📘 BNS संवाद उपन्यास – भाग 08 | धारा 45 – उकसाना (Abetment)
📍स्थान: गाँव का पंचायत भवन | स्थिति: चोरी के आरोप में युवक की गिरफ़्तारी पर पंचायत बुलाई गई है।
📌 नोट: इस पूरे भाग में जहां-जहां “अभिप्रेरण” शब्द आया है, वहां उसे “दुष्प्रेरण” के रूप में पढ़ें।
मनोज: सुरेश, निशा! सुना क्या – रमेश को चोरी के आरोप में पकड़ लिया है?
सुरेश: हाँ, लेकिन मामला उतना सीधा नहीं लग रहा। लगता है किसी ने जानबूझकर उसे फँसाया है।
निशा: तब तो मामला धारा 45 यानी "Abetment" का हो सकता है। चलो पंचायत में सुनते हैं पूरा मामला।
सुरेश: हाँ, लेकिन मामला उतना सीधा नहीं लग रहा। लगता है किसी ने जानबूझकर उसे फँसाया है।
निशा: तब तो मामला धारा 45 यानी "Abetment" का हो सकता है। चलो पंचायत में सुनते हैं पूरा मामला।
सरपंच (दीपक): रमेश पर चोरी का आरोप है, पर गवाह कह रहे हैं कि किसी और ने उसे उकसाया था।
सुरेश: बिल्कुल! धारा 45 कहती है – अगर कोई किसी को उकसाता है, या षड्यंत्र करता है, या जानबूझकर सहायता करता है, तो वह भी अपराध का भागीदार होता है।
सुरेश: बिल्कुल! धारा 45 कहती है – अगर कोई किसी को उकसाता है, या षड्यंत्र करता है, या जानबूझकर सहायता करता है, तो वह भी अपराध का भागीदार होता है।
🧠 धारा 45 के तीन प्रमुख रूप:
- Instigates – किसी को उकसाना
- Conspires – अपराध के लिए साजिश करना
- Aids – जानबूझकर मदद करना
निशा: मान लो, कोई झूठ बोलकर कहे कि “वो चोर है”, और पुलिस किसी निर्दोष को पकड़ ले?
मनोज: तब तो वह झूठ बोलने वाला व्यक्ति "उकसाने" का दोषी होगा। यही तो Explanation 1 कहती है।
उदाहरण: B जानबूझकर C को Z कहता है, जिससे A (पुलिस) C को पकड़ ले – B ने अपराध को उकसाया।
मनोज: तब तो वह झूठ बोलने वाला व्यक्ति "उकसाने" का दोषी होगा। यही तो Explanation 1 कहती है।
उदाहरण: B जानबूझकर C को Z कहता है, जिससे A (पुलिस) C को पकड़ ले – B ने अपराध को उकसाया।
सुरेश: इसीलिए कानून में सिर्फ मुख्य अपराधी नहीं, बल्कि पीछे से उकसाने वाले को भी जिम्मेदार माना जाता है।
मनोज: और कई बार लोग सोचते हैं कि “मैंने तो कुछ किया ही नहीं”, लेकिन अगर आपने उकसाया या साजिश की – आप भी दोषी हैं।
मनोज: और कई बार लोग सोचते हैं कि “मैंने तो कुछ किया ही नहीं”, लेकिन अगर आपने उकसाया या साजिश की – आप भी दोषी हैं।
निशा: एक बात बताओ – अगर कोई व्यक्ति सीधे चोरी नहीं करता, लेकिन चोरी करने में मदद करता है?
सुरेश: तो वो भी दोषी होगा! Explanation 2 के अनुसार –
“जो कोई, किसी कार्य को करने में सहायता करता है, या उस कार्य को आसान बनाता है – वह भी 'उकसाने' (Abetment) का दोषी होता है।”
मनोज: यानी अगर मैं दरवाज़ा खोल दूं ताकि चोरी आसानी से हो जाए, तब भी मैं अपराध में भागीदार हो गया?
सुरेश: बिल्कुल! जानबूझकर कोई सहायता – चाहे छोटी हो या बड़ी – भी कानून की नजर में "अभिप्रेरण" है।
सुरेश: तो वो भी दोषी होगा! Explanation 2 के अनुसार –
“जो कोई, किसी कार्य को करने में सहायता करता है, या उस कार्य को आसान बनाता है – वह भी 'उकसाने' (Abetment) का दोषी होता है।”
मनोज: यानी अगर मैं दरवाज़ा खोल दूं ताकि चोरी आसानी से हो जाए, तब भी मैं अपराध में भागीदार हो गया?
सुरेश: बिल्कुल! जानबूझकर कोई सहायता – चाहे छोटी हो या बड़ी – भी कानून की नजर में "अभिप्रेरण" है।
📚 निष्कर्ष: BNS की धारा 45 बताती है कि अपराध में केवल हाथ डालना ही नहीं, बल्कि उकसाना, योजना बनाना या मदद करना भी अपराध है। ऐसे व्यक्ति को भी सज़ा मिल सकती है।
स्थान: गांव की पंचायत में सभी इकट्ठा हैं, एक गंभीर मामला सामने आया है।
मनोज: क्या कोई व्यक्ति केवल उकसाने या सलाह देने भर से अपराधी बन सकता है, भले ही असली काम न हुआ हो?
सुरेश: हां! धारा 46 कहती है – अगर कोई अपराध करवाने के इरादे से किसी को उकसाता है, या साजिश करता है, या सहायता करता है, तो वह भी 'अभिप्रेरण' (Abetment) का दोषी होता है – भले ही अपराध पूरा न हुआ हो।
“It is not necessary that the act abetted should be committed... The abettor is guilty even if the act is not done.”
निशा: लेकिन अगर सामने वाला बच्चा हो या पागल हो, और उसने अपराध किया हो?
सुरेश: तब भी जो व्यक्ति उसे उकसा रहा था – वही दोषी माना जाएगा।
मनोज: एक उदाहरण दो!
सुरेश: मान लो – “A” ने एक बच्चे (“B”) को ज़हर देकर किसी को मारने के लिए कहा, और बच्चा वो कर बैठा। अब “B” पर तो अपराध नहीं बनता, लेकिन “A” पर हत्या का मुकदमा चल सकता है।
निशा: अगर मैं किसी को धोखे से कुछ करने को कहूं, जो वो अपराध मानकर करता ही नहीं हो – फिर?
सुरेश: तब भी, तुमने अगर उसे जानबूझकर भ्रम में डालकर चोरी या अपराध करवा दिया – तो तुम ही दोषी कहलाओगी।
मनोज: एक बात और – क्या उकसाने की भी उकसाने पर अपराध बनता है?
सुरेश: बिल्कुल! Explanation 4 कहती है – "Abetment of abetment is also an offence."
📌 उदाहरण: A ने B को कहा कि वो C को कहे कि Z की हत्या कर दे। C ने हत्या कर दी। अब C, B और A – तीनों दोषी हैं!
निशा: और अगर मैं खुद उस व्यक्ति से ना मिली हूं जिसने अपराध किया हो, लेकिन योजना में शामिल थी?
सुरेश: Explanation 5 कहती है – किसी अपराध की साजिश में हिस्सा लेना ही काफी है, भले ही मुख्य अपराधी से कभी मिले ही न हो।
📌 उदाहरण: A और B ने प्लान बनाया कि ज़हर दिया जाएगा। B ने C को प्लान बताया और ज़हर मंगवाया। बाद में A ने ज़हर देकर हत्या कर दी। अब C ने A को कभी नहीं देखा, लेकिन वह भी हत्या का दोषी माना जाएगा।
📘 निष्कर्ष: धारा 45 और 46 यह स्पष्ट करती हैं कि अपराध केवल करने से नहीं, करवाने, प्रेरित करने, या मदद करने से भी बनता है – चाहे अपराध पूरा हुआ हो या नहीं।
मनोज: क्या कोई व्यक्ति केवल उकसाने या सलाह देने भर से अपराधी बन सकता है, भले ही असली काम न हुआ हो?
सुरेश: हां! धारा 46 कहती है – अगर कोई अपराध करवाने के इरादे से किसी को उकसाता है, या साजिश करता है, या सहायता करता है, तो वह भी 'अभिप्रेरण' (Abetment) का दोषी होता है – भले ही अपराध पूरा न हुआ हो।
“It is not necessary that the act abetted should be committed... The abettor is guilty even if the act is not done.”
निशा: लेकिन अगर सामने वाला बच्चा हो या पागल हो, और उसने अपराध किया हो?
सुरेश: तब भी जो व्यक्ति उसे उकसा रहा था – वही दोषी माना जाएगा।
मनोज: एक उदाहरण दो!
सुरेश: मान लो – “A” ने एक बच्चे (“B”) को ज़हर देकर किसी को मारने के लिए कहा, और बच्चा वो कर बैठा। अब “B” पर तो अपराध नहीं बनता, लेकिन “A” पर हत्या का मुकदमा चल सकता है।
निशा: अगर मैं किसी को धोखे से कुछ करने को कहूं, जो वो अपराध मानकर करता ही नहीं हो – फिर?
सुरेश: तब भी, तुमने अगर उसे जानबूझकर भ्रम में डालकर चोरी या अपराध करवा दिया – तो तुम ही दोषी कहलाओगी।
मनोज: एक बात और – क्या उकसाने की भी उकसाने पर अपराध बनता है?
सुरेश: बिल्कुल! Explanation 4 कहती है – "Abetment of abetment is also an offence."
📌 उदाहरण: A ने B को कहा कि वो C को कहे कि Z की हत्या कर दे। C ने हत्या कर दी। अब C, B और A – तीनों दोषी हैं!
निशा: और अगर मैं खुद उस व्यक्ति से ना मिली हूं जिसने अपराध किया हो, लेकिन योजना में शामिल थी?
सुरेश: Explanation 5 कहती है – किसी अपराध की साजिश में हिस्सा लेना ही काफी है, भले ही मुख्य अपराधी से कभी मिले ही न हो।
📌 उदाहरण: A और B ने प्लान बनाया कि ज़हर दिया जाएगा। B ने C को प्लान बताया और ज़हर मंगवाया। बाद में A ने ज़हर देकर हत्या कर दी। अब C ने A को कभी नहीं देखा, लेकिन वह भी हत्या का दोषी माना जाएगा।
📘 निष्कर्ष: धारा 45 और 46 यह स्पष्ट करती हैं कि अपराध केवल करने से नहीं, करवाने, प्रेरित करने, या मदद करने से भी बनता है – चाहे अपराध पूरा हुआ हो या नहीं।
📍स्थान: पंचायत भवन, ग्रामीण सभा जारी है।
🧑🏫 पात्र: सुरेश, मनोज, निशा, और अब नए आगंतुक – शिक्षक संजय।
🎓 सुरेश: अरे! गुरुजी आ गए... 🙏 "संजय जी, स्वागत है!"
👩🌾 निशा: नमस्कार गुरुजी!
🧑🏫 संजय: नमस्कार सभी को! क्या चर्चा चल रही है?
👨🌾 मनोज: गुरुजी, अभी हम "अभिप्रेरण" यानी Abetment के बारे में जान रहे हैं – BNS की धारा 45 से।
🧑🏫 संजय: बहुत अच्छा विषय है, इसमें अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी दायित्व की बात होती है। जैसे धारा 47।
🧑🏫 संजय: धारा 47 कहती है – यदि कोई व्यक्ति भारत में बैठकर किसी अन्य देश में अपराध करवाता है, और वह कृत्य भारत में अपराध होता, तो वह अभिप्रेरण के दोषी होंगे।
📌 उदाहरण: A भारत में रहकर X देश के B को वहां किसी की हत्या करने को उकसाता है – तो A भारत में "हत्या के अभिप्रेरण" का अपराधी होगा।
सुरेश: और धारा 48 इसका उल्टा समझाती है – अगर कोई विदेश में रहकर भारत में कोई अपराध करवाता है, तब भी वह दोषी होगा।
📌 उदाहरण: A, देश X में बैठकर B को भारत में किसी की हत्या के लिए उकसाता है – तो A भारत में "हत्या के अभिप्रेरण" का दोषी माना जाएगा।
🧑🏫 संजय: अब धारा 49 एक अहम प्रावधान देती है – यदि कोई अभिप्रेरण करता है और उसके कारण अपराध होता है, लेकिन उस अभिप्रेरण की कोई विशेष सजा इस संहिता में नहीं दी गई है – तो उस अपराध की जो सजा है, वही सजा अभिप्रेरक को भी मिलेगी।
📌 उदाहरण 1: A ने B को झूठी गवाही देने को उकसाया और B ने वैसा किया – A को भी उतनी ही सजा मिलेगी जितनी B को।
📌 उदाहरण 2: A और B ने Z को ज़हर देने की योजना बनाई। A ने ज़हर लाकर B को दिया और B ने Z को ज़हर दे दिया – तो B हत्या का दोषी, A साजिशकर्ता और अभिप्रेरक के रूप में हत्या का दोषी।
मनोज: लेकिन अगर B ने कुछ अलग इरादे से काम किया, A के इरादे से अलग?
🧑🏫 संजय: यही बताती है धारा 50 – यदि B ने अपराध A की प्रेरणा से तो किया, लेकिन अलग इरादे से – तब A को उसी प्रकार सजा मिलेगी, जैसे यदि अपराध A के इरादे से किया गया होता।
🧑🏫 संजय: यानी अपराध की नीयत का संबंध अभिप्रेरक से तय होगा – और सजा भी उसी आधार पर!
🧑🏫 पात्र: सुरेश, मनोज, निशा, और अब नए आगंतुक – शिक्षक संजय।
🎓 सुरेश: अरे! गुरुजी आ गए... 🙏 "संजय जी, स्वागत है!"
👩🌾 निशा: नमस्कार गुरुजी!
🧑🏫 संजय: नमस्कार सभी को! क्या चर्चा चल रही है?
👨🌾 मनोज: गुरुजी, अभी हम "अभिप्रेरण" यानी Abetment के बारे में जान रहे हैं – BNS की धारा 45 से।
🧑🏫 संजय: बहुत अच्छा विषय है, इसमें अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी दायित्व की बात होती है। जैसे धारा 47।
🧑🏫 संजय: धारा 47 कहती है – यदि कोई व्यक्ति भारत में बैठकर किसी अन्य देश में अपराध करवाता है, और वह कृत्य भारत में अपराध होता, तो वह अभिप्रेरण के दोषी होंगे।
📌 उदाहरण: A भारत में रहकर X देश के B को वहां किसी की हत्या करने को उकसाता है – तो A भारत में "हत्या के अभिप्रेरण" का अपराधी होगा।
सुरेश: और धारा 48 इसका उल्टा समझाती है – अगर कोई विदेश में रहकर भारत में कोई अपराध करवाता है, तब भी वह दोषी होगा।
📌 उदाहरण: A, देश X में बैठकर B को भारत में किसी की हत्या के लिए उकसाता है – तो A भारत में "हत्या के अभिप्रेरण" का दोषी माना जाएगा।
🧑🏫 संजय: अब धारा 49 एक अहम प्रावधान देती है – यदि कोई अभिप्रेरण करता है और उसके कारण अपराध होता है, लेकिन उस अभिप्रेरण की कोई विशेष सजा इस संहिता में नहीं दी गई है – तो उस अपराध की जो सजा है, वही सजा अभिप्रेरक को भी मिलेगी।
📌 उदाहरण 1: A ने B को झूठी गवाही देने को उकसाया और B ने वैसा किया – A को भी उतनी ही सजा मिलेगी जितनी B को।
📌 उदाहरण 2: A और B ने Z को ज़हर देने की योजना बनाई। A ने ज़हर लाकर B को दिया और B ने Z को ज़हर दे दिया – तो B हत्या का दोषी, A साजिशकर्ता और अभिप्रेरक के रूप में हत्या का दोषी।
मनोज: लेकिन अगर B ने कुछ अलग इरादे से काम किया, A के इरादे से अलग?
🧑🏫 संजय: यही बताती है धारा 50 – यदि B ने अपराध A की प्रेरणा से तो किया, लेकिन अलग इरादे से – तब A को उसी प्रकार सजा मिलेगी, जैसे यदि अपराध A के इरादे से किया गया होता।
🧑🏫 संजय: यानी अपराध की नीयत का संबंध अभिप्रेरक से तय होगा – और सजा भी उसी आधार पर!
📘 निष्कर्ष: धारा 47 से 50 यह सुनिश्चित करती हैं कि कोई भी व्यक्ति भारत के अंदर या बाहर बैठकर अगर अपराध को प्रेरित करता है – तो उसे भारत में अपराधी माना जाएगा। नीयत, साजिश और सहायता – सभी अभिप्रेरण के अंतर्गत आती हैं।
📍स्थान: पंचायत भवन – गुरुजी संजय अब चर्चा का नेतृत्व कर रहे हैं।
🧑🏫 पात्र: संजय, सुरेश, मनोज, निशा
🧑🏫 संजय: बच्चों, अब बात करते हैं धारा 52 की। यदि प्रेरणा से कोई कार्य किया गया और उसी में अतिरिक्त अपराध भी हो गया, तो प्रेरक को दोनों अपराधों के लिए दंड मिलेगा।
📌 उदाहरण: A ने B को सरकारी जब्ती का विरोध करने को उकसाया। B ने न सिर्फ विरोध किया बल्कि अधिकारी को गंभीर चोट भी पहुंचाई – तो A दोनों अपराधों के लिए उत्तरदायी होगा।
निशा: और अगर प्रेरक ने कुछ और सोचकर प्रेरणा दी थी, लेकिन परिणाम कुछ और हो गया?
🧑🏫 संजय: बिल्कुल यही समझाती है धारा 53 – यदि परिणाम प्रेरक की मंशा से अलग है, लेकिन वह जानता था कि ऐसा परिणाम हो सकता है, तो उसे उस नए परिणाम के लिए दंड मिलेगा।
📌 उदाहरण: A ने B को गंभीर चोट पहुंचाने को कहा, लेकिन Z की मौत हो गई – अगर A जानता था कि यह मौत हो सकती है, तो A हत्या का दोषी माना जाएगा।
सुरेश: अगर प्रेरक मौके पर मौजूद हो, तब?
🧑🏫 संजय: धारा 54 कहती है – अगर प्रेरक स्वयं मौजूद है जब अपराध होता है, तो उसे अपराधकर्ता ही माना जाएगा।
मनोज: और अगर अपराध हुआ ही नहीं?
🧑🏫 संजय: तब धारा 55 और 56 लागू होती हैं:
निशा: और अगर प्रेरणा बहुत बड़ी संख्या में लोगों के लिए हो?
🧑🏫 संजय: धारा 57 कहती है – यदि कोई व्यक्ति 10 से अधिक लोगों या समूह को अपराध करने को प्रेरित करता है, तो उसे 7 वर्ष की सजा और जुर्माना हो सकता है।
📌 उदाहरण: A ने एक समुदाय को दूसरी जाति की यात्रा पर हमला करने को कहा – यह अपराध है।
सुरेश: अब छिपाने वालों की क्या बात है?
🧑🏫 संजय: यही धारा 58, 59, 60 बताती हैं:
🧑🏫 पात्र: संजय, सुरेश, मनोज, निशा
🧑🏫 संजय: बच्चों, अब बात करते हैं धारा 52 की। यदि प्रेरणा से कोई कार्य किया गया और उसी में अतिरिक्त अपराध भी हो गया, तो प्रेरक को दोनों अपराधों के लिए दंड मिलेगा।
📌 उदाहरण: A ने B को सरकारी जब्ती का विरोध करने को उकसाया। B ने न सिर्फ विरोध किया बल्कि अधिकारी को गंभीर चोट भी पहुंचाई – तो A दोनों अपराधों के लिए उत्तरदायी होगा।
निशा: और अगर प्रेरक ने कुछ और सोचकर प्रेरणा दी थी, लेकिन परिणाम कुछ और हो गया?
🧑🏫 संजय: बिल्कुल यही समझाती है धारा 53 – यदि परिणाम प्रेरक की मंशा से अलग है, लेकिन वह जानता था कि ऐसा परिणाम हो सकता है, तो उसे उस नए परिणाम के लिए दंड मिलेगा।
📌 उदाहरण: A ने B को गंभीर चोट पहुंचाने को कहा, लेकिन Z की मौत हो गई – अगर A जानता था कि यह मौत हो सकती है, तो A हत्या का दोषी माना जाएगा।
सुरेश: अगर प्रेरक मौके पर मौजूद हो, तब?
🧑🏫 संजय: धारा 54 कहती है – अगर प्रेरक स्वयं मौजूद है जब अपराध होता है, तो उसे अपराधकर्ता ही माना जाएगा।
मनोज: और अगर अपराध हुआ ही नहीं?
🧑🏫 संजय: तब धारा 55 और 56 लागू होती हैं:
- यदि अपराध मौत या आजीवन कारावास योग्य था – प्रेरक को 7 वर्ष तक की सजा और जुर्माना (धारा 55)।
- अगर अपराध हुआ नहीं, लेकिन किसी को चोट पहुंची – तो सजा 14 वर्ष तक हो सकती है।
- अगर अपराध जेल की सजा योग्य है – तो प्रेरक को अधिकतम सजा का 1/4 या जुर्माना या दोनों (धारा 56)।
- यदि प्रेरक या प्रेरित व्यक्ति सरकारी कर्मचारी है – तो सजा 1/2 तक बढ़ सकती है।
निशा: और अगर प्रेरणा बहुत बड़ी संख्या में लोगों के लिए हो?
🧑🏫 संजय: धारा 57 कहती है – यदि कोई व्यक्ति 10 से अधिक लोगों या समूह को अपराध करने को प्रेरित करता है, तो उसे 7 वर्ष की सजा और जुर्माना हो सकता है।
📌 उदाहरण: A ने एक समुदाय को दूसरी जाति की यात्रा पर हमला करने को कहा – यह अपराध है।
सुरेश: अब छिपाने वालों की क्या बात है?
🧑🏫 संजय: यही धारा 58, 59, 60 बताती हैं:
- धारा 58: अगर कोई व्यक्ति मौत या आजीवन कारावास योग्य अपराध की योजना को छुपाता है – और अपराध हो जाता है – तो उसे 7 साल की सजा, अन्यथा 3 साल तक।
- धारा 59: यदि ऐसा छिपाने वाला सरकारी अधिकारी है – तो उसे 10 साल तक या अपराध के अनुसार आधी सजा तक हो सकती है।
- धारा 60: अगर कोई व्यक्ति जेल योग्य अपराध की योजना छुपाता है – और अपराध हो जाए तो 1/4 तक, न हो तो 1/8 तक की सजा।
📘 निष्कर्ष: धारा 52 से 60 यह स्पष्ट करती हैं कि प्रेरणा, परिणाम, उपस्थिति, और अपराध की प्रकृति – सभी मिलकर यह तय करते हैं कि प्रेरक को क्या सजा मिलेगी। यहां तक कि अपराध न होने पर भी सजा का प्रावधान है।
📖 पिछले भाग पढ़ें: आत्मरक्षा का अधिकार | Section 34 to 44
📖 अगला भाग पढ़ें: Coming Soon – Criminal Conspiracy | Section 61 & 62
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