Advertisement

Constitutional Dispute in Indian Constitution: Golden Triangle Case

संवैधानिक विवाद 


संविधान का स्वर्ण त्रिभुज (Golden Triangle)

मिनर्वा मिल्स लिमिटेड एंव अन्य बनाम भारत संघ,  के मामले में संविधान पीठ के न्यायाधीश श्री वाय. व्ही. चन्द्रचूड़ ने संविधान के अनुच्छेद 14, 19 एवं 21 को संविधान का स्वर्ण त्रिभुज माना तथा इसकी रक्षा करना हम सबकी जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार किया. उपरोक्त स्वर्ण त्रिभुज के बारे में संविधान के प्रस्तावना में गारंटी प्रदान करता है. देश में समतामूलक समाज की स्थापना इन उपबंधों के बिना संभव नहीं है. प्रस्तावना ने देश के लागों को आश्वासन दिया है कि समानता, स्वतंत्रता एवं वैयक्तिक गरिमा के लक्ष्य को हम प्राप्त करेंगे. संविधान पीठ ने यह भी माना है कि प्रस्तावना में दिए गए लक्ष्य को संशोधित नहीं किया जा सकता. संविधान (42वें संशोधन) अधिनियम की धारा 4 संसद की संशोधन शक्ति से परे है. असंगत विधियां शून्य मानी जायेगी. प्रस्तावना के अलावा अनुच्देद 14, 19 एवं 21 एक आधारभूत ढांचा है. इस मामले को प्रमति एजुकेशन एंड कल्चरल ट्रस्ट एंड अदर्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स  के मामले में संविधान के स्वर्ण त्रिभुज एवं प्रस्तावना के महत्व को समन्वय स्थापित करते हुए समतामूलक समाज की स्थापना करने तथा देश की अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए निजी स्कूलों में आरक्षण दिये जाने की वकालत की.



न्यायाधीश के. जी. बालकृष्णनः- दिनांक 8 फरवरी, 2007 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित राज्य के मुख्यमंत्रियों एवं उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की संयुक्त सम्मेलन को संबोधित करते हुए तत्कालिन उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने ‘‘न्याय’’ को सर्वोच्च स्थान दिया है. हमारे संविधान की प्रस्तावना में न्याय को दूसरे सिद्धांतों जैसे स्वतंत्रता, समता और भातृत्व की भावना से वरियता दी है. साथ ही सामाजिक न्याय एवं आर्थिक न्याय को राजनीतिक न्याय से प्राथमिकता दी गई है. लोगों को न्याय की तलाश में न्यायपालिका के शरण में आना होता है. इसलिए न्यायपालिका को स्वतंत्र इकाई के रूप में स्वीकार की गई है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता विधि-शासन का एक आवश्यक तत्व है. न्यायपालिका संविधान के संरक्षक भी है. प्रस्तावना के लक्ष्य को प्राप्त करना राज्य का दायित्व है. न्यायपालिका, विधायिका एवं कार्यपालिका के मध्य अन्र्तसंबंध बना रहे इसके लिए चैक एण्ड बैलेन्स जैसे सिद्धांत को स्वीकार किया गया है. प्रस्तावना में लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना करने की बात कही गई है. समाजवाद, पंथनिरपेक्ष गणराज्य बनाने की संकल्पना भी दी गई है. राज्य के हर अंग की भूमिका और कार्य को सीमांकित करता है, न्यायपालिका एवं उनके अंतर्सबंधों के लिए मापदण्डों को स्थापित किया गया है. कोई अंग न तो छोटा है और न ही बड़ा है, हम सबकी जिम्मेदारी है कि देश को किस तरह से हम उन्नति के मार्ग में ले जाए और प्रस्तावना की भावना लोककल्याणकारी राज्य की संकल्पना को हम पूरा करें. 

दिनांक 21 अप्रैल, 2009 को सिविल सर्विस डे के समापन समारोह में तत्कालिन उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि प्रस्तावना में लोक कल्याणकारी राज्य की संकल्पना की बात की गई है. संविधान के अनुच्छेद 31 (1) में उपबंधित किया गया था कि राज्य लोगों के कल्याण को प्रोन्नत करने के लिए प्रयास करेगा. लोक कल्याणकारी राज्य की संकल्पना के अंतर्गत लोगों के स्वास्थ्य, सुरक्षा, व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामूहिक एवं सामजिक कल्याण आदि सम्मिलित है. आज गरीबी, भूखमरी, महिला के विरूद्ध अत्याचार, पर्यावरण प्रदूषण, लड़कियों की खरीद फरोस्त जैसे समस्याओं से राज्य ग्रस्त है. 

आज वर्तमान में राज्य का मुख्य उद्देश्य है विकसित होना. विकास आधुनीकरण, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण का प्रतीक है. यह तरक्की की प्रक्रिया को इंगित करती है. राज्य की भलाई एवं तरक्की के लिए विकास के साथ-साथ सतत् एवं सकारात्मक विकास को प्राथमिकता देने की जरूरत है. पहले ब्रम्हाण्ड को सुरक्षित रखना है, इसके लिए पर्यावरण को संरक्षित रखना पड़ेगा. पर्यावरण संरक्षण के बिना आधुनीकरण, औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण निरर्थक है.

Post a Comment

2 Comments

  1. Nice article thanks sir ji 🙏🙏🙏✋

    ReplyDelete
  2. Sir ji.. NAT paper 1 ka.. 10 unit pura paper milega.. our History paper 2 ke nots bi..

    ReplyDelete

Best Knowledge

Draft FIR