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Teaching Aptitude Notes - NTA UGC NET Paper 01: Written Notes Free

 

Unit – 1 ( Teaching Aptitude)

Part 01

Concept of teaching :

Meaning of teaching

Definition of teaching

Characteristics of teaching

Variables of teaching

Systems of teaching

 

Meaning of teaching

शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक व्‍यक्ति दुसरे व्‍यक्ति को सिखाता या निर्देश देता है। शिक्षण को कक्षा की स्थिति में शिक्षार्थियों को निर्देश देने का कार्य माना जाता है।

डेवी :- इसे स्थिति का हेरफेर मानते हैं, जहां शिक्षार्थी अपने स्‍वयं के लर्नर्स के साथ कौशल और अर्न्‍तदृष्टि प्राप्‍त करेगा ।

 Meaning of teaching

एल.एन.गेज. (लोकतांत्रिक दृष्टिकोण) –

शिक्षण किसी अन्‍य व्‍यक्ति की व्‍यवहार क्षमता को बदलने के उद्देश्‍य से पा‍रस्‍परिक प्रभाव है।

 Meaning of teaching

क्‍लर्क :-

शिक्षण उन गतिविधियों को संदर्भित करता है जो छात्रों के व्‍यवहार में उत्‍पन्‍न करने के लिये डिजाईन और निष्‍पादित की जाती है ।

शिक्षण को हम निम्‍नलिखित तीन दृष्टिकोणों के अनुसार परिभाषित कर सकते हैं ।

(ए) सत्‍तावादी

(ब) डेमोक्रेटिक (लोकतांत्रिक शिक्षण)

(सी) लिसेज फेयर ।

(ए) सत्‍तावादी दृष्टिकोण –

इस दृष्टिकोण के अनुसार –

1.     शिक्षण केवल स्‍मृतिस्‍तर की गतिविधि है।

2.     यह शिक्षण छात्रों में विचारों और दृष्टिकोण का विकास नही करता है ।

3.     विचार हीन शिक्षा के रूप में जाना जाता है ।

4.     यह शिक्षण शिक्षकों की शिक्षक केन्द्रित आलोचना है ।

(बी) ) डेमोक्रेटिक (लोकतांत्रिक शिक्षण) –

1.     शिक्षण समझ के स्‍तर पर किया जाता है ।

2.     स्‍मृति स्‍तर शिक्षण पूर्वापेक्षा है । (अवधारणा) पहले याद किया जाता है और फिर समझा जाता है ।

3.     इस तरह के शिक्षण को विचारशील शिक्षण के रूप में जाना जाता है।

4.     इस दृष्टिकोण के अनुसार शिक्षण एक अन्‍त: क्रियात्‍मक प्रक्रिया है, जिसमें मुख्‍य रूप से कक्षा की बातचीत शामिल होती है। जो शिक्षकों और छात्रों के बीच होती है।

5.     यहां छात्र प्रश्‍न पूछ सकते हैं और शिक्षकों की आलोचना कर सकते हैं।

6.     यहां छात्र प्रश्‍न पूछ सकते हैं और आत्‍म-अनुशासन पर जोर दिया जाता है ।

 

(सी) लिसेज फेयर

1.     इसे चिंतनशील स्‍तर के शिक्षण के रूप में जाना जाता है ।

2.     स्‍मृति स्‍तर और शिक्षण के समझ के स्‍तर की तुलना में यह अधिक कठिन है ।

3.     स्‍मृति स्‍तर और समझ स्‍तर शिक्षण, शिक्षण के चिंतनशील स्‍तर के लिये आवश्‍यक है ।

4.     यह वहुत ही सोचनीय गतिविधि है।

5.     इस स्‍तर पर विघार्थी और शिक्षक दोनों सहभागी होते हैं ।

6.     यह स्‍तर अन्‍तरदृष्टि पैदा करता है ।

 शिक्षण की महत्‍वपूर्ण विशेषताऐं निम्‍नानुसार है –

1.     शिक्षण के कुछ निश्चित उद्देश्‍य होते हैं ।

2.     शिक्षण की निश्चित प्रक्रिया होती है।

3.     शिक्षण के अन्‍तर्गत पारंपरिक एवं गैर - पारंपरिक शिक्षण पध्‍दति का परिपालन किया जाता है ।

4.     शिक्षण में निश्चित पाठ्यक्रम जरूर होता है।

5.     शिक्षण में निश्चित शिक्षण विधियां एवं प्रविधियां होती हैं ।

6.     शिक्षण में शैक्षिक संस्‍थान का होना जरूरी होता है।

 शिक्षण की प्रकृति –

1.     शिक्षण एक द्वि-ध्रुवीय प्रक्रिया है – मौटे तौर पर शिक्षण में महत्‍वपूर्ण दो चर जिसमें शिक्षक स्‍वतंत्र चर तथा विघार्थी आश्रित चर का समावेश अवश्‍य होता है। शिक्षक एवं शिक्षार्थी के बिना शिक्षण प्रक्रिया का संचालन संभव नही है । चाहे पारंपरिक शिक्षण हो या फिर गैर - पारंपरिक शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया हो , शिक्षण के शिक्षक एवं शिक्षार्थी का होना जरूरी है ।

2.     शिक्षण एक त्रि-ध्रुवीय प्रक्रिया है – रायवर्न नामक मनोविज्ञानिक ने शिक्षण को त्रि-ध्रुवीय माना है । रायवर्न के अनुसार किसी भी शिक्षण में शिक्षक शिक्षार्थी के अलावा पाठ्यचर्या का होना जरूरी बताया गया है।
व्‍लूम के अनुसार शिक्षण में तीन पक्ष अवश्‍य होते हैं जिसमे शिक्षण उद्देश्‍य
, सीखने के अनुभव तथा व्‍यवहार परिवर्तन सम्मिलित है।
             आधुनिक समय में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक
, छात्र के अलावा निश्चित पाठ्यक्रम का होना जरूरी होता है । शिक्षक स्‍वतंत्र चर, शिक्षार्थी आश्रित चर जबकि पाठ्यक्रम मध्‍यस्‍थ चर के रूप में वर्गिकृत किया गया है। शिक्षक में इच्‍छा या रूचि, शिक्षार्थी में शिक्षण उद्देश्‍यों की पूर्ति तथा पाठ्यक्रम में पाठ्य वस्‍तु या विषय वस्‍तु का अनुकरण अर्थात अधिगम परिणाम की प्रकृति पाये जाते हैं ।

3.     शिक्षण एक कला है – शिक्षण को कला इसलिए कहा जाता है क्‍योंकि शिक्षण अनुभवों पर आधारित होता है। शिक्षक के द्वारा विभिन्‍न शिक्षण – अधिगम प्रक्रियाओं का अनुसरण किया जाता है। अर्थात शिक्षण में रणनीति, समुचित शिक्षण विधियों का प्रयोग, नये नये उदाहरण देकर तर्क-वितर्क करना होता है। शौधपरक जानकारीयां प्रदान कर शिक्षार्थीयों को नये – नये ज्ञान से अभिप्रेरित किया जाता है।

4.     शिक्षण एक विज्ञान है – शिक्षण को विज्ञान इसलिये कहा जाता है  क्‍योंकि शिक्षण में नियोजन, मूल्‍यांकन एवं विज्ञान की भांति क्रमबद्ध अघ्‍ययन किया जाता है। आज का समय विज्ञान एवं  प्रौघौगिकी का है अर्थात पारंपरिक या गैर-पारंपरिक शिक्षण प्रणाली में नये – नये विज्ञानिक तकनिक जैसे स्‍मार्ट क्‍लास बोर्ड का प्रयोग, पावर पॉईंट प्रेजेन्‍टेशन के माध्‍यम से अधिगम को सरलीकरण किया जाता है। ऑनलाईन प्‍लेटफॉर्म के तहत दूरस्‍त शिक्षण किया जाता है।

5.     शिक्षण कला के साथ-साथ विज्ञान भी है – शिक्षण में बहु-आयामी प्रक्रियाओं को आत्‍मसात किया जाता है। शिक्षण में शिक्षक के अनुभवों के अलावा वैज्ञानिक पक्षों को भी स्‍थान प्रदान किया जाता है ताकि शिक्षार्थी के शिक्षण उद्देश्‍यों को पूरा किया जा सके । एल.एन. गेज ने माना है, कि शिक्षण में कला एवं विज्ञान दोनों गुण पाये जाते हैं ।

6.     शिक्षण गतिशील, सामाजिक, मानवीय परिस्थितियों पर निर्भर करता है।


7.     शिक्षण एक अन्‍त-प्रक्रिया अर्थात इन्‍टर-एक्टिव प्रोसेस है- किसी भी शिक्षण में शिक्षक एवं शिक्षार्थी के मध्‍य प्रत्‍यक्ष वार्तालाप का होना जरूरी है। आमने – सामने की शिक्षण तथा शिक्षक एवं शिक्षार्थी में अन्‍त: क्रिया का भाव यानी मनोवृत्तियां अवश्‍य पाई जाती हैं। अर्थात मन की भाषा, चक्षुओं की भाषा एवं अन्‍तवैक्ति संप्रेषण का भाव इसमें समाहित होता है।

8.     अधिगम को अभिप्रेरित करने की क्रिया प्रत्‍येक शिक्षण में अवश्‍य होना चाहिये ।

9.     शिक्षण में सौद्देश्‍य प्रक्रिया, सामाजिक एवं व्‍यवसायिक प्रक्रिया, विकाशात्‍मक, तार्किक, उपचारात्‍मक एवं भाषाई प्रक्रिया है ।

10.  यह पूर्ण सामाजिक प्रकिया, सामाजिक सोच को परिवर्तित करने की प्रक्रिया, सूचना देना, ज्ञान का संचार, मार्गदर्शित प्रक्रिया, विकसित व्‍यवहार परिवर्तन के गुण पाये जाते हैं।

 2005 में  एन.एस.एफ. ( NSF) के अनुसार :–

किसी भी शिक्षण में छात्रों की अधिगम प्रक्रिया में उनकी भागीदारी तथा सीखने संबंधी सर्वोत्‍तम परिणाम पाने की कुंजी है।   इसमें निम्‍नांकित विशेषताओं को घ्‍यान रखने हेतु निर्देशित किया गया है। - 

1.   शिक्षार्थी को सीखते समय विचारों को योगदान देना चाहिये ।

2.     शिक्षार्थी को अपने विचारों एवं अनुभवों के बारे में बोलने एवं चर्चा करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिये।

3.     शिक्षार्थी जो कुछ भी सीखा है, उसे रोजमर्रा के जीवन में अनुपालन करने की सक्षमता है, या नही इन बातों का ध्‍यान रखना चाहिये ।

4.     एन.एस.एफ. के अनुसार कक्षा कक्ष शिक्षण में शिक्षार्थी केन्द्रित शिक्षण विधियों को स्‍थान दिया जाना चाहिये। साथ ही शिक्षण कौशल को महत्‍व दिया जाना चाहिए। 

शैक्षणिक प्रबंधन के आधार पर शिक्षण प्रणाली –

1.     औपचारिक शिक्षण ।

2.     अनौपचारिक शिक्षण।

3.     निरौपचारिक शिक्षण। 

1.     औपचारिक शिक्षण

यह शिक्षण पद्धति प्राचीन एवं परंपरागत शिक्षण प्रणाली पर आधारित है। गुरूकुल में जाकर शिक्षा प्राप्‍त किया जाता था। शिक्षक, शिक्षार्थी, पाठशाला, पाठ्यवस्‍तु का विशेष महत्‍व रहता है। इसमें शिक्षार्थी को पाठशाला में जाकर अध्‍ययन करना होता है।
       यह कक्षा-कक्ष शिक्ष्‍ण सहित आमने – सामने
, प्रत्‍येक संचार स‍हित अन्‍तक्रियात्‍मक शिक्षण इसकी विशेषताऐं हैं। इस प्रणाली के अन्‍तर्गत शासन तंत्र के द्वारा पाठ्यक्रम एवं पूर्व नियोजित नियम जैसे स्‍थान, समय, पाठ्यवस्‍तु, शिक्षण पद्धति एवं प्रविधियां निश्चित होती हैं। शिक्षार्थी को बाध्‍यकारी नियमों का पालन किया जाता है । पूर्व नियोजन, अधिगम तथा मूल्‍यांकन कार्य किये जाते हैं । 

2.     अनौपचारिक शिक्षण प्रणाली -
         यह औपचरिक शिक्षण का विपरित शिक्षार्थीयों के लिए आध्‍यकारी नियम से मुक्‍त होते हैं । इसमें समय, स्‍थान और शिक्षण विधियों का प्रयोग संभव नही हैं। प्रौढ शिक्षा इसका उदाहरण है।

3.     निरौपचारिक शिक्षण प‍द्धति -
       इस तरह के शिक्षण प्रणाली में औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षण का गुण पाया जाता है। इसमें बाध्‍यकारी नियम से युक्‍त एवं मुक्‍त दोनों अवस्‍थायें सन्निहित होती है। दूरस्‍त शिक्षा एवं मुक्‍त शिक्षा इसका उदाहरण है।

 शिक्षण स्‍तर के प्रकार 

शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया में तीन मानसिक स्‍तर तथा शिक्षण स्‍तर होते हैं -

शिक्षण स्‍तर –

1.     स्‍मृति स्‍तर                                    -         विचारयुक्‍त श्रेणी

2.     अवबोध स्‍तर                                 -         संतोषजनक श्रेणी

3.     चिंतन स्‍तर                                    -         अधिक विचारयुक्‍त श्रेणी

 मानसिक स्‍तर –

1.     उपयोग करना

2.     विकास करना

3.     विचारपूर्ण क्रियाओं को उचित स्‍थान देना

उपरोक्‍त शिक्षण एवं मानसिक स्‍तर के आधार पर शिक्षण अधिगम के उद्देश्‍य को पूर्ण करना होता है। अर्थात शिक्षण अधिगम का मुख्‍य प्रयोजन अधिगम कर्ताओं के व्‍यवहार में परिवर्तन लाना है। 

1.     स्‍मृति स्‍तर -
प्रतिपादक – मोरिस एल विग्‍गी एवं फ्रेडरिच हरबर्ट

विशेषताऐं –

1.     शिक्षण अधिगम कार्य की संज्ञा

2.     सामग्री को रटने के अतिरिक्‍त और कुछ नही किया जाता है।

3.     तथ्‍यों एवं सूचनाओं को अधिगम कर्ता के सामने रखा जाता है।

4.     अधिगम कर्ता इन्‍है बिना समझे रटने लगता है।

5.     स्‍मरण शक्ति को उच्‍च स्‍तर पर लाने के लिए विचारहीन माना जाता है।

 उद्देश्‍य –

1.     ज्ञानात्‍मक पक्ष को सबल बनाना

2.     प्रस्‍तुत तथ्‍य एवं सूचनाओं के बारे में ज्ञान प्राप्‍त करना

3.     ज्ञानात्‍मक उद्देश्‍यों को प्राप्‍त करना

शिक्षक की भूमिका

1.     शिक्षक का दबदबा रहता है।

2.     विषय वस्‍तु के चयन से प्रस्‍तुति करण तक शिक्षक उत्‍तरदायित्‍व होता है।

3.     शिक्षार्थी को याद कराना शिक्षक का दायित्‍व होता है।

4.     किस प्रकार के तथ्‍य, सूचनाओं, सिद्धातों को शिक्षार्थी के समक्ष रखा जाये इस बारे में शिक्षक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

शिक्षार्थी की भूमिका –

1.     गौण होती है।

2.     स्‍वयं ज्ञान प्राप्ति की स्‍वतंत्रता नही होती है ।

3.     शिक्षार्थी हमेशा किसी तथ्‍यों एवं सूचनाओं तथा घटनाओं रटने, याद करने तथा संस्‍मरण करने के लिए प्रयास करता है।

4.     सोचने, समझने, विचार करने का कोई प्रयास नही किया जाता है। 

अभिप्रेरणा की प्रकृति

1.     बाह्य अभिप्रेरणा से संचारित होता है।

2.     भय, शाबाशी या प्रसंशा प्राप्‍त करने की इच्‍छा होती है ।

3.     उत्‍तीर्ण होकर अगली कक्षा में पहुंचने आदि से अभिप्रेरित होकर विषय वस्‍तु को रटकर याद रखना होता है।

4.     विषय केन्द्रित एवं शिक्षक संचालित होता है। 

शिक्षण विधियां –

1.     व्‍यख्‍यान विधि

2.     वर्णन विधि

3.     पाठ्य - पुस्‍तक विधि

4.     निगमन विधि

मूल्‍यांकन –

1.     मौखिक

2.     लिखित

3.     वस्‍तुनिष्‍ठ

लाभ –

प्रत्‍यास्‍मरण और पहचान क्षमता में वृद्धि होती है।

हानि –

1.     अन्‍त: क्रियात्‍मक प्रक्रिया का अभाव रहता है ।

2.     शिक्षार्थी निष्क्रिय एवं शिक्षक सक्रिय होते हैं ।

 

परिक्षा हेतु याद रखने योग्‍य बातें

1.     एस.आर. आधारित होता है अर्थात स्‍टूमिलेशन रिस्‍पॉन्‍स (उद्धीपन एवं प्रतिक्रिया)

2.     इसके प्रतिपादक हरबर्ट थे ।

3.     रिकॉल, रोट लर्निंग, मौखिक एवं लिखित मूल्‍यांकन तथा प्रेक्टिस एवं एक्‍सरसाइज

4.     किसी तथ्‍यों एवं सूचनाओं को संस्‍मरण करना इसका मुख्‍य उद्देश्‍य है।

 

अवबोध स्‍तर –

प्रतिपादक – मोरिसन थे । इन्‍होंने तीन आधार तत्‍व को प्रस्‍तुत किया जिसमें

1.     Seeing relationship, seeing the tool used facts, seeing both relationship and tool use.

2.     किसी तथ्‍यों, सूचनाओं एवं घटनाओं के मध्‍य संबंध स्‍थापित करता है।

3.     किसी तथ्‍यों, सूचनाओं एवं घटनाओं के मध्‍य अन्‍तर एवं भेद करता है।

4.     किसी तथ्‍यों , सूचनाओं एवं घटनाओं के बारे में सकारात्‍मक एवं नकारात्‍मक उदाहरण प्रस्‍तुत करता है।

अवधारणाओं की महारत (mastery of concepts )

शिक्षण प्रक्रिया में पांच सौपान हैं –

1.     Exploration                (अन्‍वेषण)

2.     Presentation              (प्रस्‍तुति)

3.     Assimilation              (आत्‍मसात)

4.     Organization                         (संगठन)

5.     Recitation                  (सस्‍वर पाठ)

विमर्शी चिंतन स्‍तर

प्रतिपादक – हंट्स

1.     अन्‍वेषणात्‍मक स्‍तर भी कहा जाता है।

2.     किसी संकल्‍पना का विश्‍लेषण करना

3.     किसी संकल्‍पना का मूल्‍यांकन करना

4.     नई सोच को पैदा करना

5.     किसी सूचनाओं को विभिन्‍न भागों में जोडना

6.     पुरानी सोच को विकसित कर नई सोच में बदलना

 

प्रभावी शिक्षण

 

1.     शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षण के चरों का सही बौध होना जरूरी होता है।  इसकी जानकारी सह शिक्षण के सिद्धान्‍तों का प्रतिपादन किया जाना संभव होता है। चरों के स्‍वरूप एवं उनकी प्रकृति को समझना जरूरी होता है।

2.     शिक्षक एवं शिक्षार्थी के मध्‍य अन्‍तक्रियात्‍मक प्रक्रिया का माध्‍यम शिक्षण विधि एवं शिक्षण सहायक सामग्री का स्‍वरूप उनकी अनुकियाओं में प्रभावकारीता को स्‍थान दिया जाता है।

3.     कक्षा संप्रेषण एवं संप्रेषण कौशल प्रभावी शिक्षण की महत्‍वपूर्ण विशेषतायें हैं । संप्रेषण में भाषायी संचार के प्रमुख गुण हैं ।

 

उत्‍तम शिक्षण

 

1.     Share – ज्ञान, बुद्धि एवं कौशल का आदान प्रदान करना

2.     Interesting – कक्षा को रूचिकार बनाना

3.     Facilities – शिक्षण हेतु समस्‍त सुविधायें उपलब्‍ध कराना

4.     Plan – शिक्षण प्रक्रिया को योजनाबद्ध ढंग से व्‍याख्‍या करना या उदाहरण देकर समझाना

5.     Diagnosis – कक्षा कक्ष में शिक्षार्थीयों की समस्‍याओं को पता लगाकर निदान करना

6.     सिखने के सिद्धांतों को ध्‍यान में रखा जाना

 

प्रभावी शिक्षक :-

1.     शिक्षक के गुण एवं व्‍यवहार

2.     कठोर अनुशासन

3.     विषय विशेषज्ञ

4.     नैतिक मूल्‍य

5.     उनके विषय ज्ञान को आदान – प्रदान करने में रूचि ।

 

प्रभावशाली शिक्षण व्‍यवहार :-

1.     शिक्षार्थी के विचारों को स्‍पष्‍ट करना जो समझ के विभिन्‍न स्‍तरों पर हो सकता हो।

2.     दृष्टि सम्‍पर्क, इशारों में भिन्‍नता के माध्‍यम से शिक्षार्थी में उत्‍साह एवं सजीवता साझा करना

3.     सीखने की प्रक्रिया में भाग लेने तथा सफलता प्राप्‍त करने के लिए मौखिक प्रशंसा करना

 

शिक्षण की मूल अवधारणा

1.     शिक्षक, छात्र, पाठ्यक्रम, पर्यावरण एवं बुनियादी ढांचा

2.     शिक्षक एंव छात्र के मध्‍य मधुर संबंध

3.     शिक्षक एवं छात्र में अनुशासन 

 

शिक्षक

1.     सूचना और ज्ञान का प्रवर्तक होता है।

2.     ज्ञान, मूल्‍य एवं लोकाचार का निर्माता एवं हस्‍तांतरित करने वाला होता है।

3.     शिक्षक शिक्षार्थी में शारिरिक, मानसिक, भावनात्‍मक, सामाजिक विकास के लिए प्रयासरत रहता है।

4.     शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया का मुख्‍य बाहक होता है।

5.     समाज में क्‍या सही है व क्‍या गलत है वह जानता है।

6.     शिक्षार्थी के व्‍यवहार में सकारात्‍मक बदलाब लाने संचार के लिए प्रभावी भाषा का उपयोग करता है।

7.     वर्तमान समय विज्ञान और प्रौघौगिकी का समय है इसलिए शिक्षक को इसका अच्‍छा ज्ञान होना जरूरी होता है।

8.     शिक्षक को नवीनतम मिडिया संचार का उपयोग करना आना चाहिए ।

9.     शिक्षक के अन्‍दर और बाह्य के स्थितियों को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करता है।

10.  संगठन के निमार्ण के लिए समन्‍वय करता है। तभी समाजोपयोगी है।

शिक्षार्थी या छात्र –

1.     शिक्षार्थी हमेशा अन्‍य से आश्रित रहता है और अपरिपक्‍व व्‍यक्ति होता है ।

2.     शिक्षार्थी को शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया में समन्‍वय करना जरूरी होता है।

3.     अधिक से अधिक जानकारी एवं ज्ञान प्राप्‍त करने का प्रयास करना चाहिए ।

4.     उन्‍हैं समझ को विकसित करने तथा ज्ञान प्राप्ति के लिए हमेशा शिक्षक को अनुशरण करना चाहिए ।

5.     शैक्षिक संस्‍थान वर्गिकृत होना चाहिए ।

6.     शिक्षार्थी तीव्र एवं धीमि लर्नर्स दोनों प्रकार के होते है।

 

लर्नर्स की विशेषताऐं –

1.     लर्निंग एक मनोवैज्ञानिक संकल्‍पना है ।

2.     लर्नर्स पूर्णरूपेण नये नये संकल्‍पना को सीखते हैं।

3.     मानवीय प्र‍कृति के तहत नये कौशल, ज्ञान, दृष्टिकोण एवं मूल्‍यों से शिक्षार्थी एक अच्‍छे इंसान बनते हैं।

4.     अनुभव से स्‍थायी परिवर्तन आता है।

5.     किसी भी प्रणाली में समझ विकसित होने से नई क्षमता की प्राप्ति होती है।

6.     प्रशिक्षण एवं वर्कशॉप के माध्‍यम से योग्‍यताओं को केरियर के अनुरूप बनाने अर्थात बेहतर केरियर बनाते हैं।

 

अधिगम में उद्धीपन, प्रतिक्रिया, सहचर्य एवं प्रबलन –

1.     अधिगम मानव जीवन की एक सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण एवं व्‍यापक क्रिया है।

2.     शिक्षार्थी जन्‍म से मृत्‍यु तक सदेव सीखते रहते हैं।

3.     भाषा, कौशल, संकेत, भाव-भंगिमाऍं, आदत, मूल्‍य , वस्‍तुओं के प्रति रूचि – अरूचि विभिन्‍न अर्थों को समझते हैं ।

4.     सकारात्‍मक परिस्थितियां एवं विपरित परिस्थितियों में समायोजन करने का अधिगम होता है।

 

उदाहरण से समझने की कौशिश करते हैं जैसे बचपन में कुत्‍ता किसी बच्‍चे के हाथ को काट लेता है तब बच्‍चा कुत्‍ते की आवाज सुनकर डरने लगता है। एक बार जले हुया बच्‍चा जलती आग को देखकर ही डर जाता है। यह सब बच्‍चा अपने आस – पास के वातावरण से या प्र‍कृति से देखकर और अनुभव करके सीखता है।

 

1.     किसी भी अधिगम में उद्धीपन और प्रतिक्रिया के मध्‍य सहचर्य होता है।

2.     एप्‍पल की तस्‍वीर या चित्र – उद्धीपक है जबकि एप्‍पल का उच्‍चरण – प्रतिक्रिया या शब्‍द है। एप्‍पल की तस्‍वीर एवं उच्‍चारण से सहचर्य स्‍थापित करता है।

3.     यदि उपरो‍क्‍त प्रक्रिया को बार – बार दोहराया जाता है, तस्‍वीर – उच्‍चारण के साथ सहचर्य क्रिया होने पर शिक्षक या माता - पिता शाबाशी देते हैं , टॉफी देते हैं, तब इस सहचर्य का पुनर्वलन हुआ यह कहा जाता है।

4.     किसी अधिगम में पुरूस्‍कार धनात्‍मक पुनर्वलन, अवरोध पैदा करना ऋणात्‍मक पुनर्वलन कहा जाता है।

5.     दण्‍ड देना नकारात्‍मक तत्‍व को शामिल कर देना, विलोप का अर्थ सहायक पुनर्वलन को हटा देना कहलाता है।

  

अधिगम क्‍या है

 

1.     अधिगम अनुभव द्वारा व्‍यवहार में होने वाले अपेक्षाकृति स्‍थाई परिवर्तन है।

2.     अधिगम अनुभव द्वारा मानसिक सहचर्यों में होने वाले अपेक्षाकृत स्‍थाई परिवर्तन है।

 

व्‍यवहार में होने वाले स्‍थाई परिवर्तन –

1.     अधिगम का आधार लर्नर्स के जीवन में घटित कोई घटना होती है।

2.     व्‍यवहार में स्‍थाई परिवर्तन बाह्य एवं मूर्त दोंनों हो सकता है, यह व्‍यवहारिक विचारधारा पर आधारित है।

3.     व्‍यवहारवादी विचारधारा परिवर्तनीय, प्रेक्षणीय व्‍यवहार या प्रतिक्रिया के अधिगम पर ध्‍यान केन्द्रित रहता है।

4.     यह विचारधारा प्रेक्षणीय व्‍यवहार पर ध्‍यान केन्द्रित है।

5.     इसके अन्‍तर्गत संवेग का समावेश हो जाता है। जैसे कोई बच्‍चा एक बार जोड करना सीख जाता है, तो उसी को बार-बार अभ्‍यास करने लगता है। उत्‍साह, डर आदि का संवेग होता है अर्थात किसी बच्‍चे को कुत्‍ता ने जोर-जोर से भौंक दिया हो तो बच्‍चा कुत्‍ते को देखकर भागने लगता है। यह भी एक संवेग है। 

 

मानसिक सहचर्यों में स्‍थायी परिवर्तन

1.     यह एक संज्ञानात्‍मक सिद्धांत है जो अमूर्त प्रकृति का होता है।

2.     यह निहित मानसिक घटनाओं या विचार - विमर्श प्रक्रियाओं पर बल देते हैं ।

3.     किसी भी महिला के साथ बलत्‍कार हुआ रहता है। वह किसी भी पुरूष जिसमें उनके निकटष्‍थ संबंध ही क्‍यों ना हो, उसे देखकर कांपने लगती है।

4.     प्‍यार से हारा हुआ जोडे पूरे मानव प्रवृत्ति को दोषी ठहरा देता है।

व्‍यवहारिक विचारधारा –

1.     प्रत्‍येक जीव इस संसार में एक कोरी स्‍लेट की तरह जन्‍म लेता है।

2.     परिवेश के प्रभाव से व्‍यक्ति के व्‍यक्तित्‍व का विकास होता है।

3.     व्‍यवहारवादी अधिगम के स्‍थान पर अनुकूलन शब्‍द का प्रयोग करते हैं।

4.     व्‍यक्ति अपने परिवेश संबंधी घटनाओं से अनुकूलित होता है।

5.     वर्तमान एवं पिछले अनुभव से व्‍यक्ति सीखता है, इसमें व्‍यक्ति का नियंत्रण नही रहता है।

6.     अनुकूलन सिद्धांत दो तरह का होते हैं – 1 क्‍लासिकी अनुकूलन और 2 नैमित्तिक या क्रियाप्रसूत अनुकूलन

 

क्‍लासिकी अनुकूलन –

1.     हम सब जानते हैं बचपन में जब पिताजी गांव या मार्केट से घर पहुंचते थे । तब हम उनके थेले का तांक-झांक करते थे कि पिताजी मेरे लिए कुछ जरूर लाये होंगे । कुछ खाने का चीज मिल जाता था तब हम प्रसन्‍नता का अनुभव करते थे। यह इसलिए करते थे कि पिताजी पिछले बार भी हमारे लिए विशेष चीज लेकर आए थे।

2.     एक बार यदि कोई व्‍यक्ति किसी भी घटना का अनुभव कर लेता है। तब दोबारा उस घटना को देखने मात्र से ही अन्‍दर उसी प्रकार की प्रतिक्रया होने लगती है।

3.     इस सिद्धांत का प्रतिपादक पावलोव है, उसने इस सिद्धांत का परिक्षण कुत्‍ते पर करते हैं ।

4.     मन्दिर के बाहर एक भुखा कुत्‍ता खाने की तलाश करता है। इसी बीच थाली में खाना और घंटी बजाने की क्रिया किया जाता है। इसमें पांच सौपान होते हैं। जो इस प्रकार हैं -
सोपान 01 केवल घंटी बजाया जाता है – कुत्‍ता कोई अनुक्रिया नही करता है अर्थात उदासीन उद्धीपन को दर्शाता है।

 

 

सोपान 02 केवल भोजन के थाली को दिखाता है – कुत्‍ता भोजन को देखकर अनुकूलित प्रतिक्रिया करने        लगता है अर्थात कुत्‍ते के मुह से लार टपकाता है। अर्थात अनुकूलित उद्दीपन करता है।

सोपान 03 घंटी और भोजन के थाली दोनों का प्रदर्शन किया जाता है। अर्थात दोंनों का समायोजन किया जाता है – कुत्‍ते के मुह से लार टपकता है इसे कई दिनों तक दोहराया जाता है।

 

 

सोपान 04 अब केवल घंटी की आवाज से भी कुत्‍ते अनुकूलित उद्दीपन एवं अनुकूलित अनुक्रिया यानी            कुत्‍ते के मुह से लार टपकता है।

सोपान 05 – कई दिनों तक केवल घंटी बजाया जाता है इससे अनुकूलित अनुक्रिया नही करता है। अर्थात कुत्‍ते के मुह से लार टपकना बंद हो जाता है।

अन्‍त में – जब घंटी और खाने की थाली का पुन: समायोजन किया जाता है। तब कुत्‍ते पुन: अनुकूलित अनुक्रिया करने लगता है। 

 

क्रिया प्रसूत अनुकूलन –

1.     इस तरह के अनुकूलन में व्‍यवहार परिवर्तन की संभावना में या तो वृद्धि या फिर कमी होती है।

2.     व्‍यवहार होने के बाद पुरूस्‍कार या दण्‍ड से प्रभावित होता है।

3.     सामान्‍यत: यह स्‍वेच्छिक है ना की क्‍लासिकी

4.     पुरूस्‍कार किसी को भी क्रियाशील बनाता है।

5.     व्‍यक्ति निष्क्रिय रूप से उस परिस्थिति की प्रतिक्षा करता है जिससे कि पुरूस्‍कार स्‍वयं ही उसे प्राप्‍त हो जाये ।

6.     क्‍लासिकी में अनुकूलन में उद्दीपक द्वारा व्‍यवहार उत्‍पन्‍न होता है , जबकि क्रिया प्रसूत अनुकूलन में प्राणी स्‍वयं व्‍यवहार उत्‍पन्‍न करता है।

7.     इसकी दो अवस्‍था होती है। प्रथम दशा – व्‍यवहार होने के लिए पुनर्वलन एक आवश्‍यक तत्‍व है, द्वित्तिय दशा – अनुक्रिया के बाद पुनर्वलन की प्राप्ति व्‍यक्ति या प्राणी की होती है।

 

बी..एफ.स्किनर ने नैमित्तिकी या क्रिया प्रसूत अनुकूलन का प्रतिरूप दिया । उन्‍होंने चूहे पर परिक्षण किया ।

1.     भूखे चूहे को संदूक पर रख दिया । संदूक में एक लीवर लगा दिया जिसके दबने से दरवाजा खुल जाता था और उसे बाहर आकर मनपसंद भोजन प्राप्‍त कर सकता है।

2.     प्रथम प्रयास में चुहा को कुछ समझ नही आता है, संदूक के चारों तरफ भाग-दोड करने लगता है। कई घंटों बाद अनायास लीवर दब जाता है। और दरवाजा खुल जाता है जिससे उन्‍हैं मनपसंद भोजन मिल जाता है।

3.     इस अनुक्रिया को बार-बार दोहराया गया । एक समय ऐसा आया कि चुहा कुछ सेकंड में ही लीवर को दबाना सीख गया और उन्‍हैं संदूक से बाहर से निकलकर भोजन खाने लगा ।

4.     जो अनुक्रिया पुनर्वलित होती रहे , वह ज्‍यादा मजबूत होती है। इसके दोबारा उत्‍पन्‍न होने की संभावना भी रहती है।

5.     उद्दीपकों को पुनर्वलित किया जाता है उनकी आवृत्ति में वृद्धि की संभावना होती है।

6.     जैसे चुहे धातू की लीवर को दबाना सीख जाता है, उसी तरह से कबूतर प्‍लास्टिक की प्‍लेट पर भोजन के दाने एकत्रित करने के लिए अपनी चोंच लगाना सीख जाता है।

7.     क्रिया प्रसूत अनुकूलन का सिद्धांत पुनर्वलन पर आधारित है।

8.     अवांछित व्‍यवहारों पर ध्‍यान न देने वाले सिद्धांत भी इसे कहा जाता है।

9.     धनात्‍मक पुनर्वलन    -   पुरूस्‍कार
ऋणात्‍मक पुनर्वलन    - अवरोध पैदा करना

दण्‍ड                       - नकारात्‍मक तत्‍वों को शामिल कर देना

विलोप                    - सहायक पुनर्वलन को हटा देना


 

जीन पियाजे ने सिद्धान्‍त के अन्‍तर्गत व्‍यक्ति को पर्यवेक्षण माना है तथा अन्‍तदृष्टि को परिणाम को अधिगम के रूप में परिभाषित किया गया है।

      जिन पियाजे का मानना है कि कोई ज्ञान संसार में पूर्ववर्ती नही है जो बच्‍चों को पढाया जा सके । ना ही ज्ञान, बच्‍चों में स्‍वयं आता है। ज्ञान विकसित होता है जब बच्‍चे संसार में क्रिया करता है। वस्‍तुओं को समझने के लिए बच्‍चों को उन पर क्रिया करनी ही होती है और उनमें बदलाव आते हैं । उनका सिद्धांत बच्‍चे कैसे ज्ञान को निर्मित करते हैं , को भी समझने में मदद करता है। निर्माणवाद को एक सिद्धांत के रूप में जाना जाता है।

 

 

संज्ञानात्‍मक विकास के प्रत्‍यय :-

1.     अनुकूलन का अडाप्‍टेशन : वातावरण के अनुसार अपने आप को ढालना अनुकूलन कहलाता है यह तीन प्रकार होता है।
(1) आत्‍म – सात्‍करण : पूर्व ज्ञान को नये ज्ञान से जोडना । जैसे बच्‍चों ने सफेद बिल्‍ली को पहले देखा और काली बिल्‍ली को बाद में देखा । संरचना के आधार पर दोंनो को बिल्‍ली ही मान लिया ।
(2) समायोजन :  पूर्व ज्ञान या योजना में परिवर्तन करके वातावरण के साथ तालमेल बिठाना  । जैसे कुत्‍ता और बिल्‍ली दोनो संरचना के आधार पर एक समान हैं। दोनो के आवाज में अंतर करके कुत्‍ते और बिल्‍ली को समायोजन करता है।
 

            (3) विकेन्‍द्रीकरण : एक ही समस्‍या को अलग – अलग रूप में समझ पाने की योग्‍यता या समस्‍या समाधान को अलग अलग तरीके से सीखना । सकारात्‍मक और नकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति को अपनी योग्‍यता के आधार पर अलग- अलग तरीकों से समझा जा सकता है। हमारे सामने एक ही प्रजाति के दो पशु हैं बिल्‍ली और चीता । बिल्‍ली घरेलू जानवर है और चीता जंगली जानवर है। यह एक विकेन्‍द्रीकरण अनुकूलन का उदाहरण है। 

2.     साम्‍यधारण या संतुलन : आत्‍म सात्‍करण और समायोजन की प्रक्रियओं के बीच संतुलन करता है। इसके तीन आवस्‍थायें बताई गयी हैं ।
(1) संवेदी पेषीय अवस्‍था - 0 से 2 वर्ष तक के बच्‍चों में होता है। यह एक सेंसरी मोटर स्‍टेज का होता है। यह ज्ञानेन्‍द्रीयों से जैसे कान
, नाक , त्‍वाचा के माध्‍यम से सीखता है। बच्‍चों में वस्‍तु स्‍थायित्‍व का गुण पाया जाता है।

 

(2) पूर्व संक्रियात्‍मक अवस्‍था : 2 से सात वर्ष के बच्‍चों में पाया जाता है। क्रिया करने की प्रथम अवस्‍था है। इस अवस्‍था में बच्‍चे देख पाएगा , समझ पाएगा लेकिन कोई क्रिया नही कर पायेगा ।
(1) जीववाद : सजीव और निर्जीव वस्‍तुओं में अन्‍तर नही कर पाता है। बच्‍चा जमीन पर गिरता है। जमीन को मारने पर बच्‍चा खुश हो जाता है।
(2) अह्म केन्द्रिता : बच्चा सोचना प्रारंभ कर देता है वह जो कुछ कर रहा है या सोच रहा है वह सब ठीक है। और दूसरे लोग गलत हैं वह सोचने लगता है। वह जो सोच लिया वही करने लगता है ।
(3) अपलरावी : बच्‍चे किसी संख्‍या
, बस्‍तुओं , समस्‍याओं आदि को उलट-पलट नही सीखता है। 1 और 2 को जोडने से 3 होता है तथा 2 और 1 को जोडने से भी 3 होता है इसके तर्क को नही समझ पाता है। मुद्रा सम्‍प्रत्‍य, दूरी , भार, उंचाई आदि के सम्‍प्रत्‍य की कमी होती है। 

3.     मूर्त सक्रियात्‍मक अवस्‍था : 7 से 11 वर्ष के बच्‍चों में इस अवस्‍था को रखा गया है । सामने रखी हुई वस्‍तुओं को देखकर ही कुछ कर सकता है। अपलरावी, जीववाद, मुद्रा, भार आदि संप्रत्‍य का गुण आ जाता है। 

लिव वाइगोत्‍सकी की विकास मनोविज्ञान, सामाजिक, सांस्‍कृतिक विकास एवं समीपस्‍थ विकास का क्षेत्र :-

1.     अधिगम को समस्‍या समाधान के प्रक्रम में बच्‍चों के बीच अंतक्रिया के परिणाम के रूप में देखा ।

2.     शिक्षक ब्‍लेकबोर्ड पर कुछ लिखता है यह परिवेश में उद्दीपन है। इसे संवेदी अभिग्राहक जेसे आंख ग्रहण करता है। स्‍नायु कोशिकाओं के माध्‍यम से मस्तिष्‍क मे भेज देता है । संवेदना रजिस्‍टर कर देता है। यह कम समय तक रहती है।

3.     बच्‍चों के विकास पर तीन मुख्‍य बातों के प्रभाव को संज्ञानात्‍मक विकास का सिद्धांत के नाम से प्रतिपादित किया जिसे बुद्धी का विकास कहा गया है।
(1) समाज                    (2) संस्‍कृति                   (3) भाषा

(1) बच्‍चे सर्वप्रथम परिवार
, समाज या बडे सदस्‍यों के साथ संवाद करके सीखता है। बोद्धिक क्रियायें पहले बाहरी दुनियां से घटित होती हैं ज्ञान बाह्य वातावरण सह‍योगी होता है।

(2) बच्‍चे क्‍या जान सकता है और क्‍या नही जान सकता है 
? – किसी बच्‍चे के लिए कौशल मुश्किल से उस पर महारत हासिल करना, जो खुद नही है, लेकिन जो ज्ञात है वह एक जानकार व्‍यक्ति के मार्गदर्शन , प्रोत्‍साहन से किया जा सकता है।
(3) इसके तीन क्षेत्र होते हैं –





1.     प्रथम सर्किल , इसमें बच्‍चे बिना सहायता से कुछ भी नही सीख सकता है।

2.     द्वित्तिय सर्किल , जेडपीडी अर्थात समीपस्‍थ विकास का क्षेत्र , इसमें बच्‍चे किसी सहायता से सीख सकता है।

3.     तृत्तिय सर्किल , लनर्स  नही सीख सकता है।

 

 


 

1.     प्रथम , मैं क्‍या कर सकता हूं ?

2.     द्वित्‍तीय जेड पी डी – मैं क्‍या मार्गदर्शन के साथ कर सकता हूं ?

3.     तृत्तिय , मैं क्‍या नही कर सकता हूं ?

 

ब्‍लूम के शैक्षिक उद्देश्‍यों का वर्गीकरण –

1.     ज्ञानात्‍मक या संज्ञानात्‍मक पक्ष

2.     भावनात्‍मक पक्ष

3.     क्रियात्‍मक पक्ष या साइकोमोटर डोमेन

 

1.     ज्ञानात्‍मक या संज्ञानात्‍मक पक्ष – ज्ञानात्‍मक पक्ष में ज्ञान, ज्ञान का संबंध मस्तिष्‍क से है और मस्तिष्क का संबंध संवेदी पेशीय अवस्‍था से है । इसके अन्‍तर्गत शिक्षार्थी किसी तथ्‍य या सूचनाओं को गृहण करता है। वर्तमान शैक्षिक क्रिया इस पक्ष पर आधारित है ।
ज्ञानात्‍मक पक्ष को निम्‍न से उच्‍च स्‍तरिय  शैक्षिक उद्देश्‍यों को सौपानों को निम्‍नानुसार दर्शाया गया है।
(1) ज्ञान :  विशिष्‍ट बातों
, उपायों एवं साधनों तथा सामान्‍यीकरण , नियमों एवं सिद्धांतों का ज्ञान देना ।
(2) बोध :  तथ्‍यों
, नियमों , शब्‍दों, साधनों एवं सिद्धांतों को अनुवाद करना और स्‍वयं के शब्‍दों में लिखना ।     
                पाठ्य वस्‍तु को समझना तथा गणना करना तथा व्‍याख्‍या करना ।
(3) प्रयोग : साधनों
, नियमों में सामन्‍यीकरण करना, शिक्षार्थी द्वारा पाठ्य वस्‍तु का प्रयोग करना , पाठ्य वस्‍तु
                 को अपने शब्‍दों में प्रयोग करना
, शिक्षार्थी के कमजोरियों को पहचाना तथा निदान करना
(4) विश्‍लेषण :  तथ्‍यों
, संबंधों, व्‍यवस्थित सिद्धांतों के रूप में विश्‍लेषण करना ।
(5) संश्‍लेषण : विभिन्‍न तत्‍वों के संशलेषण में अनोखा संप्रेषण करना
, नवीन योजना प्रस्‍तावित करना , तत्‍वों
                     के अमूर्त संबंधों का अवलोकन करना आदि ।
(6) मूल्‍यांकन : यह उच्‍चस्‍तरिय है जिसमें शिक्षार्थी के अधिगम का मूल्‍यांन किया जाता है

 

2.     भावनात्‍मक पक्ष – इसके अन्‍तर्गत शिक्षार्थी की रूचियों , अभिवृत्तियों एवं मूल्‍यों का विकास होता है। यह शिक्षा के लिए यह महत्‍वपूर्ण उद्देश्‍य माना जाता है। निम्‍न से उच्‍च स्‍तरिय पक्ष को निम्‍नानुसार वर्गीकृत किया गया है-
1.  आग्रहण : 1
. ग्रहण करना 2. क्रिया की जागरूकता 3. क्रिया प्राप्‍त करने इच्‍छा 4. क्रिया का नियंत्रण करना
2. अनुक्रिया : 1. अनुक्रिया में सहमति 2. अनुक्रिया की इच्‍छा 3. अनुक्रिया का संतोष
3. अनुमूल्‍यन : 1. मूल्‍यों की स्‍वीकति 2. मूल्‍यों की प्राथमिकता 3. वचनबद्धता
4. प्रत्‍यक्षीकरण : 1. वर्णात्‍मक स्‍तर 2. संक्रमणात्‍मक 3. व्‍याख्‍यात्‍मक स्‍तर
5. व्‍यवस्‍थापन : 1. मूल्‍यों की अवधारणा 2. मूल्‍य अवस्‍था का संगठन
6. चरित्र निर्माण : यह उच्‍च स्‍तरिय है जिससे शिक्षार्थी के चरित्र प्रमाण होता है

 

3.     क्रियात्‍मक पक्ष – शैक्षिक उद्देश्‍यों के अन्‍तर्गत शारिरीक क्रियाओं के प्रशिक्षण एवं कौशलों के विकास से संबंधित है । इसका उदाहरण है व्‍यवसायिक एवं औद्यौगिक प्रशिक्षण । निम्‍न से उच्‍च स्‍तरिय पक्ष को निम्‍नानुसार वर्गीकृत किया गया है -
1. उद्दीपन
2. कार्य करना
3. नियंत्रण
4. समायोजन
5. स्‍वभावीकरण
6. आदत पडना या कौशल
 

शिक्षण विधियां

 

 शिक्षण विधियां मुख्‍यत: दो तरह की होती हैं जिसमें शिक्षक केन्द्रित शिक्षण विधियां तथा शिक्षार्थी केन्द्रित शिक्षण विधियां हैं 

शिक्षक केन्द्रित शिक्षण विधियां – सूचना , निर्देशन , विषयवस्‍तु , प्रबंधन , नियंत्रण , उत्‍साह वर्धन , व्‍यूह रचना , अधिगम विधियां, प्रश्‍न एवं खोजने के अवसर नही तथा शिक्षण साहयक सामग्री के आधार पर शिक्षक केन्‍द्रीत विधियों को वर्गीकृत किया गया है 

सामान्‍य शिक्षण विधियां :

1.     उच्‍च स्‍तरीय शिक्षण में शिक्षा का उद्देश्‍य

2.     ज्ञान प्रसारित करने क्षमता

3.     विचार एवं सूचना का उपयोग करना

4.     विचार एवं साक्ष्‍य का परिक्षण करना , यह एक समस्‍या समाधान एवं महत्‍वपूर्ण सोच पर आधारित है।

5.     अपने स्‍वयं के सीखने की योजना बनाने तथा उसका प्रबंधन करने के लिए शिक्षार्थी के बारे में संक्षेप में सोचना , यह बहु- संज्ञानात्‍मक पक्ष है

6.     शिक्षार्थी के संपूर्ण विकास की परिकल्‍पना करना 

 

विस्‍तृत ज्ञान के लिए शिक्षण विधियां –

1.     पाठ्य सामग्री विधि , पठन , थीसेस एवं विधियों के स्‍त्रोत

2.     व्‍यख्‍यान विधि , अतिथि व्‍याख्‍यान

3.     ड्रिल /परियोजना एवं अभ्‍यास विधियां

4.     निर्देशित अध्‍ययन एवं निर्देशित अनुदेशन विधियां

5.     खुला अधिगम सामग्री जिसमें पुस्‍तकालय एवं अन्‍य अधिगम स्‍त्रोत का उपयोग

6.     निगमनात्‍मक विधियां

7.     इंटरनेट का उपयोग 

विचारों एवं सूचनाओं के उपयोग संबंधी शिक्षण विधियां –

1.     आगमनात्‍मक विधियां

2.     प्रदर्शन विधियां, प्रायोगिक कार्य , कार्य अनुभव विधियां

3.     प्रोजेक्‍ट विधियां , प्रश्‍नोत्‍तर विधियां एवं द्वंदात्‍मक विधियां

4.     रचनात्‍मक लेखन एवं संचार उपागम विधियां

5.     वर्कशॉप

6.     केस स्‍टडी

7.     सहयोगात्‍मक शिक्षण विधियां 

विचारों एवं सबूतों का परिक्षण करने के लिए शिक्षण विधियां –

1.     प्रस्‍तुती करण विधियां

2.     सेमीनार

3.     सम्‍मेलन

4.     सिम्‍पोजियम

5.     खुला अधिगम

6.     समकक्ष ट्यूटोरियल विधियां

7.     स्‍वयं अध्‍ययन / मूल्‍यांकन

8.     ट्यूटोरियल विधि

9.     निदनात्‍मक परीक्षण

 

संक्षेप में सोचने के लिए शिक्षण विधियां –

1.     रचनात्‍मक समस्‍या समाधानों की तकनीक

2.     विभिन्‍न सोच

3.     ब्रेनस्‍टारमिंग यानी बुद्धीशीलता

4.     क्रिया अधिगम

5.     माइंड मेपिंग यानी मन चित्रण

6.     प्रत्‍यक्षीकरण

7.     हूरिस्टिक

8.     समस्‍या आधारित अधिगम 

 

छात्रों की योजना बद्धता के लिए शिक्षण विधियां –

1.     डॉल्‍टन योजना एवं अधिगम संपर्क

2.     स्‍वंत्रत अध्‍ययन

3.     विमर्शी चिंतन

4.     लघु शोध

5.     संश्‍लेषणात्‍मक विधि

6.     विश्‍लेषणात्‍मक विधि

 

परिक्षा में पूछे जाने वाली शिक्षण विधियां –

शिक्षक केन्द्रित शिक्षण विधियां – प्रत्‍यक्ष निर्देशन विधि एवं अनोपचारिक विधि

1.     परंपरागत शिक्षण विधि

2.     प्राचीन शिक्षण विधि

3.     चॉक एंड टॉक विधि

4.     दृश्‍य – श्रवय के साथ व्‍यख्‍यान विधि

5.     टीम शिक्षण विधि

6.     ऑडियो एवं विडियो प्रस्‍तुति

 

शिक्षार्थी केन्द्रित शिक्षण विधियां – यह पूछताछ आधारित अधिगम है

1.     कम्‍प्‍यूटर सहायक निर्देशन

2.     अनु‍करण और भूमिका निर्वाह

3.     हूरिस्टिक या खोज विधि

4.     केस स्‍टडी

5.     खुला अधिगम

6.     निर्देशन की व्‍यक्तिगत प्रणाली

7.     परियोजना विधि

8.     अन्‍तक्रियात्‍मक सत्र विधि 

 

मिश्रित शिक्षण विधियां – यह सहभागी अधिगम पर आधारित है

1.     सामूहिक विचार – विमर्श

2.     सेमीनार

3.     ब्रेनस्‍ट्रोमिंग

4.     प्रदर्शन विधियां 

याद करने योग्‍य बातें –

1.     आगमन विधि – फ्रांसिस बेकन इस विधि के जनक थे

2.     आगमनात्‍मक एवं निगमनात्‍मक विधि जनक अरस्‍तु थे

3.     निगमन विधि के जन‍क अरस्‍तु थे

4.     अभिक्रेमित अनुग्रेशन विधि के जनक स्किनर थे

5.     रेखीय के जनक स्किनर थे

6.     प्रोजेक्‍ट विधि के जनक किलपैट्रिक थे यह पाठ्यवस्‍तु के विकास , सहगामी क्रियायें , मॉडल चार्ट , ग्‍लोब आदि का प्रयोग कर अधिगम कराया जाता है

7.     हूरिस्टिक विधि या खोज विधि के जनक आर्मस्‍ट्रांग थे , इस विधि के अन्‍तर्गत व्‍यवहारिक एवं सहगामी क्रिया पाई जाती है।

8.     शिक्षण विधि का मुख्‍य उद्देश्‍य है – 1. शिक्षण को रूचिकर बनाने तथा 2. प्रभावशाली बनाने के तरीके के लिए

9.     व्‍याख्‍यान विधि कठिन अंशो को सरल बनाने , अत्‍यधिक ज्ञान प्राप्‍त करने , सूचना एवं विचारों के लिए प्रयोग किया जाता है

10.  स्‍पष्टिकरण विधि में एक पूर्ण एवं विस्‍तृत कथन होता है

11.  प्रश्‍न विधि के जनक सुकरात थे, इनके तीन सौपान है – 1. निरिक्षण 2. अनुभव 3. परिक्षण

12.  शिक्षण विधि या कथन विधि में पाठ्य वस्‍तु प्रसंग , घटना- स्‍थान का सरल भाषा में कथन करना होता है । यह अज्ञात से ज्ञात की ओर का सिद्धांत है। इस विधि के अनेखों फायदे हैं
1. अनुभवों को मूर्त रूप देना
2. बोध विस्‍तार
3. तथ्‍यात्‍मक ज्ञान
4. मानसिक क्षमता
5. ध्‍यान केन्द्रित करना
6. इतिहास विषय के लिए अ‍त्‍यधिक उपर्युक्‍त है
7. क्रमानुसार अध्‍ययन किया जाता है
8. सतही अध्‍ययन करना

 

13.  वर्णन विधि – विषय वस्‍तु का विस्‍तार से वर्णन करना होता है । यह एक शिक्षक केन्द्रित विधि है। इसमें गहराई से अध्‍ययन करना होता है। चित्र , मॉडलों द्वारा , भ्रमण विधि द्वारा तथा करके या प्रयोग करके सीखने में सहायक है

14.  स्‍पष्टिकरण एवं उदघाटन विधि में विषय वस्‍तु या घटना को उच्‍च तरह से समझना होता है। इसमें जटिल को सरल बनाया जाता है । इसमें एक पूर्ण एवं विस्‍तृत कथन होता है।

15.  कहानी विधि में एकाग्रता , कल्‍पना शक्ति और अधिगम की तीव्रता इसकी विशेषताऐं हैं ।

 

 

ऑनलाईन शिक्षण

 

NME ICT

MHRD द्वारा स्‍थापित ऑनलाई अधिगम है।

1.     स्‍वयं SWAYAM : the study webs of active learning for young aspiring minds
SWAYAM
भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एक पाठ्यक्रम है और शिक्षा निति के तीन प्रमुख सिद्धांतों, पहुंच, इक्विटि और गुणवत्‍ता को प्राप्‍त करने के लिए डिजाईन किया गया है इस प्रयास का उद्देश्‍य सबसे अधिक वंचितों सहित सर्वोत्‍तम शिक्षण अधिगम संसाधनों को सभी तक पहुंचाना है। स्‍वयं उन छात्रों के लिए डिजिटल डिवाईस को पहुंचाना चाहता है जो अभी तक डिजिटल क्रांति से अछुते रहे हैं और ज्ञान अर्थव्‍यवस्‍था की मुख्‍य धारा में शामिल नही हो पाये हैं।
स्‍वयं विभिन्‍न विषयों पर ऑनलाईन प्रमाणन पाठ्यक्रम सं‍चालित करता है
, जिसके लिए कम्‍प्‍यूटर आधारित मोड या हाईव्रिड मोड , यानि CBT मोड और पेपर पेन मोड में हर सेमेस्‍टर में परिक्षा आयोजित की जाती है।

  
राष्‍ट्रीय परिक्षण एजेंसी को 348 पाठ्यक्रमों के लिए जनवरी 2
022 सेमेस्‍टर के लिए SWAYAM परिक्षा आयोजित करने की  जिम्‍मेदारी सौंपी गयी है
1. इंटिग्रेटेड प्‍लेटफॉर्म
2. ऑनलाई अधिगम
3. 9 वीं से स्‍नातकोत्‍तर स्‍तर के छात्रों को अधिगम करने का अवसर
4. छात्र
, शिक्षक, नोन स्‍टूडेंट लनर्स के लिए ऑनलाईन अधिगम प्‍लेटफॉर्म है
5. लाईफलॉग लर्निंग

 

स्‍वयं प्रभा SWAYAM PRABHA : यह एक ऑनलाईन अधिगम करने का एजुकेशनल चेनल है।
            स्‍वयं प्रभा 22
DTH चेनलों का एक समूह है जो GSAT-15 उपग्रह का उपयोग करके 247 आधार पर उच्‍च गुणवत्‍ता वाले शैक्षिक कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए समर्पित है। हर‍ दिन कम से कम (4) घंटे के लिए नई सामग्री होगी जिसे एक दिन में पांच बार दोहराया जायेगा, जिससे छात्र अपनी सुविधा के लिए समय चुन सकेंगे । चैनल BISAG-N गांधीनगर से अपलिंक किये गये हैं । सामग्री NIPTL, IIT, CEC, इग्‍नू द्वारा प्रदान की जाती है। इनफ्लिबनेट केन्‍द्र पर पोर्टल का रखरखाव करता है।

 

एन0डी0एल0 NDL : नेशनल डिजिटल लाईब्रेरी ऑफ इंडिया

1.     पुस्‍तकों /ऑडियो बुक्‍स जेसे विविध संसाधनों की उपलब्‍धता , व्‍याख्‍यान / विडिओ व्‍याख्‍या/ प्रस्‍तुति करण / सिमुलेशन/ व्‍याख्‍या नोट्स , प्रश्‍न पत्र और समाधान ।

2.     किसी की उंगलियों पर मूल और एकत्रित शैक्षिक सामग्री की बडी मात्रा ।

3.     अधिक व्‍यापक रूप से उपयोग की जाने वाली भाषाओं का समर्थन करने वाले यूजर इंटरफेस के साथ अधिकांश भारतीय भाषाओं की सामग्री शामिल है।

4.     कई भारतीय शैक्षिक और अनुसंधान संस्‍थानों के स्‍ंस्‍थागत डिजिटल डिपोजिटरी से सामग्री का एकीकरण।

FOSSEE : Free And Open Source Software For education :

            शैक्षिक संस्‍थानों में कम्‍प्‍यूटर लैब स्‍थापित करने के लिए भारत सरकार द्वारा मुफ्त सॉफ्टवेयर की व्‍यवस्‍था की करती है। इसके अन्‍तर्गत निम्‍नांकित सामग्री की उपलब्‍ध्‍ता है –

1.     स्‍पोकन ट्यूटोरियल

2.     डाक्‍यूमेटेशन

3.     टेस्‍टबुक्‍स

4.     अवेयरनेस प्रोग्राम

5.     सम्‍मेलन, प्रशक्षिण, वर्कशॉप , इन्‍टर्नशिप कार्यक्रम

 

विद्वान :- विशेषज्ञ डेटाबेस और राष्‍ट्रीय शोध कर्ता नेटवर्क EXPERT Database and national researcher Network

 

                        विद्वान भारत में शिक्षण और अनुसंधान में शामिल प्रमुख शैक्षणिक संस्‍थानों और अन्‍य अनुसंधान एवं विकास संगठनों में कार्यरत विज्ञानिकों/शोधकर्ताओं और अन्‍य संकाय   सदस्‍यों के प्रोफाईल का प्रमुख डेटाबेस है। यह विशेषज्ञ की पृष्‍ठ भूमि , संपर्क पता, अनुभव , विद्वानों के प्रकाशनों , कौशल और उपलब्धिओं, शोधकर्ता पहचान आदि के बारे में महत्‍वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। सूचना और पुस्‍तकालय नेटवर्क केन्‍द्र ( इनफ्लिवनेट) द्वारा विकसित और अनुरक्षित डेटाबेस आइसीटी के माध्‍यम से शिक्षा पर राष्ट्रिय मिशन से वित्‍तीय सहायता के साथ । (एनएमइ-आईसीटी) । डेटाबेस मंत्रालयों /सरकार द्वारा स्‍थापित विभिन्‍न समितियों , कार्यबल के लिए विशेषज्ञों के पेनल के चयन में सहायक होगा। निगरानी और मूल्‍यांकन उद्देश्‍यों के लिए प्रतिष्‍ठान है ।

 

वर्चुअल लैब :-

1.     विज्ञान और इंजिनियरिंग के विभिन्‍न विषयों में सिमूलेशन – आधारित प्रयोगशालाओं तक रिमोट – एक्‍सेस प्रदान करना

2.     विद्यार्थीयों में जिज्ञासा जगाकर प्रयोग करने के लिए उत्‍साहित करना । जिससे उन्‍है दूरस्‍त प्रयोग के माध्‍यम से बुनियादी और उन्‍नत अवधारणाओं को सीखाने में मदद मिलेगी ।

3.     वर्चुअल लैब के आसपास एक संपूर्ण लर्निंग मेनेजमेंट सिस्‍टम प्रदान करना जहां छात्र/ शिक्षक अतिरिक्‍त बेव संसाधनों , विडियो- व्‍याख्‍यानों , एनिमेटेड प्रदर्शनों और स्‍व – मूलयांकन सहित सीखने केलिए विभिन्‍न उपकरणों का लाभ उठा सकते हैं ।

 

ई – यंत्र :-

            ई – यंत्र शिक्षा मंत्रालय द्वारा वित्‍त पोषित और आईआईटी बॉम्‍बे में आयोजित एक रोबोटिक्‍स आउटरिच कार्यक्रम है। लक्ष्‍यकृषि , विनिर्माण, रक्षा , ग्रह, स्‍मार्ट-सिटी रखरखाव और सेवा उधोग जेसे विभिन्‍न क्षेत्रों में प्रोद्योगि‍की का उपयोग करके समस्‍याओं को हल करने के लिए युवा इंजिनियरियों की प्रतिभा का उपयोग करना है।

NTA UGC NET 29/SEP/2022

II SHIFT

           

            निम्‍नलिखित में से अध्‍यापन की किस प‍द्धति में छात्र को बिना किसी सहायता के अपने प्रयासों द्वारा ही अपनी समस्‍या का उत्‍तर पाना पडता है ?

1.     Case Study Method प्रकरण या केस – अध्‍ययन

2.     Heuristic Method स्‍वानुभाविक हूरिस्टिक पद्धति

3.     Flipped Classroom method प्रतिवर्तित या फ्लिप्‍ड कक्षा पद्धति

4.     Demonstration method प्रदर्शन विधि

 

उत्‍तर : 2

·       हूरिस्टिक या स्‍वानूभाविक शिक्षण विधि शिक्षार्थी केन्द्रित विधि है जिसे खोज विधि भी कहते हैं। अर्थात किसी भी छात्र को शिक्षक के मार्गदर्शन में और बिना मार्गदर्श में खुद स्‍वयं प्रयास करना होता है।

·       अन्‍य शिक्षण विधियां शिक्षक केन्द्रित शिक्षण विधि है।

·       केस स्‍टडी को शिक्षण में समस्‍या आधारित अधिगम के रूप में जाना जाता है। किसी वस्‍तु – स्थिति को बारीकी से जांच करने के लिए इस मेथड का प्रयोग किया जाता है। इस शिक्षण विधि के प्रणेता फ्रड्रिग ली प्‍ले थे ।

·       फिलप्‍ड कक्षा पद्धति :- वर्तमान समय की इनोवेटिव अर्थात नवाचार शिक्षण पद्धति है। शिक्षक लेक्‍चर्स को वीडियो रिकॉडिंग करके इंटरनेट के माध्‍यम से शिक्षार्थी तक पहुंचाया जाता है। और शिक्षार्थी उसे घर पर वीडियो देखकर स्‍टडी करते हैं ।

·       प्रदर्शन शिक्षण विधि :- शिक्षार्थीयों को कुछ क्रिया करके दिखाने की पद्धति को कहा जाता है। जेसे कम्‍प्‍यूटर के बारे में जानकारी देना हो तो शिक्षक कक्षा में कम्‍प्‍यूटर का प्रदर्शन कर दिखाता है और बीच-बीच में प्रश्‍न भी पुछता है ताकि व्‍याख्‍यान के साथ-साथ उस विषय वस्‍तु का अवलोकन कर सके ।

 

अध्‍यापक `A` कक्षा में चॉक और पट्ट (बोर्ड) का उपयोग करते हैं और छात्रों को बोलकर नोट्स लिखवाते हैं । अध्‍यापक `B` डिजिटल संसाधन उपलब्‍ध कराने के लिए वीडियो सम्‍मेलन और L.M.S. का उपयोग करते हैं । अध्‍यापक `A` और अध्‍यापक `B` अध्‍यापन की कोनसी प्रणालीयां उपयोग करते हैं

 

·       Both Online दोनो ऑनलाईन

·       Both Offline दोनो ऑफलाईन

·       Teacher `A` Online, Teacher `B` Offline अध्‍यापक `A` ऑनलाईन अध्‍यापक `B` ऑफलाईन

·       Teacher `A` Offline, Teacher `B` Online अध्‍यापक `A` ऑफलाईन अध्‍यापक `B` ऑनलाईन

उत्‍तर : 4

·       ऑफलाईन कक्षा हमेशा संस्‍थानों में आमने – सामने की शिक्षा है । जैसे कॉलेज में जाकर कक्षा में शिक्षक के द्वारा निश्चित अवधि में शिक्षण कार्य कराया जाता है। ऑफलाईन शिक्षण में समय, स्‍थान और पाठ्य – वस्‍तु निश्चित होते हैं और बाध्‍यकारी होते हैं ।

·       ऑनलाईन कक्षा एक तरह की डिजिटल शिक्षण है जिसमें समय और स्‍थान से मुक्‍त होते हैं । आईसीटी के माध्‍यम से यानि कम्‍प्‍यूटर एवं इंटरनेट से शिक्षण किया जाना । गूगल मीट या यूट्यूब आदि से वीडियो कॉन्‍फ्रेसिंग से शिक्षण कार्य इसी कोटि मे आता है ।

·       प्रश्‍नों को देखकर ही समझ में आ जाता है कि अध्‍यापक ए ऑफलाईन तथा अध्‍यापक बी ऑनलाईन शिक्षण करा रहें है।

 

मूल्‍यांकन प्रविधियां :-

1.     परिणात्‍मक मूल्‍यांकन
1. मौखिक परीक्षा
2. लिखित परीक्षा
3. प्रायोगिक परीक्षा

2.     गुणात्‍मक मूल्‍यांकन
1. जांच की सूची एवं स्‍तर माप
2. अवलोकन का निरीक्षण
3. घटनावृत्‍त
4. साक्षात्‍कार एवं वाइवा वोक

मूल्‍यांकन से संबंधित महत्‍वपूर्ण बातें :-

1.     शिक्षा विस्‍तृत उपलब्धि केन्‍द्र नही है बल्कि विकास केन्द्रित है ।

2.     मूल्‍यांकन एक सतत् सकारात्‍मक प्रक्रिया है।

3.     मौखिक परिक्षा ग्‍लोडाईड्स ने शुरू किया और सुक्रात महत्‍वपूर्ण योगदान रहा

4.     छात्र के ज्ञान के मूल्‍यांकन की यह विधि मुख्‍यत: व्‍यक्तिगत होती है।

5.     ज्ञान , अभिव्‍यक्ति की क्षमता , उसके आत्‍म विश्‍वास को परखा जाता है।

जांच सूची :-

छात्र के प्रयोगात्‍मक ज्ञान, अभिवृत्तियां , रूचियों, अ‍वधारणाओं, मूल्‍यों आदि उपलब्धियां

स्‍तर माप :-

            छात्र के विशिष्‍ट गुणों ने छात्र एवं शिक्षणों पर क्‍या प्रभाव पडा यह माप करना अवलोकन एवं निरीक्षण :- व्‍यवहारों को दर्ज करना होता है।

1.     अवलोकनार्थ

2.     चैकलिस्‍ट

3.     अवलोकन चार्ट

4.     मापनी परिक्षण , उपकरणों का प्रयोग

घटनावृत्‍त:- विभिन्‍न परिस्थितियों में छात्रों का वास्‍तविक व्‍यवहार

 

 

मूल्‍यांकन का सौपान :-

1.     उद्देश्‍यों का निर्धारण :- 1. सामान्‍य उद्देश्‍या 2. विशिष्‍ट उद्देश्‍य

2.     अधिगम क्रियाओं का आयोजन
1. शिक्षण विन्‍दुओं का चयन
2. शिक्षण क्रियाओं द्वारा उपयुक्‍त अधिगम अनुभव उत्‍पन्‍न करना
3. व्‍यवहार परिवर्तन

मापन का स्‍तर –

1.     नमित अथवा शाब्दिक मापनी – गुणों के आधार पर यह अमूर्त होती है।
स्‍वाद – 1. खट्टा 2. मीठा 3. कडवा

2.     क्रमित अथवा क्रम सूचक मापनी – क्रम को आधार माना जाता है।
1. क्रिकेट टीम की रैंकिग
2. परीक्षा परिणाम की सूची
3. धनी लोंगों की सूची
4. मेरिट लिस्‍ट

3.     अन्‍तराल मापनी :- निश्चित अंतराल को आधार माना जाता है
1. 1 से 50 तक की औसत क्‍या है
?
2
. 51 से 100 तक में विषम संख्‍या कौन – कौन सी हैं
3. क्लास में कितनी लडकियां हैं
4. दूरी
, वजन आदि का अंतराल

4.     आनुपातिक मापन / परमशून्‍य / निरपेक्ष शून्‍य मापन :- किसी व्‍यक्ति के एक गुण को दूसरे व्‍यक्ति के उसी गुण से मापन करना
1. भारत ने आस्ट्रेलिया को 4/2 से हराया या जिताया
2. दूध में पानी का अनुपात

NTA UGC NET 12/OCT/2022

I SHIFT

मूल्‍यांकन की उन प्रदर्शन की पहचान कीजिए, जिनमें अपेक्षित है

A.     Priming प्रथमप्रसवा या प्राईमिंग

B.     Portfolios विभाग या पोर्टफोलियो

C.     Think – pair -  share चिंतन – युग्‍म – योगदान या थिंक – पेयर – शेयर

D.    Exhibitions प्रदर्शनी या एक्जिविशन

E.      Token reinforcement प्रतिकात्‍मक प्रबलन या टोकन रिइंफोर्समेंट

 

नीचे दिये गये विकल्‍पों में से सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर का चयन कीजिए

1.     B And D Only

2.     A And C Only

3.     C And D Only

4.     D And E Only

उत्‍तर : 1

            प्रदर्शन आंकलन किसी विषय के बारे में छात्र की समझ का मूल्‍यांकन करने के लिए एक उपयोगी उपकरण है और यदि वे विशिष्‍ट परिस्थितियों में अपने ज्ञान को लागू करने में सक्षम है । शिक्षक छात्रों को पढाने के सर्वोत्‍तम तरीकों की पहचान करने और पाठ्यक्रम में उनकी सीखने की प्रक्रिया में उनकी सहायता करने के लिए अक्‍सर प्रदर्श आंकलन का उपयोग करते हैं ।

            प्रदर्शन आंकलन अक्‍सर निम्‍नलिखित घटकों का उपयोग करते हैं :

1.     विकासात्‍मक जांच सूची या प्रदर्शनी

2.     छात्र के कार्यों के पोर्टफोलियो

3.     प्रगति रिपोर्ट

प्राईमिंग –

            प्राईमिंग में पाठ शुरू होने से पहले नई सामग्री को शामिल करना शामिल है। यह विद्यार्थीयों को ऐसी गति‍विधि के लिए तैयार करने का एक तरीका है जिससे उन्‍हैं आमतौर पर कठिनाई होती है। यह अक्‍सर पाठ से एक दिन पहले या सुबाह होता है और इसे एक छात्र के साथ या कक्षा के रूप में किया जा सकता है। कभी-कभी शिक्षक अपने पाठ से ठीक पहले छात्रों को प्रधानता देते है, जेसे जब वे छात्रों को उस पुस्‍तक के चित्र दिखाते हैं जिसे वे पढने वाले हैं । प्राईमिंग कई अलग-अलग कारणों से एक प्रभावी रणनीति है :

1.     यह उन छात्र के लिए चिंता को कम करता है जिन्‍हैं पूर्वानुमेयता की आवश्‍यकता होती है

2.     यह अक्‍सर सीखने में उच्‍च उप‍लब्धि का परिणाम होता है।

3.     यह जल्‍दी और कम तैयार के साथ किया जा सकता है।

4.     यह छात्रों को एक गतिविधि से दूसरे गतिविधि में संक्रमण में मदद करता है।

थिंग – पेयर – शेयर –

थिंग – पेयर – शेयर – (IPS) यह किसी ग्रुप डिसक्‍सन में सहयोगी के साथ सीखने की रणनीति है जहां छात्र किसी समस्‍या को हल करने के लिए एक साथ काम करते हैं या एक नियत पठन के बारे में एक प्रश्‍न का उत्‍तर देते हैं । इस रणनीति के लिए छात्रों को

1.     किसी विषय के बारे में व्‍यक्तिगत रूप से सोचना चाहिए या किसी प्रश्‍न का उत्‍तर देना चाहिए और

2.     सहपाठियों के साथ विचार साझा करें । एक साथी के साथ चर्चा करना भागीदारी को अधिकतम करता है, ध्‍यान केन्द्रित करता है और छात्रों को पठन सामग्री को समझने में संलग्‍न करता है।

 

 

NTA UGC NET 12/OCT/2022

I  SHIFT

            विचार, अभिवृत्ति तथा अन्‍य अवधारणाओं के विभिन्‍न परिणामों की संख्‍या नियत करने की प्रक्रिया कहलाती है –

1.     Regression पश्‍चगमन या रिग्रेशन

2.     Scaling मापन या स्‍केलिंग

3.     Variance प्रसरण या वेरिएंस

4.     Concordance सुसंगता या कंकर्डेंस

 

उत्‍तर : 2 

मापन  :-

पैमाना (स्‍केल) या मापन आमतौर पर व्‍यवहार, ज्ञान, अवधारणाओं, मूल्‍यों और व्‍यवहार परिवर्तनों को मापने के लिए उपयोग किया जाता है। यह किसी छात्र या शिक्षक के विचार, अभिवृत्ति या अन्‍य अवधारणाओं के विभिन्‍न परिणामों की संख्‍या को नियत करने के लिए मापन किया जाता है।

रिग्रेशन :-

एक चर के माध्‍य मान (जैसे आउटपुट) और अन्‍य चर के संगत मानो (जैसे समय और लागत) के बीच संबंध का एक माप है ।

वेरिएंस :-

विचरण परिवर्तन शीलता का एक उपाय है । इसकी गणना माध्‍य से वर्ग विचलन का औसत निकालकर की जाती है

वेरिएंस आपको आपके डेटा सेट में प्रसार की डिग्री बताता है। डेटा जितना अधिक फैलता है, माध्‍य के संबंध में विचरण उतना ही बडा होता

कंकर्डेंस :-

1.     पुस्‍तक में प्रयुक्‍त ए से जेड तक शब्‍दों की वर्णाक्रम में सूची, शब्‍दानुक्रमणिका

2.     किसी पुस्‍तक में प्रयुक्‍त शब्‍द - विशेष के उदाहरणों की कम्‍प्‍यूटर – निर्मित सूची 

 

NTA UGC NET 12/OCT/2022

I  SHIFT

नीचे दो कथन दिए गए हैं

कथन 1 : - एक कक्षा के मध्‍य में व्‍यापक अप्रयुक्‍त क्षेत्र छोडकर इसके इर्द-गिर्द के क्षेत्र में रूचि के सभी क्षेत्रों को 
                रखना अभिष्‍ट नही है

कथन 2 :- अध्‍ययन के इलाके के निकट पुस्‍तक विधान को तथा क्रिडा मेज के निकट क्रिडा उपकरणों को रखना
                अभिष्‍ट नही है।

उपरोक्‍त कथन के आलोख में , नीचे दिए गए विकल्‍पों में से सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर का चयन किजिए :

1.     Statement I And Statement II are correct

2.      Statement I And Statement II are not correct

3.     Statement I correct, but Statement II is not correct

4.     Statement I is not correct, but Statement II is correct

उत्‍तर : 3

यह प्रश्‍न कक्षा कक्ष वातावरण से संबंधित है । जब कक्षा के दोरान व्‍याख्‍या चल रही हो और मध्‍यम में क्रिकेट मैच का आयोजन किया जाना हो तब छात्रों को व्‍याख्‍यान सुनने का मन नही होगा । अर्थात स्‍टडी के मध्‍य में किसी भी प्रकार के स्‍पोर्टस का आयोजन नही किया जाना चाहिए । कथन – 1 सही है । कथन -2 पढने से प्रतीत होता है कि जहां कक्षा कक्ष हो हो रही हो वहां आसपास पुस्‍ताकालय का व्‍यवस्‍था की जानी चाहिए और जहां स्‍पोर्टस का आयोजन किया जा रहा हो वहां स्‍पोर्टस के उपकरण रखे जाने चाहिए । लेकिन कथन – 2 में अभिष्‍ट नही है लिखा गया है इसलिए यह कथन गलत है

लिकर्ट प्रकार के मापन यानी स्‍केल में विकल्‍पों के सही समुच्‍य में शामिल है

A.     लिकर्ट प्रकार के मापन का काम निर्णायकों के परामर्श समूह के बिना किया जा सकता है

B.     लिकर्ट प्रकार के मापन को विश्‍वशनीय नही माना जाता

C.     लिकर्ट प्रकार के मापन की रचना करने में अधिक समय लगता है

D.    लिकर्ट प्रकार के मापन में प्रत्‍येक विवरण के लिए योग्‍यता का अंतर स्‍पष्‍ट करने के लिए एक अनुभाविक परिक्षण या इंपीरिकल टेस्‍ट किया जाता है

E.      लिकर्ट प्रकार के मापन का उपयोग प्रत्‍यक्षी केन्द्रित अध्‍ययन में किया जा सकता है

1.     A,B And C Only

2.     B,C And D Only

3.     A,D And E Only

4.     C, D And E Only

उत्‍तर : 3

लिकर्ट पैमाना आमतौर पर व्‍यवहार, ज्ञान, अवधारणाओं, मूल्‍यों और व्‍यवहार परिवर्तनों को मापन के लिए उपयोग किया जाता है।

एक प्रकार का यह मनोमित्तिय प्रतिक्रिया पैमाना जिसमें उत्‍तरदाता एक बयान के लिए अपने समझोते के स्‍तर को आमतौर पर पांच बिन्‍दुओं में निर्दिष्‍ट करते हैं :

1.     पूरी तरह से असहमत

2.     असहमत

3.     न तो सहमत न ही असहमत

4.     सहमत

5.     दृढता से सहमत है

इस पैमाने की निम्‍नलिखित विशेषताऐं हैं –

1.     लिकर्ट प्रकार के मापन का काम निर्णायकों के परामर्श समूह के बिना किया जा सकता है

2.     लिकर्ट प्रकार के मालन में प्रत्‍येक विवरण के लिए योग्‍यता का अन्‍तर स्‍पष्‍ट करने के लिए एक आनुभाविक परीक्षण या इंपीरिकल टेस्‍ट किया जाता है।

3.     लिकर्ट प्रकार के मापन का उपयोग प्रत्‍यर्क्षी केन्द्रित अध्‍ययन में किया जा सकता है ।

NTA UGC NET 11/OCT/2022

II  SHIFT

 

अधिगम के कि‍स प्रकार में, अधिगम कर्ता सक्रिय परिचर्चा में सहभाग करता और शिक्षकों त्‍वरित प्रतिपुष्टि प्राप्‍त करता है ?

1.     Synchronous mode of learning अधिगम के सहकालिक प्रकार में

2.     Asynchronous mode of learning अधिगम के असहकालिक प्रकार में

3.     Spatial mode of learning अधिगम के स्‍थानिक प्रकार में

4.     Relativist mode of learning अधिगम के सापेक्षवाद प्रकार में

उत्‍तर : 1

            सिंक्रोनस लर्निंग एक सामान्‍य शब्‍द है जिसका उपयोग शिक्षा, निर्देश और सीखने के रूपों का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो एक ही समय मे होते है, लेकिन एक ही स्‍थान पर नही । यह शब्‍द आमतौर पर टेलीविजन, डिजिटल और ऑनलाइन सीखने के विभिन्‍न रूपों पर लागू होता है जिसमें छात्र वास्‍तविक समय में प्रशिक्षकों, सहकर्मियों या साथियों से सीखते हैं, लेकिन व्‍यक्तिगत रूप से नही । उदाहरण के लिए, शैक्षिक वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग, इंटरेक्टिव वेबिनार, चैट – आधारित ऑनलाईन चर्चाऐं, और व्‍याख्‍यान जो उसी समय प्रसारित किए जाते हैं, सभी को सिंक्रोनस लर्निंग के रूप में माना जायेगा । यूट्यूब चेनल में लाइव टेलीकास्‍ट में अत्‍यधिक छात्र जो विभिन्‍न क्षेत्रों के होते हैं और एक ही समय में स्‍टडी करते हैं ।

 

डिजिटल और ऑनलाईन सीखने के अनुभव असिंक्रोनस या अतुल्‍यकालिक लर्निंग भी हो सकते हैं – यानि , निर्देश और सीखना न केवल अलग-अलग स्‍थानों पर होता है बल्कि अलग-अलग समय पर भी होता है। उदाहरण के लिए पहले से रिकॉर्ड किए गए वीडियो पाठ, शिक्षकों और छात्रों के बीच ई-मेल का आदान-प्रदान ऑनलाइन चर्चा बोर्ड, और पाठ्यक्रम – प्रबंधन प्रणालीयों जो निर्देशात्‍मक सामग्री और संबंधित पत्राचार को व्‍यवस्थित करती है, सभी को अतुल्‍यकालिक सीखने के रूप माना जायेगा ।

            मोड विभिन्‍न तरीके हैं जिनसे ग्रन्‍थों को प्रस्‍तुत किया जा सकता है । इमेज, राइटिंग, लेआउट, स्‍पीच और मूविंग इमेज सभी विभिन्‍न प्रकार के मोड के उदाहरण हैं । जिस तरह से वे एक पाठ को एक संदेश संप्रेषित करना चाहते हैं, उसके आधार पर लेखक अपना तरीका चुनते हैं। राइटर / डिजाइनर : ए गाइड टू मेकिंग मल्‍टीमॉडल प्रोजेक्‍टस के अनुसार, पांच अलग-अलग प्रकार के तरीके हैं : भाषायी, दृश्‍य , कर्ण, आवभाव और स्‍थानिक । एक विधा देनिक सामाजिक संपर्क में इसके उपयोग के माध्‍यम से सामग्री के सांस्‍कृतिक आकार देने का एक परिणाम है।

भाषाई मोड 

            भाषाई मोड लिखित या बोले गये शब्‍दों को संदर्भित करता है। मोड में शब्‍द चयन, लिखित या बोले गए पाठ का वितरण , वाक्‍य और अनुच्‍छेदों में शब्‍दों का संगठन और शब्‍दों और विचारों का विकास और सुसंगतता शामिल है । भाषाई हमेशा सबसे महत्‍वपूर्ण विधा नही होती है, यह पाठ में खेलने के अन्‍य तरीकों पर निर्भर करता है, कि यह किस प्रकार का पाठ है और अन्‍य कारक है । भाषाई शायद सबसे व्‍यापक रूप से उपयोग की जाने वाली विधा है , क्‍योंकि इसे कागज या ऑडियो दोनों पर पढा और सुना जा सकता है। भाषाई विधा विवरण और सूची को व्‍यक्‍त करने का सबसे अच्‍छा तरीका है ।

दृश्‍य मोड

            दृश्‍य मोड उन छवियों और पात्रों को संदर्भित करता है जिन्‍हे लोग देखते हैं । इस मोड में रंग , लेआउट , शैली, आकार और परिप्रेक्ष्‍य शामिल हैं । विजुअल मोड का उपयोग निर्देश देने , मानने , मनोरंजन करने , भावनाओं का प्रतिनिधित्‍व करने या आदि के लिए किया जाता है। विजुअल मोड भी विवरण व्‍य‍क्‍त करने का अच्‍छा काम करता है।

कर्ण विधा /  मोड

            ओरल मोड ध्‍वनि पर केन्द्रित है , जिसमें संगीत, ध्‍वनि प्रभाव, परिवेशीय शौर , मोन, बोली जाने वाली भाषा में आवाज का स्‍वर , ध्‍वनि की मात्रा, जोर और उच्‍चारण शामिल हैं , लेकिन इन्‍ही तक सीमित नही हैं। ऑडियंश अक्‍सर अपने आस-पास की सभी आवाजों पर ध्‍यान नही देते हैं और वे भावनाओं , कार्यों और प्रतिक्रियाओं जैसी सूचनाओं को कैसे संकेत देते हैं । प्रत्‍येक कर्ण विधा एक संदेश देती हैं । ऑरल मोड को अलग – अलग मोड के साथ पेयर करके , विजुअल कहें तो एक अधिक विस्‍तृत और रचनात्‍मक संदेश दिया जाएगा ।

हावभाव मोड

            जेस्‍चरल मोड से तात्‍पर्य उस तरीके से है जिस तरह से आन्‍दोलन की व्‍याख्‍या की जाती है। चेहरे के भाव , हाथ के हावभाव , शरीर की भाषा और लोगों के बीच बातचीत सभी हावभाव के तरीके हैं । यह आमने सामने की बातचीत और थियेटर में हमेशा महत्‍वपूर्ण रहा है, लेकिन हाल ही में यह यूट्यूब और अन्‍य वीडियो प्‍लेयर के व्‍यापक उपयोग के साथ वेब पर अधिक अपार्टमेंट बन गया गया है। हावभाव मोड भाषाई , दृश्‍य, कर्ण और कभी-कभी स्‍थानीक के साथ भी काम करता है ताकि अधिक विवरण तैयार किया जा सके और इसे उपभोक्‍ता को बेहतर तरीके से समझा जा सके ।

स्‍थानिक मोड

            स्‍थानिक मोड पाठ की भौतिक व्‍यवस्‍था , संगठन और निकटता के बारे में है । इसका एक उदाहरण अक्‍सर ब्रोसर होता है, और इसे कैसे मोडा और व्‍यवस्थित किया जाता है। स्‍थानिक मोड एक वेबसाइट पर नेविगेशन बार का भी उल्‍लेख कर सकता है, और उपयोग कर्ता वेब की व्‍यख्‍या और नेविगेट कैसे करता है। डिजाइनर वह है जो एक वेब पेज को स्‍थानिक रूप से तय करता है और डि‍जाइन करता है लेकिन उपभोक्‍ता वह है जो यह तय करता है, कि इस नेविगेशन का उपयोग कैसे किया जाये।

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