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Handwritten Notes of Ancient History for UPSC and CGPSC Prelims and Mains Exam

 

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सिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता ईंटों से बनी इमारतें थीं. इसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है. सिंधु घाटी सभ्यता की कुछ और विशेषताएं ये रहीं:

·        सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन अत्यंत विकसित था.

·        आर्थिक जीवन के प्रमुख आधार कृषि, पशुपालन, शिल्प और व्यापार थे.

·        सिंधु घाटी और उसकी सहायक नदियों से हर साल लाई जाने वाली उपजाऊ मिट्टी कृषि के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती थी.

·        सिंधु घाटी सभ्यता का समाज मुख्यतः वर्गहीन समाज था.

·        सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर थे.

·        सिंधु घाटी सभ्यता के लोग गेहूं, जौ, चावल, मटर, तिल, सरसों, मसूर, सब्जियां और फल उगाते थे.

·        सिंधु घाटी सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी, जिसमें शहरों की बड़ी संख्या थी.

·        सिंधु घाटी सभ्यता में शहरों के बीच सड़कों और नालों की व्यवस्था अच्छी थी.

·        सिंधु घाटी के लोग उचित जल निकासी प्रणाली के साथ नियोजित शहरों का निर्माण करने वाले पहले व्यक्ति थे.

·        सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों ने सबसे पहले कपास की खेती शुरू की थी.

·        पुरातात्विक खुदाई से बैलों से जुते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं.

·        मुहरों और टेराकोटा की मूर्तियों पर सांड

 

सिंधु घाटी सभ्यता की प्रमुख नगर

सिंधु घाटी सभ्यता में छह नगर थे:

हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी, कालीबंगा|

·        सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा नगर मोहनजोदड़ो था. यह सभ्यता सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे विकसित हुई थी. इसे हड़प्पा सभ्यता और सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है.

·        सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थलों में से दो हड़प्पा और मोहनजोदड़ो थे. ये दोनों नगर सुंदर नगर नियोजन की कला के प्राचीनतम उदाहरण थे.

·        हड़प्पा सिंधु घाटी सभ्यता का पहला उत्खनन/खोजा गया स्थल था. 1921 में पुरातत्वविद् दया राम साहनी के नेतृत्व में एक टीम ने इसकी खुदाई की थी. यह पश्चिम पंजाब के साहीवाल जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है.

·        दिसंबर 2014 में हरियाणा के फ़तेहाबाद ज़िले के एक बड़े गांव भिरड़ाणा में सिंधु घाटी सभ्यता का अब तक का सबसे प्राचीन नगर खोजा गया. इसकी स्थापना करीब 7570 ईसा पूर्व में मानी गई है.सभ्यता की कुछ और विशेषताएं ये रहीं:

1.      . सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन अत्यंत विकसित था.

2.      आर्थिक जीवन के प्रमुख आधार कृषि, पशुपालन, शिल्प और व्यापार थे.

3.      सिंधु घाटी और उसकी सहायक नदियों से हर साल लाई जाने वाली उपजाऊ मिट्टी कृषि के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती थी.

4.      सिंधु घाटी सभ्यता का समाज मुख्यतः वर्गहीन समाज था.

5.      सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर थे.

6.      सिंधु घाटी सभ्यता के लोग गेहूं, जौ, चावल, मटर, तिल, सरसों, मसूर, सब्जियां और फल उगाते थे.

7.      सिंधु घाटी सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी, जिसमें शहरों की बड़ी संख्या थी.

8.      सिंधु घाटी सभ्यता में शहरों के बीच सड़कों और नालों की व्यवस्था अच्छी थी.

9.      सिंधु घाटी के लोग उचित जल निकासी प्रणाली के साथ नियोजित शहरों का निर्माण करने वाले पहले व्यक्ति थे.

10.  सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों ने सबसे पहले कपास की खेती शुरू की थी.

11.  पुरातात्विक खुदाई से बैलों से जुते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं.

12.  मुहरों और टेराकोटा की मूर्तियों पर सांड

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सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे छोटा स्थल कौन सा है?

1.      सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे छोटा स्थल अल्लादीनो है.

2.      वहीं, राखीगढ़ी को 2014 में सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा भारतीय स्थल घोषित किया गया था.

3.      यह स्थल सरस्वती नदी के मैदान में मौसमी घग्गर नदी से लगभग 27 किलोमीटर दूर स्थित है.

4.       2014 में, राखीगढ़ी में दो और टीले खोजे गए, जिसके कारण ये सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा भारतीय स्थल बन गया.

5.      अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में सिंधु घाटी सभ्यता के कुल 1500 स्थलों का पता चल चुका है.

सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पहले खोजा गया स्थल कौन सा था?

1.      सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पहले खोजा गया स्थल हड़प्पा था. पुरातत्वविद् दयाराम साहनी ने 1921 में इसकी खुदाई की थी. हड़प्पा, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी ज़िले में रावी नदी के किनारे स्थित है.

2.      सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे बड़े स्थल मोहनजोदड़ो की खुदाई राखालदास बनर्जी ने 1922 में करवाई थी. मोहनजोदड़ो को सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा भारतीय स्थल घोषित किया गया था.

3.      भारत में, सिंधु घाटी सभ्यता के चार प्रमुख स्थल माने जाते हैं: हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा, बनावली|

4.      हड़प्पा सभ्यता के कुछ महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर हैं: सुरकोटदा, धोलावीरा, लोथल|

5.      भारत में सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल हरियाणा के हिसार ज़िले में स्थित राखीगढ़ी है. यहां घग्घर नदी बहती है. राखीगढ़ी में, इसकी शुरुआत और 6000 ईसा पूर्व (पूर्व हड़प्पा चरण) से इसके क्रमिक विकास का अध्ययन करने के लिए खुदाई की गई है.

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6.      सिंधु घाटी सभ्यता के कुछ और स्थल: रंगपुर, रोजड़ी, प्रभास, लखबावल, देशलपार|

सिंधु घाटी सभ्यता की नगर नियोजन

1 सिंधु घाटी सभ्यता की नगर नियोजन प्रणाली में ये बातें शामिल थीं:

1.      सड़कें समकोण पर काटती थीं.

2.      शहर में नालियों का जाल बिछा हुआ था.

3.      मकान बनाने के लिए पक्की ईंटों का इस्तेमाल किया जाता था.

4.      मकानों को एक निश्चित योजना के मुताबिक बनाया जाता था.

5.      सभी घर सड़कों की नालियों से अच्छी तरह जुड़े हुए थे.

6.      सड़कें करीब-करीब उत्तर से दक्षिण और पूर्ण से पश्चिम की ओर जाती थीं.

7.      शहर का अभिविन्यास शतरंज के पट की तरह था.

8.      भूमिगत जल निकासी प्रणाली थी.

9.      विशाल स्नानागार था.

2 सिंधु घाटी सभ्यता की नगर नियोजन प्रणाली ने कई पुरातत्वविदों को प्रभावित किया है. उनकी नगर-यो         जना से पता चलता है कि वे अत्यंत सभ्य और विकसित जीवन जीते थे.

3 सिंधु घाटी सभ्यता की नगर नियोजन प्रणाली की वर्तमान समय में भी प्रासंगिकता है. वर्तमान समय के शहरों में भी उसी तरह की संरचना का विकास किया जाता है जो मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में थी.

सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था

1.      सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि और पशुपालन पर आधारित थी. सिंधु सभ्यता के लोग गेहूं, जौ, कपास, अनाज, खजूर जैसी फ़सलें उगाते थे. वे कपास की खेती करने वाले पहले लोग थे. उन्होंने गाय, भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, बिल्ली जैसे जानवरों को पालतू बनाया.

2.      सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था का आधार चाक पर बर्तन बनाना भी था. इसके अलावा, व्यापार और बढ़ई का काम भी महत्वपूर्ण थे.

3.      सिंधु घाटी सभ्यता के लोग दुर्लभ और खास खाद्य पदार्थों, सामग्रियों, और कृषि वस्तुओं का व्यापार करते थे.

4.      वे पत्थर, धातुओं, सीप, और शंख का व्यापार भी करते थे.

5.      सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान कृषि, उद्योग, शिल्प, और व्यापार जैसे आर्थिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में काफ़ी प्रगति हुई थी. इस सभ्यता के धातु शिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण पीतल और तांबे के बर्तन हैं.

सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय

1.      सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था.

2.      वे गेहूं, जौ, मटर, और केला जैसी फ़सलें उगाते थे.

3.      सिंधु घाटी सभ्यता में लोग पत्थर, धातुओं, सीप, और शंख का व्यापार करते थे. वे राजस्थान के खेतड़ी से तांबा, राजस्थान के जावर से चांदी, कर्नाटक से सोना, ओमान से तांबा, और गुजरात, ईरान, और अफ़ग़ानिस्तान से बहुमूल्य पत्थर आयात करते थे.

4.       सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न एशियाई देशों के साथ व्यापार करते थे. इनमें अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, और चीन शामिल थे.

5.      सिंधु घाटी एक कृषि प्रधान समाज था, लेकिन व्यापार बहुत महत्वपूर्ण था. सिंधु घाटी में बहुत अधिक कच्चे माल की पहुंच नहीं थी. पत्थर और धातु जैसे संसाधनों को साझा करने के लिए व्यापार मार्ग शहरी क्षेत्रों से जुड़े थे.

6.      हड़प्पा सभ्यता के लोग व्यापार में मुहरों, धातु के सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे. सारे आदान-प्रदान वस्तु विनिमय द्वारा किया जाता था. वस्तु विनिमय बाटों द्वारा नियंत्रित होता था. यह बाट आम तौर पर चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे.

धार्मिक प्रथाएं

1.      सिंधु घाटी सभ्यता के लोग धार्मिक थे और उनकी धार्मिक मान्यताएं थीं. सिंधु घाटी के लोग लिंग और योनि के प्रतीकों की पूजा करते थे. इसके अलावा, वे वृक्ष पूजा, पशु पूजा, अग्नि कृत्य, स्नान ध्यान, और जल देवता की पूजा करते थे. सिंधु घाटी के लोग पवित्र स्नान और जल पूजा का धार्मिक महत्व समझते थे.

2.      सिंधु घाटी के लोग मातृ देवी के साथ ही देवताओं की उपासना भी करते थे. धार्मिक अनुष्ठानों के लिए धार्मिक इमारतें बनाई गई थीं. हालांकि, मंदिर के प्रमाण नहीं मिलते हैं. मातृ देवी और देवताओं को बलि भी दी जाती थी.

3.      सिंधु घाटी के लोग पीपल के वृक्ष, एक पवित्र वृक्ष की पूजा करते थे. उन्होंने हवन कुंड नामक अग्नि पूजा की भी पूजा की.

4.      सिंधु घाटी के लोग मातृदेवी, पशुपतिनाथ, सूर्य, जल, पृथ्वी देवी, लिंग, वृक्ष और प्रकृति देवी की पूजा करते थे.

5.      सिंधु घाटी के लोग देवताओं को खुश करने के लिए नृत्य एवं संगीत का सहारा भी लेते थे. उनके कुछ मुहरों से बलि प्रथा के ऊपर भी प्रकाश पड़ता है.

पतन

सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के लिए कई विद्वान अलग-अलग कारण बताते हैं. इनमें से कुछ कारण ये हैं:

1.      जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक असंतुलन

2.      बाढ़ और सूखा

3.      व्यापार नेटवर्क में गिरावट

4.      सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे में गिरावट

5.      भू-तात्विक परिवर्तन

6.      महामारी

7.      आर्यों का आक्रमण

8.      भयंकर भूकंप

9.      किसी बड़े विस्फोट के कारण

ऐसा लगता है कि सिंधु घाटी सभ्यता का पतन किसी एक कारण से नहीं हुआ था. बल्कि, कई कारणों के मेल से ऐसा हुआ. इतिहासकारों के मुताबिक, सिंधु घाटी सभ्यता का पतन लगभग 1800 ईसा पूर्व में हुआ.

वैदिक सभ्यता

1.      प्राचीन भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के बाद विकसित हुई सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहते हैं.

2.       वैदिक काल या वैदिक युग 1500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के बीच का काल है.

3.       इस काल में हिंदू धर्म के सबसे पुराने पवित्र ग्रंथ वेदों की रचना हुई थी. वेद धार्मिक ग्रंथ हैं जो हिंदू धर्म का आधार हैं.

4.      वैदिक सभ्यता के बारे में जानकारी मुख्यतः वैदिक साहित्य से मिलती है. वैदिक साहित्य में ऋग्वेद सर्वप्राचीन है और सबसे महत्वपूर्ण है.

5.       वैदिक काल में भारत को आर्याव्रत नाम से जाना जाता था. वैदिक शब्द वेद से बना है जिसका अर्थ है ज्ञान.

6.      वैदिक काल को ऋग्वैदिक या पूर्व वैदिक काल (1500–1000 .) और उत्तर वैदिक काल (1000–600 .) में बांटा गया है. वैदिक सभ्यता के संस्थापक आर्य थे. आर्यों का आरंभिक जीवन मुख्यतः पशुचारण था.

वैदिक सभ्यता से जुड़े कुछ मत और सिद्धांत:

1.      वैदिक सभ्यता के शुरुआती चरण, सिंधु घाटी सभ्यता के अंत के आस-पास यानी करीब 1200 ईसा पूर्व में पाए जाते हैं.

2.      वैदिक संस्कृति को धार्मिक मान्यताओं और धार्मिक समूहों के आधार पर चार वेदों में बांटा गया है. ये चार समूह हैं: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र.

3.      प्रारंभिक वैदिक समाज अर्ध-खानाबदोश समाज था. इसकी खासियत पशुचारण अर्थव्यवस्था थी.

4.      वैदिक हिन्दू समाज यज्ञ परक था. यज्ञ, सामाजिक व्यवस्था का एक हिस्सा था. इस काल की वर्ण व्यवस्था 'कार्यानुसार' थी, कि जन्म के मुताबिक.

वैदिक साहित्य दो तरह के होते हैं:

1.      श्रुति साहित्य

2.      स्मृति साहित्य

5.      वैदिक सभ्यता की उत्पत्ति के सिद्धांतों में से एक, आर्य प्रवासन सिद्धांत है. इस सिद्धांत के मुताबिक, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से आर्य, भारतीय उपमहाद्वीप में आए.

आर्यों के मूल निवास स्थान को लेकर ये मत हैं:

1.      मध्य एशिया मूल निवास

2.      इतिहासकारों का मानना है कि 'दास' या 'दस्यु' (अनार्य) भारत के मूल निवासी थे.

आर्य शब्द को लेकर विवाद है, विभिन्न मत निम्नानुसार है-

यूरोप का सिद्धांत : विलियम जॉस, का आधार संस्कृत एवं यूरोपीय भाषाओं में समानता

उत्तरी ध्रुव का सिद्धांतः बाल गंगाधर तिलक

तिब्बत का सिद्धांतः प्रतिपादक दयानंद सरस्वती

मध्य एशिया का सिद्धांत : प्रतिपादक मैक्समूलर, प्रमुख आधार भाषायी समानता

ऋग्वैदिक काल

ऋग्वैदिक काल, जिसे प्रारंभिक वैदिक काल भी कहा जाता है, 1500-1000 ईसा पूर्व तक चला।

यहां ऋग्वैदिक काल की कुछ विशेषताएं दी गई हैं:

1.      समाज : पितृसत्तात्मक समाज, जिसमें सबसे बड़ा पुरुष परिवार का मुखिया होता है।   महिलाओं के साथ सम्मान और सम्मान का व्यवहार किया जाता था।

2.      अर्थव्यवस्था: मुख्यतः देहाती, सीमित कृषि और छोटी अर्थव्यवस्था के साथ।   धन और समृद्धि कई जानवरों, विशेषकर गायों के कब्जे पर निर्भर करती थी।

3.      सरकार:  प्रकृति में पितृसत्तात्मक, राजशाही आदर्श है। हालाँकि, गैर-राजतंत्रीय राजनीति भी अस्तित्व में थी।

4.      व्यापार: वस्तु विनिमय प्रणाली पर संचालित एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि। बाद में, बड़े लेनदेन के लिए निश्क नामक सोने के सिक्कों का उपयोग किया जाने लगा।

5.      नदियों:  परिवहन का महत्वपूर्ण साधन.

6.      शब्दावली:  गौ (गाय) से व्युत्पन्न शब्द। धनवान व्यक्ति को गोमत (मवेशियों का रक्षक) कहा जाता था। गायों को अघन्या (हत्या की जाने वाली) भी कहा जाता था।

7.      समाज का विभाजन:  ऋग्वैदिक समाज चार वर्गों में विभाजित था: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। यह विभाजन व्यवसाय पर आधारित था।

8.      वैदिक काल को दो भागों में विभाजित किया गया है: प्रारंभिक वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल। उत्तर वैदिक काल 1000-600 ईसा पूर्व तक चला.

लगभग 1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक के काल को वैदिक काल क्यों कहा गया?

1.      1500-1000 ईसा पूर्व की अवधि को वैदिक काल कहा जाता है क्योंकि हिंदू धर्म के सबसे पुराने ग्रंथ वेदों की रचना इसी दौरान हुई थी। इस युग की जानकारी का प्राथमिक स्रोत भी वेद ही हैं।

2.      "वेद" शब्द एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "ज्ञान" ऋग्वेद 1,000 से अधिक कविताओं का संग्रह है जो आज भी मौजूद है। उपमहाद्वीप पर इन कहानियों के प्रभाव के कारण इतिहासकार लगभग 1500-322 ईसा पूर्व के काल को वैदिक युग कहते हैं।

3.      वैदिक काल अपनी आर्य संस्कृति, एक प्रमुख ज्ञान स्रोत के लिए भी जाना जाता है। वेदों से बाद के कई अध्ययन और विषय सामने आए, जिनके विशिष्ट खंडों में अभी भी विकास की महत्वपूर्ण गुंजाइश है।

1000 ईसा पूर्व के बाद वैदिक धर्म कैसे बदल गया?

1.      1000 ईसा पूर्व के आसपास वैदिक धर्म ब्राह्मणवाद में विकसित हुआ। ब्राह्मणवाद की विशेषता एक सर्वशक्तिमान ईश्वर में विश्वास है, और इसने जाति व्यवस्था भी शुरू की।

2.      वैदिक धर्म तब बदल गया जब इंडो-आर्यन लोग  के बाद गंगा के मैदान में चले गए। 1100 ईसा पूर्व और स्थापित किसान बन गए।

3.       प्रारंभिक वैदिक काल में वैदिक लोग विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों और दिव्य देवताओं की पूजा करते थे। उत्तर वैदिक काल में विष्णु, शिव और देवी जैसे नए देवताओं का उदय हुआ।

4.      उत्तर वैदिक काल में धार्मिक क्षेत्र में भी बड़ा परिवर्तन देखा गया। इस काल में नये देवी-देवताओं का उदय हुआ। संस्कारों और कर्मकाण्डों को धर्म से भी अधिक महत्व मिल गया। ऋग्वैदिक काल के देवता- वरुण, इंद्र अग्नि, उषा और सूर्य ने अपना महत्व खो दिया।

वैदिक युग का कौन सा धर्म बाद में हिंदू धर्म में विकसित हुआ?

1.      ब्राह्मणवाद, जो वैदिक धर्म से विकसित हुआ, हिंदू धर्म का पहला चरण था। ब्राह्मणवाद ब्राह्मण की अवधारणा, परम वास्तविकता और ब्राह्मण पुजारियों की भूमिका पर केंद्रित है।

2.      ब्राह्मणवाद आर्यों से प्रभावित था, जो भारत में विभिन्न आदर्श, देवता और प्रथाएँ लाए। ब्राह्मणवाद को पूर्वी गंगा के मैदान की गैर-वैदिक इंडो-आर्यन धार्मिक विरासत और स्थानीय धार्मिक परंपराओं के साथ भी संश्लेषित किया गया था।

3.      वैदिक धर्म, जिसे वेदवाद के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन भारतीय धर्म था जो वेदों के संकलित होने के समय अस्तित्व में था। "वैदिक" शब्द वेद नामक पवित्र ग्रंथों को संदर्भित करता है, जो हिंदू धर्म के मूलभूत ग्रंथ हैं।

4.      पश्चिमी विद्वान हिंदू धर्म को विभिन्न भारतीय संस्कृतियों और परंपराओं का संश्लेषण मानते हैं, जिनकी जड़ें विविध हैं और इसका कोई संस्थापक नहीं बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि यह संश्लेषण वैदिक काल के बाद, 500 ईसा पूर्व और 300 ईस्वी के बीच विकसित हुआ था।

वैदिक काल और प्राचीन भारत से कौन से दो प्रमुख धर्म निकले?

1.      हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म दो प्रमुख धर्म हैं जिनकी उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई और जिनकी जड़ें वेदों में हैं। वेद संस्कृत में लिखे गए धार्मिक भजनों, कविताओं और प्रार्थनाओं का संग्रह हैं।

2.      प्राचीन भारत के शास्त्रीय युग में दो नए धर्मों का जन्म हुआ: जैन धर्म और बौद्ध धर्म। मगध साम्राज्य के दौरान दोनों धर्म पूरे भारत में फैल गए। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध धर्म का विकास हुआ।

3.      भारत सिख धर्म का जन्मस्थान भी है। इसने अपने तटों पर आयातित दो प्रमुख धर्मों, इस्लाम और ईसाई धर्म को भी आत्मसात कर लिया है।

वैदिक काल में धार्मिक आंदोलन क्या थे?

यहां वैदिक काल के दौरान हुए कुछ धार्मिक आंदोलन दिए गए हैं:

अथर्ववेद

मंत्रों, प्रार्थनाओं, मंत्रों और भजनों का एक संग्रह, जिसमें फसलों की रक्षा के लिए प्रार्थनाएं और प्रेम और उपचार मंत्र शामिल हैं।

यजुर्वेद

यज्ञ अनुष्ठानों के दौरान पढ़े जाने वाले मंत्रों और छंदों का संग्रह।

सामवेद

ऋग्वेद से प्राप्त भजनों और धुनों का एक संग्रह, जो धार्मिक समारोहों के दौरान गाया जाता है।

उपनिषदों

उत्तर वैदिक संस्कृत में लिखी गई हिंदू धार्मिक पुस्तकें जिनमें धार्मिक शिक्षाएँ और मान्यताएँ शामिल हैं।

भक्ति आंदोलन

एक धार्मिक आंदोलन जो 15वीं शताब्दी के आसपास मध्यकालीन भारत में, मुख्य रूप से उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में उभरा। यह पारंपरिक वैदिक अनुष्ठानों और जाति व्यवस्था के बजाय व्यक्तिगत भगवान की भक्ति और पूजा पर केंद्रित था।

ब्रह्म समाज

हिंदू धर्म के भीतर एक सुधार आंदोलन जिसका उद्देश्य धर्म के एकेश्वरवादी और नैतिक रूप को बढ़ावा देना था।

वैष्णव

व्यापक वैदिक, या हिंदू, आध्यात्मिक संस्कृति के भीतर एक प्रमुख परंपरा। वैष्णवों का मानना है कि अंतिम वास्तविकता व्यक्तिगत है, और भगवान सर्वोच्च सर्व-आकर्षक व्यक्ति या कृष्ण हैं।

 

महावीर

यह मानते हुए कि ब्रह्मांड कार्य-कारण की प्राकृतिक घटनाओं का उत्पाद है, वैदिक सिद्धांतों को अस्वीकार करता है। वह कर्म और आत्मा प्रवास में विश्वास करते थे और मितव्ययी और अहिंसक जीवन को बढ़ावा देते थे

उत्तर वैदिक काल

1.      उत्तर वैदिक काल, ऋग्वैदिक काल के बाद का काल है.

2.      यह काल 1000-600 ईसा पूर्व के बीच का था. इस काल में आर्य संस्कृति का प्रसार और विकास हुआ. इस काल में धर्म, दर्शन, नीति, आचार-विचार, मत-विश्वास आदि की प्रधान रूपरेखा निश्चित और सुस्पष्ट हो गई.

3.      उत्तर वैदिक काल में, आर्यों ने उत्तरी भारत में हिमालय से विंध्य तक शासन किया.

4.      ऋग्वैदिक काल में आर्यों का निवास स्थान सिंधु और सरस्वती नदियों के बीच था. बाद में वे पूरे उत्तर भारत में फैल गए. सभ्यता का मुख्य क्षेत्र गंगा और उसकी सहायक नदियों का मैदान हो गया.

5.      उत्तर वैदिक काल में, उत्तर वैदिक देवमंडल में सृजन के देवता प्रजापति को सर्वोच्च स्थान मिला. ऋग्वैदिक काल के कुछ अन्य गौण देवता भी प्रमुख हुए. पशुओं के देवता रुद्र ने उत्तर वैदिक काल में महत्ता पाई. जो लोग ऋग्वैदिक काल के अपने अर्द्ध खानाबदोशी जीवन को छोड़कर स्थानीय रूप से बस गए थे, वे लोग विष्णु को अपना पालक और रक्षक मानने लगे.

6.      उत्तर वैदिक काल में, दो उत्कृष्ट ऋग वैदिक देवताओं, इंद्र और अग्नि ने अपनी पूर्व प्रतिष्ठा खो दी थी.

उत्तर वैदिक काल में राजनीतिक दशा

1.      उत्तर वैदिक काल में राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्था और मज़बूत हुई. इस काल में राजा का पद वंशानुगत हो गया था. इस काल में राज्य का आकार बढ़ने से राजा का महत्व बढ़ा और उसके अधिकारों का विस्तार हुआ. अब राजा को 'सम्राट', 'एकराट' और 'अधिराज' आदि नामों से जाना जाने लगा.

2.      उत्तर वैदिक काल में राजनीतिक संरचना अधिकतर राजतंत्रात्मक थी. इस काल में सभाएँ अब राजा पर नियंत्रण नहीं रखतीं. सभा और समिति ने अपना महत्व खो दिया, जबकि विधाता गायब हो गई.

3.      उत्तर वैदिक काल में राजा कोई स्थायी सेना नहीं रखता था. युद्ध के समय कबीले के जवानों के दल भरती कर लिए जाते थे. कर्मकांड के अनुष्ठान के अनुसार, युद्ध में विजय पाने की कामना से राजा को एक ही थाली में अपने भाई-बंधुओं (विश्) के साथ खाना पड़ता था.

4.      उत्तर वैदिक काल में छोटे न्यायालयों को ग्राम्य वादिन कहा जाता था. राज न्यायालय वह सभा थी, जहाँ राजा ही सर्वोच न्यायाधीश होता था.

उत्तर वैदिक काल में सामाजिक स्थिति

1.      उत्तर वैदिक काल में सामाजिक व्यवस्था का आधार वर्णाश्रम व्यवस्था थी. इस काल में वर्ण व्यवस्था में कठोरता आने लगी थी. वर्णों का आधार कर्म पर आधारित न होकर जाति पर आधारित होने लगा था. इस काल में व्यवसाय आनुवंशिक होने लगे.

2.      उत्तर वैदिक काल में सामाजिक संरचना अधिक जटिल, कठोर और भेदभाव वाली हो गई. इस युग में बौद्ध और जैन धर्म का उदय हुआ जिसने सामाजिक संगठन को कई रूपों में प्रभावित किया. इस काल में समाज में अनेक धार्मिक श्रेणियों का उदय हुआ, जो कठोर होकर विभिन्न जातियों में बदलने लगीं.

3.      उत्तर वैदिक काल में चतुर्वर्ण व्यवस्था स्थापित हो गई. इसमें ब्राह्मण एवं क्षत्रिय विशेषाधिकार प्राप्त वर्ण के रूप में स्थापित हो गए. समाज में सर्वश्रेष्ठ स्थान ब्राह्मण का था. ब्राह्मण ने यज्ञ एवं मंत्रोच्चारण की प्रविधि द्वारा अपने आप को उच्च स्थान पर स्थापित कर लिया.

4.      उत्तर वैदिक काल में समाज में 'धीन' और 'निर्धन' दो वर्ग बन गए. आगे चल कर मानव समाज में 'धनिक' और 'निर्धन' वर्ग विकसित हुए.

उत्तर वैदिक काल में संस्कृति एवं धर्म

1.      उत्तर वैदिक काल (1000-500 ईसा पूर्व) में समाज में कई धार्मिक श्रेणियां बनीं.

2.       इन श्रेणियों में कठोरता आने लगी और ये जातियों में बदलने लगीं. इस काल में वर्णों का आधार कर्म की जगह जाति पर होने लगा. समाज में व्यवसाय आनुवंशिक होने लगे.

3.       हालांकि, इस समय में समाज में अभी भी लचीलापन था. किसी का व्यवसाय जन्म पर आधारित नहीं होता था.

4.      उत्तर वैदिक काल में ऋग्वेद धर्म की अधिकांश शुद्धता नष्ट हो गई थी. पुरोहित वर्ग का प्रभुत्व मज़बूत हो गया. पुजारियों ने जटिल भक्ति अनुष्ठान तैयार किए. समय के साथ-साथ बलिदान भी ज़्यादा व्यापक होते गए.

5.      उत्तर वैदिक काल में, ऋग्वैदिक काल के कुछ गौण देवता भी प्रमुख हुए. पशुओं के देवता रुद्र ने उत्तर वैदिक काल में महत्ता पाई. जो लोग ऋग्वैदिक काल के अपने अर्द्ध खानाबदोशी जीवन को छोड़कर स्थानीय रूप से बस गए थे, वे लोग विष्णु को अपना पालक और रक्षक मानने लगे. इसके अलावा, देवताओं के प्रतीक के रूप में कुछ वस्तुओं की भी पूजा प्रचलित हुई.

उत्तर वैदिक काल में आर्थिक अवस्था

1.      उत्तर वैदिक काल में पशुपालन और कृषि, अर्थव्यवस्था की रीढ़ थे. इस काल में पशुपालन की जगह कृषि, पहला पेशा बन गया. गंगा की घाटी के किनारे, कृषि आर्थिक गतिविधि पर हावी थी.

2.      उत्तर वैदिक काल में, शहरीकरण की शुरुआत से व्यापार और वाणिज्य में वृद्धि हुई. इस दौरान, कई किस्म की दालें भी उगाई जाती थीं, जैसे-उड़द, मूंग, मसूर आदि.

3.      इस काल में, लोहे से बने उपकरणों के प्रयोग से कृषि विस्तार के साथ-साथ फ़सलों की संख्या में भी वृद्धि हुई. धान प्रमुख फ़सल बन गई. अतरंजीखेड़ा में पहली बार कृषि से संबंधित लौह उपकरण प्राप्त हुए हैं.

4.      उत्तर वैदिक काल में, कई शिल्प और व्यवसाय भी विकसित हो गए थे. इनमें पशुओं को पालना, मिट्टी के बर्तन बनाना, लोहार, संगीतकार और सुनार जैसे व्यवसाय शामिल थे.

5.      उत्तर वैदिक काल में, राजतंत्र क्रमशः व्यवस्थित रूप ग्रहण कर रहा था और वह शक्तिमान होता जा रहा था.

वैदिक साहित्य

1.      वैदिक साहित्य, वेदों से प्रेरित या तैयार किए गए लेखों का संग्रह है. इसमें वेद, ब्राह्मण, अरण्यक, और उपनिषद शामिल हैं. वैदिक साहित्य को 'श्रुति' भी कहा जाता है.

2.      वैदिक साहित्य में चारों वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद आते हैं. इनमें से वैदिक संहिता को सबसे प्राचीन माना जाता है.

3.      ऋग्वेद संहिता सबसे प्राचीनतम है जिसे संक्षेप में ऋग्वेद के नाम से जाना जाता है. 'ऋग्वेद संहिता' का शाब्दिक अर्थ 'ऋचाओं के ज्ञान का संग्रह' है.

4.      वैदिक साहित्य में धार्मिक विषयों में यज्ञ, देवता, उनके स्वभाव, भेद आदि आए हैं. लौकिक विषयों में मानव की इच्छाएँ, संकट और उनके निवारण, समाज का स्वरूप, चिकित्सा, दान, विवाह आदि हैं. इनसे समाज के विविध पक्षों का बोध होता है.

5.      वैदिक साहित्य को विश्व का प्राचीनतम स्रोत माना जाता है. संस्कृत भाषा के प्राचीन रूप को लेकर भी इनका साहित्यिक महत्व बना हुआ है.

वैदिक साहित्य को कितने भागों में बांटा गया है?

वैदिक साहित्य को निम्न भागों में बांटा गया है:

1.      संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, वेदांग, सूत्र-साहित्य|

2.      वैदिक साहित्य में चार वेद शामिल हैं: ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद|

3.      प्रत्येक वेद के मन्त्र पाठ को संहिता कहा जाता है. वैदिक साहित्य के छह अंग माने गए हैं:

4.      शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, छंद|

5.      वेदों को सनातन वर्णाश्रम धर्म का मूल माना जाता है. 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के 'वेद ज्ञान' धातु से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'ज्ञान'.

सबसे पुराना वैदिक साहित्य कौन है?

1.      ऋग्वेद को चारों वेदों में सबसे प्राचीन माना जाता है.

2.      पाश्चात्य विद्वानों का मानना है कि ऋग्वेद की संहिता सबसे प्राचीन है. उनका मानना है कि इसके ज़्यादातर सूक्तों की रचना पंजाब में हुई.

3.       ऋग्वेद संहिता का अधिकांश भाग भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र (पंजाब) में रचा गया था. संभवतः यह लगभग 1500 और 1200 ईसा पूर्व के बीच रचा गया था. हालांकि, कुछ लोगों का अनुमान है कि यह 1700-1100 ईसा पूर्व के बीच रचा गया था.

वैदिक धर्म का विकास प्रारंभिक वैदिक काल (1500–1100 ईसा पूर्व) के दौरान हुआ था. लेकिन इसकी जड़ें सिन्ट्हस्ता संस्कृति (2200-1800 ईसा पूर्व) और उसके बाद के मध्य एशियाई ऐंड्रोनोवो संस्कृति (20000-9000 ईसा पूर्व) और संभवतः सिंधु घाटी की सभ्यता (2600-1900 ईसा पूर्व) में भी हैं.

वैदिक साहित्य की भाषा

1.      वैदिक साहित्य की भाषा संस्कृत है. इसे वैदिक संस्कृत कहा जाता है.

2.      यह संस्कृत की पूर्वज भाषा थी और आदिम हिन्द-ईरानी भाषा की बहुत ही निकट की सन्तान थी. वैदिक संस्कृत और अवस्ताई भाषा (प्राचीनतम ज्ञात ईरानी भाषा) एक-दूसरे के बहुत निकट हैं.

3.      वैदिक संस्कृत 2000 ईसापूर्व से लेकर 600 ईसापूर्व तक बोली जाने वाली एक हिन्द-आर्य भाषा थी. यह भाषा भारत के पश्चिमोत्तर भाग में स्थित सप्तसिन्धु प्रदेश के निवासियों की साहित्यिक अभिव्यक्ति थी.

4.      वैदिक संस्कृत, लौकिक संस्कृत से थोड़ा भिन्न है. वैदिक संस्कृत शब्दों के प्रयोग और अर्थ कालान्तर में बदल गए या लुप्त हो गए माने जाते हैं.

वैदिक संस्कृत की लिपि क्या है?

1.      वैदिक संस्कृत को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है.

2.      देवनागरी लिपि को संस्कृत के लिए ही बनाया गया था. इसमें हर चिह्न के लिए एक और सिर्फ़ एक ही ध्वनि है. देवनागरी में 13 स्वर और 33 व्यंजन हैं.

3.      वैदिक संस्कृत को पवित्र भाषा माना जाता है. यह वेद नामक हिंदू पवित्र ग्रंथ की रचना के लिए इस्तेमाल होने वाला रूप था.

संस्कृत को सबसे पहले ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों में लिखा गया था. प्राचीन समय में संस्कृत को ब्राह्मी लिपि में लिखा जाता था. देवनागरी, जो आज हिन्दी और मराठी के साथ कोंकणी भाषा की भी आधिकारिक लिपि है, भारत में उपयोग की जाने वाली लगभग सभी लेखन प्रणालियों का उपयोग संस्कृत लिखने के लिए भी किया गया है.

वैदिक संस्कृत में कितने स्वर थे?

1.      वैदिक संस्कृत में 16 स्वर थे.

2.      संस्कृत वर्णमाला में कुल 50 अक्षर होते हैं. इनमें 13 स्वर, 33 व्यंजन, और 4 अयोगवाह होते हैं.

3.      संस्कृत में स्वर, व्यंजनों से एक स्वतंत्र समूह बनाते हैं. पंद्रह स्वर होते हैं जिनमें पाँच लघु, आठ दीर्घ, और दो सहायक स्वर शामिल हैं. इन पन्द्रह में से केवल तेरह ही इन दिनों सामान्य उपयोग में हैं.

4.      वैदिक संस्कृत में स्वर तीन प्रकार के थे: उदात्त, अनुदात्त|

5.      वैदिक संस्कृत की कुछ ध्वनियाँ जैसे ढ् लह् जिह्वामूलीय तथा उपध्यानीय ध्वनियाँ लौकिक संस्कृत में नहीं पाई जाती.

वैदिक काल में विद्वान थे

1.      वैदिक काल में अति विद्वान, स्वाध्यायी, धर्मपरायण, और सच्चरित व्यक्ति ही गुरु हो सकते थे. ये अतिज्ञानी के साथ-साथ अति संयमी भी होते थे. उस समय इन्हें समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था. ये देव रूप में प्रतिष्ठित थे.

2.      वैदिक काल की कुछ प्रमुख महिला विद्वान:

1.      मैत्रेयी: एक दार्शनिक और विद्वान थीं. मैत्रेयी ऋषि याज्ञवल्क्य की पत्नी थीं.

2.      गार्गी: ऋषि वाचक्नु और वैदिक भविष्यवक्ता की बेटी थीं. गार्गी ने कई भजनों की रचना की जो मानव अस्तित्व की उत्पत्ति पर सवाल उठाते थे.

3.      लोपामुद्रा: ऋग्वेद में वर्णित एक प्रसिद्ध महिला ऋषि और विद्वान थीं. अगस्त्य ऋषि की पत्नी लोपामुद्रा ने ऋग्वेद के दो छंदों की रचना की.

4.      ऋग्वेद में विदुषी स्त्री को '" ऋषि '" कहते थे.

वैदिक काल में विद्वानों की सभा को क्या कहा जाता था?

1.      वैदिक काल में विद्वानों की सभा को 'सभा' कहा जाता था.

2.      अथर्ववेद में सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है.

3.      सभा में गांव के बुज़ुर्ग शामिल होते थे.

4.      सभा जनजाति के महत्वपूर्ण सदस्यों की एक छोटी सभा थी जो राजा को सलाह और मार्गदर्शन प्रदान करते थे.

5.      वैदिक काल में दो तरह की जनजातीय सभाएं होती थीं: सभा, समिति

6.      समिति एक बड़ी सभा थी. इसमें जनजाति का कोई भी सदस्य जनजाति से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों पर अपनी राय दे सकता था.

7.       समिति का महत्वपूर्ण काम राजा का चुनाव करना था. समिति का प्रधान ईशान या पति कहलाता था.

8.      वैदिक काल में विदथ नाम की एक और संस्था थी. ऋग्वेद में विदथ का 122 बार ज़िक्र हुआ है.

9.      संभवतः यह आर्यो की प्राचीनतम संस्था थी. विदथ में लूटी गई वस्तुओं का बंटवारा होता था.

वैदिक काल के संस्थापक कौन थे?

1.      वैदिक काल के संस्थापक आर्यों को माना जाता है. 'आर्य' शब्द का मतलब होता है श्रेष्ठ, कुलीन, उत्तम, उत्कृष्ट. वैदिक संस्कृति को विद्वानों ने इतिहास में आद्य ऐतिहासिक काल के अंतर्गत रखा है.

2.      वैदिक काल को प्राचीन भारत का एक कालखंड माना जाता है. यह काल 1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व के बीच माना जाता है. वैदिक काल की जानकारी हमें मुख्यतः वैदिक साहित्य से मिलती है.

3.      वैदिक साहित्य प्रधानतया धर्मपरक है.

4.      वैदिक काल में, समाज को चार वर्गों में बांटा गया था जिन्हें वर्ण कहा जाता है. चार वर्ण हैं: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र.

वैदिक काल का दूसरा नाम क्या था?

1.      वैदिक काल को वैदिक सभ्यता भी कहते हैं. वैदिक काल को ऋग्वैदिक या पूर्व वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल भी कहते हैं.

2.      ऋग्वैदिक काल को लगभग 1800-1500 ईसा पूर्व का माना जाता है. ऋग्वेद को सभी वेदों में सबसे पुराना माना जाता है.

3.      वैदिक काल को भारत के इतिहास का अंतिम कांस्य युग और प्रारंभिक लौह युग का काल माना जाता है. वैदिक काल में, इंडो-आर्यन (लगभग 1750 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व) ज़्यादातर देहाती गतिविधियों, छोटी अर्थव्यवस्था के साथ सीमित कृषि में विश्वास करते थे.

4.      वैदिक काल को दो भागों में बांटा गया है: ऋग्वैदिक काल, उत्तरवैदिक काल

वैदिक काल में भारत का नाम क्या है?

1.      वैदिक काल में भारत को आर्यावर्त नाम से जाना जाता था.

2.      आर्यावर्त का मतलब है आर्यों की भूमि. आर्यावर्त और भरत का उल्लेख वेदों, अनेक शास्त्रों और महाभारत में मिलता है.

3.      भरत ऋग्वेद में वर्णित वैदिक जनजाति थे.

4.      वैदिक काल में भारत को कई और नामों से भी जाना जाता था. जैसे:

5.      जम्बूद्वीप, भारतखंड, हिमवर्ष, हिंदुस्तान, हिन्द, अल-हिंद

वैदिक काल में सिक्कों को क्या कहा जाता था?

1.      वैदिक काल में सिक्कों को शतमान कहा जाता था. वैदिक काल में सिक्कों को शतमान कहा जाता था. वैदिक काल को 1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व के बीच का समय माना जाता है.

2.       वैदिक साहित्य को श्रुति कहा जाता है. वैदिक साहित्य को 'श्रुति' कहा जाता है, क्योंकि (सृष्टि/नियम)कर्ता ब्रह्मा ने विराटपुरुष भगवान् की वेदध्वनि को सुनकर ही प्राप्त किया है. अन्य ऋषियों एवं ऋषिकाओं ने भी इस साहित्य को श्रवण-परम्परा से ही ग्रहण किया था.

3.      वैदिक काल में राजा की शक्ति की वैधता पुजारी द्वारा यज्ञ और अनुष्ठानों करके दी जाती थी. राज्य मामलों में राजा की सहायता करने वाले अधिकारी को रत्नी बोला जाता था.

उपनिषद

1.      उपनिषद, हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है.

2.       ये वैदिक वाङ्मय का हिस्सा हैं. इनकी संख्या लगभग 200 है, लेकिन मुख्य उपनिषद 13 हैं. हर एक उपनिषद किसी न किसी वेद से जुड़ा हुआ है.

3.      उपनिषदों में ब्रह्म यानी ईश्वरीय सत्ता के स्वभाव और आत्मा के बीच अंतर्संबंध की दार्शनिक और ज्ञान-पूर्वक संपूर्ण व्याख्या की गई है. उपनिषदों को श्रुति ग्रंथ में शामिल किया गया है. ऐसा कहा जाता है कि उपनिषद ही सभी भारतीय दर्शनों की जड़ है.

4.      उपनिषद ब्रह्मांड में स्पष्ट विविधता के पीछे एक एकल, एकीकृत सिद्धांत के साथ एक परस्पर जुड़े ब्रह्मांड की दृष्टि प्रस्तुत करते हैं. जिसके किसी भी अभिव्यक्ति को ब्राह्मण कहा जाता है. इस संदर्भ में, उपनिषद यही शिक्षा देते हैं कि ब्राह्मण निवास करता है आत्मा, मानव व्यक्ति का अपरिवर्तनीय मूल.

5.      उपनिषदों में परमात्मा, आत्मा, सृष्टी, जीव, आराधना, मोक्ष, आदि गहन विषयों पर व्याख्या है. उपनिषद पढ़ने से हमें, ईश्वर का महत्त्व, जीवन का महत्त्व, जीवन का लक्ष्य, आदि विषय ज्ञात होते हैं.

6.      उपनिषदों ने विवेचनात्मक भाषा के विकास में योगदान देने के अलावा, कटौती, तुलना, आत्मनिरीक्षण और बहस सहित ज्ञान प्राप्त करने के कई साधनों की खोज के द्वारा बाद में दार्शनिक बहस को आगे बढ़ाया.

1.      छान्दोग्य और वृहदारण्यक उपनिषद गद्य में लिखे प्राचीनतम उपनिषद है

2.      कठ और श्वेताश्वर उपनिषद पद्य में लिखे प्राचीनतम उपनिषद है

3.      कठोपनिषद में यम-नचिकेता संवाद में मृत्यु के रहस्य संबंधी आध्यात्मिक चर्चा है

4.      सत्यमेव जयते मुण्डकोपनिषद से लिया गया है.

कितने प्रकार के वेदांग है?

1.      वेदों को सही ढंग से समझने के लिए वेदांगों की रचना की गई थी. ये सभी गद्य में लिखे गए हैं.

2.      वेदांग छह हिंदू सहायक अनुशासन हैं जो प्राचीन काल में उत्पन्न हुए थे. वेदों के अंगों को वेदांग कहा जाता है.

3.      वेदांग के छह प्रकार हैं:

शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छंद, निरुक्त

4.      इनमें से निरुक्त के रचनाकार यास्‍क हैं. बाकी अंगों के रचनाकार नहीं हैं. वेदों की समझ में सहायक अंग हैं. जैसे शिक्षा का मतलब वैदिक मंत्रों के उच्‍चारण की विधि जानने से है.

5.      पहले चार वेदांग, मंत्रों के शुद्ध उच्चारण और अर्थ समझने के लिए हैं. वहीं, अंतिम दो वेदांग धार्मिक कर्मकांड और यज्ञों का समय जानने के लिए ज़रूरी हैं. व्याकरण को वेद का मुख कहा जाता है, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को श्रोत्र, कल्प को हाथ, शिक्षा को नासिका, और छंद को दोनों पैर.

षड्दर्शन

1.      षड्दर्शन, वैदिक दर्शनों में छह प्रसिद्ध और प्राचीन दर्शन हैं. इन्हें आस्तिक दर्शन भी कहा जाता है. षड्दर्शन के ये छह विभाग हैं:

2.      न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन, योग दर्शन, मीमांसा दर्शन, सांख्य दर्शन, वेदांत दर्शन|

3.      इनके प्रणेता कपिल, पतंजलि, गौतम, कणाद, जैमिनि, और बादरायण थे. इनके आरंभिक संकेत उपनिषदों में भी मिलते हैं.

4.      षड्दर्शन, भारतीय दार्शनिक और धार्मिक विचारों का परिणाम है. यह हज़ारों सालों के चिंतन से निकला और हिन्दू (वैदिक) दर्शन के नाम से प्रचलित हुआ.

5.      षड्दर्शन के बारे में कुछ और बातें:

1.      षड्दर्शन में परमात्मा को सृष्टिकर्ता, निराकार, सर्वव्यापक और जीवात्मा को शरीर से अलग माना गया है.

2.      इस दर्शन में प्रकृति को अचेतन और सृष्टि का उपादान कारण माना गया है.

3.      इसमें स्पष्ट रूप से त्रैतवाद का प्रतिपादन किया गया है.

4.      भौतिक जगत और आज के युग में इस दर्शन का विशेष महत्व है.

5.      महर्षि कणाद इस दर्शन के रचयिता माने जाते हैं.

पुराण

1.      पुराण शब्द का मतलब है प्राचीन आख्यान या रचना. ये हिन्दू धर्म के प्राचीनतम ग्रंथों में से एक हैं.

2.       इनमें सृष्टि से लेकर प्रलय तक का इतिहास-वर्णन शब्दों से किया गया है.

3.      पुराणों में गाथाएं, कथाएं, और जीवन के प्रेय व श्रेय, कर्म-अकर्म, धर्म-अधर्म, बंधन-मोक्ष, लोक-परलोक, सुमार्ग-कुमार्ग और स्वर्ग-नरक के विश्लेषणात्मक विवरण हैं.

4.      पुराणों में लिखी बातें और ज्ञान आज भी सही साबित हो रहे हैं. पुराण में लिखा ज्ञान हमारी हिन्दू संस्कृति और सभ्यता का आधार है.

5.      पुराणों को धर्म और इतिहास के मिश्रण के रूप में लिखे गए ग्रंथ माना जाता है. माना जाता है कि उनके लेखन में व्यास और उनकी परंपरा का बड़ा योगदान है.

6.      पुराणों के बारे में कुछ और बातें:

1.      पुराण शब्द 'पुरा' एवं 'अण' शब्दों की संधि से बना है. पुरा का अर्थ है- 'पुराना' अथवा 'प्राचीन' और अण का अर्थ होता है कहना या बतलाना.

2.      पुराणों में मिथकों, किंवदंतियों और अन्य पारंपरिक विद्याओं के बारे में भारतीय साहित्य की एक विशाल शैली है.

3.      महाभारत के कथावाचक व्यास को भौगोलिक दृष्टि से पुराणों के संग्रहकारी के रूप में श्रेय दिया जाता है.

4.      मुख्य पुराण 18 है। मत्स्यपुराण प्राचीनतम है। अंतिम संकलन गुप्त काल में हुआ। पुराण पंचम वेद कहलाते है।

 

 

 

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