्तक्षेप
- राज्य सरकारों को अधिकार – धार्मिक और परोपकारी न्यासों पर कानून बनाने के लिए
- Commissioner नियुक्त किए जाते हैं इन Endowments की सुरक्षा के लिए
- हिंदू धर्मशास्रिक उद्देश्य से विपरीत उद्देश्य के लिए किया गया दान – अमान्य
📌 परीक्षा उपयोगी नोट्स:
- Debutter Property का मालिक देवता होता है
- Mahant/Shebait के पास सीमित अधिकार होते हैं
- दान हेतु न रजिस्ट्री आवश्यक, न ही संकल्प
- Legal Necessity का सिद्ध होना आवश्यक
📖 निष्कर्ष: हिंदू धार्मिक और परोपकारी दान (Endowments) हमारी सांस्कृतिक विरासत और समाज सेवा का मूल आधार हैं। न्यायालयों ने इनकी मान्यता, प्रबंधन और सीमाओं को स्पष्ट किया है जिससे यह कानूनी रूप से संरक्षित रहें।
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