🔷 BNS उपन्यास भाग 06: तथ्य की भूल और विधि की भूल
स्थान: दिल्ली के सीपी में शाम का समय, चाय की दुकान के पास सुरेश, मनोज, निशा, सरोज और मुकेश पारिवारिक चर्चा में व्यस्त हैं।
निशा (थोड़ा भावुक होकर): देखो सुरेश, तुम मुझे पसंद करते हो पर मैं तुमसे प्यार नहीं करती। पसंद और प्यार में फर्क होता है।
सुरेश (गुस्से से): किसने कहा कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ? यह सिर्फ अफवाह है। खैर, मैं तुम्हें माफ करता हूँ। और हाँ, बीएनएस की धारा 14 कहती है कि "तथ्य की भूल क्षम्य होती है"।
मनोज (बीच में): निशा, सुरेश ऐसा लड़का नहीं है जो तुम्हें धोखा देगा।
निशा (तेज आवाज़ में): मनोज, तुम जज मत बनो!
सुरेश (शांति से): लेकिन याद रखो, धारा 15 के अनुसार "जज द्वारा न्यायिक रूप से किया गया कार्य अपराध नहीं होता"।
दीपक (रिपोर्टर, आते हुए): अरे वाह! यहां तो बीएनएस की क्लास चल रही है। मैं रिपोर्टर दीपक, बीएनएस पर रिपोर्टिंग कर रहा हूँ। क्या मैं भी शामिल हो सकता हूँ?
सरोज (हँसते हुए): हम तो बस अपने जीवन की बात कर रहे हैं, कानून की क्लास थोड़े न है।
दीपक: सुरेश जी, एक बात बताइए – अगर कोर्ट या जज ने कोई आदेश दिया और किसी ने उसका पालन किया, बाद में पता चला कि कोर्ट को अधिकार ही नहीं था, तो क्या पालन करने वाला दोषी होगा?
सुरेश: नहीं दीपक जी, धारा 16 कहती है कि "अगर आदेश पर विश्वास था और वह वैध प्रतीत हो रहा था, तो कार्य अपराध नहीं माना जाएगा।"
मनोज (गंभीर होकर): लेकिन सुरेश जी, विधि की भूल क्षम्य नहीं होती। उदाहरण के लिए – एक लड़का 25 वर्ष का है, एक लड़की जो 17 साल की है लेकिन दिखने में 20 की लगती है। दोनों ने शादी कर ली। बाद में पता चला लड़की नाबालिग है।
निशा (गुस्से में): लेकिन लड़के ने तो लड़की से उम्र पूछी थी, उसने 19 साल बताया!
मनोज: यही तो, यह तथ्य की भूलविधि की भूल
सरोज (डरी हुई): क्या! ये बात तो मुझे डराने वाली लगी।
सुरेश (हँसते हुए): यही धारा 17 का मर्म है – "विधि की भूल क्षम्य नहीं है।"
🎯 निष्कर्ष: धारा 14 से 17 तक बीएनएस यह स्पष्ट करता है कि:
- Section 14: तथ्य की भूल क्षम्य है
- Section 15: जज का न्यायिक कार्य अपराध नहीं
- Section 16: कोर्ट के आदेश पर की गई क्रिया, अपराध नहीं
- Section 17: विधि की भूल क्षम्य नहीं
👉 अगले भाग में जानिए धारा 18 से 24 तक के सामान्य अपवाद, जिसमें दुर्घटना, नशा और मानसिक स्थिति जैसी स्थितियाँ शामिल हैं।
🚨 आगे: "दुर्घटना, नशा और पागलपन – अपराध या नहीं?"
📍 स्थान: दिल्ली का वही CP चौराहा। शाम की चाय, ठंडी हवा और हल्की हलचल। दीपक रिपोर्टर अब लगातार बीएनएस पर स्टोरी बना रहा है।
पात्र:
- 🎤 दीपक – रिपोर्टर
- 📚 सुरेश – BNS का ज्ञाता
- 😎 मनोज – मज़ेदार दोस्त
- 💁♀️ निशा – सवाल पूछने वाली
- 👩🏫 सरोज – गंभीर स्वभाव
- 🧑🔧 मुकेश – शांत लेकिन तीखा
दीपक: (मोबाइल रिकॉर्डिंग ऑन करते हुए) दोस्तों, कल की बातचीत बहुत वायरल हुई। आज एक नया सवाल है – अगर कोई गलती से, बिना मंशा के किसी को नुकसान पहुँचा दे, तो क्या वह अपराध होगा?
सुरेश: बहुत अच्छा सवाल है। धारा 18 कहती है कि अगर कोई दुर्घटना या दुर्भाग्य से, बिना आपराधिक मंशा के, कानून के दायरे में कोई कार्य करता है और उससे किसी को नुकसान हो जाए, तो वह अपराध नहीं कहलाता।
सरोज: जैसे कि अगर कोई कुल्हाड़ी से लकड़ी काट रहा हो, और गलती से उसका फलक उड़कर किसी को लग जाए?
सुरेश: हाँ बिल्कुल! अगर उसने सावधानी रखी थी, तब वह धारा 18 के तहत माफ किया जा सकता है।
मनोज: लेकिन अगर कोई जानबूझकर तो नहीं मारे, पर उसे पता हो कि उससे नुकसान हो सकता है, तब?
सुरेश: तब आता है धारा 19। अगर किसी ने जानबूझकर नहीं, बल्कि दूसरे नुकसान से बचाने के लिए कोई कार्य किया हो, तो वो भी अपराध नहीं होता — बशर्ते उसकी मंशा सही हो और वह Good Faith में किया गया हो।
निशा: (गंभीर होकर) लेकिन बच्चा अगर किसी को नुकसान पहुँचा दे तो?
सुरेश: धारा 20 कहती है – अगर बच्चा 7 साल से छोटा है, तो कोई भी अपराध नहीं माना जाएगा।
धारा 21 कहती है – अगर बच्चा 7 से 12 साल के बीच है, और उसे अपने कार्य के परिणाम का ज्ञान नहीं है, तो वह भी दोषी नहीं है।
सरोज: यानी छोटे बच्चे मासूम होते हैं – चाहे वो गलती कर भी दें।
मनोज: लेकिन पागल लोग? या जो मानसिक रूप से अस्थिर हों?
सुरेश: यही तो आता है धारा 22 – अगर कोई व्यक्ति पागलपन या मानसिक असंतुलन के कारण यह नहीं जानता कि वह क्या कर रहा है, तो वह भी अपराधी नहीं माना जाता।
दीपक: और अगर कोई नशे में हो?
सुरेश: अब ध्यान से सुनो! नशे पर धारा 23 और धारा 24 हैं।
- धारा 23: अगर कोई व्यक्ति बिना अपनी इच्छा के या छल से नशा कर दिया गया हो और वो कुछ गलत करता है, तो वह अपराध नहीं है।
- धारा 24: लेकिन अगर नशा स्वेच्छा से किया है, और कानून तोड़ा, तो वह माफ नहीं किया जाएगा।
मनोज: यानी “पी कर गाड़ी चला रहा था” – कोई बहाना नहीं चलेगा!
सुरेश: बिल्कुल सही पकड़ा भाई।
📌 निष्कर्ष:
BNS की धारा 18 से 24 तक यह स्पष्ट करती हैं कि कुछ परिस्थितियों में व्यक्ति को अपराधी नहीं माना जाएगा, जब –
- 👉 मंशा आपराधिक नहीं हो (धारा 18)
- 👉 किसी अन्य हानि से बचाने के लिए किया गया हो (धारा 19)
- 👉 व्यक्ति 7 साल से कम उम्र का बच्चा हो (धारा 20)
- 👉 7 से 12 वर्ष तक का बच्चा हो और अपरिपक्व हो (धारा 21)
- 👉 मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति हो (धारा 22)
- 👉 जबरन या छल से नशा किया गया हो (धारा 23)
- 🚫 लेकिन अगर स्वयं नशा किया और अपराध किया तो क्षमा नहीं (धारा 24)
🎬 आगे क्या? अगली कड़ी में जानेंगे – धारा 25 से 33: जब "सहमति", "बच्चे की भलाई", या "अत्यंत क्षणिक संकट" में कोई कार्य अपराध नहीं होता!
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सुरेश गंभीर होते हुए बोला, “धारा 25 कहती है कि अगर दो बालिग आपसी सहमति से कोई एक्टिविटी करें और चोट लग जाए, तो वह अपराध नहीं माना जाएगा।”
सरोज बात स्पष्ट करती है, “Consent तभी मान्य है जब डर या भ्रम ना हो – ये धारा 28 में कहा गया है।”
सुरेश समझाते हुए बोला, “धारा 26 के अनुसार, भलाई के लिए और सहमति से किया गया कार्य अपराध नहीं होता।”
सरोज ने स्पष्ट किया, “धारा 27 के अनुसार, 12 साल से कम बच्चों के लिए अभिभावक की सहमति ज़रूरी होती है।”
सुरेश गहरी सांस लेते हुए बोला, “नहीं! धारा 29 कहती है कि कुछ कृत्य जैसे गर्भपात consent के बावजूद अपराध माने जाते हैं।”
सरोज बोली, “धारा 30 कहती है – अगर भलाई के लिए हो और consent लेना संभव ना हो तो भी अपराध नहीं होगा।”
सुरेश ने उत्तर दिया, “धारा 31 कहती है – भलाई के लिए की गई कोई बात अपराध नहीं है, भले ही उससे नुकसान हो।”
सुरेश बोला, “धारा 32 के अनुसार, तत्काल मृत्यु के डर से किया गया अपराध, यदि व्यक्ति खुद उस परिस्थिति में नहीं गया हो, तो छूट मिल सकती है।”
सुरेश मुस्कराते हुए बोला, “धारा 33 कहती है – मामूली नुक़सान जिससे कोई सामान्य व्यक्ति शिकायत न करे, अपराध नहीं माना जाएगा।”
📚 निष्कर्ष: BNS की धाराएं 25 से 33 यह दिखाती हैं कि कानून केवल शब्दों का खेल नहीं बल्कि इंसानियत, परिस्थितियों और समझदारी का भी ध्यान रखता है।
📍 अगली कड़ी: अपराधों के वर्गीकरण और विशेष अपवादों की ओर आगे बढ़ते हैं...
📖 पिछले भाग पढ़ें: BNS उपन्यास भाग 05: सजाओं की विस्तृत चर्चा और न्यायिक विवेचना | Section 5 to 13
📖 अगला भाग पढ़ें: BNS Part 06 – धाराएं 14 से 33 तक संवादों के माध्यम से | सामान्य अपवाद की सरल व्याख्या
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