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Notes on Polity (Indian Constitution) for All Exams

Polity (Indian Constitution) for All Govt. Job

Background History of Indian Constitution


भारत का संविधान लोकतंत्र पर आधारित संविधान है। लोकतंत्र शासन का वह रूप है जिसमें   साधारण जनता का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हाथ होता है। संविधान ने प्रतिनिधित्वात्मक लोकतंत्र स्थापित किया है। देश के समस्त वयस्क जनता को मताधिकार प्राप्त है। प्रत्येक पाॅच वर्ष में चुनाव में मत देकर जनता अपनी प्रतिनिधि चुनती है। इन जनप्रतिनिधियों से संसद और राज्य विधान सभाओं का गठन होता है, जो विधायी और कार्यपालिका का कार्य करती हैं। कार्यपालिका अर्थात देश के प्रतिनिधित्व करने के लिए एक मंत्रिमंडल का गठन किया जाता है जो केन्द्रीय मंत्रिमंडल लोकसभा के प्रति तथा राज्य मंत्रिमंडल विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होता है। भारत अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को अनुसरण करती है। संविधान में जनता द्वारा किसी राजनैतिक कार्य के संपादन के लिए सीधा मत देने की व्यवस्था नहीं है। यह भी व्यवस्था नहीं है जैसे अमुक प्रश्न पर जनता का सीधा मत ले लिया जाय। स्विट्ज़रलैण्ड में प्रत्यक्ष लोकतंत्र होने के कारण जनता ही अपने संविधान को तोड़-मरोड़ सकती है। समाजविद् अन्ना हजारे की समस्त गतिविधियाॅ स्विट्जरलैण्ड की भांति है, यदि भारत में स्विट्जरलैण्ड की तरह प्रत्यक्ष लोकतंत्र होता तो स्वाभाविक है कि आज अन्ना हजारे का संविधान ही लागू होता। सारांश यह है कि इन चुने हुए जन-प्रतिनिधियों का मत ही जनता का मत होता है।



Background History of Democracy


हमने ब्रिटिश प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था को ही अपनाया क्यों? ब्रिटेन में मानव अधिकार, व्यक्ति की स्वतंत्रता, गरिमा और समतावादी लोकतंत्र की सफलता के पीछे लगभग दो सौ वर्ष का आनुवांशिक सम्राट और सामंतों के बीच घोर संघर्ष का इतिहास था। यहां विशाल साम्राज्य था, जहां कभी सूर्यास्त नहीं होता था। साथ ही भारत जैसे कई उपविेशकों पर उनका एकतंत्रात्मक, निरंकुश शासन तथा दमनात्मक नीति था। उपनिवेशकों के शोषण से अर्जित धन के आधार पर ही तो ब्रिटेन में अभूतपूर्व समृद्धि आई। संसदीय लोकतंत्र पनपा और पुष्ट हुआ। वस्तुतः लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था को किसी के ऊपर थोपने के बजाय देश के भीतर से ही प्रस्फुटित होनी चाहिए। लोगों के बीच से ही जन्म लेना चाहिए। देश के लोगों के विचारों, मनोभावों, आदर्शों, आस्थाओं, मान्यताओं और अनुभवों के अनुरूप ही नैसर्गिक रूप से विकसित होनी चाहिए।

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Views of Constitutional Makers


लोकतंत्र का आधार है मानव जीवन का मूल्य और व्यक्ति-व्यक्ति के बीच समानता। राज्य का सबसे पहला कत्र्तव्य है नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना। संविधान निर्माता चाहते थे कि भारतीय राष्ट्रीयता की चेतना जगे, सांप्रदायिक भेदभाव और जातिवाद समाप्त हो, देश का आर्थिक विकास हो, गरीबी मिटे और सामाजिक न्याय पनपे। संविधान निर्माताओं ने समझा कि ब्रिटेन के ढंग की प्रतिनिधिक संसदीय लोकतंत्रात्मक प्रणाली हम सब में एक राष्ट्र बनाने में सबसे अधिक प्रभावी सिद्ध होगी। गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों को उन्मुक्त कर पाएगी। पिछड़े और शोषित वर्गों का उत्थान करने में सफल होगी। संविधान सभा के प्रत्येक सदस्यों ने एकता, भाईचारे और बराबरी के सपने संजाए थे और चाहा था कि भारतीय गणतंत्र में हर गांव, हर घर, हर झोपड़ी में, हर खेत-खलिहान में, स्वाधीनता के सूरज का अनुभव हो। खुशहाली आएगी, गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी और अशिक्षा मिटेगी, चारों ओर आपसी प्रेम और शांति का वातावरण बनेगी।

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Demand of Making Constitution


गांधी ने हर आंख का हर आंसू पोंछने का आदर्श रखा था। नेहरू ने संविधान सभा में प्रतिज्ञा की थी कि जब तक आंसू हैं, गरीबी हैं, तब तक काम समाप्त नहीं होगा। उनका विश्वास था कि संविधान भूखों को रोटी और नंगों को कपड़ा जरूर देगा।

भारत का संविधान स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हुए किसी आकस्मिक वैचारिक विमर्श का परिणाम नहीं है, वरन् इसके मूल्य हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ विकसित हुए हैं। मांगों, घोषणाओं एवं योजनाओं के क्रम से होता हुआ यह औपचारिक रूप से 1928 में पं. मोतीलाल नेहरू जी द्वारा प्रस्तुत ‘‘नेहरू रिपोर्ट’’ में सर्वप्रथम हमारी संवैधानिक प्रतिभा और राजनीतिक लोकतांत्रित मूल्यों के प्रति निष्ठा के रूप में प्रकट हुआ। 

सन् 1922 ईस्वीं में महात्मा गांधी ने यह मांग की थी कि भारत के राजनीतिक भाग्य के निर्माता स्वयं भारत के लोग होने चाहिए। उस समय के ब्रिटिश शासकों ने इस मांग को ठुकरा दिया, परंतु न्याय और अहिंसा पर आधारित स्वतंत्रता का संग्राम निरंतर दृढ़ता से चलता रहा।

1946 की केबिनेट मिशन द्वारा तय किया गया कि एक संविधान बनाये जाने के लिए भारत की एक संविधान सभा बनाई जाए। इस संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई। जब कि मुस्लिम लींग के सदस्य उपस्थित नहीं हुए। दिनांक 20 फरवरी, 1947 को ब्रिटिश सरकार ने यह घोषणा की कि जून, 1948 के अंत तक भारत से ब्रिटिश शासन हटा लिया जाएगा और ब्रिटिश शासन अपनी सत्ता भारत के नागरिकों को सौंप देंगे। 26 जुलाई, 1947 को गवर्नर जनरल ने पाकिस्तान के लिए एक पृथक संविधान सभा के गठन की घोषणा की। 

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