शिक्षण की अवधारणा-
1. परंपरागत शिक्षण अवधारणा से तात्पर्य है एक छात्र पुस्तक को पढ़ता है और सभी छात्र एक साथ सुनते है, फिर शिक्षक बच्चों से पूछता है कि कितने लोगों को समझ मंे आया? यदि छात्रों को समझ में नहीं आया तो शिक्षक समझाता है। यह तू पढ़ मैं सुनू फिर समझाऊ भी कहा जाता है।
2. आधुनिक शिक्षण अवधारणा से तात्पर्य है- मनोवैज्ञानिक तरीके से छात्रों को ज्ञान प्रदान किया जाता है, समाज की आवश्यकता के अनुरूप पाठ्यक्रम तैयार किया जाता है ताकि सामाजिक परिस्थितियों को भलिभांति छात्र समझ सकें। आज का युग विज्ञान का युग है इसलिए वैज्ञानिक तकनीकी जैसे कम्प्यूटर, पाॅवर पाइंट प्रेजेंटेशन, आॅडियो-विजुअल प्रणाली से शिक्षण कार्य किया जाता है।
रायबर्न के अनुसार- शिक्षण एक ऐसा रिश्ता है जो बच्चों को, उसके सभी शक्तियों को विकसित करने के लिए जरूरी होता है।
बर्टन के अनुसार- शिक्षण सीखने की प्रेरणा, निर्देशन एवं प्रोत्साहन है।
स्मिथ के अनुसार- शिक्षण सीखने के उद्देश्य से किये जाने वाले प्रक्रिया है।
शिक्षण की परिभाषा
1. फिलिप्स के अनुसार- 1. शिक्षण एक संस्था है 2. जिसका केन्द्रीय तत्व ज्ञान का संग्रह करना है।
2. रेमंड के अनुसार - शिक्षण को विकास की प्रक्रिया मानते है। मनुष्य बचपन से प्रौढ़ावस्था तक कुछ न कुछ सीखता है, वह भी अनेकों तरीकों से, अपने भौतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक वातावरण मं रहकर सीखता है।
शिक्षण के उद्देश्य -
1. नैतिक विकास करना
2. मानवीय मूल्यों का निर्माण करना
3. जीवन शैली को व्यापक बनाते हुए जीवकोपार्जन करना
4. सरकारी नौकरी के प्रति रूझान भी शिक्षण को बढ़ावा देता है
5. शिक्षण कौशल के लिए ज्ञान का संग्रह करना
ब्लूम के अनुसार - तीन ‘एच‘ हैड, हर्ट और हैण्ड अर्थात ज्ञानात्मक, भावात्मक और मनोसंचालित क्षेत्र शिक्षण के उद्दश्यों को अभिव्यक्त करती है।
ज्ञानात्मक क्षेत्र से बौद्धिक क्षमता में वृद्धि, भावात्मक क्षेत्र से शिक्षक और छात्र के मध्य गुरू परंपरा विकसति होता है तथा समाज में शिक्षा को उच्च कोटि में रखा जाता है। लेकिन मनोसंचालित क्षेत्र के अंतर्गत वैज्ञानिक तकनीकी कौशल के प्रति झुकाव को सम्मिलित किया जाता है।
5 Comments
Thnku sir ...it's really important...nd very easy language...
ReplyDeleteThanks sir ,bahut hi achha jo kaphi sugam hai
ReplyDeleteBahut badiya sir
ReplyDeleteVery good sir
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Bahut badhia hai sir
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